Thursday, December 17, 2009

एलबर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है?..........घुघूती बासूती

क्या पता क्यों आता था? मैंने तो यह फिल्म देखी नहीं । परन्तु जब जब किसी के गुस्से के बारे में देखती, सुनती, पढ़ती हूँ तो इस फिल्म का नाम याद अवश्य आ जाता है। गुस्सा आना भी समझा जा सकता है किन्तु गुस्से में पगलाना और किसी को जान से मार देना मेरी समझ से परे है। वह भी तब जब बात इतनी छोटी हो कि आम व्यक्ति उस पर ध्यान भी न दे। पता नहीं उनके मस्तिष्क की वायरिंग ही गड़बड़ होती है कि जल्दी ही गरम हो जाता है उनका मस्तिष्क। काश मस्तिष्क में भी कोई फ्यूज़ लगा होता जो ऐसे समय में उड़ जाता और मस्तिष्क ठंडा होने पर जुड़ जाता। न भी जुड़ता तो स्वयं ही भुगतते, किसी अन्य को जान से हाथ तो न धोना पड़ता।

अब यह सड़क पर वाहन चालकों के क्रोध को ही देख लीजिए। रोड रेज़ शब्द है इसके लिए। अपना स्वयं का वाहन है फिर भी इतना क्रोध तो यदि धूप में पैदल चल रहे होते तो पता नहीं हाथ में कुल्हाड़ी या गंडासा या दोनों ही लिए चलते क्या?
मुम्बई हवाई अड्डे के पास के पुल पर १५ दिसम्बर की सुबह एक सैन्ट्रो कार ने एक हौन्डा सिटी कार से आगे निकलने का दुस्साहस किया। हौन्डा सिटी के चालक को यह असह्य लगा। वह तेज गति से सैन्ट्रो के सामने कार ले आया और रास्ता रोक दिया। सैन्ट्रो कार का चालक उतर कर कारण पूछने लगा तो पीछे बैठे व्यक्ति ने उसका कॉलर पकड़ लिया और चालक तेजी से कार चलाने लगा जिससे कुछ मीटर तक वह घिसटता गया कॉलर जब छोड़ा गया तो वह कार के पिछले पहिए के नीचे कुचला गया। हस्पताल में उसकी मृत्यु हो गई।

आप कहेंगे कि जमाना खराब आ गया है, या ये आजकल के युवक बहुत बिगड़ गए हैं। किन्तु यह बात जमाने या युवकों की नहीं है।

कुछ दिन पहले पढ़े एक समाचार ने मुझे यह सोचने को बाध्य किया कि शायद मनुष्य है ही ऐसा। पहले शायद संचार माध्यम कम थे और समाचार लोगों तक पहुँचते नहीं थे किन्तु होता सदा से शायद ऐसा ही रहा है। अब किसी ९८ वर्षीया स्त्री को हम या यह जमाना क्या बिगाड़ेगा?

हुआ यूँ कि अमेरिका के एक वृद्धों के नर्सिंग होम में दो वृद्धाएँ क्रमशः ९८ व १०० वर्ष की, एक ही कमरे में रहती थीं। ९८ वर्षीया को लगता था कि १०० वर्षीया कमरे को हड़पे हुए है, कि उससे बहुत लोग मिलने आते हैं आदि आदि। अब यदि हम किसी से नाराज होना चाहें तो हजार कारण ढूँढ सकते हैं। सो उसने भी ढूँढ लिए होंगे। एक शाम उसने १०० वर्षिया के पलंग के सामने मेज रख दिया ताकि वह शौचालय न जा सके। नर्स ने वह हटाया। अगली सुबह जब नर्स कमरे में आई तो उसने देखा कि १०० वर्षीया के सिर के चारों तरफ एक पॉलीथीन की थैली है और वह मर चुकी है। पहले उसने सोचा कि वृद्धा ने आत्म हत्या कर ली। किन्तु बाद में देखा कि उसके गले पर गला घोंटने के निशान हैं। रात को जब १०० वर्षीया वृद्धा सो गई तो ९८ वर्षीया वृद्धा ने उसके चेहरे पर पॉलीथीन की थैली चढ़ा दी और उसका गला भी दबा दिया था।

अब इस हत्या को क्या कहा जाएगा? यह भी कहा जा सकता है कि उनके बच्चों को उनका ध्यान रखना चाहिए था, उन्हें अपने साथ रखना चाहिए था। किन्तु कैसे बच्चे? उनक संतानें तो अब तक स्वयं ७० वर्ष के आस पास की उम्र की होंगी व उन्हें स्वयं कोई ध्यान रखने वाले की आवश्यकता होगी। मैं तो यही कहूँगी कि मनुष्य शायद एक हिंसक प्राणी ही है और समाज व कानून का भय ही उसे भद्र बनाता है। यह भय खत्म हुआ या उस भय को वह भुला बैठा तो अपने वास्तविक हिंसक स्वरूप में आ जाता है।

घुघूती बासूती

18 comments:

  1. बहुत ही पीड़ादायक घटनाएँ। मनुष्य का निर्माण उस के समाज में होता है। शायद समाज यही सिखा रहा है।

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  2. " अब यदि हम किसी से नाराज होना चाहें तो हजार कारण ढूँढ सकते हैं। "

    वही तो, अब पिंटो को गुस्सा इसलिए आ रहा है कि आज के बच्चे नालायक हैं और बुज़ुर्गों को हत्या करने के लिए छॊड देते हैं :(

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  3. उफ़्फ़ ...! य घटनाएं बता रही हैं कि समाज कितना घातक हो रहा है ,....सच कहूं तो आत्मघाती ...हो रहा है ..इस घटना तो ये भ्रम भी दूर कर दिया कि उम्र के अनुसार ऐसा होता है

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  4. शायद भय ही लगाम लगाता हो ऐसी घटना को आम होने से..ऐसे में इस भय की मात्रा बढ़ाना होगी.

