अज्ञान बहुत कुछ तो हो सकता है किन्तु इतना हास्यास्पद भी हो सकता है आज जाना। अज्ञान सभी दुखों की जड़ है। अज्ञान सबसे बड़ी बीमारी है। धन से गरीब कुछ उपाय कर सकता है किन्तु ज्ञान से गरीब सिवाय ज्ञान पाने की चेष्टा के क्या कर सकता है? यह सब तो निबन्ध लिखने के लिए सही है किन्तु मेरे अज्ञान के कारण मुझे जितना कष्ट झेलना पड़ता है और उससे भी अधिक अपनी ही नजरों में जो बौनी बन जाती हूँ वह दुखद तो है ही(कम से कम मेरे लिए) साथ ही हास्यास्पद भी है।
जो लोग कम्प्यूटर युग में पैदा नहीं हुए या जिन्होंने समय रहते, याने अल्ज़ाइमर्स जैसे लक्षणों के पैदा होने से पहले कम्प्यूटर व नेट आदि के उपयोग का ज्ञान नहीं पाया वे लोग इस जीवन की दौड़ में न केवल पिछड़ गए हैं बल्कि मानसिक अपाहिज सा भी महसूस करते हैं। कम से कम मैं तो करती ही हूँ। आपको कुछ भी करना हो, कम्प्यूटर या तकनीक से जुड़ना ही पड़ता है। अन्यथा आपका मंहगा मोबाइल, कैमरा आदि सब व्यर्थ हैं। किसी जमाने में आप बिना अधिक मस्तिष्क खर्चे बैंक का काम कर लेते थे, दो चार शेयर खरीद या बेच लेते थे, फोटो खींच लेते थे। और आज, आज तो यह सब करने की भी विधि लिखनी पड़ती है। ठीक वैसे ही जैसे किसी विदेशी तामझाम वाले व्यंजन की पाक विधि लिखनी पड़ती है।
कई वर्षों से कुछ भी नया सीखना कठिन होता जा रहा है। याद तो कुछ रहता ही नहीं, सो सबकुछ निर्देश देखकर ही करती हूँ। मेरी तो डायरी ऐसे निर्देशों से भरी पड़ी है। यदि ब्लॉग लिख पाती हूँ, उसमें फोटो डाल पाती हूँ, हैडर बदल पाती हुँ, टिप्पणी में लिंक देती हूँ तो यह सब उन्हीं दिशा निर्देशों के कारण। और ये दिशा निर्देश मुख्यतया मेरे जमाताओं द्वारा लिखे या लिखवाए होते हैं, कई बार बेटियों द्वारा और कुछ मित्रों द्वारा।
पुराना हुआ यह मन नया सीखना तो चाहता है किन्तु न तो सरलता से सीख पाता है और न ही उसे स्मृति में कुछ पल ही संजोकर रख पाता है। दिनोंदिन घटती इस क्षमता को देख क्षोभ तो होता ही है साथ में मन में एक तकनीक का भय या टेक्नोफोबिया भी घर करता जा रहा है। होता यह है कि किसी भी सेवा का सबसे बेसिक भाग ही उपयोग करने लगती हूँ और उसके बेहतर किन्तु कठिन हिस्सों को छोड़ देती हूँ। मोबाइल से केवल फोन व संदेश ही देती हूँ। फेसबुक में जाकर अपनी नई पोस्ट चिपकाकर और जो जो दिखे उसे पढ़कर लौट आती हूँ।
यह सारा किस्सा ही फेसबुक का है। हुआ यह कि आज एक मित्र से बात हो रही थी। बात जन्मदिन के बधाई संदेशों पर चली। मैंने कहा कि मैं कई मित्रों को बधाई देना भूल जाती हूँ। फिर एक मित्र के जन्मदिन पर कितने सारे बधाई संदेश आए हैं इसपर बात हुई। फिर बात मेरे जन्मदिन पर आए संदेशों की हुई। मैंने कहा कि केवल तीन या चार ही तो फेसबुक पर आए थे। मुझे बताया गया कि नहीं गिनो, बहुत