बचपन में पिताजी को सुबह पूजा के समय पंचांग खोलकर तिथि देखते देखती थी। एकादशी या पूर्णिमा हुई तो उपवास होता था। माँ भी प्रायः सुबह ही उनसे कहती थीं कि देखिए तो रक्षाबन्धन/ हरेला/ होली/ दीवाली/ वसन्त पंचमी/ भिटौली/ श्राद्ध या नवरात्रियाँ कब हैं। ये या अन्य ऐसे विशेष दिन मनाने की तैयारी जो करनी होती थी। कुछ विशेष खरीददारी, कुछ पकवान बनाने, घर में एँपण देने, किसी ननद को मनी और्डर भेजना होता, तो कभी मंदिर में सीदा देना होता, पंडित जी को घर बुला खाना खिलाना होता, बेल पत्र तोड़ने होते, उनपर शिव नाम लिखना होता, जौं बोने होते या कम से कम एक रूमाल तो हल्दी में रंगना होता। कभी पिताजी को और भी लम्बी पूजा करनी होती या फिर मंदिर जाना होता।
बीच बीच में यदि डाक से किसी को किसी त्यौहार की भेंट भेजनी होती तो माँ भी पंचांग खोल बैठ जातीं।
फिर हम बड़े हुए। स्कूल कॉलेज की छुट्टी डायरी में दी होती और वह हमारा पंचांग हो गया। विवाह पश्चात बच्चों की डायरी या फिर कैलेन्डर में दर्ज लाल दिन पंचांग का काम कर देते। एक दो सहेली पंचांग वाली होतीं तो उनसे पूछ लेती। महिलामंडल के रजिस्टर में भी त्यौहार के दिन लिख दिए जाते ताकि उन दिनों का कोई कार्यक्रम न बना लिया जाए। पति का कारखाना तो ३६५ दिन चलता सो हर दिन एक सा होता। दीवाली हो या दशहरा या राखी या वसन्त हर दिन ठीक उसी समय काम पर जाना। रविवार कुछ देर से जैसे नौ साढ़े नौ बजे कामपर जाकर मनाया जाता। हाँ, होली के दिन सुबह काम पर नहीं जाते थे़ सबको मिलकर होली जो खेलनी होती थी।
मुम्बई आई तो वीकेन्ड क्या होता है समझ आया। शनिवार, रविवार छुट्टी और त्यौहारों की आठ छुट्टियों की सूची साल के आरम्भ में ही हाथ आ जाती और मैं बड़े यत्न से उन्हें कैलेन्डर पर गोला लगाकर व त्यौहार का नाम लिख चिन्हित करने लगी। चाहे पति को ये छुट्टियाँ ५९ पार करने के बाद ही मिलने लगी हों, उमंग तो मुझमें बच्चों सी ही है। आखिर हमारे घर में भी छुट्टियाँ मनने जो लगीं हैं।
किन्तु अब भी बात नहीं बनी। शाम होते या रात होने के बाद या पति के सो जाने के बाद नेट पर जाने पर फेसबुक पर भ्रमण करने पर पता लगता है कि आज तो किस डे, हग डे, वर्ल्ड मैरिज डे थे़। आज क्या, बारह बज चुके तो विलायती अंदाज में कल ही हो चुका मानो। अब क्या जगाकर किस डे, हग डे, वर्ल्ड मैरिज डे मनाए जाएँ? किसी जमाने में सोए हुए में होली मनानी आरम्भ कर दी जाती थी।
कई दिन से सोच रही थी कि इतनी वस्तुएँ, व्यक्ति, भावनाओं, सम्बन्धों, समस्याओं को जब मनाना हो तो ३६५ दिन तो कम ही पड़ते होंगे। यदि मातृ दिवस मनाना है तो क्या दादी या बुआ को नाराज किया जा सकता है? यदि स्त्री दिवस तो फिर पुरुष और हिजड़ा दिवस भी तो मनाना होगा। सो सोच रही थी कि या तो हर दिवस को दशक में एक बार आना चाहिए या फिर हर घंटा ही नियत कर दिया जाए १२ फरवरी को दोपहर एक बजे बाल घंटा तो दो बजे पैर घंटा, तीन बजे प्रेम घंटा तो चार बजे विष वमन घंटा!
आज गूगल करके ढूँढा तो पाया कि सच में एक एक दिन में कई दिवस हैं आप अपना दिवस चुन लीजिए, गिलहरी दिवस मनाना पसन्द करेंगे या गधा दिवस!
