एक नया गैस सिलिन्डर जब लगाया तो ठीक से बैठ नहीं रहा था। पति व ड्राइवर दोनों ने कोशिश कर ली। फिर गैस एजेन्सी से उनके वर्दीधारी मैकेनिक को बुलाया, उसने जबरदस्ती लगा तो दिया परन्तु मेरे यह पूछने पर कि इतनी लड़ाई लड़कर कोई स्त्री यह कैसे लगाएगी, उसने कहा कि अब यह आपके पास थोड़े ही फिर से आएगा। अब जिसके पास भरकर पहुँचेगा उसका सरदर्द है, आप क्यों परेशान होती हैं? ठीक भी तो है। जब फिर किसी के घर खाना नहीं बन पाएगा तो उसको बुलाया जाएगा और फिर कुछ बक्शीश भी तो दी ही जाएगी।
उसने कहा कि गैस का पाइप भी बदल ही लो। सो हमने 'हाँ' कह दी। पाइप बदलते समय वैसी ही लड़ाई शायद कुकिंग रैंज के नॉज़ल से लड़ी जैसी गैस सिलिन्डर से लड़ी थी, सो गैस लीक होने लगी, जो उस समय हमें पता नहीं लगी। पता लगता भी कैसे? जितने युद्ध उसने सिलिन्डर, पाइप आदि से लड़े थे उस बीच न जाने कितनी गैस लीक हो चुकी थी। सो उस गैसीय वातावरण में और नई लीक कैसे पता चलती? जाते समय उसने एक आपातकालीन फोन नम्बर दिया याने उसका अपना मोबाइल नम्बर दिया और कहा जब भी कभी जरूरत पड़े बुला लेना।
उसे फिर बुलाया गया। तो वह बोला 'यदि थोड़ी लीक हो रही है तो खाना बनाते समय ही गैस चालू रखो बाकी समय रैग्यूलेटर बन्द रखो कुछ नहीं होगा। जब बर्नर जल रहे होंगे तो गैस लीक नहीं होगी। वह केवल तब लीक होगी जब बर्नर बन्द होंगे और रैग्यूलेटर खुला होगा। मैं सुबह आऊँगा।'
वह आया तो आते से ही माचिस माँगी। मैंने पूछा माचिस क्यों तो बोला, 'गैस कहाँ से लीक हो रही है देखूँगा।'
मैं दंग। 'नहीं, ऐसे चैक नहीं कर सकते। साबुन के घोल से देखो।'
वह माचिस पर ही अटका हुआ था। 'जरा सी गैस लीक हो रही है। कुछ नहीं होगा।'
मुम्बई के खतरे* समझते हुए किसी भी बाहर वाले को पति की उपस्थिति में ही बुलाया जाता है। परन्तु ये भाईसाहब पहले भी आ चुके थे और क्योंकि गैस कम्पनी के थे तो शायद हम अपने नियम को तोड़ देते। पता नहीं। शायद। घुघूत दफ्तर के लिए तैयार हो रहे थे। उन्होंने आकर माचिस जलाकर चैक करने से जरा जोर से बोलकर रोका। साबुन के घोल से बुलबुले बनते दिखाकर बताया कि कहाँ से गैस निकल रही है। फिर विशेषज्ञ को बताया कि ठीक करने के लिए क्या करना होगा।
सोचती हूँ, मैं भी जरा जोर से बोलना सीख लूँ। या फिर जब यह भी जानती ही थी कि ठीक करने के लिए क्या करना होगा तो बिना विशेषज्ञ ही गैस जैसे खतरनाक काम को स्वयं ही कर लेती।
सोचती हूँ एक फाइअर इक्स्टिंगग्विशर या अग्निशामक भी खरीद ही लूँ।
पति चिन्तित हैं कि यदि वे घर पर न होते तो मैं विशेषज्ञ को माचिस टेस्ट करने से रोक पाती क्या? रोक तो लेती किन्तु वह मेरी सुनता यह नहीं जानती। न सुनने की सूरत में उसे बाहर जाने को ही कहना पड़ता। स्थिति थोड़ी कष्टप्रद हो सकती थी। शायद एक विशेषज्ञ को एक स्त्री का अक्ल सिखाना नागवार लगता। शायद उसके अहम् को चोट पहुँचती। आप ही सोचिए आप जो काम करते हैं उसमें यदि कोई स्त्री मीनमेख निकाले तो आपको कैसा लगेगा? शायद पुरुष भी निकाले तो भी खुन्दक आएगी किन्तु यदि स्त्री निकालेगी तो? वह भी एक गृहणी जो विशेषज्ञ भी नहीं है? पता नहीं। पंगे से बच गई।
