Tuesday, October 06, 2009

क्या अन्तर पड़ेगा यदि हम किसी ब्लौगर मित्र का चेहरा, नाम, पता, उम्र जानें या न जानें ?

श्री वीरेन्दर जैन अपने चिट्ठे http://nepathyaleela.blogspot.com/2009/10/blog-post_05.html में घूँघट वाली महिलाओं का जिक्र करते हुए कहते हैं

'पिछले दिनों कुछ महिला ब्लागरों की पोस्टें देखने को मिलीं जिनमें कही गयी बातों के कारण उनका प्रोफाइल देखने की इच्छा हुयी। उन्होंने अपनी पोस्टों में बातें तो बड़ी क्रान्तिकारी की थीं या दूसरे के कथन पर अपनी बोल्ड टिप्पणियां दी थीं किंतु अपने प्रोफाइल में वही पुराना परंम्परागत रवैया अपनाया हुआ था। अपनी जन्म तिथि को तो शायद ही किसी ने घोषित किया हो, अनकों ने अपना फोटो नहीं डाला हुआ था और अधिकतर ने अपना निवास स्थान और अपने कार्यालय का अता पता नहीं दिया हुआ था। ये सारी ही बातें एक आम महिला में देखी जाती हैं किंतु वे महिलाएं अपने ब्लागों पर बड़ी बड़ी बोल्ड बातें नहीं करतीं।
यह समय जैन्डर मुक्ति का समय है तथा ब्लाग पर आने वाली महिलाएं तो सारी दुनिया के सामने अपने मन को खोल देने वाले मंच पर आ रही हैं, ऐसे में यह संकोच उनके दावों के साथ मेल नहीं बैठा पाता। देह उघाड़ने की तुलना में मन का खोलना कम कठिन नहीं होता पर यहाँ तो उम्र व रंग रूप व परिचय तक छुपा कर क्रान्तिकारी बना जा रहा है। यहीं विश्वसनीयता का प्रश्न खड़ा होता है व सारा किया धरा बेकार लगने लगता है।'


मैं जानना चाहूँगी कि क्या हम चिट्ठे लेखक के रूप, रंग, उम्र या लिंग के कारण पढ़ते हैं? मुझे लगता है कि हम चिट्ठे अपने विचारों को अन्य लोगों तक पहुँचाने के लिए लिखते हैं। यदि कुछ लोग टिप्पणी करते हैं या उस विचार विशेष पर बहस करते हैं तो सोने में सुहागा जैसा हो जाता है। अन्यथा तो अपने विचार लिखने भर से भी हमारी सोच कुछ अधिक साफ़ हो जाती है। व्यक्ति की उम्र,लिंग या शक्ल का इन विचारों के आदान प्रदान से क्या लेना देना? यदि कोई अपने नाम पते,चेहरे से सबको परिचित करवाता है तो यह उसका निजि निर्णय है। इससे पाठकों को कोई अन्तर नहीं पड़ता। यदि पड़ता भी है तो केवल एक जिज्ञासा शान्त हो पाने या न हो पाने जितना ही। सबसे बड़ी बात है कि पाठक के लिए लेखन अधिक महत्वपूर्ण है या लेखक?


मैं अपनी बात करूँ तो लेखन ही महत्वपूर्ण है। उम्र तो छिपाने जैसी वस्तु है ही नहीं न बताने जैसी। मैं 54 वर्ष की हूँ कहने से न तो आप मेरा लिखना पढ़ना शुरू कर देंगे न उसे पढ़ना छोड़ देंगे। नेट पर तो लोग अपनी आइ डी देकर ही परेशान हो जाते हैं तो मोबाइल, फोन नम्बर व पता तो कयों देंगे? देने वाले देते हैं, अपनी ही नहीं अपने पड़ोसी की फोटो भी दे देते हैं। यदि उन्हें व उनके पड़ोसी को आपत्ति नहीं तो मुझे क्या हो सकती है? परन्तु लिखने के लिए, विशेषकर कुछ क्रान्तिकारी सा लिखने के लिए अपना चेहरा, लम्बाई या वजन भी नेट पर हो यह शर्त कुछ ज्यादती ही है। यदि इसे घूँघट कहा जाए तो ऐसा घूँघट तो बहुत से पुरुष बलौगर भी ओढ़ते हुए मिलेंगे। उस पर भी आपत्ति है क्या? या केवल स्त्री बलौगर को अपना रूप रंग दिखाना होगा? यदि हम ऐसा करें भी तो क्या सुनिश्चित है कि मैं अपना 30 या 32 वर्ष पुराना फोटो तो नहीं दिखा रही? या आज का खींचा फोटो ही डालना होगा?


