भूकम्प व सुनामी के बाद जापान में रेडिएशन का खतरा बना रहने पर भी जापानी नागरिक अपने चरित्र का परिचय देता रहता है। सामान्य समय में तो कोई भी व्यक्ति आदर्श व्यवहार कर सकता है, अपना धैर्य बनाए रख सकता है किन्तु जो विपदा के समय अपना आपा न खोए वही व्यक्ति व उसका चरित्र सराहनीय है।
जापान के बहुत से नागरिकों का सबकुछ चाहे खो गया हो किन्तु उसका चरित्र नहीं खोया। लुटा पिटा होने पर भी जब वह मलबे में हजारों लाखों येन या बहुमूल्य वस्तुएँ पाता है तो उन्हें हड़पने की बजाए पुलिस के पास जमा करा देता है। उसके पास तो इसे अपनी जेब के हवाले करने के कितने ही तर्क हो सकते हैं। जैसे......
१. इस धन के मालिक को ढूँढ निकालना कठिन है।
२. मेरा भी तो धन खो गया है।
३. उसके बदले मैं दूसरे का रख लेता हूँ।
४. जिसे मेरा धन मिलेगा वह मुझे लौटाएगा थोड़े ही। लौटाना चाहे भी तो भी उसे कैसे पता चलेगा कि वह मेरा है?
५. अभी मुझे इसकी बहुत आवश्यकता है।
६. जब यह कठिन समय निकल जाएगा तो मैं यह वापिस करने की कोशिश करूँगा।
७. जब यह कठिन समय निकल जाएगा तो मैं यह मैं किसी धार्मिक स्थल में दान कर दूँगा।
८. भगवान ने मेरी सहायता के लिए ही मुझे चुना। अन्यथा यह किसी और को मिलता।
९. आई लक्ष्मी को कौन मूर्ख ठुकराता है। यह तो लक्ष्मी का अपमान है।
१०. मैं यह धन पुलिस के पास जमा कराऊँगा तो कौन सी गारन्टी है कि वह मालिक को लौटाएगी। क्या पता अपनी जेब के हवाले ही कर ले? उससे तो अच्छा है कि मैं ही अपने पास रखूँ।
वैसे जापान के कानून के अनुसार यदि धन पाने वाला चाहे तो पुलिस के पास जमा कराने के तीन महीने बाद यदि मालिक लेने ना आए तो वे पाया हुआ धन स्वयं ले सकते हैं। किन्तु इस समय लगभग सभी पाने वाले लोगों का कहना है कि यह धन पुनर्निर्माण के कामों में लगाया जाना चाहिए।
बचपन से हम जापानी ईमानदारी के बारे में सुनते आए हैं। वह एक ऐसा देश है जहाँ यदि आप अपना बटुआ भी दुकान पर छोड़ आएँ तो अधिकतर वापिस मिल जाएगा। जापानियों ने कठिनाई के इस समय में भी अपने धैर्य, ईमानदारी, कर्त्तव्यपराणयता से सारे संसार का सम्मान पाया है। वे ऐसे समय भी छाती पीटते, चीखते चिल्लाते नहीं दिखते। घरों व दुकानों का सामान लूटते नहीं दिखते। वे दुखी हैं, पीड़ित हैं, किन्तु कतार में राशन पानी के लिए खड़े रहते हैं, सहायता के लिए छीना झपटी नहीं करते। केवल अपने बारे में न सोचकर अपने समाज के बारे में सोचते हैं।
जापानी चरित्र की जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम होगी। काश इनमें से कुछ खूबियाँ हममें भी होतीं। वैसे सोचने की बात है कि वे क्या कारण होंगे जो एक ही परिस्थिति में अलग अलग समाज के व्यक्तियों द्वारा अलग अलग व्यवहार करवाते हैं? इसी स्थिति में एक समाज लूटपाट, छीना झपटी, छातीकूट व दयनीय व्यवहार करता है तो एक ऐसा अनुकरणीय कि सब आश्चर्यचकित रह जाते हैं।
घुघूती बासूती
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Monday, April 11, 2011
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आपकी बात ध्यान देने योग्य है। जापानिओं के चरित्र के बारे में मेरा व्यक्तिगत अनुभव भी यही है। बेईमानी के हज़ार बहाने हो सकते हैं लेकिन अंततः यह रोग व्यक्ति को ही नहीं सम्पूर्ण राष्ट्र को चोट पहुँचाता है। हम और हमारे पडोसियों से बेहतर उदाहरण क्या हो सकता है?
ReplyDeleteमैं भी यही कहता हूं कि हम घोर अनैतिक लोग हैं बस नैतिकता की दुहाई गला फाड़कर देते रहते हैं... किसी ने यह कहा था कि "काम कर या न कर फिक्र जरूर कर, और फिक्र कर या न कर जिक्र जरूर कर" तो हम भी फिक्रमन्द होने का जिक्र करते हैं.. बस..
