मैं तो यहाँ तक भी कहूँगी कि जहाँ तक हो सके एक दो अच्छे केमिस्ट की दुकानें निश्चित कर लीजिए और उन्हीं से बिल के साथ दवा खरीदिए। यदि डॉक्टरों की कमी न हो तो साफ लिखाई लिखने वाले या कम्प्यूटर पर टाइप कर परची देने वाले डॉक्टर को चुनें। यदि नए शहर जाएँ तो बड़े रोग की प्रतीक्षा करने की अपेक्षा चार छींक आने या नाक बहने पर ही डॉक्टर खोजना अभियान आरम्भ करिए। कोई अच्छा सा पारिवारिक चिकित्सक मिल जाए और उसकी लिखाई भी साफ व स्पष्ट हो तो अपने को भाग्यवान समझ उनकी शरण में चले जाइए। ये आपके प्राण रक्षक सिद्ध हो सकते हैं।
मैं यह सब क्यों कह रही हूँ? कल मुम्बई मिरर में पहले पन्ने पर ही समाचार था कि गलत दवा... मीथोट्रेक्सेट खाने के कारण एक व्यक्ति की मृत्यु। मीथोट्रेक्सेट शब्द ने मेरे कान खड़े कर दिए। सात वर्ष पहले मैं इस दवा के विषय में जितना जान सकती थी उतनी जानकारी प्राप्त की थी और अपने नए पुराने डॉक्टरों से मिलकर या बातकर खाऊँ या न खाऊँ का कठिन निर्णय लिया था।
मरने वाले व्यक्ति के लिए मैट एक्स एल ५० दवा हाइपर टेन्शन के लिए लिखी गई थी जिसे मीथोट्रेक्सेट पढ़कर केमिस्ट ने मीथोट्रेक्सेट जैसी दवा जो केवल कैंसर, भयंकर रह्युमैटिक रोगों या जाइन्ट सैल आर्टराइटस में दिया जाता है। इस दवा के भयंकर साइड इफेक्ट्स हैं। यह शायद केवल जीवन मृत्यु सी स्थिति में दी जाती है। शायद डॉक्टर के लिए लेने वाले को मॉनिटर करना भी आवश्यक है। किन्तु यह ६५ वर्षीय दर्जी यह दवा लेने लगा और २४ घंटे में ही उसकी हालत खराब हो गई व उसे हस्पताल में दाखिल करना पड़ा जहाँ पाँच दिन बाद उसकी मृत्यु हो गई। ६५ वर्षीय व्यक्ति के चार अवयस्क पुत्र हैं व एक अविवाहित पुत्री है।
सात वर्ष पहले जाइन्ट सैल आर्टराइटिस (आर्टराइटिस ही सही शब्द है। यह आर्थराइटिस नहीं है। यह एक ऑटोइम्यून रोग है ) से ग्रस्त तब पाया गया था जब दिखना लगभग बन्द हो गया था, सर दर्द से फट रहा था, ई एस आर अजब गजब था, सी रिएक्टिव प्रोटीन बहुत बढ़ा हुआ था, ब्लड प्रैशर भी अनोखा था, लगता था कि मृत्यु बहुत बेहतर है। स्टेरॉइड इलाज आरम्भ हुआ। शहर से बहुत दूर होने के कारण बिना धमनी की बायोप्सी के दवा शुरू की गई।
बाद में जब बड़े हस्पताल में दाखिल हो जाँच कराई गई तब ही इस दवा का नाम पता चला और इसके बारे में पूरी जानकारी ली। तब यह दवा लेने को कहा गया था। खरीद भी ली थी किन्तु पारिवारिक डॉक्टर ने कहा कि अभी इस ब्रह्मास्त्र का उपयोग नहीं करेंगे। यह भविष्य के लिए सुरक्षित रखेंगे।
मुम्बई में देखती हूँ कि अति व्यस्त डॉक्टर किसी सहायक को डिक्टेशन दे दवाई आदि लिखवाते हैं। प्रायः वे टाइप करते हैं फिर डॉक्टर पढ़कर हस्ताक्षर कर देता है। छोटे शहरों के बहुत से डॉक्टर मरीज से दवा खरीदकर लाकर दिखाने को कहते हैं। मैं प्रायः सोचती थी कि ऐसा वे इसलिए करते होंगे कि मरीज उनकी बताई दुकान या फिर उनके क्लिनिक से जुड़ी उनके बन्धु की दुकान से दवा खरीदें। अब समझ में आया कि ऐसा वे मरीज की भलाई व शायद प्राण रक्षा के लिए ही करते होंगे।