प्राय: होता यह है कि आप किसी का लिखा पढ़ते हैं,पसन्द करते हैं, टिप्पणी व प्रति टिप्पणी का आदान प्रदान करते हैं। फिर कभी मेल लिख देते हैं, कुछ विचार मिलते से हैं तो नेट पर बातचीत शुरू हो जाती है। फिर नौबत फोन नम्बर व पते की आती है। मिलना मिलाना होता है तो अपने आप छद्म नाम के साथ साथ माता पिता द्वारा दिया नाम भी पता चल जाता है या बताया जाता है। 'छद्म नाम क्यों' पर तो मैं पहले भी लिख चुकी हूँ। यहाँ केवल इतना ही कहूँगी कि यदि इस नाम से कोई लगातार लिखता व टिपियाता है तो उसे नेट नाम भी कहा जा सकता है। वह धोखा देने की भावना से नहीं रखा गया है। सबसे बड़ी बात यह है कि ब्लौग लेखन व्यक्तिगत स्वतंत्रता का चरम है। यहाँ कोई बंधन नहीं है। यदि कोई बंधन है वही मूल्यों का कि आप किसी को व्यक्तिगत रूप से चोट न पहुँचाएँ, अपशब्दों का उपयोग न करें आदि।


इसे ऐसे ही स्वतंत्र रखा जाए इसी में इस साधन की सार्थकता है। अन्यथा मुझे घूंघट वाली कहलाकर उसकी आड़ से भी लिखने में कोई आपत्ति नहीं है।


घुघूती बासूती

60 comments:

  1. ji bilkul sahi kaha aapne.. Veerendra ji ko ye nahin pata ki dunia me kuchh bure log bhi hain jo in tasveron aur pate ka durupyog kar sakte hain.

    ReplyDelete
  2. बहुत मर्यादित शब्दों में बहुत सार्थक तर्कों के साथ आपने लगभग सभी महिला ब्लोगर्स की ओर से जवाब दे दिया है ...बहुत से लेखक अपनी पहचान छुपाते हुए छद्म नाम से लिखते रहे हैं ...अगर महिलाएं ऐसा करती हैं तो क्या परेशानी है ...और फिर ये भी हो सकता है की छद्म नाम हो ही ना ...कई लोग कई नामों से भी तो पुकारे जा सकते हैं ...जहाँ तक साहसिक होने की बात है ... ज्यादा से ज्यादा पुरुष मित्र बनाना आदि ही यदि साहसिक लेखन का मापदंड है तो ....घूघट वाली या बिना घूँघट वाली महिलाएं ऐसी साहसिकता से परहेज रखना चाहती हैं तो अच्छा ही है ...!!

    ReplyDelete
  3. जब तक छद्म नाम से लिखने के पीछे कोई दुर्भावना न हो इसमें कोई बुराई नहीं. बुराई तब है जब कोई छद्म नाम का सहारा अनुचित बात कहने के लिए करे. छद्म नाम का भी एक व्यक्तित्व होता है, छद्म नामधारी भी जिम्मेदार होते हैं उदाहरण के लिए चिट्ठाजगत के सबसे पुराने छद्म नामधारी ईस्वामी.

    ReplyDelete
  4. सही सटीक विवेचना की आपने। आभार

    ReplyDelete
  5. ईपंडित की बोतों से सहमति !!

    ReplyDelete
  6. ई-पंडित के दर्शन हुए - नमस्कार ।
    वीरेन्द्रजी की ’नेपथ्यलीला” या घूंघटवाले ?

    ReplyDelete
  7. वाणी जी की बात से सहमति ! लिखना महत्वपूर्ण है -यह बात सर्वसिद्ध है ।

    ReplyDelete
  8. वैसे मैं किसी रूप में भी नकली चेहरों का घोर विरोधी हूँ .......चाहे वह पुरुष हो या महिला !

    वैसे सब जानकारियां सार्वजनिक करने के बाद भी वह वास्तविक हों इसकी कोई गारंटी है?

    बाकी अगर यह असलीइ पंडित
    हैं तो मुद्दे की बात पर हमारी राय भी उनके साथ !!..... मतलब उद्देश्य क्या है ?



    गणित शिक्षा प्रत्येक विद्यार्थी के दिमाग को आकर्षित करने के लिए क्या कर सकती है?

    ReplyDelete
  9. बिलकुल सही और स्पष्ट बात ...

