समय समय की बात है
अब वसंत स्वयं नहीं
कान में गुनगुना जाता
अपने आने का संगीत,
न ही पिताजी बैठ
अपनी पूजा में, रंगते
हमारे रुमाल वासंती,
न ही कोई कैलेंडर देता
इसके आने की सूचना।
अब तो यह सूचना भी
नेट ही दे देता है
वसंत आभासी हो गया।
आओ आभासी वसंत,
आओ.
कुछ पल बैठो
कुछ बतियाओ
अपना हाल बताओ
मेरा सुन जाओ
अपने होने का
आभास कराओ
आभासी मन ही
वासंती कर जाओ।
घुघूती बासूती
सुन्दर वसन्त.
ReplyDeleteबहुत दिनों के कोहरे के बाद आज चटक धूप दिखी। घर में दाल की पूरी के साथ खीर बनी। लगा वसंत आया।
ReplyDeleteऔर यह आभास भर नहीं था!
True,really a make believe only!
ReplyDeleteकल तक तो कोहरा था, कड़ाकी ठंड थी। जैसा आपने लिखा वैसा ही था मन मेरा। लेकिन आज सुबह सूरज की पहली किरण के साथ जो चटक धूप खिली कि आनंद आ गया। लगा कि वसंत है।
ReplyDeleteहाँ..आपकी कविता अच्छी लगी।
ReplyDeleteअच्छा संदेश आभासी जगत के लिये।
ReplyDeleteयह भाव है आनन्द का
ReplyDeleteदीदी! अभी किसी पोस्ट पर लिखा है मैंने कि वे सारी बातें पीढ़ी दर पीढ़ी बिल्कुल एक जैसी चलती आ रही थीं. पता नहीं कहाँ जाकर लुप्त हो गईं! और मैं जहाँ हूँ वहाँ तो साल में एक त्यौहार मनाया जाता है, बाकी त्यौहारों का पता रिश्तेदारों के फ़ोन से ही लगता है!!
ReplyDeleteसही कहा आपने "आभासी त्यौहार!"
फेसबूक और हम सबकी आभासी दुनिया मे सच में बसंत आ गया :)
ReplyDeleteबेशक पर्यावरण का चक्र उसको अभी आने नहीं दे रहा !!
आप शानदार ;लिखती हैं
प्रकृति का एक नवीनतम परिधान !
ReplyDeleteबहुत सही कहा आपने !!