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  5. सोचनीय बात। विचारोत्तेजक पोस्ट!

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  6. यह मनुष्य होने का उन्माद है ।

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  7. विचारणीय पोस्ट लिखी है....

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  8. सभ्यता एक खुशफहमी है.
    दरसल समाज गलत ढंग से, शॉर्ट्कट से सभ्य होना चाह रहा है. बिना अपनी मौलिक इकाई , व्यक्ति को सभ्य होने का मौका दिए. नतीजतन जितनी भी सभ्यता आज तक वह ओढ़ पाया है, ऐसी एक ही घटना उस पाखंड को उघाड कर रख देती है....
    डर, और डंडे के ज़ोर से सभ्यता नहीं लयी जा सकती. गलती यहीं हो रही है.
    cmpershaad ji ne बात की जड़ तक पहुँचने का प्रयास किया है.

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  9. न जाने कैसा समाज हो गया है । जो घट रहा है वह इसी समाज का ही चित्र है न !

    यद्यपि यह बात भी है कि यदि वे अपने परिवार के स्नेह के मध्य रहतीं तो शायद इस प्रकार का चिन्तन नहीं विकसित होता कि किसी का गला ही घोंट दिया जाय कुछ क्षुद्र कारणॊं से । उपेक्षा बड़ी चीज है, जो हमें निरीह और हिंसक दोनों बनाती है ।

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  10. आपने जिन घटनाओं का उल्लेख किया है मुझे तो वे गुस्से से नहीं बल्कि मानसिक विकृति से सम्बन्धित प्रतीत होते हैं। यद्यपि गुस्सा और मानसिक विकृति में बहुत अन्तर है किन्तु दोनों एक दूसरे के पूरक भी हैं।

    आपके इस पोस्ट को पढ़ कर श्री रामचन्द्र शुक्ल जी के लेख "क्रोध" की याद आ गई। बहुत ही सुन्दर व्याख्या की है क्रोध की उस लेख में शुक्ल जी ने!

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  11. मनुष्य शायद एक हिंसक प्राणी ही है और समाज व कानून का भय ही उसे भद्र बनाता है। यह भय खत्म हुआ या उस भय को वह भुला बैठा तो अपने वास्तविक हिंसक स्वरूप में आ जाता है।

    सौ बातो की एक बात

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  12. बहुत ही दुखद है,गुस्से में आदमी वह गुनाह कर बैठता है...जिसे बाद में कितना भी पछताए ठीक नहीं किया जा सकता.....फिर भी कहूँगी...सबको इतना गुस्सा नहीं आता...हाँ कुछ लोगों को भी ऐसा भयावह गुस्सा क्यूँ आता है,यह विचारणीय है.
    अलबर्ट पिंटो का गुस्सा तो हार्मलेस था और कोई भी विसंगति देख आ जाता था.प्रसंगवश एक डायलोग का उल्लेख करना चाहूंगी...जिस पर बहुत हंसी हूँ,स्कूटर पर पीछे शबाना आजमी स्कर्ट पहने बैठी हैं,और नसीरुद्दीन शाह कहते हैं,"क्यूँ पहना स्कर्ट...अक्खा बम्बई तुम्हारा लेग देखता":D

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  13. मुझे लगता है कि गुस्से को शांत करने के लिए एक दूसरे की मदद की ज़रूरत होती हैं। जब एक गुस्से में हो दूसरा शांत करवाए। कई बार एक गुस्से में होता है दूसरे का अलग हो जाना या फिर और ज़्यादा गुस्सा हो जाना बात को बिगाड़ देता हैं। आपकी पोस्ट का हल आप ही कुछ समय पहले लिख चुकी हैं। बचपन से ही इंसान को शिष्टाचार और संयम देने की सलाहवाले लेख के ज़रिए।

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  14. भारत में तो कानून की अक्षमता इसके लिये दोषी है. इस तरह के व्यक्ति को छ: माह के अन्दर फांसी दे दी जाये देखिये क्या असर होता है. लेकिन ऐसा भारत में हो ही नहीं सकता.

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  15. क्रोध का दावानल सब कुछ लील जाता है ....बहुत ही भयावह स्थिति है समाज की ...स्नेही जनों और करीबी रिश्तेदारों के बीच भी वृद्धों के लिए हमेशा सुखद स्थिति हो ...आवश्यक नहीं ...कितने ही किस्से सुने और देखे हैं ...अनुपयोगी हो गए वृद्धों की संपत्ति हासिल करने के बाद उन्हें राह से हटाने के ....

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  16. भय हिंसक वृत्ति का दमन करता है?!
    शायद भय ही क्रोध और हिंसा के मूल में है!

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