सारे थे । मैंने कहा नहीं हो ही नहीं सकता। कुछ छूटे भी हों तो भी पाँच सात ही होंगे। मैंने कहा कि मैं अब कैसे देखूँ। जब बताया गया कि प्रोफाइल पर जाओ। तो वहाँ जाकर मन खुशी व ग्लानि व क्षोभ तीनों से लबालब भर गया। खुशी यह कि इतने मित्रों ने बधाई भेजी थी। ग्लानि यह कि मैंने जिन तीन चार को देखा था उनके सिवाय किसी को धन्यवाद भी नहीं कहा। क्षोभ अपनी मूर्खता पर कि मैं फेसबुक का ९०% उपयोग तो जानती ही नहीं। यह तो वैसा हुआ कि बंगला खरीदकर केवल एक कमरे, रसोई, स्नानगृह तक ही अपना अधिकार सिद्ध कर पाओ। शेष घर होते हुए भी बन्द पड़ा रहे। मैं फेसबुक पर यहाँ वहाँ बिखरी तीन चार ही बधाइयाँ पढ़ पाई। यह नहीं जान पाई कि वे सब एक स्थान पर ही मिल जाएँगी।
फेसबुक पर मेरे जितने मित्रों ने मुझे शुभकामनाएँ भेजी थीं उनकी मैं बहुत आभारी हूँ और उत्तर न देने और उससे भी अधिक उनकी शुभकामनाओं को ना पढ़ पाने, उन तक न पहुँच पाने के लिए करबद्ध हो क्षमा माँगती हूँ। सारे संदेश पढ़ मैं एकबार फिर से जन्मदिन की खुशियाँ महसूस कर रही हूँ।
वैसे यह अज्ञान कितनी हास्यास्पद स्थितियाँ भी पैदा कर देता है ना!
घुघूती बासूती
Wednesday, August 11, 2010
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Achha laga padhke ki mere jaisa bhi koyi hai! Yaqeen mane,jis din meri beti America chali gayi,mai ek dinme Internet ka istemaal seekh gayi! Sharmila swabhav hai,isliye social networking pe nahi jati...aur uski khoob ulahna milti rahti hai!
ReplyDeleteबड़ी निराशा जनक पोस्ट है , आपसे यह उम्मीद नहीं थी ! कितनी उम्र है आपकी ? बत्तमीजी है महिलाओं से उम्र पूंछना ...मुझे मालुम है ! मगर जानना आवश्यक है ...साथ ही यह भी कि होमिओपैथी में विश्वास है या नहीं ??
ReplyDeleteसतीश जी,
ReplyDeleteबहुत मेहनत कर बाल सफेद किए हैं। उम्र क्या छिपानी? केवल पचपन ही है। परन्तु यह असमर्थता, इच्छा की कमी से नहीं है। होमियोपैथी या कुछ भी चलेगा। मरती क्या न करती की तर्ज पर।
घुघूती बासूती
अज्ञान नहीं कहेंगे इसको हम तो यही कहेंगे की सीख रहे हैं हम भी वक़्त के साथ साथ चलना बस उम्र के हिसाब से थोड़ी चाल तेज नहीं है अपनी :) चलिए एक बार फिर से बधाई ...जाता जन्मदिन भी देखिये कुछ सीखा ही गया ..कम बात है यह क्या :)
ReplyDeleteअज्ञान पता चलते ही ज्ञान हो जाता है।
ReplyDeleteऐसे तो कितना अन्जाना है,
जाना भी उतना अन्जाना है,
देर आयद दुरस्त आयद! :)
ReplyDeleteकरत -करत अभ्यास जड़मत होया सुजान . फिर आप तो पढ़ी लिखी हैं वक्त तो हर पढाई में लगता है. पूरे जीवन भर आदमी पदता ही रहता है. यानि सीखता ही रहता है. निराश नहीं होना चाहिए जो हाथ लग जाय वही अच्छा .जब सीख लिया तभी शिक्षा पूरी.
