यदि मन कोयल अचानक कूकने लगे,
मन पक्षी उन्मुक्त हो
आकाश में उड़ने लगे,
अधरों पर मुस्कान खिल उठे,
पैर भारहीन हो
धरती से कुछ इंच ऊँचे पड़ने लगें,
बिन पञ्चांग, बिन कैलेंडर देखे
बिन गाँव, वन उपवन जाए
अचानक इक सुबह मन कहे
आह, आया वसंत आया !
और कहे,
काल, युग, स्थान, पर्यावरण
चाहे अवासन्ती हों,
मन आज भी वासन्ती है
समझे कि
क्यों हमारे किसी पुरखे ने
एक भोजपत्र पर लिखा ...
काकः कृष्णो पिकः कृष्णो को भेदो काकपिकयोः।
वसन्तसमये प्राप्तः काकः काकः पिकः पिकः।।
और क्यों किसी पिकमना को
पिक बनने को खिजाब नहीं
चाहिए बस इक वासन्ती मन।
घुघूती बासूती
पुनश्चः
वैलेन्टाइन दिवस के उपलक्ष में बधाई के साथ साथ कुछ और पंक्तियाँ भी जोड़ रही हूँ अपनी वसन्त के आगमन पर लिखी कविता में.........
क्यों वैलेन्टाइन बनने को
इस शब्द का अर्थ नहीं जानना पड़ता
कि इस शब्द को सुनने से
दशकों पहले भी नित
मनता रहा वैलेन्टाइन दिवस।
घुघूती बासूती
मन पक्षी उन्मुक्त हो
आकाश में उड़ने लगे,
अधरों पर मुस्कान खिल उठे,
पैर भारहीन हो
धरती से कुछ इंच ऊँचे पड़ने लगें,
बिन पञ्चांग, बिन कैलेंडर देखे
बिन गाँव, वन उपवन जाए
अचानक इक सुबह मन कहे
आह, आया वसंत आया !
और कहे,
काल, युग, स्थान, पर्यावरण
चाहे अवासन्ती हों,
मन आज भी वासन्ती है
समझे कि
क्यों हमारे किसी पुरखे ने
एक भोजपत्र पर लिखा ...
काकः कृष्णो पिकः कृष्णो को भेदो काकपिकयोः।
वसन्तसमये प्राप्तः काकः काकः पिकः पिकः।।
और क्यों किसी पिकमना को
पिक बनने को खिजाब नहीं
चाहिए बस इक वासन्ती मन।
घुघूती बासूती
पुनश्चः
वैलेन्टाइन दिवस के उपलक्ष में बधाई के साथ साथ कुछ और पंक्तियाँ भी जोड़ रही हूँ अपनी वसन्त के आगमन पर लिखी कविता में.........
क्यों वैलेन्टाइन बनने को
इस शब्द का अर्थ नहीं जानना पड़ता
कि इस शब्द को सुनने से
दशकों पहले भी नित
मनता रहा वैलेन्टाइन दिवस।
घुघूती बासूती
हम शाश्वत भावों के लिये दिन की प्रतीक्षा करते हैं, काल के पास इतना धैर्य कहाँ?
ReplyDeleteसही कहा-
ReplyDeleteकि इस शब्द को सुनने से
दशकों पहले भी नित
मनता रहा वैलेन्टाइन दिवस।
बेह्तरीन!!
शाश्वत भावों को पहचान देने की जरूरत भी तो नहीं होती।
ReplyDeleteये उम्दा पोस्ट पढ़कर बहुत सुखद लगा!
ReplyDeleteप्रेम दिवस की बधाई हो!
मन का वसंत हमेशा रहता है।
ReplyDeleteकल ही फ़ुटपाथ पर चलते चलते
वसंत के आगमन के फ़ूल
सामने थे
कब वसंत आया और
कब निकल गया
वसंत भी त्यौहार जैसा हो गया
पर मन का वसंत हमेशा
मन में रहता है।
अपनी परंपराओं को हम भूल गए, उन्हें याद रखने की जरूरत है..
ReplyDeleteवासन्ती मन और उसकी महक...बस एक वाह!
ReplyDeleteऊँची उड़ान और आँखों की चमक...बेपरवाह !!
''कुछ कर गुजरने को मौसम नहीं मन चाहिए.''
ReplyDeleteअपनी परंपराओं को याद रखने की जरूरत है|
ReplyDeleteमन वासंती जग वासंती.
ReplyDeleteकि इस शब्द को सुनने से
ReplyDeleteदशकों पहले भी नित
मनता रहा वैलेन्टाइन दिवस।
बहुत सही. प्रेम-दिवस मनाने का हमारे यहां बहुत पुराना इतिहास रहा है. मौर्य-काल में तो बाकायदा बसन्तोत्सव मनाया ही जाता था.
meri do rachnayein apki samalochna ke liye prastut hain ashirvad dijiyega.
ReplyDeleteमन वासंती हो तो एक दिन क्या ख़ास है !
ReplyDeleteमन आज भी वासन्ती है...बहुत सुन्दर प्रस्तुति....
ReplyDelete:)
ReplyDeleteवसंतागमन पर शुभकामनायें!
कुछ लोगों को शिकायत है कि भारत में एक इंडिया बसता है, वहीं कुछ की चिंता है कि भारत में एक महाभारत बसाने/कराने का प्रयास चल रहा है।
बहुत सुन्दर ...
ReplyDeleteमनोहारी रचना..
बसंत पर मेरी ओर से पिकमना यह सप्रेम भेंट:
ReplyDeleteरे रे कोकिल मा भज मौनम
किन्चिदुदंचय पंचम रागम
नोचेत्वामहि को जानीते
काककदम्बकपिहितरसाले ,,
कोकिल! चुप क्यों हो ?कुछ बोलो, राग छेड़ो
अपने पंचम स्वर में रस वर्षा करो ,इस तरह चुप रहने से
तुम्हे जानेगा कौन ?आम पर बैठे हुए कौओं के जमघट में तुम्हे
पहचानेगा कौन ?
{कोकिल ने आखिर तान छेड़ ही दी :) }
आज 19/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर (सुनीता शानू जी की प्रस्तुति में) लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
बासनती मन हो तो हर दिन प्रेम दिवस है ॥अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteसुन्दर रचना...
ReplyDeleteसादर.
सुंदर..
ReplyDelete------
..ये हैं की-बोर्ड वाली औरतें।