* कुछ दिन पहले ही एक नकली पुलिसवाला अपने पिता की वर्दी पहन स्त्रियों से उनके जेवर लूटने का प्रयास ठीक मेरे घर के सामने करता पकड़ा गया। आजकल मुम्बई में लोग पुलिस वाले बन स्त्रियों से कहते हैं कि सामने खतरा है और अपने गहने हमारे पास सुरक्षा के लिए रख दो। परन्तु यह वृद्धा कुछ अधिक ही चुस्त व खतरों से खेलने वाली निकली। उसने ठग महाराज को कहा कि यह लो मेरा मंगलसूत्र, पास में ही मेरा घर है मैं और गहने लेकर आती हूँ। ठग महाराज गहनों के लालच में खड़े रहे। वृद्धा सीधे थाने गई और पुलिस को साथ लेकर आई। सो अब ठग महाराज अन्दर हैं।
घुघूती बासूती
पुनश्चः मैं भी कितनी भुलक्कड़ हूँ! आपको इस विशेषज्ञ गैस मैकेनिक का नाम तो बताना ही भूल गई। ओह, शायद मेरे अवचेतन मन ने मुझे किसी मानहानि के दावे से बचाने के लिए ही नाम बताने से रोका होगा। उसका नाम था .....राम। ..... याने हिन्दी में उत्तर जाँचने के बाद जो टिक का निशान लगाते हैं उसको हिन्दी में क्या कहते हैं? बस वही राम! कई लोग यहाँ हस्ताक्षर कर दो कहने की बजाए कहते हैं यहाँ .... कर दो। सही, वही शब्द! आपने सही अनुमान लगाया। वही राम उसका नाम था। इतना सही नाम होने पर भी वह कितना गलत काम करने जा रहा था! काका हाथरसी की वह नाम वाली लम्बी कविता याद आ गई।
घुघूती बासूती
Thursday, April 01, 2010
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घरों में रोज़ झेले जाने वाली महाभारत का रोचक वर्णन
ReplyDelete* सोचती हूँ, मैं भी जरा जोर से बोलना सीख लूँ।
*एक विशेषज्ञ को एक स्त्री का अक्ल सिखाना नागवार लगता।
...बहुत खूब
किसी अज्ञात असावधानी से डरे-सहमे हैं आज टीप देने वाले?
ReplyDeleteहमने तो माचिस से ही जाँच करने वाले देखें है. घोल वाला मामला समय खाऊ जो है.
ReplyDeleteआप ही सोचिए आप जो काम करते हैं उसमें यदि कोई स्त्री मीनमेख निकाले तो आपको कैसा लगेगा?
ReplyDeleteईमानदारी से कह रहा हूं मुझे तो खुशी होती है।
चलो आपने चिडीराम की वजह से अग्निशामक खरीदने का तो सोचा।
प्रणाम स्वीकार करें
अक्सर स्त्रियां दूसरे की बातों में आ जाती हैं....या चुप रह जाती हैं....ऐसे अनुभव मेरे साथ भी हो चुके हैं....पर समय को देखते हुए खुद को मजबूत करना ही होगा....अच्छी पोस्ट..
ReplyDeleteये साबुन के घोल वाली बात तो हमें पता ही नहीं थी, आज पता चली नहीं तो हम तो अपनी नाक का ही उपयोग कर लेते थे..।
ReplyDeleteमूर्ख होना हमारी नियति है; हम मूर्ख थे, मूर्ख हैं और मूर्ख ही रहेंगे।
Britishers were advertising outside India that "Indians are uncivilized. Therefore we are making them civilized. Therefore we should stay there. Don't object." Because United Nations, they were asking, "Why you are occupying India?"