ReplyDeleteठीक ही कहा कि
ReplyDeleteअज्ञान हास्यास्पद स्थितियाँ भी पैदा कर देता है!
मदाम, इग्नोरेंस इस ब्लिस्स्फुल.!
ReplyDeleteज़िन्दगी भर हर इंसान सीखता ही रहता है इसलिये ऐसा मत सोचिये हम सब का यही हाल है आप के ही साथी हैं हम भी।
ReplyDeleteइस उम्र में ऐसी बातें...अच्छी नहीं लगती. :)
ReplyDeleteकम से कम हम जैसे लोग इस उम्र में भी कुछ सीख तो रहे हैं ....जिज्ञासा तो है ....इसे अज्ञान नहीं अनजान कहा जायेगा ....और हर इंसान ऐसे ही सीखता है...मैं भी ऐसे ही कम्प्यूटर पर सिर मारती रहती हूँ ...आपसे उम्र में २ साल बड़ी ही हूँ ...बहुत सी बातें नहीं आतीं पर सीखने की इच्छा नहीं खत्म होती ...सब कुछ मैंने अपने ब्लोगर मित्रों से ही सीखा है ....तो आप इसे हास्यस्पद स्थिति न समझें ....शुभकामनायें
ReplyDeleteयह तो वैसा हुआ कि बंगला खरीदकर केवल एक कमरे, रसोई, स्नानगृह तक ही अपना अधिकार सिद्ध कर पाओ। शेष घर होते हुए भी बन्द पड़ा रहे।
ReplyDeleteआपने सारी समस्या को ऊपर के एक वाक्य में अभिव्यक्त कर दिया, सतीश जी की उम्र वाली दवा शायद मेमोरी बढाने के लिये होगी. अगर काम करे तो बताईयेगा हम भी उनकी शरण में चले जायेंगे.:) हमारी उम्र आपसे जियादा हो चुकी है.
रामराम.
यह तो वैसा हुआ कि बंगला खरीदकर केवल एक कमरे, रसोई, स्नानगृह तक ही अपना अधिकार सिद्ध कर पाओ। शेष घर होते हुए भी बन्द पड़ा रहे।
ReplyDeleteआपने सारी समस्या को ऊपर के एक वाक्य में अभिव्यक्त कर दिया, सतीश जी की उम्र वाली दवा शायद मेमोरी बढाने के लिये होगी. अगर काम करे तो बताईयेगा हम भी उनकी शरण में चले जायेंगे.:) हमारी उम्र आपसे जियादा हो चुकी है.
रामराम.
मेरे अज्ञान के मुकाबले तो यह अज्ञान कुछ भी नहीं, आपको मालुम है मैं हेडर बिना किसी की मदद के नहीं बदल सकता, गूगल का हिंदी टूल गायब हो गया आज तक वापस नहीं ला पाया मगर मैं अपने को इतना अज्ञानी नहीं समझता था जितना कि आप ने लिखा है. अब सोच में पड़ गया हूँ..
ReplyDelete..उफ ये अज्ञान!
अज्ञान का तो पता नहीं ? लापरवाही ज्यादा लगती है !
ReplyDeleteकोई बात नही...हमारी शुभकामनायें आप तक पहुंची तो...अच्छा लगा :-)
ReplyDeleteअरे घुघूती जी आपने तो मेरी कहानी लिख दी। मै तो आपसे पूछ कर कई बार काम करती हूँ और फेसबूक पर तो आधा परसेन्ट भी काम नही करती। मेरा भी यही हाल है --- यह तो वैसा हुआ कि बंगला खरीदकर केवल एक कमरे, रसोई, स्नानगृह तक ही अपना अधिकार सिद्ध कर पाओ। शेष घर होते हुए भी बन्द पड़ा रहे। वैसे बंगले खरीदने की आदत है उनमे रहना नही आता।हा हा हा । अब क्या करें हम जिस युग मे पैदा हुये उसमे अगर इतना भी सीख गये हैं तो ये बहुत बडी उपलब्धी है। कोशिश करते रहेंगे। शुभकामनायें
ReplyDeletetill the time you see mirror and recoqnize your self its no issue and your innerself is very beautiful as i have seen so that you will never forget
ReplyDeletehasyadpad kuch bhi nahi..sikhne ki koi umra nahi..koi seema nahi..chaliye aapne ek kadam aage rakha..meri shubhkamnayen hain1 :)
ReplyDeleteआपका ईमेल चाहिए , मैं आप को लिखता हूँ !