अब सोचती हूँ कि जैसे पिताजी सुबह पंचांग देखते थे मैं कम्प्यूटर खोल गूगल को नमस्कार कर उसमें उस दिन के सारे दिवस देख अपनी पसन्द के चुन लूँ और पति के दफ्तर जाने से पहले उनके साथ मिल वह दिवस मना लूँ। यदि मूड अच्छा हो तो पति को ही चुनाव करने देकर उनकी पसन्द का दिवस मना लूँ। यदि कोई भी मन भावन न हो तो अपने मन से अचार दिवस, पापड़ दिवस या भुनी मिर्च दिवस या फिर पति से झगड़ा दिवस ही मना लूँ। यदि बढ़िया रहा तो आप सबको भी बता दूँगी और आप चाहें तो आप भी वह दिवस मना सकते हैं। आखिर कब तक यूरोप अमेरिका के मसाला विहीन दिवस मनाएँगे? वैसे मैं आपको फरवरी के विभिन्न दिनों की ही नहीं, सप्ताह भर मनाए जाने वाले...उत्सव व इस महीने भर मनाए जाने वाले उत्सवों के नाम की लिंक भी दे रही हूँ। जो चाहें वह दिन मनाइए। यह फरवरी उत्सव सूची है।
आज है शुभ पुरुष दिवस! ओह वह तो बीत ही चला है सो चलिए..
शुभ इम्पलोयी लीगल अवेयरनेस डे/
शुभ गेट ए डिफरेन्ट नेम डे/
शुभ मेडली इन लव विद मी डे/
शुभ क्लीन आउट युअर कम्प्यूटर डे !
और यदि यह लेख कल १४ को पढ़ें तो आपके पास सत्रह दिवस हैं मनाने को और यदि पंचांग खोलेंगे तो एक आध और भी मिल सकता है। यह तो कुछ भारत के मतदाताओं सा हाल हो गया। कितने दल, कितने प्रत्याशी! जो चाहो चुन लो किन्तु आपका हाल वही रहेगा। खैर, फिलहाल तो आप कल वेलेन्टाइन डे ही मना लीजिए। शुभ वेलेन्टाइन डे!
घुघूती बासूती
शब्दार्थः
भिटौली=चैत के महीने में बहनों को भेंट भेजी जाती है जो प्रायः मनी और्डर से ही जाती है।
हरेला= नवरात्रियों में पूजा के पास ही टोकरी या बर्तन में जौं बोए जाते हैं।
एँपण= कुमाऊँ में पिसे चावल के घोल से दी जाने वाली अल्पना या रंगोली।
बीच बीच में यदि डाक से किसी को किसी त्यौहार की भेंट भेजनी होती तो माँ भी पंचांग खोल बैठ जातीं।
फिर हम बड़े हुए। स्कूल कॉलेज की छुट्टी डायरी में दी होती और वह हमारा पंचांग हो गया। विवाह पश्चात बच्चों की डायरी या फिर कैलेन्डर में दर्ज लाल दिन पंचांग का काम कर देते। एक दो सहेली पंचांग वाली होतीं तो उनसे पूछ लेती। महिलामंडल के रजिस्टर में भी त्यौहार के दिन लिख दिए जाते ताकि उन दिनों का कोई कार्यक्रम न बना लिया जाए। पति का कारखाना तो ३६५ दिन चलता सो हर दिन एक सा होता। दीवाली हो या दशहरा या राखी या वसन्त हर दिन ठीक उसी समय काम पर जाना। रविवार कुछ देर से जैसे नौ साढ़े नौ बजे कामपर जाकर मनाया जाता। हाँ, होली के दिन सुबह काम पर नहीं जाते थे़ सबको मिलकर होली जो खेलनी होती थी।
मुम्बई आई तो वीकेन्ड क्या होता है समझ आया। शनिवार, रविवार छुट्टी और त्यौहारों की आठ छुट्टियों की सूची साल के आरम्भ में ही हाथ आ जाती और मैं बड़े यत्न से उन्हें कैलेन्डर पर गोला लगाकर व त्यौहार का नाम लिख चिन्हित करने लगी। चाहे पति को ये छुट्टियाँ ५९ पार करने के बाद ही मिलने लगी हों, उमंग तो मुझमें बच्चों सी ही है। आखिर हमारे घर में भी छुट्टियाँ मनने जो लगीं हैं।
