कल जिस भी टी वी चैनल पर जाओ हैट ही हैट नजर आते थे। जिस बात का मुझे आश्चर्य था वह यह था कि इन्हें पहनने वालियाँ इन्हें झेल कैसे रही थीं? मैं तो अपने भारी भरकम भारतीय लहंगों व आभूषणों की ही सोचकर उन्हें पहनने वालियों की दाद देती रहती हूँ। सोचती हूँ कि यह विवाह करने की कीमत है जो लगभग सभी लहंगा पहनने की इच्छुक लड़कियों/स्त्रियों को चुकानी पड़ती है। हमारे कुमाऊँ में तो विवाह में दुल्हा दुल्हन मुकुट भी पहनते हैं। किन्तु कल के हैट्स के सामने तो ये सब फीके/ हल्के पड़ गए।
काँटों के ताज के बारे में तो सुना था सो फूलों का ताज भी समझ आता है किन्तु सब्जियों, फलों, पक्षियों, लताओं, विचित्र प्राणियों से दिखने वाले, प्लास्टिक के क्युरिओ से हैट्स देख तो पहनने वालियों के साहस को 'हैट्स औफ़' कहने के सिवाय क्या कहा जा सकता था।
एक वे थीं, सिर पर न जाने क्या क्या संतुलित किए हुए हजारों की भीड़( और टी वी पर करोड़ों दर्शकों) के सामने आने का साहस दिखाते हुए बिना गर्दन में मोच या किसी पीड़ा का आभास देते हुए पूरे आत्मविश्वास के साथ सामने आईं। एक मैं थी, विवाह के दो एक घंटे पहले सगाई थी जिसमें अचानक मेरी हल्की साड़ी की बजाए मुझे सुनहरी जरी ( याने सुनहरी धातु की तारों ) से लगभग आधी पटी साड़ी पहना दी गई तो मैं न जाने कितने किलो की साड़ी पहन घुघूत के सामने जाने को बिल्कुल तैयार न हुई। यह तो भला हो दी का कि उसने समय रहते अपनी बुद्धि उपयोग की अन्यथा शायद मैं आज तक साड़ी की खीझ में ही रूठी बैठी होती और वह अंगूठी शायद किसी अन्य की उंगली पर होती। दी ने समझाया, साड़ी से क्या अन्तर पड़ता है, तुम जाओ सगाई तो घुघूत से ही हो रही है ना! मैंने कहा इसीलिए तो, नहीं जा सकती, इतने सालों से वे मुझे जानते हैं और मुझे कभी ऐसे फैन्सी ड्रेस में नहीं देखा। मैं उन्हें डरा नहीं सकती। दी ने अचानक एक धक्का मार मुझे कमरे के भीतर पहुँचा दिया। मेरे पास इन हैटवाली वीरांगनाओं का उदाहरण न था, अन्यथा मैं भी इनसे कुछ सीख पराक्रम दिखाते हुए स्वयं अन्दर चली गई होती। (वैसे आज जब मेरा वजन भी तबसे लगभग दुगना हो गया है तो भी मैं उस पंसेरी भर की साड़ी पहनने की वीरता नहीं दिखा सकती। )
खैर, उनकी गर्दन व वीरता आदि को सलाम करती हूँ, किन्तु जो बात मुझे समझ नहीं आई वह यह कि गंजे सिर वाले पुरुष तो बिना हैट के थे और सुन्दर बालों वाली स्त्रियाँ विचित्र हैट्स में। वैसे मैं कुछ कैसे कह सकती हूँ। हमारे यहाँ भी तो सुन्दर बालाएँ घूँघट में होती हैं और भयंकर सा दिखने वाला व्यक्ति (रही सही कसर काजल लगाने वाली भाभियाँ पूरी कर देती थीं। वैसे आज का दुल्हा तो फेयर एन्ड हैंडसम जैसा कोई गोरा करने वाली क्रीम लगाने वाला वैक्सिंग कराने वाला मैट्रोसैक्सुअल युवक होता है!) बिन घूँघट के।
घुघूती बासूती
Saturday, April 30, 2011
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मुझे तो यही समझ में नहीं आया कि हमारे दुर्दशन सारी दूरदर्शन मतलब टीवी चैनल वाले कैसे दीवाने हो गये... बेगानी शादी में... आपका किस्सा भी खूब रोचक रहा,, विशेषत: डराने वाला..