ReplyDeletesatish1954@gmail.com
अरे… क्या बात कर दी घुघूतीजी, 55 ही तो है ना… सीखने के लिये अभी 45 साल बचे हैं… फ़ेसबुक क्या कर लेगा आपका? :) :)
ReplyDeleteघुघूती जी ,
ReplyDeleteहम तो आपको यही कहेंगें -
साल गिरह की पुन: अनेकों शुभकामनाएं
स स्नेह,
- लावण्या
आपकी पोस्ट पढ़कर अपने पिताजी का टैक्नोफोबिया याद हो आया. अभी भी भयानक गर्मी में यदि रात में केवल अपने ही घर की बत्ती गुल हो जाए तो सुबह तक मीटर बोर्ड तक जाने की ज़हमत नहीं उठाएंगे. गैस का रेगुलेटर पडोसी से बदलवायेंगे, रिमोट के सैल किसी और से. घर में बेकार पड़ी एक्टिवा के बावजूद बेहद खटारा बजाज का तीन गियर वाला स्कूटर ही चलाएंगे. पंचर हो जाने पर उसे रास्ते में ही छोड़ देंगे. खैर...
ReplyDeleteलेकिन उनका यह निपट देहातीपन जैसा स्वभाव पहले बहुत खटकता था. अब लगता है कि उन्होंने इस तरह के खट-पट करनेवाले काम करने के बजाय अपना ध्यान केवल उन्हीं बातों में लगाया जो उन्हें प्रिय हैं... जैसे पढना-लिखना. अफ़सोस, मैं उन जैसा चाहकर भी नहीं बन पाऊँगा.
ज्ञानार्जन ही अज्ञानता का इलाज है!
ReplyDeleteयह अज्ञान नहीं है। मुझे लगता है आप समझती हैं कि आप यह बिना निर्देश के न कर पाएँगी। आप इस समझ को निकाल फैंकिए और अपने रास्ते खुद निकालने की कोशिश करिए। बहुत आनंद आएगा। कुछ परेशानियाँ भी होंगी।
ReplyDeleteइस अज्ञान में मैं भी आप का साथी हूँ, हाँ कोशिश करता हूँ कि इंटरनेट पर खोज कर सीखने की जानकारी मिले, या फ़िर कोशिश करते करते देर सवेर समझ में आ ही जाता है! :-)
ReplyDeleteकोई नही जी, बड़े बड़े शहरों में ऐसी छोटी-छोटी घटनाएं होती रहती हैं ।
ReplyDeleteफ़ेसबुक पर आपसे जुडा न होने के कारण लेट हू...
ReplyDeleteHappy Belated B'day Ghughuti ji..
are aap tension kyn leti hain jee, ham hun na, bolo to facebook pe bhi aur idhar bhi aur email k sath phone pe bhi, kidhar kya help chaahiye bas aadesh dene ka. apan hajir.... tension nai lene ka ji, bas dene ka...... mumbai me ho aap to vahi ka funda aajmaane ka na
ReplyDelete;)
फेसबुक! वह क्या होता है ?