    ReplyDelete
  10. रचनाएं ही एक रचनाकार का परिचय होती है और होनी भी चाहिए। अलबत्ता मित्र के बारे में तो मित्र को जानने, देखने की जिद कोई गलत भी तो नहीं। बहुत सी रचनाएं याद आती हैं पर उनके रचनाकार के चेहरे से वाकिफ़ नहीं होते, बहुधा। बहुत सी क्यों, ढेरों। वे रचनाएं ही रचनाकार का अक्श बन रही होती हैं। हां यदि पाठक कई बार उन रचनाओं से रचनाकार के नजदीक तक पहुंचता है तो मिलने ्भी पहुंचता है। कई बार यह मिलना मित्रता में बदलने लगता है।

    ReplyDelete
  11. आपने बिलकुल सही कहा , हम चट्ठे आपने विचारों को लोगों तक पहुँचने के लिए लखते हैं "
    हम किस नाम से लिखते है इससे लोगों को अंतर नहीं पड़ना चाहिए ।

    ReplyDelete
  12. सटीक विवेचना..गहरी सोच लाती हैं आप हमेशा. आभार.

    ReplyDelete
  13. छ्द्म नाम को आप ऐसे भी परिभाषित कर सकते हैं कि जो नाम हम अपना रखने की इच्छा रखते हों पर असल जिंदगी में न रख पाये हों, उसकी पूर्णता हासिल करने के लिये .....

    ReplyDelete
  14. कोई अन्तर नहीं पड़ेगा।

    लेखन ही किसी लेखक की असली पहचान होती है, लेखक का व्यक्तिगत परिचय, याने कि चेहरा, नाम पता आदि, नहीं।

    ReplyDelete
  15. हमें तो कोई फर्क नहीं पड़ता कि चेहरा है या नहीं है, नाम क्या है? घुघूती जी भी हमारी तरह 54 की हैं तो आज पता लग रहा है। वैसे हम उन्हें कम से चार पांच साल बड़ी समझते थे। हाँ यह जरूरी है कि पर्दे के पीछे एक निश्चित गतिमान व्यक्तित्व होना चाहिए, झुलमुल नहीं।

    ReplyDelete
  16. वे जनाव पता नहीं कैसे एक तो डाक्टर की डिग्री हासिल कर गए और ऊपर से लेखक बने फिर रहे है ! बहुत ही बचकानी बाते करते है, उम्र के इस पड़ाव पर भी (चचा ५०-५५ के तो होंगे ही ब्लॉग पर फोटो के अंदाज से ) बेहतर है ignore करो !

    ReplyDelete
  17. यह मामला बार बार उठता है -मैं तुलसी आराधक केवल एक बात कहता हूँ -
    तुलसी अलखै का लखै राम नाम भज नीच ! मैं तो अनामियों को अंतिम प्रणाम करने वाला हूँ !

    ReplyDelete
  18. sehmat hai aapse.

    ReplyDelete
  19. परिचय स्‍पष्‍ट और सच्‍चा होना चाहिए। कई बार किसी के बहुत ही परिपक्‍व विचार आते हैं तब मन करता है कि उसका बायोडेटा देखें, ऐसे में वहाँ कुछ नहीं मिलता तो अपनी राय कायम रखने में कठिनाई होती है। जब हम ब्‍लाग पर आए ही हैं तब कुछ भी दुराव-छिपाव नहीं होना चाहिए। आपके व्‍यक्तित्‍व और कृतित्‍व को जाने बिना आपके लेखन का आकलन नहीं हो पाता।

    ReplyDelete
  20. मैंने कुछ जगह अपनी ईमेल आईडी दी हुई है तो उसके बाद ऐसे ईमेल आते हैं कि क्या बताया जाय। अत: अपनी और कोई जानकारी देने की मेरी हिम्मत नहीं पड़ती है। मैं ऐसे छुपी हुई ही ठीक हूं।

    मनीषा

    ReplyDelete
  21. सही कहा आपने लेखन ही महत्वपूर्ण है

    ReplyDelete
  22. हमेशा की तरह बेहतरीन मुद्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति।
    लेखन में ईमानदारी झलके तो छद्मनाम भी गवारा है क्योंकि ईमान ही पहचान है। फिर नाम में क्या रखा है। वर्ना छद्मचरित्र हमेशा ही नापसंद रहे हैं।

    लम्बे समय तक किसी नकाब से कैसे बात की जा सकती है, साथ रहना तो दूर की बात है:)

    ReplyDelete
  23. इतना सुलझा हुआ विश्लेष्ण सच में अच्छा लगा . मेरी दादी कुमाऊनि है मुझे याद है जब वह लोरी सुनाती थी उसमे घघुती बसुती का भी जिक्र होता था और अल्मोडे का भी

    ReplyDelete
  24. छ्द्म शब्द से ही बोध होता है कि कुछ छुपाया जा रहा है,अगर असली मे परेशानी है तो छ्द्म ही सही लेकिन एक समय ऐसा आता है कि नकाब उतारना ही पड़ता है,असली चेहरा सामने आ जाता है,"कोई काहु मे मगन-कोई काहु मे मगन"

    ReplyDelete
  25. आपसे सहमत। सटीक जवाब… हमेशा की तरह घुघूती बासूती स्टाइल में… :) कई पुरुष ब्लागर भी तो घूंघट में हैं, उनका क्या?