बहुत सी दवाई की दुकानों में कम उम्र, या कम पढ़े लिखे बच्चे काम करते हैं। मेरी कामवाली की दस पास बेटी को भी एक केमिस्ट की दुकान में नौकरी मिल गई थी। एक अन्य दुकान में एक कक्षा नौ का छात्र दवा निकालने का काम करता था। वह सातवीं कक्षा से यह काम कर रहा है।
जो भी हो हमें दवा सोच समझकर ही लेनी चाहिए व जरा सी भी शंका होने पर डॉक्टर से बात करनी चाहिए। आखिर हमारी जान हमारे लिए तो बहुमूल्य है ही।
घुघूती बासूती
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ये तो बहुत ही उपयोगी जानकारी दी है आपने………आभार्।
ReplyDeleteभारत में मामूली परिचय न भी हो तो कैमिस्ट को कोई भी दवा बिना पर्चे के देने के लिए मनाया जा सकता है.
ReplyDeleteविदेशों में तो पैरासिटामोल भी एक सीमा से अधिक काउंटर पर नहीं दी जाती.
अच्छी जानकारी. सभी को ध्यान में रखनी चाहिए. धन्यवाद.
अब यही तो मुसीबत है बेचारे डॉक्टरों की, वे दवा मंगाकर देखते हैं तो उनपर शक किया जाता है। मेरे पति हमेशा दवा मंगाकर देखते हैं और यह भी देखते हैं कि कोई एवजी दवा तो नहीं दे दी है। वे एक पैसा भी कमीशन नहीं लेते हैं।
ReplyDeleteअजित जी, आप सही कह रही हैं.आज हमें शंका नामक रोग हो गया है और प्रायः यही हमारे प्राणों की रक्षा भी करता है.यदि रोगी भी शक करता तो शायद बच जाता.
ReplyDeleteघुघूती बासूती
बेहद दुर्भाग्यपूर्ण वाकया है ।
ReplyDeleteअच्छी लिखाई वाले डॉक्टर मिलना तो मुश्किल होता है । लेकिन केमिस्ट को सब समझ आ जाता है । फिर भी डॉक्टर को दवा दिखा लेना चाहिए क्योंकि कभी कभी केमिस्ट भी ब्रैंड बदल देता है जो सही नहीं होता ।
बहुत जरुरी है...अच्छा चेताया.
ReplyDeleteमीथोट्रेक्सेट जैसी दवा जो केवल कैंसर, भयंकर रह्युमैटिक रोगों या जाइन्ट सैल आर्टराइटस में दिया जाता है। इस दवा के भयंकर साइड इफेक्ट्स हैं। यह शायद केवल जीवन मृत्यु सी स्थिति में दी जाती है। शायद डॉक्टर के लिए लेने वाले को मॉनिटर करना भी आवश्यक है। ----
ReplyDeleteसौ फीसदी सच कहा... इस दवा से बहुत पुराना नाता है बेटे को दी जाती थी...उस दौरान हर पन्द्रह दिन में फिर हर एक महीने में खून की जाँच की जाती कि कोई साइड इफेक्ट तो नही हुआ... आपकी इस पोस्ट ने बहुत कुछ याद दिला दिया.
Bada upyogee aalekh hai. Mai to kahungee ke,asptaal me admit hone parbhee,gar hosh hain,to har injection aur khaas kar IV se dee jaane walee dawayee kee jaankaaree rakhanee chahiye.
ReplyDeleteजागरूकता की बहुत कमी है लोगों में ....केमिस्ट तो बिना डॉक्टर की पर्ची के कोई भी दवा देने में जरा भी नहीं सोचते ....