खुशखबरी !!! संसद में न्यूनतम वेतन वृद्धि के बारे में वेतन वृद्धि विधेयक निजी कर्मचारियों के लिये विशेषकर (About Minimum Salary Increment Bill)
गैस सिलेंडर के लीक की जांच और शिकायत करने जैसे छोटे मोटे काम तो हम खुद ही कर ले ..विशेषज्ञ को कह देते कि भैया चेक करना है तो माचिस के साथ घर के बाहर ले जा ....
ReplyDeleteबल्कि पति को कहने में डरते हैं ...कही खुद ही माचिस जला कर चेक ना करने लगें ...:):)
सिलिंडर ही नहीं पूरी कुकिंग रेंज बाहर ले जानी पड़ती, बारह मंजिले नीचे। अपने साथ साथ ३४ या ३५ अन्य फ्लैट्स को खतरे में डाल नहीं सकती थी।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
:) ? Or (: ?
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteऐसी परेशानियां अक्सर हमें झेलनी पडती हैं और बडे शहरों में तो यह परेशानियां तिल का ताड बन जाती हैं , हर कदम फ़ूंक-फ़ूंक कर रखना पडता है । आपने अपनी परेशानी का चित्रण बहुत सुन्दर ढंग से किया है....सीमा सचदेव
ReplyDeletenice
ReplyDeleteAise laga jaise sabkuchh aankhon ke aage ho raha ho!
ReplyDeleteबाकी सब तो ठीक1
ReplyDeleteवाणी जी का डर पसंद आया। Nice कहने को मन कर रहा :-)
पति को कहने में डरते हैं ...कही खुद ही माचिस जला कर चेक ना करने लगें ...:):)
हा हा हा
सही बात, ऐसी परेशानियाँ रोजमर्रा की फेहरिस्त में होती हैं...
ReplyDeleteबहुत अच्छा चित्रण ...
आपका आभार ....
@ वाणी जी, आपकी तस्वीर बहुत पसंद आई, बस ज़रा पुरानी लग रही है..:):)
सच्ची..!!
क्या मुम्बई की नारियां भी इतनी मुंह दूबर हैं ?
ReplyDeleteसही राम जी को हमारा भी राम-राम !
ReplyDeleteओह, मैं भी अकेली रहती हूँ. ठीक ऐसा ही किस्सा मेरे साथ घट चुका है. भारत पेट्रोलियम की ओर से एक भाईसाहब आये थे. मेरा भी सिलेंडर लीक हो रहा था, तो मैंने दिखाया. उन्होंने भी चेक करने के लिये माचिस ही माँगा था. मैंने साफ मना कर दिया, लेकिन वो मान गये थे. मुझे समझ में नहीं आता है कि ये लोग ट्रेंड मैकेनिक होने के बाद भी ऐसी हरकतें करके लोगों का जीवन खतरे में क्यों डालते हैं.
ReplyDeleteआपने महानगर में रहने वाली अकेली औरतों की परेशानियों और उनके जीवन के खतरों के बारे में रोचक ढंग से बताया है.
यह नवीनतम टेक्नोलाजी है गैस रिसाव चेक करने की. भारत द्वारा खोजी गयी. कृपया अपनी जानकारी को अद्यतन रखें
ReplyDeleteहर आदमी शॉर्ट कट तलाशता है चाहे उस में रिस्क हो। पर कभी कभी यह अस्पताल या मुक्तिधाम पहुँचने का शॉर्टकट भी बन जाता है।
ReplyDeletemere hisab se aap zor se bolna hi seekh lijiye.
ReplyDeleteदिलचस्प लेखनी।
ReplyDeleteमुँह दूबर का अर्थ कोई समझाएगा? वैसे मैं मुम्बई की कहाँ हूँ? अभी अभी कुछ महीने पहले ही तो गिर के जंगलों से आई हूँ, अरविन्द जी।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
बहुत जरूरी पोस्ट है आपकी ...
