इतिहास में हिटलर का एक विशेष स्थान है। ऐसा स्थान जिसे और कोई पाना नहीं चाहता। पाना चाहे भी तो लोगों को बताना नहीं चाहता। जितनी घृणा हिटलर नाम ने पाई है, कम ही लोगों ने पाई होगी। फिर भी यदा कदा संसार में हिटलर जन्मते ही रहते हैं। कर्म से न सही तो भी नाम से हिटलर बन जाते हैं। यदि उनसे पूछा जाता तो पता नहीं वे यह नाम रखना चाहते या नहीं। हो सकता है इनमें से कुछ बड़े होने पर अपना नाम बदल दें और कुछ इसके साथ शान्ति से जिएँ।
अमेरिका में एक दम्पत्ति ने अपने बेटे का नाम एडॉल्फ़ हिटलर रखा। दोनो बेटियों के नाम भी नाज़ी स्मृतियों में से ढूँढकर रखे। शायद सबकुछ ठीक ठाक ही चल रहा था। किन्तु जब उन्होंने हिटलर के जन्मदिन के केक को बनवाने का और्डर दिया तो दुकान ने उस केक पर एडॉल्फ़ हिटलर नाम लिखने से मना कर दिया। मामला समाचार पत्रों व टी वी समाचारों पर खूब दिखाया गया और बात तूल पकड़ती गई।
उनके तीनों बच्चे फॉस्टर केयर में रखे गए। सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि माता पिता बच्चों की सुरक्षा का ध्यान नहीं रखते थे। माता पिता पर बच्चों को मारने पीटने व दुर्व्यवहार का भी आरोप है। यह भी कहा गया कि माता पिता स्वयं शारीरिक व मानसिक रूप से अस्वस्थ हैं। वे स्वयं बचपन में बाल दुर्व्यवहार के शिकार थे और उन्होंने इस सबके लिए अपना इलाज नहीं करवाया। दोनों बेरोज़गार हैं, पिता पढ़लिख नहीं सकता व माँ ने स्कूल छोड़ दिया था और दसवीं पास नहीं की। सबूत के तौर पर एक वर्तनी की गलतियों से भरा पत्र भी दिखाया गया जिसमें वह अपने पति के हिंसक होने की बात करती है।
फ़ेमिली कोर्ट व अपील कोर्ट ने निर्णय लिया कि वे बच्चों की देखभाल में अक्षम हैं। माता पिता का कहना है कि यह सब उनके बच्चों के नामों के कारण ही हुआ है।
वैसे सोचने की बात है कि वे बच्चे जब स्कूल जाएँगे तो किस तरह से समाज का अपने नामों के प्रति पूर्वाग्रह व विरोध झेलेंगे। वैसे सोचने की बात है कि क्या हमें अपनी इच्छा के लिए बच्चों को ऐसे विवादित नाम देने चाहिए? कुछ दिन पहले मैं अपनी बिटिया से बच्चों के लालन पालन के बारे में बात कर रही थी और हम यह कह रहे थे कि हम कभी भी निश्चिन्त नहीं हो सकते कि उनके लिए जो निर्णय हम ले रहे हैं वह सही सिद्ध होगा या नहीं। उसने कहा कि बच्चों के मामले में शायद माता पिता को एक सुरक्षित , अविवादित, सामान्य, बिल्कुल मध्यमार्गीय रवैया ही अपनाना चाहिए। ताकि और चाहे जो हो हम बुरी तरह से गलत तो कभी न हो पाएँ।
इस पूरी बात से मुझे भारत में मणिपुरी बच्चों के नामों की याद आ गई। मणिपुर में नाम रखने की परम्परा मुझे बहुत विशेष लगी। वहाँ जिसका जो मन करे वह नाम बच्चों का रखता है। हममें सदा एक आग्रह रहता है कि हमारे बच्चों का नाम हमारी संस्कृति व धर्म के अनुकूल हों। मणिपुर में आपको हिटलर, लेनिन, आर्मस्ट्रॉन्ग भी मिलेंगे और तुलसीदास, बरखादेवी, बिजौय, नैन्सी, डैज़ी सब मिलेंगे। एक ही परिवार में ठेठ मणिपुरी नाम लिन्थोइन्गाम्बी भी पाया जाएगा तो पर्ल भी! यह मत सोचिए कि लेनिन और नैन्सी ही भाई बहन होंगे। तुलसीदास और आर्मस्ट्रॉन्ग भाई हो सकते हैं तो उनकी बहनें बरखादेवी और डेज़ी हो सकती हैं।
