कौन वसन्त
कैसा वसन्त
किसका वसन्त?
किसीका ड्राइवर
नौकर या कुक?
या फिर सोसायटी का कोई वॉचमेन?
देखा नहीं, सुना नहीं यह नाम!
ओह वह स्कूल की छुट्टी,
'वसन्त पन्चमी' वाला वसन्त!
वसन्त का प्रेम, प्रणय या विरह
से भी है कोई सम्बन्ध?
'वेलेन्टाइन डे' से पहले भी होता था
स्त्री पुरुष का प्यार?
क्या होता था हमारे देश में
इस प्रेम के लिए इक अलग नाम?
प्रणय?
यह तो लगता है किसी
व्यक्ति का नाम।
वसन्त उत्सव मनते थे?
मन मिलते थे?
कैसे?
बिन 'आइ लव यू' के
कैसे हो सकता था प्यार?
न,न,
केवल विवाह होते होंगे
लव, इश्क, मोहब्बत के आने से पहले
वसन्त उत्सव तो न मनते होंगे!
घुघूती बासूती
बहुत सुन्दर. याद करने की कोशिश कर रहा हूँ. "लव, इश्क, मोहब्बत" से कभी वास्ता पड़ा भी या यों ही कोरे रह गए थे.
ReplyDeletekarara vyang..
ReplyDeleteकरारा कटाक्ष करती सुन्दर रचना।
ReplyDeleteवंदना जी से सहमत ...
ReplyDeleteबहुत ही उम्द्दा रचना - कई लोगों पर कटाक्ष करती हुई.
Zordaar wyang hai!
ReplyDeleteवही वसन्त,तुम्हारा और मेरा वसन्त,
ReplyDeleteलव,इश्क,मोहब्बत के भी पहले वाला शर्मिला वसन्त,
बिना ‘आई लव यू’कहे "लव"वाला वसन्त,
न किसी का नाम,ना किसी से काम ,
बस एक मदहोश सा वासन्ती जाम..
लो फिर वसंत आई ....
ReplyDeleteअंतर्मन के प्रेम वाला बसंत.... सुंदर
ReplyDeleteफूलो के चित्रों से बसंत आया हुआ दिखाई दे रहा है.
ReplyDeleteआया रे आया, मन वसंत आया..
ReplyDeleteBasant ek prateek tha prem ka .. Us ke izhar ka .. Bas aaj badal ke valentine day ho Gaya hai ... West ki nakal Jo karni hai ....
ReplyDeleteमदनोत्सव पर शुभकामना
ReplyDeleteहम भूलें लाख मगर धरती माँ हर बार मनाती रहेंगी वसंतोत्सव।
ReplyDeleteसुदंर तश्वीरें हैं, तीखे कटाक्ष के ऊपर सजकर ये भी कुछ अलग ही तेवर में लग रहे हैं!
चित्र बहुत सुन्दर हैं। तालेबान को उत्सव पसन्द नहीं, भले ही वसंतोत्सव क्यों न हो। प्यार? वह किस चिकन का नाम है?
ReplyDeleteबढ़िया...
ReplyDeleteअच्छी व्यंगात्मक प्रस्तुति ...
वसंत पंचमी की शुभकामनाएँ..
सब तरफ बसंत बहार...वसंत पंचमी की शुभकामनाएँ..
ReplyDeleteबहुत प्यारी तस्वीरें हैं. हाँ, आई लव यू के बहुत पहले भी प्यार होता था, कभी अभिव्यक्ति हो पाती थी, तो कभी नहीं. लेकिन बागों-बगीचों में, छतों-झरोखों में, बालकनी-आँगन में प्यार तब भी पलता था :)
ReplyDeleteवाह!!
ReplyDeleteसटीक चिकोटी काटी है!!
कौन वसंत? कौन प्रणय?
बहुत ही सार्थक संकेत!!
अजी यहाँ तो लोग 'प्रेमचन्द 'को नहीं जानते बसंता को कैसे जानेंगे .वेलेंटाइन डे ,प्रेम दिवस की और बात है 'मदन उत्सव 'का तो अर्थ भी नहीं जानती यह पूरी पीढ़ी .दिल विल प्यार -व्यार मैं बस जानूं रे ....
ReplyDeleteबिन 'आइ लव यू' के
ReplyDeleteकैसे हो सकता था प्यार?
सच...और जैसे बिना फेसबुक स्टेटस अपडेट्स के कैसे हो वसंत का आगमन
सही कहा जी , समय बदल गया है । वसंत अब वेलंटाइन हो गया है ।
ReplyDeleteबहुत तीखा कटाक्ष। बधाई।
ReplyDeleteतस्वीरें बढ़िया है, और लिखा तो आपने सच ही है।
ReplyDeleteप्यार के कई रूप रंग ..कौन सा रंग देखोगे...? :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteयहाँ हमारे मन में तो आज भी वसंत आता है।
ReplyDeleteढेर सारी परतों में लिखी गई कविता ..हर पंक्ति अपने आप में अलग और चित्र तो अनुपम है हीं
ReplyDeleteवसंत पंचमी पर जहाँ सरस्वती की पूजा होती है वहीँ प्रेम, प्रणय की पींगे भी वसंत में खिलती हैं संयोग ही हो सकता है कि वलेन टाइन डे भी वसंत के समय पर ही मनाया जाता है
ReplyDeleteआपने चिंता व्यक्त की इसके आभार . हाँ सब कुछ ठीक है किन्तु कार्यालयी उधेड़ बुन अधिक हो गयी है जिसके कारण लिख नहीं पा रहा हूँ शेष आपका आशीर्वाद .
ReplyDeletesahee kaha.....
ReplyDeletebasant ko dekhne kee fursat hee nahi hai...
वैलेंटाईन से पहले भी
ReplyDeleteहोता था प्यार
बस नहीं होता था
तो वो था इज़हार
झुके नैनों से ही
हो जातीं थीं
बाते हज़ार
बसंत आने का
नहीं होता था शोर
बस सुखद थी बासंती बयार ..
बहुत तीक्ष्ण कटाक्ष करती रचना ... आभार
pyar to bas ahsas hota hai jo hamesha se raha hai...shabd koi bhi diye jaye kya fark padta hai....
ReplyDeleteबिन 'आइ लव यू' के
ReplyDeleteकैसे हो सकता था प्यार?
न,न,
केवल विवाह होते होंगे
लव, इश्क, मोहब्बत के आने से पहले
वसन्त उत्सव तो न मनते होंगे!
....sach kuch aisa hi prachlan ban pada hai basant manane ka..
...sundar sam-samyik rachna..
रति के कहने पर शिव की साधना में व्यवधान पहुंचाने के कारण स्वयं कामदेव ही भस्म हो गए!
ReplyDeleteऔर भस्मासुर भी भोलेनाथ से वरदान पा, श्रेष्ठतम स्थान पाने हेतु उन्हें ही भस्म करने के चक्कर में मोहिनी रूप धरे विष्णु की चाल न समझ खुद को ही भस्म कर गए!!!
इसी लिए शायद 'प्राचीन भारत' में 'विष्णु की माया' से अनभिज्ञ, और 'शिव के तीसरे नेत्र' के खुल जाने की सम्भावना, से हमारे पूर्वज, तथाकथित माटी के पुतले, केवल मंदिरों तक ही प्रेम प्रदर्शन को शिव-पार्वती / देवताओं आदि की पत्थर से बनी मूर्तियों तक ही सीमित रखने में ही होशियारी समझे...:) कलियुग तो फिर कलियुग ही है - अज्ञानता की पराकाष्टा वाला ... :(