यदि मानव को अपने मानव होने पर गर्व होता हो तो उसे केवल इस नाम को याद करना चाहिए, सारा गर्व चकनाचूर हो जाएगा, एक पल में ही।
यदि पुरुष को अपने बल व पौरुष पर गर्व होता हो तो भी उसे केवल इस नाम को याद करना चाहिए, सारा गर्व चकनाचूर हो जाएगा, एक पल में ही।
यदि न्याय प्रणाली को अपने न्याय पर गर्व होता हो तो भी उसे केवल इस नाम को याद करना चाहिए, सारा गर्व चकनाचूर हो जाएगा, एक पल में ही।
यदि भारतीयों को अपनी परिवार व्वस्था पर गर्व होता हो तो उन्हें केवल इस नाम को याद करना चाहिए, सारा गर्व चकनाचूर हो जाएगा, एक पल में ही।
यदि जीवन को अपने को मृत्यु से बड़ा समझ अपने पर गर्व होता हो तो उसे केवल इस नाम को याद करना चाहिए, सारा गर्व चकनाचूर हो जाएगा, एक पल में ही।
यदि आधुनिक चिकित्सा को अपनी सफलताओं पर गर्व होता हो तो उसे केवल इस नाम को याद करना चाहिए, सारा गर्व चकनाचूर हो जाएगा, एक पल में ही।
यदि माताओं को पुत्र पैदा करने पर गर्व होता हो तो उन्हें केवल इस नाम को याद करना चाहिए, सारा गर्व चकनाचूर हो जाएगा, एक पल में ही।
अरुणा शानबाग! यह नाम सुनामी व भूकम्प को मानव से अधिक सहृदय सिद्ध करता है। प्राकृतिक आपदा को मनुष्य झेल सकता है किन्तु अपने ही सहकर्मी द्वारा ऐसा क्रूर व्यवहार? फिर उस दुष्ट को जीवन जीने के लिए खुला छोड़ देने वाला न्याय व समाज? इस समाज में ही वह जीता होगा। शायद पत्नी व बच्चे भी होंगे। कौन मानव होंगे जो उसे बेटा, भाई, पति या पिता कहते होंगे? यदि हममें से किसी के परिवार में ऐसा मानव जन्म लेता तो हम क्या करते? क्या उसकी माँ होना स्वीकार कर पाते या सबसे पास के खंबे पर रस्सी डाल लटक जाते या सबसे पास वाले जल में कूद जाते? यदि एसे मानव से हमारा विवाह तय हो रहा होता तो क्या विवाह करतीं या आजीवन कुँवारी रहना बेहतर समझतीं? यदि होश सँभालने पर पता चलता कि ऐसा मानव हमारा पिता है तो क्या उसका दिया खाना स्वीकार करते या भीख माँग, या शरीर बेच जीना स्वीकारते? क्या उसके साथ एक ही कमरे में बैठ पाते?
या फिर पापी से नहीं पाप से घृणा करते? उस पापी को स्वीकार लेते? शायद हाँ, किन्तु तब जब...
१. वह दिन रात अरुणा की सेवा करता।
२.हर जागते पल अरुणा का चेहरा, मुड़े तुड़े हाथ आदि निहारता।
३.यदि उसकी उपस्थिति अरुणा के लिए कष्टप्रद होती तो भी दिनरात उसे अरुणा के आज के चित्र सी सी टी वी पर देखने पड़ते। पल पल अपने द्वारा किए अत्याचार का परिणाम देखना पड़ता। पल पल अपने को कोसता। उस क्षणिक आनन्द, परदुख में अपना सुख ढूँढने की अपनी प्रवृत्ति पर स्वयं लज्जित होता। जब वह पश्चात्ताप की आग में तिल तिल जलता। जब जीवन की घड़ी की सुई उसके लिए भी वहीं अटक जाती जहाँ निरपराध अरुणा के लिए अटकी। जब वह पल पल मृत्यु माँगता। जब उसे मृत्यु जीवन से कहीं बेहतर लगती।
तब शायद तब उससे घृणा करने की बजाए उसके अपराध से घृणा करने की सोची जा सकती थी।
घुघूती बासूती
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अरुणा शानबाग उस अस्पताल के लिए मानो एक दैवीय शक्ति है वहां का हर कर्मचारी जुड़ने पहले, या दिन की शुरुवात से पहले अरुणा शानबाग को नमन करके जाते है . यही उसकी पूजा है
ReplyDeleteघुघूती जी,
ReplyDeleteअगर किसी का प्रिय कोई ऐसा कृत्य करता है...(जैसा उस स्वीपर ने अरुणा शानबाग के साथ किया ) तो सबसे पहले...वे उस घटना को स्वीकार ही नहीं करते हैं.....बिलकुल नकार देते हैं और फिर victim को ही दोषी ठहराते हैं.
मनु शर्मा ने सरेआम 'जेसिका लाल ' को गोलियों का निशाना बनाया....पर उसके पिता ने उसके शुभ चिंतकों ने उसे बचाया....एक पिता ने अपनी पुत्री का हाथ भी उस कातिल को सौंपा और आज वो दो बच्चों के पिता हैं.
ये समाज हर कृत्य को स्वीकार कर लेता है...और उसकी व्याख्या अपनी सुविधानिसार कर लेता है.
करुण कहानी जो जीवन के संबल दे जाती है।
ReplyDeleteक्या बोलूँ..........................
ReplyDeleteजिस दिन हम लोग अपने बीच मे रह रहे ऐसे लोगो को सामने ला कर प्रतारित करेगे और उनका सामाजिक बहिष्कार करेगे उस दिन ही सुधार संभव है . हम इग्नोर करने की बात करते हैं .