सोचा जाए तो जिस समाज में इतनी तरह के नाम पाए जाते हों वह कितना सहनशील समाज होना चाहिए। वहाँ कितनी विविधता पाई जानी चाहिए। एक ही क्यारी में रंग बिरंगे फूल मिलकर मुस्कुराते, लहलहाते खिलने चाहिए। किन्तु दुर्भाग्य से वहाँ के बच्चे यदि जरा भी सम्भव हो तो अपने सुन्दर राज्य को छोड़ अन्य राज्यों में छात्रावास में रह या चर्च के सहारे दक्षिण भारत के स्कूलों में पढ़ने को अभिशप्त हैं।
अमेरिका और मणिपुर का यह विरोधाभास मुझे तब से कोंच रहा है जब से यह खबर पढ़ी। और हाँ, यदि भारत में भी इन्हीं सब आधारों पर बच्चे माता पिता से दूर रखे जाते तो सड़क पर पलने वाले, नित माता पिता से पिटने वाले, माता पिता द्वारा काम करने को बेचे जाने वाले, लाखों बेरोजगार माता पिता के भीख माँगते बच्चों और सारे अनपढ़ और निरक्षर माता पिता के बच्चों का क्या होता? अपने माता पिता से बचाए जाने योग्य बच्चों की तो बाढ़ ही आ जाती।
अन्त में वर्तनी की गलतियों को यदि आधार माना जाता तो..............................सोचीऐ, सोचीऐ, सोचीऐ! , कुछ तो बच्चों से पिंड छुड़ाने को भी या मुफ्त में बड़ा करवाने को भी कहते, लिखते........ सौचीए, सौचीए, सौचीए!(मेरे बच्चे तो बड़े हो चुके मैं वर्तनी की गलतियाँ करने के लिए मुक्त हूँ। )
घुघूती बासूती
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चैसे तो कहा यह भी गया है कि नाम में क्या रखा है...
ReplyDeleteलेकिन जब नाम ब्राण्ड बन जाये तो जरुर कुछ न कुछ तो रखा है...हिटलर...नाम के साथ साथ ही क्रूरता का भाव अपने आप उभरता है मन में..शायद ऐसी ही ब्राण्डिंग हो चुकी है इस नाम की.
फॉस्टर केयर का कॉन्सेप्ट तो विकसित देशों का ही है..
nam mai kya rakhkha hai|lekin nam se hi aadami ki pahchan hoti hai. jaise ki hitlar ke nam se hi logon ko ghrana hoti hai.
ReplyDeleteनाम का प्रभाव पड़ता है क्योंकि हर हर शब्द अपना असर रखता है.
ReplyDeleteयथा नाम तथो गुण .
ReplyDeleteदुर्योधन अगर सुर्योधन होता तो दुष्ट ना होता
naam ko lekar itna sab kuchh ho gaya jaan kar hairani hui. india me log agar naam ke prati itne jaagruk hain to fir theek hi hain.
ReplyDeleteनाम और व्यक्तित्व एक दूसरे पर निर्भर नहीं हैं ! हजारों नें अपने बच्चे का नाम सचिन रखा तो क्या ?
ReplyDeleteमुद्दा सिर्फ इतना सा है कि किस नाम वाले नें अपने समय में समाज को ज्यादा नुकसान पहुँचाया है,लोग इस बात से ज्यादा उत्तेजित होते हैं ,चिढते हैं,मसलन तैमूर लंग,हिटलर !
समीर लाल जी का कहना सही है , कि नाम में क्या रखा है ! रखा है , नाम की ब्रांडिंग में, अच्छी या कि बुरी !