किन्तु अब भी बात नहीं बनी। शाम होते या रात होने के बाद या पति के सो जाने के बाद नेट पर जाने पर फेसबुक पर भ्रमण करने पर पता लगता है कि आज तो किस डे, हग डे, वर्ल्ड मैरिज डे थे़। आज क्या, बारह बज चुके तो विलायती अंदाज में कल ही हो चुका मानो। अब क्या जगाकर किस डे, हग डे, वर्ल्ड मैरिज डे मनाए जाएँ? किसी जमाने में सोए हुए में होली मनानी आरम्भ कर दी जाती थी।
कई दिन से सोच रही थी कि इतनी वस्तुएँ, व्यक्ति, भावनाओं, सम्बन्धों, समस्याओं को जब मनाना हो तो ३६५ दिन तो कम ही पड़ते होंगे। यदि मातृ दिवस मनाना है तो क्या दादी या बुआ को नाराज किया जा सकता है? यदि स्त्री दिवस तो फिर पुरुष और हिजड़ा दिवस भी तो मनाना होगा। सो सोच रही थी कि या तो हर दिवस को दशक में एक बार आना चाहिए या फिर हर घंटा ही नियत कर दिया जाए १२ फरवरी को दोपहर एक बजे बाल घंटा तो दो बजे पैर घंटा, तीन बजे प्रेम घंटा तो चार बजे विष वमन घंटा!
आज गूगल करके ढूँढा तो पाया कि सच में एक एक दिन में कई दिवस हैं आप अपना दिवस चुन लीजिए, गिलहरी दिवस मनाना पसन्द करेंगे या गधा दिवस!
अब सोचती हूँ कि जैसे पिताजी सुबह पंचांग देखते थे मैं कम्प्यूटर खोल गूगल को नमस्कार कर उसमें उस दिन के सारे दिवस देख अपनी पसन्द के चुन लूँ और पति के दफ्तर जाने से पहले उनके साथ मिल वह दिवस मना लूँ। यदि मूड अच्छा हो तो पति को ही चुनाव करने देकर उनकी पसन्द का दिवस मना लूँ। यदि कोई भी मन भावन न हो तो अपने मन से अचार दिवस, पापड़ दिवस या भुनी मिर्च दिवस या फिर पति से झगड़ा दिवस ही मना लूँ। यदि बढ़िया रहा तो आप सबको भी बता दूँगी और आप चाहें तो आप भी वह दिवस मना सकते हैं। आखिर कब तक यूरोप अमेरिका के मसाला विहीन दिवस मनाएँगे? वैसे मैं आपको फरवरी के विभिन्न दिनों की ही नहीं, सप्ताह भर मनाए जाने वाले...उत्सव व इस महीने भर मनाए जाने वाले उत्सवों के नाम की लिंक भी दे रही हूँ। जो चाहें वह दिन मनाइए। यह फरवरी उत्सव सूची है।
आज है शुभ पुरुष दिवस! ओह वह तो बीत ही चला है सो चलिए..
शुभ इम्पलोयी लीगल अवेयरनेस डे/
शुभ गेट ए डिफरेन्ट नेम डे/
शुभ मेडली इन लव विद मी डे/
शुभ क्लीन आउट युअर कम्प्यूटर डे !
और यदि यह लेख कल १४ को पढ़ें तो आपके पास सत्रह दिवस हैं मनाने को और यदि पंचांग खोलेंगे तो एक आध और भी मिल सकता है। यह तो कुछ भारत के मतदाताओं सा हाल हो गया। कितने दल, कितने प्रत्याशी! जो चाहो चुन लो किन्तु आपका हाल वही रहेगा। खैर, फिलहाल तो आप कल वेलेन्टाइन डे ही मना लीजिए। शुभ वेलेन्टाइन डे!
घुघूती बासूती
शब्दार्थः
भिटौली=चैत के महीने में बहनों को भेंट भेजी जाती है जो प्रायः मनी और्डर से ही जाती है।
हरेला= नवरात्रियों में पूजा के पास ही टोकरी या बर्तन में जौं बोए जाते हैं।
एँपण= कुमाऊँ में पिसे चावल के घोल से दी जाने वाली अल्पना या रंगोली।
ब्लाग-टिप्पणी लेखन डे कब होता है ?