ReplyDeleteबहरहाल जन्मदिन की बहुत बहुत शुभ कामनाएँ ।
यह पोस्ट स्वयं में इतना सम्पूर्ण है कि लगता ही नहीं आप भुलक्कडपन की शिकार हैं :) बढ़ती उम्र के साथ यह एक आनुषंगिक तोहफा है -क्या क्या याद कीजियेगा ,लोगों की बेफफाई,विश्वासघात ,कृतघ्नता ,कुटिलता और चालबाजी ?? यह कुदरत का दिया एक छुपा वरदान है ! क्योकि बढ़ती उम्र के साथ मनुष्य अपने प्रजाति समूह के अधेरे पहलुओं को दिल पर न लेता चले इसलिए ही धीरे धीरे भुलक्कड़ी अपनाने लगता है ...मैं भी अब इनसे स्थिति में प्रवेश कर रहा हूँ ,५२ का हूँ ,मगर इसे अपना एक सकारात्मक पहलू मान रहा हूँ -मत दुखी हों ...जिसे आप अपनी कमी मान रहीं हैं दरअसल वह आपका एक असेट है ...
ReplyDeleteमेरी यह टिप्पणी याद रहेगी न ? तो जरा पलट कर जवाब दीजिये अपनी इसी पोस्ट पर ..टेस्ट टेस्ट ....
घुघूती जी जवाब दीजिये :)
ReplyDelete"फेसबुक का ९०% उपयोग तो जानती ही नहीं।"
ReplyDeleteइसका कारण सिर्फ यही है कि अब तक फेसबुक में आपकी रुचि नहीं रही थी। मेरे विचार से तो इसे अज्ञान नहीं कहा जा सकता।
आप में अपनी कमियों को जानकर उसे दूर करने की और नई बातें की जो ललक है, क्या वह आपका ज्ञान नहीं है?
बहुत अच्छी लगी आपकी पोस्ट...
ReplyDeleteशुभकामनाएं....
रिगार्ड्स...
जन्मदिन की बहुत बहुत शुभ कामनाएँ..!
ReplyDeleteबहुत अच्छी पोस्ट...!
जन्मदिन मुबारक हो ...
ReplyDeleteउम्र तो 45 ही है मगर फेसबुक को समझने में मेहनत करनी पड़ती है ...समय भी चाहिए इसलिए फिलहाल उसको टाटा बाय बाय कह दिया है ...!
जो भी दवा लें ..नेट पर ज्ञान बाँटने में कंजूसी मत कीजियेगा ...क्यूंकि हमारी याददाश्त तो अभी से दगा देने लगी है
हम भी आपकी तरह ही अज्ञानी है दरअसल बच्चे कहते आप आगे सिखने की कोशिश नहीं करती ?पर मै कोशिश करती हूँ तो सर घूमने लगता है |
ReplyDeleteचलिए टिप्पणी के जरिये जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई |
अरे सब हिट एंड ट्रायल है जी ..और रही बात भूलने की तो उसका उम्र के कोई संभंध नहीं ..यहाँ लगभग रोज ही सब्जी बिना नमक के बनती है :)
ReplyDeleteupyog karte-karte ek din aapki bhi master ban jayegi...prayas jaari rakhiye..facebook par mai aapko jaroor dhoondh kar request bhejuga....janmdin bahut- bahut mubarak ho
ReplyDeleteफेसबुक थोड़ा काम्प्लिकेटेड है भी... पहले तो मैं भी नहीं जानती थी बहुत सारी सुविधाओं को... अब जान गयी हूँ, पर रेगुलर नहीं रह पाती, इसलिए मैं इसे आपका अज्ञान नहीं मानती. दरअसल, हममें से कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो उन कामों को सीखना ही नहीं चाहते, जिनमें रूचि नहीं होती. मैं भी ऐसी ही हूँ... मैं बिजली वाला कोई काम नहीं कर पाती... मेरे घर में सभी लोग सिलाई कर लेते थे, पर मैंने नहीं सीखी क्योंकि मुझे रूचि ही नहीं थी. इसीलिये खाना बनाना सीखने में भी काफी समय लगा...
ReplyDeleteअब बताइये... मैं तो अभी बहुत छोटी हूँ :-)
अज्ञानता महसूस करना ज्ञान की ओर जाने का पहला कदम है !!
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