ReplyDeleteगैस पर प्रयोग से पहले खिड़कियाँ खोल दें ।
ReplyDeleteआप जोर से बोलना सीख ही लें, क्योंकि सहीराम जैसे हम लोग सहीकाम नहीं सीखने वाले हैं। एक बार ट्रैन में एक टिफ़िन बाक्स हम लोगों की सीट के नीचे रखा था, जब हमने सजग नागरिक बनते हुये गार्ड को सूचित किया, अगले स्टेशन पर रेलवे पुलिस के कर्मचारी व रेलवे पुलिस आफ़िशियल्स आये। टिफ़िन में से खाना ही निकला, पर जिन शब्दों में हमारी सजगता की प्रशंसा हुई, वे यहां लिखे नहीं जा सकते(स्वीकारोक्ति:= शठे शाठ्यम समाचरेत का पालन हमने भी किया था, वह भी नहीं लिख पायेंगे)। सच में कामनसेंस बहुत अनकामन है यहां पर।
ReplyDeleteवैसे सर्वप्रथम तो अच्छा सा फायत एक्सटेन्गूशर खरीद ही लें, अति आवश्यक वस्तु है. फिर घोल या माचिस का कार्यक्रम तय करते रहियेगा. :)
ReplyDeleteबढ़िया रहा वृतांत.
mhila ki samany gyan ki bat ko sweekar karne me bhle hi purush ke ahm ko thes lge?
ReplyDeletekitu aise vakyo par hmesha mhila hi savdhani se kai trrke dhund nikalti hai aur smy par apni budhimta se durghtnao se bacha leti hai .
अरे बाप रे....
ReplyDeleteअजी मेरी टिपण्णी कहा गई? अभी अभी तो दी थी
आप सही कह रही है, ये काम करने वाले लोग चाहे मिस्त्री हो, मजदूर हो या फिर मेकेनिक कभी भी महिला की बात नहीं मानते हैं। मैं तो न जाने कितनी बार भुगत चुकी हूँ। आपकी बात को केवल सुनते भर हैं लेकिन जब तक पतिदेव उनसे नहीं कहें तब तक नहीं करते। मैं सोचती थी कि शायद पैसे का चुकारा वे ही करते हैं इसलिए ये मेरी बात नहीं मानते लेकिन आज आपको पढ़कर लगा कि माजरा बुद्धि से भी जुड़ा है।
ReplyDeleteवैसे गैस लीकेज का माचिस जला कर पता करना सबसे सटीक तरीका है . आज्कल राम सही कर रहे है . शायद जन्संख्या नियन्त्रण की कोशिश मे लगे हो
ReplyDeleteमुँह-दूबर का शाब्दिक अर्थ है मुँह की दुबली।इससे अन्दाज लगा लें। यदि आप इसका मुँह- तोड़ जवाब देंगी तो कहा जाएगा कि मुँह-दूबर नहीं हैं।
ReplyDeleteकेवल हिन्दुस्तान में ये सहूलियत
ReplyDeleteहै जहाँ कमअक्ल भी शान से जिंदगी गुजार सकते है
वह चाहे,मेकैनिक हो ,कारपेंटर हो ,मजदूर हो या कोई बड़ा पढ़ा-लिखा,अफसर ,पत्रकार या लेखक....स्त्री का कुछ निर्देश देना उन्हें,हज़म नहीं होता. एक प्रख्यात पत्रकार ने,जिनकी पत्नी भी पत्रकार हैं,स्वीकार किया कि वही बात अगर वे कहें तो लोग एक बार में मान लेते हैं पर अगर उनकी पत्नी कहें तो मीन-मेख निकालनी शुरू कर देते हैं.
ReplyDeleteमाचिस के बहाने आपने एक सच्चाई सामने रख दी.
संस्मरण है या दर्पण..!
ReplyDeleteखूब लिखा है आपने.
बुजुर्ग महिला वाली चतुराई पसंद आयी..
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