हाँ, बात ये नहीं है कि नाम अच्छा या बुरा है, बल्कि जब वो नाम किसी मशहूर शख्सियत से जुड़ जाता है, तो उसके साथ एक छवि भी जुड़ जाती है. ज़रूरी नहीं कि ये पूरे नाम के साथ हो यह किसी एक हिस्से के साथ भी हो सकता है और पूरे नाम के साथ भी. एडोल्फ हिटलर को ही ले लीजिए. हिटलर अधिक प्रसिद्द है, इसलिए ये नाम लोग नहीं रखते, पर वहीं एडोल्फ नाम रखते हैं. इसी तरह सचिन तेंदुलकर अपने पूरे नाम के साथ प्रसिद्द है ना कि सिर्फ सचिन के नाम से...
ReplyDeleteवैसे बड़ा विचारणीय बिंदु है. वैसे अमेरिका और मणिपुर के विरोधाभास का मुद्दा आपने अच्छा उठाया है.
यह तो मैने भी पढ़ा है कि नाम का प्रभाव पड़ता है।
ReplyDeleteसार्थक आलेख।
ReplyDeleteSach to ye hai ki naam me bahut kuchh rakha hai.Jin bachhon ke naam arthpoorn hote hain,maine gaur kiya hai,unki pariwarik paarshwbhoomi bahut sanjeeda hoti hai!
ReplyDeleteKhair, maine apne deshke kuchh logon ko kahte suna ki,is desh ko ek Hitler chahiye! Hairan hun,ki,log ek aur Gandhi ke badle ek Hitler kyon chahte hain?
हमारे यहाँ भी तो लोग बच्चो के नाम रावन कंस नहीं रखते यहाँ तक की राम का साथ देने वाले विभिसन का नाम भी बच्चो को नहीं दिया जाता | निश्चित रूप से नाम के साथ पूर्व में उस नामधारी के कारनामे भी उसके साथ जुड़ जाते है | वैसे माने भी सुना है की व्यक्ति पर उसके नाम का असर होता है |
ReplyDeletekaha jarur jata hai ki naam me kya rakhaa hai, lekin vartman samay me naam ke karan kai loche ho jate hain/ ho rahe hain, ek udahran to aapne likh hi diya hai....
ReplyDeleteएक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
ReplyDeleteआपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !
पिता पढ़लिख नहीं सकता व माँ ने स्कूल छोड़ दिया था और दसवीं पास नहीं की। सबूत के तौर पर एक वर्तनी की गलतियों से भरा पत्र भी दिखाया गया जिसमें वह अपने पति के हिंसक होने की बात करती है।
ReplyDeleteहिटलर को ऐसा नायक मानना जिसके नाम पर बच्चों का नामकरण किया जा सकता है, पत्नी के आरोपों की पुष्टि करता सा लगता है। साथ ही पति-पत्नी दोनों का ही स्कूली शिक्षा पूरी न कर पाना भी सामान्य से हटकर ही है। जैसा कि समीर जी ने कहा, पश्चिमी देशों में फ़ॉस्टर केयर का नेट्वर्क काफी सुदृढ है यद्यपि उसमें बहुत सुधार की गुंजाइश है। वैसे यहाँ पर बच्चोंका नाम तो जन्म के समय हस्पताल में ही रखना पडता है। आश्चर्य है कि इस बात पर तब किसी चिकित्सक या समाजसेवी ने ध्यान नहीं दिया। वैसे भारत में केरल प्रांत में भी नायकों के नाम पूरे के पूरे (कुलनाम के साथ) पाये जाते हैं।
(इत्तेफाक़ ही है कि मैं अमेरिका और इम्फाल दोनों में रहा हूँ)
हमने सुना है कि नाम के अनुरूप व्यक्ति का विकास भी होता है या कम से कम मान बाप की ऐसी चाहत होती है.
ReplyDeleteदो हिटलरों से सम्पर्क का मौका मुझे भी मिला।पहले हिटलर को हमारे परिसरवासियों का खूब प्रेम मिलता था । वह कुत्ता था । इस श्रेणी में ज़िया और संजय भी मिले हैं । दूसरे हिटलर का नामकरण उसका खुद का किया हुआ है । मुमकिन है मूल नाम को छुपाने के लिए,ताकि मुकदमे में मुकरा जा सके !
