Wednesday, July 10, 2013

तृष्णा तृप्ति

वर्षा में बरसें बादल
यह है बादल का स्वभाव
है धरती का अधिकार।

जब ॠतु न हो वर्षा की
अपेक्षा न हो जल की
फिर भी,
बेमौसम हो जाए धरती प्यासी,
इतनी प्यासी
कि वह तृष्णा ही बन जाए
आस लगाए देखे वह ऊपर
झुलसें आँखें
सूर्यताप से
किन्तु जिद्दी धरती,
राह तके इक बादल की
चाहत हो केवल कुछ बूँदों की।

ऐसे में आए अम्बर पर
इक चंचल बंजारा बादल
सूँघ दूर से धरती की तृष्णा
बिन माँगे बरसे वह ऐसे
जैसे जीनी हो उसे
बस धरती की चाहत.
वह बन जाए अमृत
धरा स्वयं तृष्णा बन जाए
अमृत‍‌ तृष्णा, धरा व बादल
खो स्वरूप
बस तृप्ति बन जाएँ।

घुघूती बासूती

12 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज बुधवार (10-07-2013) को निकलना होगा विजेता बनकर ......रिश्तो के मकडजाल से ....बुधवारीय चर्चा-१३०२ में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. ऐसे में आए अम्बर पर
    इक चंचल बंजारा बादल
    सूँघ दूर से धरती की तृष्णा
    बिन माँगे बरसे वह ऐसे
    जैसे जीनी हो उसे
    बस धरती की चाहत.
    वह बन जाए अमृत
    धरा स्वयं तृष्णा बन जाए
    अमृत‍‌ तृष्णा, धरा व बादल
    खो स्वरूप
    बस तृप्ति बन जाएँ।

    बहुत ही सुंदर रचना.

    रामराम.

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  3. चलता रहता चक्र सनातन,
    वाष्पित होता कभी बरसता,
    जितना जाता, उतना आता,
    अपने मन से वितरण करता।

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  4. आपकी कविताओं की सबसे अच्छी बात है कि सहज ही समझ में आ जाती हैं -
    चातक को भी ऐसी ही तृप्ति की आस रहती है मगर उसका एकान्तिक प्रेम बस स्वाति के मेघ से रहता है!
    संस्कृत के कवि ने भी उसे बार बार चेताया है कि वह बस अपने स्वाति -प्रेम को ही समर्पित रहे .सब बादलों पर निगाह
    न लगाए !
    अब यह आपकी कविता का ही तो कमाल है कि मुझे यह सब याद हो आया !

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  5. सरिताओं के जीवन पर जब
    करता तपन कठोर प्रहार
    व्योम मार्ग से जलधि भेजता
    उन तक निज उर की रसधार

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  6. वाह क्या बात है. मैंने तो समझ रखा था कि किसी से प्यार हो जाने पर ही लोग कविता लिखने लगते हैं, वैसे ही इश्क हो जाने पर शायरी. गलत धारणा थी

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    1. ... और नज़्म मुहब्बत में लिखी जाती है।

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  7. बहुत सुन्दर कविता

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  8. @ सुब्रमण्यमजी,
    धारणा गलत क्यों थी ?

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  9. बहुत सुन्दर प्रस्तुति....

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  10. तृप्ति की कामना जब तपस्या हो जाती है वो बादल प्रतीक्षा नहीं कर पाते ...
    भाव मय प्रस्तुति ...

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