ReplyDeleteरोचक बात कही आपने। निम्न दिवस तो हर रोज़ ही मनते दिखते हैं।
ReplyDeleteभक्त के लिये - राम दिवस
अपन जैसों का - आराम दिवस
ताकाझांकी वालों का - हाय राम! दिवस
सत्यार्थियों का - राम नाम सत्य है दिवस
रिश्वतखोरों का - हरामखोरी दिवस
गान्धीभक्तों का - हे राम दिवस
झूठे वादेकारों का - राम जन्मभूमि दिवस
नेता-अधिकारी का - विश्राम दिवस
ईमानदारी का - पूर्ण विराम दिवस
भक्त कवि का - तुकाराम दिवस
परीक्षार्थी का - तुक्काराम दिवस
जय श्री राम! कब होगा काम?
सबका दिन बनाते बनाते वर्ष हाथ से निकल गये..
ReplyDeleteब्लागरियाना डे भी मनाया जा सकता है. प्रेम की बातें करते हैं और लालाजी की ऐश होती है. उपभोक्तावाद ही इन सभी डे का जनक है...
ReplyDeleteधन्य है डे पुरुष...
जाने क्यों बने ये डे...पर इतना निश्चित है की बाजारवाद इन्हें बनाये रखेगा ......
ReplyDeleteबाज़ार वाद की प्रमुख देंन है सच ही लिखा है.
ReplyDeleteहरेले में अकेले जौं नहीं होते हैं सात अनाज मिलाते हैं जिसको सतनजा कहते हैं।
ReplyDeleteब्लॉग के भी दिवस होने चाहियें - आज घुघुतीबासूती दिवस, आज हलचल दिवस ...
ReplyDeleteहाहा, पाण्डेयजी,घुघूतीबासूती दिवस तो नहीं घुघुति नामक चिड़िया दिवस तो रोज मनाया जा सकता है.
ReplyDeleteघुघूतीबासूती
बस ब्लोगर डे का और इंतज़ार है अब ।
ReplyDeleteघंटों की बात सही कही है ... और उसमें भी विश वामन का घंटा .... :):)
ReplyDelete३६५ दिन में एक दिन 'नो दिवस डे' भी हो और सुकून आ जाए...चलो आज तो इस दिवस को मनाने का कोई बोझ नहीं...:)
ReplyDeleteअच्छा होगा कि डे खोजने में दिन बर्बाद न किया जाये
ReplyDeleteजिस डे का भूत सर पे सवार हो वही मना लिया जाये
आपके आलेख की रौशनी में मन्ना डे और शोभा डे का क्या किया जाये :)
ReplyDeleteवैसे तो एवरी डे इज इ डे ।
ReplyDeleteफिर क्यों न हर दिन को भरपूर जिया जाए ।
har diwas kae peechae ki mul bhavana daekhae
ReplyDeleteshyaad hi koi diwas india mae shuru hua ho kyuki yahaan samay kaa abhaav kisi kae paas hotaa hi nahin haen
jahaan yae diwas manaane ki parmapara shuru hui haen wahaan log apnae kaam me leen rehtae haen bas us diwas par us baat ko yaad kar laetae haen jiskae liyae diwas haen
jaatae jaatae
ReplyDeletejo log yae sab diwas manatae haen wo in par chintan nahin kartae mam bas enjoy kartae haen
aap ko aur sir ko valentine day ki shubhkamana
subha subha sir ko ek gulab dae hi dae leap year yae kaam girl kartee haen boy nahin !!!!!!!!!!!!
umr me aap sae chhoti hun to chuhal karane kaa adhikaar haen
gulab diyaa aapnae
aagae kyaa hua blog post par jarur daalae
naahin daalegi to lagegaa kuchh chhupaa rahee haen
हाहाहा, रचना, मैंने लीप इयर वाली आपकी पोस्ट पढ़ ली थी। गुलाब तो कल ही जाकर लाना होगा। जो सम्भव नहीं है। कुछ ही दूर एक से एक सुन्दर बुके व फूल मिलते हैं। चलने की स्थिति में नहीं हूँ। वैसे वे पेट से हृदय के रास्ते में विश्वास करने वाले हैं। क्यों न एक दिन अंडों की जर्दी कौओं को खिलाने की बजाए बढ़िया से ऑमलेट में डाल दी जाए ! अधिक खड़े रह पाती तो बढ़िया सा डिनर बनाती।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
sab days ke baad final day ki badiya prastuti..
ReplyDeleteसभी डेज का भी एक अलग से कलेंडर होना चाहिए...समय से पता ही नहीं चलता
ReplyDeleteरोचक जानकारी परक आलेख।
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