तुम्हें भुला ही देती
दो जोड़ी पैरों के
निशान छोड़े होते
जो हमने रेत पर .
पानी पर चले होते
जो हाथ पकड़ कर
मिल गुजरे होते
फूलों की घाटी से .
नापी होती परछाइयाँ
व परछाइयों की नाक
खिलखिलाते हुए किसी
सुबह या ढलती शाम.
मिल खड़े हुए होते
किसी ठोस धरातल
स्वप्न बुने होते दो सर
की चांदी के तारों से.
कैसे भुलाऊं सागर की लहरों
को गिनना अभी शेष है ,
नदिया में सूरज की लाली
को तकना अभी शेष है.
खिलखिलाना शेष है
गुदगुदाना, गुनगुनाना,
चहकना, महकना व
फुसफुसाना अभी शेष है.
शेष है कुछ निकम्मे
पलों की मिल आवारगी
शेष है तेरे मेरे प्रेम
की कोई नई बानगी.
मिलना, बिछड़ना,
रूठना, मनाना शेष है
कैसे भुलाऊं रिश्तों का
आरम्भ अंत अभी शेष है.
घुघूती बासूती
दो जोड़ी पैरों के
निशान छोड़े होते
जो हमने रेत पर .
पानी पर चले होते
जो हाथ पकड़ कर
मिल गुजरे होते
फूलों की घाटी से .
नापी होती परछाइयाँ
व परछाइयों की नाक
खिलखिलाते हुए किसी
सुबह या ढलती शाम.
मिल खड़े हुए होते
किसी ठोस धरातल
स्वप्न बुने होते दो सर
की चांदी के तारों से.
कैसे भुलाऊं सागर की लहरों
को गिनना अभी शेष है ,
नदिया में सूरज की लाली
को तकना अभी शेष है.
खिलखिलाना शेष है
गुदगुदाना, गुनगुनाना,
चहकना, महकना व
फुसफुसाना अभी शेष है.
शेष है कुछ निकम्मे
पलों की मिल आवारगी
शेष है तेरे मेरे प्रेम
की कोई नई बानगी.
मिलना, बिछड़ना,
रूठना, मनाना शेष है
कैसे भुलाऊं रिश्तों का
आरम्भ अंत अभी शेष है.
घुघूती बासूती
आद्यन्त सभी कुछ तो शेष सा रह गया है! चलो नयी ताजगी से शुरू करते हैं फिर से…।
ReplyDeleteयादें अनंत ...
ReplyDeleteaahhhhh...
ReplyDeletea deep deep breath......
beaUTIful gb
बहुत सुन्दर. अंत अभी शेष है ...
ReplyDeleteकितना कुछ छिपा रखा है इन पलों में..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....
ReplyDeleteबहुत कुछ शेष है......
सादर
अनु
बहुत ही भावमय और सशक्त रचना, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
शेष है कुछ निकम्मे
ReplyDeleteपलों की मिल आवारगी
क्या बात...बहुत खूब
सुंदर रचना.....वाह
ReplyDeleteबहुत सुंदर.....वाह।
ReplyDeleteशेष से पूर्ण और पूर्ण का शेष होना ही गति प्रदान करता है।
ReplyDeleteabhi bahut kuchh shesh hai.
ReplyDeletenice kavita
ReplyDeleteरिश्तों के आरम्भ तो हों... पर अंत न हो कभी,
ReplyDeleteशेष रह जाए हमेशा कुछ!
♥ खिलखिलाना शेष है
♥ गुदगुदाना, गुनगुनाना, चहकना, महकना व फुसफुसाना अभी शेष है.
♥ शेष है कुछ निकम्मे पलों की मिल आवारगी
♥ शेष है तेरे मेरे प्रेम की कोई नई बानगी.
♥ मिलना, बिछड़ना,रूठना, मनाना शेष है
♥ कैसे भुलाऊं रिश्तों का आरम्भ अंत अभी शेष है.
वाह वाऽह वाऽहऽऽ…!
आदरणीया घुघूती बासूती जी
सुंदर प्रेम कविता के लिए साधुवाद !
❣हार्दिक मंगलकामनाओं सहित...❣
-राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत ही सुन्दर कविता । गहरे भावार्थ ।
ReplyDeleteLovely!
ReplyDeleteमिलना, बिछड़ना,
ReplyDeleteरूठना, मनाना शेष है
कैसे भुलाऊं रिश्तों का
आरम्भ अंत अभी शेष है.
वाह गहरे भाव ।
अति सुंदर!
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteअभी बहुत कुछ शेष है जीने को कजिंदगी
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