ReplyDeleteअसर तो पडता ही होगा.
ReplyDeleteरामराम
हिटलर मुहावरा है । एक प्रवृत्ति का नाम है ।
ReplyDeleteप्रशंसनीय लेख ।
अगर पुराणों के खलनायकों या विवादित नेताओ के नाम पर नाम रखते है तो आपकी पोस्ट के अनुसार बहुत असर होता है |उनकी छबी का भी |
ReplyDeleteकितु हमारे देश में तो गली गली राम ,क्रिशन ,गोपाल ,कान्हा आदि नाम रखे जाते है तो उनकी छबी क्यों नहीं बनती ?खलनायक जैसे व्यवहार नाम रखने में आता है तो राम सा व्यवहार राम नाम रखने में क्यों नहीं आता ?
लीजिए देर से आये तो क्या कहें, सब कुछ तो सारे टिप्पणीकारों ने कह डाला है :-)
ReplyDeleteवैसे शोभना चौरे जी ने अच्छा प्रश्न किया है, मैं उत्तर देने का प्रयास करता हूँ.
मेरी बुद्धि के अनुसार मात्र नाम रखने से बात नहीं बनती जब तक कि बालक को उचित संस्कार न दिये जाएँ.
जैसे किसी का नाम यदि हिटलर हो पर वह अपने जीवन में कभी भी हिटलर के बारे में न तो पढ़े और कोई दूसरा भी उसे न बताए तो पचास प्रतिशत की सम्भावना तो है ही कि वह हिंसक या क्रूर न हो. है न !!
ठीक वैसे ही राम, कृष्ण, गोपाल यदि किसी का नाम हो तो समाज उसे सम्मान की दृष्टि से देखता है.
जैसे कई लोगों ने मुझे मेरे नाम राजीव का अर्थ बताते-पूछते हुए कहा कि आपको तो कमल के समान सभी बुराइयों से अलग ही होना चाहिये जैसे कि तलाब में जल व कीचड बढ़ने पर कमल भी ऊपर की ओर बढ़ जाता है. मुझे यह जानकर अच्छा लगा और मैं सदैव ही कमल सा बनने का प्रयास करता हूँ. :-)
अतः संस्कार भी नाम के साथ आवश्यक हैं, या उसका उठना-बैठना पढ़े-लिखे लोगों के मध्य हो तो वहाँ नाम की चर्चा व् चरित्र-निर्माण की बातें हो पायेंगी.
नाम ढोने वाले से अधिक महत्वपूर्ण है नाम देने वाले की सोच. अगर भारत के मिसाइल पृथ्वी का नाम सुनकर पाकिस्तान उसे पृथ्वीराज चौहान समझकर अपने मिसाइल का नाम गौरी रखता है तो इसमें गौरी नाम धरने वाले की समझ/नासमझी (पृथ्वी शब्द, पड़ोसी देश की संस्कृति और इतिहास में से अपना पक्ष चुनना) ही ज़ाहिर होती है.
ReplyDeleteइस भरी दुनिया में अपने बच्चे के नाम के लिया एक हिटलर ढूँढना काफी कुछ बताता है. निर्धन पति-पत्नी दोनों का अपढ़ होना, वर्तनी की गाल्तियाँ करना भारत में सामान्य लगता है परन्तु अमेरिका में उतना सामान्य नहीं है. फिर हिंसा के आरोप .... इस धुंए के पीछे काफी आग रही है.
ऐसा नहीं है की फोस्टर केयर सिस्टम त्रुटिहीन है लेकिन फिर भी बहुत सी समस्याओं को कम करता है.
[मुझे लगता है की इस पोस्ट पर पहले भी एक टिप्पणी लिखी थी मगर अब लगता है की वह रास्ते में ही खो गयी है]
हमारे यहाँ कलेक्टर सिंह होते है , थनेदार सिंह , मैनेजर सिंह , सुपरिंटेंडेंट सिंह < रही बात पौरणिक सन्दर्भो की तो , दुर्योधन , कंस , रावण और द्रौपदी भी है , कैकेयी भी रखे जाते हैं । हमारा देश भी नामो के लिये महान है ।
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