वर्षा में बरसें बादल
यह है बादल का स्वभाव
है धरती का अधिकार।
जब ॠतु न हो वर्षा की
अपेक्षा न हो जल की
फिर भी,
बेमौसम हो जाए धरती प्यासी,
इतनी प्यासी
कि वह तृष्णा ही बन जाए
आस लगाए देखे वह ऊपर
झुलसें आँखें
सूर्यताप से
किन्तु जिद्दी धरती,
राह तके इक बादल की
चाहत हो केवल कुछ बूँदों की।
ऐसे में आए अम्बर पर
इक चंचल बंजारा बादल
सूँघ दूर से धरती की तृष्णा
बिन माँगे बरसे वह ऐसे
जैसे जीनी हो उसे
बस धरती की चाहत.
वह बन जाए अमृत
धरा स्वयं तृष्णा बन जाए
अमृत तृष्णा, धरा व बादल
खो स्वरूप
बस तृप्ति बन जाएँ।
घुघूती बासूती
यह है बादल का स्वभाव
है धरती का अधिकार।
जब ॠतु न हो वर्षा की
अपेक्षा न हो जल की
फिर भी,
बेमौसम हो जाए धरती प्यासी,
इतनी प्यासी
कि वह तृष्णा ही बन जाए
आस लगाए देखे वह ऊपर
झुलसें आँखें
सूर्यताप से
किन्तु जिद्दी धरती,
राह तके इक बादल की
चाहत हो केवल कुछ बूँदों की।
ऐसे में आए अम्बर पर
इक चंचल बंजारा बादल
सूँघ दूर से धरती की तृष्णा
बिन माँगे बरसे वह ऐसे
जैसे जीनी हो उसे
बस धरती की चाहत.
वह बन जाए अमृत
धरा स्वयं तृष्णा बन जाए
अमृत तृष्णा, धरा व बादल
खो स्वरूप
बस तृप्ति बन जाएँ।
घुघूती बासूती
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज बुधवार (10-07-2013) को निकलना होगा विजेता बनकर ......रिश्तो के मकडजाल से ....बुधवारीय चर्चा-१३०२ में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह!
ReplyDeleteऐसे में आए अम्बर पर
ReplyDeleteइक चंचल बंजारा बादल
सूँघ दूर से धरती की तृष्णा
बिन माँगे बरसे वह ऐसे
जैसे जीनी हो उसे
बस धरती की चाहत.
वह बन जाए अमृत
धरा स्वयं तृष्णा बन जाए
अमृत तृष्णा, धरा व बादल
खो स्वरूप
बस तृप्ति बन जाएँ।
बहुत ही सुंदर रचना.
रामराम.
चलता रहता चक्र सनातन,
ReplyDeleteवाष्पित होता कभी बरसता,
जितना जाता, उतना आता,
अपने मन से वितरण करता।
आपकी कविताओं की सबसे अच्छी बात है कि सहज ही समझ में आ जाती हैं -
ReplyDeleteचातक को भी ऐसी ही तृप्ति की आस रहती है मगर उसका एकान्तिक प्रेम बस स्वाति के मेघ से रहता है!
संस्कृत के कवि ने भी उसे बार बार चेताया है कि वह बस अपने स्वाति -प्रेम को ही समर्पित रहे .सब बादलों पर निगाह
न लगाए !
अब यह आपकी कविता का ही तो कमाल है कि मुझे यह सब याद हो आया !
सरिताओं के जीवन पर जब
ReplyDeleteकरता तपन कठोर प्रहार
व्योम मार्ग से जलधि भेजता
उन तक निज उर की रसधार
वाह क्या बात है. मैंने तो समझ रखा था कि किसी से प्यार हो जाने पर ही लोग कविता लिखने लगते हैं, वैसे ही इश्क हो जाने पर शायरी. गलत धारणा थी
ReplyDelete... और नज़्म मुहब्बत में लिखी जाती है।
Deleteबहुत सुन्दर कविता
ReplyDelete@ सुब्रमण्यमजी,
ReplyDeleteधारणा गलत क्यों थी ?
बहुत सुन्दर प्रस्तुति....
ReplyDeleteतृप्ति की कामना जब तपस्या हो जाती है वो बादल प्रतीक्षा नहीं कर पाते ...
ReplyDeleteभाव मय प्रस्तुति ...