ReplyDeleteजापानी राष्ट्रीय चरित्र अनुकरणीय है।
ReplyDeleteशायद हमेशा अभाव में रहने के कारण हम अक्सर दुसरे की चीज़ को अपनाने में नहीं संकुचाते, किन्तु जो भी, ये कारण हमे अपराधमुक्त नहीं कर सकता. जापानियों का संयम और नैतिकता काबिलेतारीफ है.
ReplyDeletehttp://mishraarvind.blogspot.com/2011/03/blog-post_16.html
ReplyDeleteअनुकरण करने के लिए प्रेरित करता लेख ...
ReplyDeleteकाश! हम हिन्दुस्तानियों में भी ऐसा चरित्र निर्माण हो पता|
ReplyDeleteलेकिन हम लोग किसी से अच्छी बात नही सीखते। बुरी बात ग्रहण करने मे सब से आगे रहते हैं । काश कि सभी भारतवासी इससे सीख लें। शुभकामनायें।
ReplyDeleteहिन्दुस्तानियों को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिये।
ReplyDeleteजापानियों के श्रम, उनकी बुद्धिमत्ता एवं चरित्र के बारे में स्वामी विवेकानन्द ने भी कहा था कि भारत के युवकों को चाहिए कि एक बार जापान अवश्य जाकर देखें।
ReplyDeleteजापान के आम नागरिकों में इस तरह के चरित्र और संस्कार का निर्माण कैसे होता है, यह सीखने की बात है।
ReplyDeleteहम भारतीय तो चरित्र, संस्कार और संस्कृति के बारे में आत्म-श्लाघा ही करते रहे हैं।
आज अपने ही देश के जीवन मूल्य अपना कर हँसी का पात्र बन जाते हैं, जापानी चरित्र अपना लिया तो क्या होगा...
ReplyDeleteआज अपने ही देश के जीवन मूल्य अपना कर हँसी का पात्र बन जाते हैं, जापानी चरित्र अपना लिया तो क्या होगा...
ReplyDeleteबहुत सही कहा...जापान से आती तस्वीरें देख...मानव जाति के प्रति ही दिल गर्व से भर जाता है...हमारे देश के ना हुए तो क्या....इंसान का रिश्ता तो है ही.
ReplyDeleteवैसे मुसीबतों में लोगो का श्वेत पक्ष उभर कर आता है....मुंबई के बाढ़ के समय में भी आपने देखा होगा...लोग कैसे एक दूसरे की मदद कर रहे थे...लूट-पाट , किसी अभद्र व्यवहार की कोई खबर कहीं से नहीं आई .
ये हो सकता है..हमारे देश में ऐसे छिटपुट उदाहरण हों ...जबकि जापान में पूरे देशवासियों का ही ऐसा चरित्र है.
प्रेरक !
ReplyDeleteअनुकरणीय है उनका जज्बा...
ReplyDeleteजापान में मीडिया ने भी जिम्मेदारी का काम किया है. अनुकरणीय है.
ReplyDeleteये लिंक भी पढियेगा: http://www.broadstreetreview.com/index.php/main/article/lessons_from_japans_earthquake/
और यहाँ पर एक व्याख्या देने की कोशिश भी की गयी है:
http://www.slate.com/id/2288514/?from=rss
hamare desh ki naitikta ki bate sirf kitabi rah gayee hai...aur sach to ye hai ki jo log inko mante hai hansi ka patra bante hai...aaj japan se sabak lene ki jaroorat hai aur hame IITians ,IT profesionals banane ki jagah logo ko charitra nirman ki shiksha dena jaroori hai...
ReplyDeleteyeh jajba yaha kab aana suru hoga.....
ReplyDeletejai baba banaras....
अतुलनीय !
ReplyDeleteकिसी विस्फोट, सुनामी और भूकंप पर इस तरह विजय मिल सकती है.
ReplyDeleteme and my brother go there every year for a business trip , in the first year my brother after his breakfast left the bag containing his passport and currency worth usd 1500 under table
ReplyDeletewe came back to the hotel to get ready for the business fair and after about an hour he realized his mistake
he went to the breakfast shop and the counter girl started to smile
she handed over the bag to him and nothing was missing not even one yen
there returing change even if its one yen is a must
no one takes a tip
they talk very softly and if we shout they dont talk to us
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ReplyDeleteअनुकर्णीय ...... प्रकृति ही सब सिखाती है.......
ReplyDeleteदेश के लोग ही देश का परिचय हैं..
ReplyDeleteभारत में तो पहले नेता बंद करवाते हैं और फिर उनके गुण्डे नेताओं के दुश्मनों पर हमला और करते हैं.. कितना व्यतिरेक है..
तीन साल ब्लॉगिंग के पर आपके विचार का इंतज़ार है..
आभार
Why shouldn't our media highlight this aspect of the tsunami ?
ReplyDeleteiske liye to 'hats off to japani'
ReplyDeletekah sakte hain
pranam.
आजादी के बाद अगर सबसे ज्यादा गिरावट आई है तो वो हमारे नैतिक मूल्यों में।
ReplyDeleteआपके विचारों के साथ खुद को जोड़ता हूं।