ReplyDeleteहा हा..मजा आ गया,पोस्ट पढ़कर..कमाल का लिखा है...
ReplyDeleteअपने वो कार्टून बने दिन याद आ गए...:)
हम भी सलाम करते हैं इन हैट वीरों को...
ReplyDeleteसभी को खास कर ये निर्देश दिए गए थे की वो हैट पहन कर आये ये शाही शादी की परम्परा है सो सभी को पहन कर आना पड़ा पर खुद वहा के प्रधानमंत्री की पत्नी ने हैट नहीं पहना था | किन्तु हम अपने भारी भरकम साड़ियो और लहंगो का मुकाबला उनकी टुच्ची से हैट से नहीं कर सकते फिर वो तो खास और महंगे कपड़ो से हल्के बनाये गए होंगे हमारे यहाँ तो जितना महानग उतना भारी होता जाता है और फिर उसे सर पर भी रखना होता है वो भी घंटो लम्बी चलती शादी में |
ReplyDeleteमुझे तो ये शाही शादी बहुत बढ़िया लगी और उन भद्र महिलाओं के हेट्स भी बहुत ही प्यारे लगे. शादी ब्याह और ऐसे ही अवसरों पर भारतीय महिलाओं द्वारा पहने जाने वाली भारी जरीदार पोशाकों के मुकाबले ये टोपियाँ तो कहीं भी नहीं ठहरती. वे अंग्रेज महिलाएं ऐसी ही टोपियाँ घुड़दौड़ पर भी पहने दिखाती हैं.
ReplyDeleteअंग्रेजी प्रेम रह रहकर छलक रहा है।
ReplyDeleteसब अपनी-अपनी परम्पराओं के पाश में बन्धे हैं। यहाँ बहुत से लोग शाही शादी समारोह देखने के लिये आधी रात मे उठ गये थे।
ReplyDeleteहा हा!! आप दूसरों की तकलीफ देख कितनी भावुक हो जाती हैं...क्या गजब संवेदनशील हृदय पाया है...साधुवाद एवं नमन!! :)
ReplyDeleteमजेदार पोस्ट है. वैसे कल एक समाचार चैनल में बताया था कि पुरुषों का सिर पर हैट लगाकर चर्च में प्रवेश वर्जित है, पर औरतों का नहीं, तो औरतों ने इस छूट का भरपूर फायदा उठाया. ये फैशन भी अजब-गजब चीज़ है.
ReplyDeleteनजरे-इनायत.
ReplyDeleteक्या करें, अपने देश में तो सेलिब्रिटीज शादियां मीडिया की नजरें बचाकर होती हैं, मसलन अभि-ऐश की शादी, लारा-महेश की शादी वगैरह। ऐसे में इंग्लैण्ड की शाही शादी जो पूरी दुनिया में दिखाई जा रही थी, उससे भारतीय मीडिया कैसे अछूता रह सकता था। देशी न सही, विदेशी शादी ही सही, आखिर शादी है तो खुशी और उत्सव का कार्यक्रम ही न।
ReplyDeleteदूरदर्शन भी व्यवसायिक हो गया है . और जो बिकता है , वही दीखता है . पर बढ़िया लिखा ! व्यंग की धार बनाये रक्खें !कभी हमारे दर पर भी तशरीफ़ लायें !
ReplyDeleteइसीलिए तो उन्हें अंग्रेज कहते है भारत में तो कला, कल्पना और सौंदर्य है
ReplyDeleteअपना समाज , अपनी पसंद , अपनी परम्परा !
ReplyDeleteaapne pahadi nath ka zikr nahihnkiya!
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