तितली का पंख हूँ,
पकड़ने का यत्न न करना
टूट तो जाऊँगी ही मैं
किन्तु हाथ तुम्हारे भी
न आऊँगी मैं।
चूरा चूरा हो जाऊँगी
खत्म हो जाऊँगी
किन्तु हाथ तुम्हारे या
अन्य किसी के
कभी न आऊँगी मैं।
मैं हाथी दाँत नहीं
जो अकूत शक्ति वाले
को मारकर तुम पा जाओगे
मैं पंख हूँ नाजुक तितली का
जो तुम छीन ना पाओगे।
तितली का पंख हूँ मैं
चाहूँगी तो अधरों, चिबुक या
पलकों को छू उड़ जाऊँगी मैं
पकड़ना चाहोगे तो हाथ में
शव ही मेरा पाओगे तुम।
घुघूती बासूती
घुघूती जी,
ReplyDeleteकविता की आत्मा बहुत सुंदर है, पर तन निखारने की आवश्यकता है। इसे प्रकाशित करने में कुछ जल्दी नहीं हो गई?
जी हाँ, जल्दी तो हुई ही. न करती तो शायद पोस्ट ही न कर पाती. निखारने का यत्न किया जाएगा. दौड़ते भागते ये पंक्तियाँ लिख डालीं.
ReplyDeleteघुघूतीबासूती
मानव प्रकृति के साथ यही कर रहा है।
ReplyDeleteसुन्दर भावनाओं को अभिव्यक्त किया है.
ReplyDeleteनाजुक सौंदर्य के अस्तित्व बोध को बलशाली के सहअस्तित्व की कामना को चुनौती देना और वह भी आत्मघाती / हाराकिरी के अंदाज़ में ...
ReplyDeleteअस्तित्व की स्वतंत्रता की शिद्दत / तीव्रता प्रभावित भी करती है !... पर जीवन और प्रकृति के सहअस्तित्व / सहजीविता नियम का निषेध भी करती हुई लगती है !
बाप रे ,तितली तूं क्या यह सब अलाय बलाय कहे जा रही है !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर मनोभाव...तितली के पंखों की तरह ही कोमल....
ReplyDeleteसादर.
कोमल मनोभावों की सुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteबालक को यह अभास कहाँ कि रंगों से भरा यह चलता फिरता इन्द्रधनुष भी उसकी तरह ही जीता जागता प्राणी है। :(
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना. पुराना एक फ़िल्मी गीत याद आ गया. "तितली उडी, उड़ा जो चली, फूल ने कहा, आजा मेरे पास, तितली कहे मैं उडी आकश"
ReplyDeleteसुन्दर भाव, निर्थक तृष्णा पर लगाम दो, मिलेगा तो कुछ नहीं पर जान चली जाएगी।
ReplyDeleteसमझ पायेगा कोई तितली का यह मनोभाव
ReplyDeleteबेहतरीन नाज़ुक एहसासों से भीगी कविता......
ReplyDeleteमैं पंख हूँ नाजुक तितली का
जो तुम छीन ना पाओगे।
तितली का पंख हूँ मैं
चाहूँगी तो अधरों, चिबुक या
पलकों को छू उड़ जाऊँगी मैं
पकड़ना चाहोगे तो हाथ में
शव ही मेरा पाओगे तुम।
बहुत सुन्दर दाद क़ुबूल फरमाएं !
शायद हमारी टिपण्णी स्पैम में चली गई ।
ReplyDeleteयही सच अगर समझ लेआदमी तो सब-कुछ कितना आसान हो जाय !
ReplyDeleteनाज़ुक पर अपरिमित शक्ति
ReplyDeleteतितली - अदभुत चाह , उड़ान , सौंदर्य .... कम मत समझना
डॉक्टर दराल जी, क्षमा कीजिएगा,स्पैम में नहीं है। न जाने क्यों कुछ टिप्पणियाँ खो जा रही हैं। ब्लॉगर के लिए ये कितनी अमूल्य होती हैं यह कैसे समझाएँ व किसे समझाएँ? मेरी भी न जाने कितनी टिप्पणियाँ खो जा रही हैं। दुख तो तब होता है जब लम्बी चौड़ी टिप्पणी दी हो। मुझे लगता है कि हमें टिप्पणियों को भी एक दो दिन संभाल लेना चाहिए ताकि खोने पर पुनः कर सकें।
ReplyDeleteआशा है आप भविष्य में भी अपनी राय देते रहेंगे।
घुघूतीबासूती
बहुत मार्मिक कविता है. बधाई.
ReplyDeletekash har koi dusro ke dil ki peeda samaj pata...apne manoranjan ke liye log kisi ko kitna bhi kast de dete hai...
ReplyDeletewelcome to माँ मुझे मत मार
बचपन में तितली के पीछे दौडते थे उसे पकडने को वही याद आ गया । कई बार तो अपने आप आपके हथेली पर बैठ जायेनही तो कुचल जा.े पर हात ना आये । ऐसा ही है हमारा मन ।
ReplyDeleteबड़ा ही कोमल दिल है अपना..
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