ReplyDeleteअरुणा जिन्दा हैं क्यूँ शायद इसलिये की लोग समझे पर नहीं समझ रहे . लोग दवा करना चाहते हैं ताकि अरुणा ठीक हो जाये और देखे इस विकृत समाज को जहां ७ साल की सजा काट कर बलात्कारी आज़ाद हो जाता हैं
इस पर कुछ कहने की स्थिति नहीं है...
ReplyDeleteवह इंसान था ही नहीं
ReplyDeleteवह इंसान बना ही नहीं था
बहुत से लोग इंसान बनने से रह जाते हैं
इंसान बनाने के औजार कम हैं
उसे शायद गुस्सा था
कि उसे इंसान बनने का अवसर नहीं मिला
हम इंसान बनाने के औजार बनाएँ
इतने कि को इंसान बनने से न रहे
किसी को गुस्सा न हो
कि उसे इंसान बनने का अवसर नहीं मिला
कि ऐसा भी कोई वक्त हो
जब किसी को अरुणा शानबाग
न बनना पड़े
कातर कथा.
ReplyDeleteऐसे लोगों का सरे-आम बधियाकरण किया जाये तो कुछ हो सकता है..
ReplyDeleteआपकी रचना बेहद मार्मिक है । इस घटना की पीडा को शब्दों में बाँधना असंभव है ।
ReplyDeleteहोली वाली कविता भी एक सशक्त रचना है ।
अरूणा शानबाग के बारे में सात आठ साल पहले कहीं पढ़ा था........उनकी तकलीफ और उससे उपजे हालात बहुत कुछ नये ढंग से सोचने को मजबूर करते हैं।
ReplyDeleteऊफ.........
ReplyDeleteपढते वक्त भी पीड़ा होती है ..... जब स्कूल में थी तब अरुणा की कहानी एक नोवेल के जरिये पढ़ी थी तब से लेके आज तक नजाने १०/१२ साल तो बित गए है लेकिन वही पीड़ा वही दर्द ........
अरुणा शानबाग के बारे में पढ़ा, दुःख होता है ऐसी कहानियों को पढकर .................
ReplyDeletebahut dukhad hai Aruna kee kahani... aaj aapka blog aur yah kahani charchamanch par hai..aapkaa shukriya is post ke liye... aap charchamanch par aa kar apne vichar bhi bataiyega..
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com
आपका कहना सही है मगर यदि उसमे इतनी जी शर्म होती तो ऐसा कुकृत्य करता ही क्यों………ऐसे लोग किसी के बाप भाई या पति नही हो सकते ये तो समाज के ऊपर एक धब्बा हैं।
ReplyDeleteअपराधी आज कही जा रहा होगा वो भी बड़े आराम से बिना किसी अपराध बोध के और परिवार या तो उसके अपराध को मानता ही नहीं होगा या अपराध को मामूली सा अनजाने में हुई दुर्घटना मान आराम से सब भूल उसके साथ जी रहा होगा | उसे कोई भी नहीं जनता होगा अरुणा शानबाग के अपराधी के रूप में मिडिया को तो उसे ढूढ़ कर आज सबके सामने खड़ा करना चाहिए ताकि लोग उस पापी को जान सके पहचान सके और उस पर थूक सके |
ReplyDeleteबेहद तकलीफदेह और शर्मनाक पूरे समाज के लिए !
ReplyDeletearuna shanbag ke bare me padh kar bahut dukh hota hai aur kai bate sochane par majboor ho jate hai....vo ghrinit vayakti bina pashchatap ke ji raha hai hamare samajh me kai anura shanbag hia jo aisi trsdiyan bhugat kar narkiya jeevan je rahi hai....aise logo ka bahishkar jab tak unke parivar aur samaj nahi karta ye trasdiyan rukengi nahi aur is bahishkar ko logo ke samne lana ek badi jimmedari hai...
ReplyDeleteइस नाम को सिर्फ़ देख लेने से सिरहन होती है.. और बहुत तकलीफ़... और बहुत शर्म.. बहुत घिन.. लगता है जैसे हम जन्मजात अंधे पैदा हुये.. गूंगे, बहरे और विकलांग भी। ये नाम वो तमाचा है जिसके लगने के बाद हम उम्र भर एक म्यूट अवस्था में चले जाते हैं सिर्फ़ कानों में सीटियां सी कोई आवाज आती है... और कुछ नहीं कहा जायेगा :-।
ReplyDeletekya kahoon...
ReplyDeleteदिक्कत ये है कि हमने उसे वर्षों बाद याद किया है जबकि वह वर्षों से निरंतर यंत्रणा भुगत रही है !
ReplyDeleteबहरहाल मुद्दे पर आपका नज़रिया ठुकराया नहीं जा सकता !
pooramamla hi shabdateet hai. kuchh bhi nahin keh sakta.
ReplyDeleteमेरी लड़ाई Corruption के खिलाफ है आपके साथ के बिना अधूरी है आप सभी मेरे ब्लॉग को follow करके और follow कराके मेरी मिम्मत बढ़ाये, और मेरा साथ दे ..
ReplyDeleteमेरी लड़ाई Corruption के खिलाफ है आपके साथ के बिना अधूरी है आप सभी मेरे ब्लॉग को follow करके और follow कराके मेरी मिम्मत बढ़ाये, और मेरा साथ दे ..
पूरे समाज के लिए शर्मनाक|
ReplyDeleteप्योली का फूल मेंने नए लेख में लगा दिया है|
अरुणा की साथी नर्सों ने उसके जीवन को गरिमा दी।
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