ReplyDeleteजागरूकता भरी सार्थक प्रस्तुति के लिए आभार
सावधानी तो हर हालत में बरतनी चाहिए। लोग बिना पूछे दवाएं लेते रहते हैं और बाद में दुष्परिणाम भुगतते हैं । एंटीबीओटिक एक बड़ा उदाहरण है इस दुरुपयोग का ।
ReplyDelete"यदि नए शहर जाएँ तो बड़े रोग की प्रतीक्षा करने की अपेक्षा चार छींक आने या नाक बहने पर ही डॉक्टर खोजना अभियान आरम्भ करिए।" छोटी छोटी बातों से आतंकित भी न हो ।
उपयोगी जानकारी |हमारे फेमिली डाक्टर तो दवा दिखाकर ही कहने को कहते है और मेडिकल स्टोर वाला कहता है डाक्टर को दिखा दो कई बार बहुत खीज होती है पहले लम्बी प्रतीक्षा के बाद नम्बर आता है फिर दवाई लेने सीढिया चढो फिर डाक्टर को दिखाने में फिर प्रतीक्षा ?किन्तु दुर्घटना से देर भली |
ReplyDeleteआपको इसके पीछे की जानकारी नहीं है. लाइसेंस कैसे दिये जाते हैं, इसके पीछे भी मनी पावर होती है, एक लाइसेंस पर कई कई दुकानें चलाई जाती हैं. हर दुकान पर फार्मासिस्ट होना चाहिये लेकिन फिर प्रमाणपत्रों की बदौलत आठवीं दसवीं पास लड़के काम करते हैं...
ReplyDeleteकई बार ये भी होता है की जब केमिस्ट के पास उस कंपनी की दवा नहीं होती ही तो वो उसी कम्बीनेशन की या उससे मिलाती जुलती कम्बीनेशन की दूसरी दवा भी दे देते है जबकि कई बार कुछ खास मरीजी को किसी खास चीज से एलर्जी होने के कार कुछ एक दवा ही दी जाती है | उस पर से आज तो नकली दवाओ का खतरा भी होता है अतः जब भी दवा ले बीच नंबर लिखवा कार बिल जरुर ले |
ReplyDeleteजब मै मुंबई में पहली बार लीलावती अस्पताल में गई तो ये देख कर आश्चर्य में पड़ गई की वहा के डाक्टर दवाओ का नाम अंग्रेजी के बड़े अक्षरों में लिख रहे थे और हर अक्षर दुसरे से अलग जिसे कोई बच्चा भी पढ़ा सकता था |
चेतावनी का आभार, सबको ध्यान रखना होगा।
ReplyDeleteउपयोगी जानकारी दी
ReplyDeleteआभार
sahi baat batayi aapne... ham bhi dhyan rakhenge.
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ReplyDeleteआमजन को जागरूक करने वाला एक अच्छा आलेख !
जब 1979 में मेरा एक मरीज़ लैनॉक्सिन ( दिल की दवा ) के बदले लैक्सेटिन ( तगड़ा ज़ुलाब ) लेने से मरते मरते बचा तभी मैंनें 1980 में दवा दिखा कर एप्रूव करवाने की पहल की थी तो, केमिस्ट सहित मरीज़ों तक ने मुझे सनकी मान लिया था । आज मैं चैन से हूँ, क्योंकि शहर के लगभग सभी डॉक्टरों ने इसे अपना लिया है । दूसरे यह कि जहाँ भी मुझे फेर-बदल की शँका होती है, वहाँ मैं कैपिटल लेटर में उस दवा का नाम दोहरा कर लिख देता हूँ, साथ ही दवा लेने के निर्देश को हिन्दी य स्थानीय भाषा में लिखने की परँपरा को अपनाना चाहिये । अपने सहायक को बोल कर दवा लिखवाना मैं गलत मानता हूँ, यह मरीज़ को आत्मीयता की जगह व्यावसायिकता का सँदेश देता है !
लेख और डॉ अमर कुमार की सलाह दोनों ही उपयोगी हैं। बेचारा अनपढ गरीब खुद तो क्या पढ सकेगा, सहायता तो चाहिये ही।
ReplyDeleteजागरूकता भरी सार्थक प्रस्तुति| धन्यवाद|
ReplyDeleteअफसोसजनक..... सजग रहना ज़रूरी है...
ReplyDeleteयदि आप पर्ची पढ़क स्वयम् दवा का मिलान कर सकते हैं तो ठीक वरना दवा खरीद कर ड़ा0 को दिखाने में ही भलाई है।
ReplyDelete..सचेत करती अच्छी पोस्ट।
ऐसा मेरे साथ भी एक बार हो चुका है कि मैनें डाक्टर की लिखी दवा उन्हीं के पडोस के मेडिकल स्टोर से ली। मैनें सोचा कि दवा डाक्टर को दिखा लूँ। दिखाने पर पता चला कि केमिस्ट ने एक दवा गलत दे दी है। उसे बदलकर सही दवा ली। गलती डाक्टर की भी थी जिनकी अस्पष्ट लिपि को केमिस्ट ठीक से नहीं पढ़ सका। मैं एक बात और कहना चाहता हूँ। ज्यादातर डॉक्टर ऐसी दवाएं लिखते हैं जो उनके क्लीनिक के आसपास के किसी मेडिकल स्टोर में ही उपलब्ध होती है, और कहीं भी आसानी से नहीं मिलती, क्योंकि डॉक्टर का कमीशन फिक्स होता है। ऐसे में पड़ोस के क्लीनिक से दवाएं लेकर एक बार डाक्टर को जरूर दिखा देना चाहिए।
ReplyDelete.
ReplyDelete@ भुवनेश्वर जी,
किसी भी बुराई का पूरे समाज के सँदर्भ में सामान्यीकरण करना मैं अपरिपक्व मानसिकता और पूर्वाग्रसित सोच की उपज मानता हूँ । बात कमीशन के सँदर्भ में हो रही है, हर चिकित्सक की अपनी पसँद नापसँद होती है, जिसके पीछे व्यक्तिगत कारणों एवँ व्यवसायिक अनुभव के अलावा सैकड़ों कारण हो सकते हैं । उसी की बिना पर वह दवा भी लिखना है । कोई भी व्यापारी अपना माल ( केमिस्ट दवा को माल कहते हैं ) बाज़ार में फँसाना नहीं चाहेगा, ज़ाहिर है दूर-दराज या आपके घर के बगल वाला केमिस्ट ऎसी दवा ( ब्राँड ) कम ही रखना चाहेंगे । कमीशन के उल्लेख पर यहाँ ऊपर आप अजित गुप्ता जी की अनुभवसिक्त टिप्पणी पढ़ सकते हैं ।
किसी सँकट में एक आम भारतीय अपने ईश्वर को उत्कोच स्वरूप कुछ दक्षिणा अग्रिम दे आता है, या फिर काम पूरा होने पर पत्रम-पुष्पम लेकर उपस्थित होता है, यह क्या है... काम पूरा होने का कमीशन ? कृपया इसे श्रद्धा की सँज्ञा न दें, क्योंकि यह सिक्कों और उपहार में नहीं बसती ।
भुवनेश्वर जी, विश्वास से विश्वास उपजता है, और धुँधले चश्में से कभी साफ नहीं दिखता
अपने नज़रिये का नम्बर बदलें, और छद्मनामी बेनामी प्रोफ़ाइल से टिप्पणी करने से बचें ।
Upyogi post. Samajik chetna hetu aapko dhanywad aur aabhar !
ReplyDeleteसावधान करने के लिए सादर आभार . हाँ आज के हिंदुस्तान ( हिंदी) में आपके हैट्सी.... लेख के अंश प्रकाशित हुए उसके लिए बधाई .
ReplyDeleteउपयोगी एवं ध्यान रखने योग्य आलेख।
ReplyDeleteजीवन अनमोल है जैसे भी बचा सकें ! सुन्दर आलेख !
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