    ReplyDelete
  26. seedhe shabdo me kahi baat achhi lagi

    ReplyDelete
  27. GHOOGHAT KI AAD ME LIKHANE ME KOI BURAI NAHI HAI BAS MANSA TEEK HONI CHAHIYE.

    AANAM NAM SE LIKHANE ME KISI KI MAJBOORI BHI HO SAKTI HAI.

    ReplyDelete
  28. विवेक2:06 pm

    इस श्रेणी में सबसे बडा नाम तो ताऊ रामपुरिया है, जिसका कोई नाम पता फ़ोटो किसी
    के पास नही है।

    ReplyDelete
  29. पूर्ण सहमति...

    ब्लॉगजगत विचारों की अभिव्यक्ति का माध्यम है और विचार का कोई रूप, रंग, चेहरा हो; यह कोई जरूरी नहीं. जरूरी यह है कि विचार सार्थक हो।

    ReplyDelete
  30. मुल्य लिखे का है जी, क्या फर्क पड़ता है आप 60 के हैं या 16 के. स्त्री है या पुरूष.

    अखरता कब है जब कोई आपको गाली दे जाए और आप उसको पहचान ही नहीं पाओ...तब बड़ा खराब लगता है. या फिर कोई जोरदार बात पढ़ो और उसके लेखक को पहचान ही न पाओ....तब लगता है घुंघट में क्यों? बाकी सब ठीक है.

    ReplyDelete
  31. ई-स्वामी, घुघुती, मिसिजीवि, उन्मुक्त जैसे ब्लॉगर वास्तविक नामधारी लगते है. नियत ठीक है इसलिए.

    ReplyDelete
  32. bilkul sau pratishat sahi baat..
    koi fark nahi padna chahiye..

    ReplyDelete
  33. bilkul sau pratishat sahi baat..
    koi fark nahi padna chahiye..

    ReplyDelete
  34. क्या फ़र्क़ पड़ता है।जिसे बताना है वि बताता है और जिसे छुपाना होता है छुपाता है।सवाल पहचान का नही सवाल लेखन का है।जिस्का लिखा अच्छा होगा फ़िर चाहे वो कोई भी क्यों न हो पढा जायेगा और खराब लिखे का क्या हश्र होता है ये भी कोई बताने की चीज़ है।

    ReplyDelete
  35. आपकी इस पोस्ट को पढ़ने के बाद मैंने उन सज्जन की पोस्ट भी पढ़ी। दरअसल समस्या यही है कि महिला को उसके बाहरी आवरण से ही जज करने की एक अजीब-सी मानसिकता है जोकि न सिर्फ़ हमारे समाज में मौजूद है बल्कि हरेक जगह मौजूद है।

    ReplyDelete
  36. बिल्कुल सही विश्लेषण किया आपने......

    ReplyDelete
  37. varsha6:26 pm

    I see blogging as another side of me so I use another name. I want to have a clear distinction between the two.
    Roj ki dincharya mein blogging ko jad dene mein uska wo maza nahi rah jaayega jo is tarah se likhne me hai.
    sahi baat likhi hai aapne..

    ReplyDelete
  38. मेरे हिसाब से तो अज्ञात रह कर लिखना ही बेहतर है, फिर संकोच जैसी कोई बात नहीं रह जाती. वैसे अपनी अपनी इच्छा.

    ReplyDelete
  39. इ स्वामी से सौ प्रतिशत सहमत ....

    ReplyDelete
  40. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  41. आप के सम्मान से बढकर कुछ नहीं
    हमारे लिए जो आदेश हो

    ReplyDelete
  42. घुघुती जी, आप के तर्क प्रभावित करते हैं.

    इधर अक्सर यह होने लगा है कि जब कोई छद्म नाम सशक्त होने लगता है.... तो भाई लोग बेचैन होने लगते हैं.... सामने आओ, सामने आओ!
    आप लोगों ने एक स्नोवा बॉर्नो का नाम सुना होगा. मैं ने भी सुना. वह मनाली से है... यानि मेरे गांव से निकटतम टाऊन. पर हम कुल्लू-लाहुल के लेखकों को उस से मिलने की ज़रूरत महसूस नहीं हुई. बस उसे पढ़्ते रहे. आज कल वह अंतर्ध्यान हो गई है. फिर से लिख्ना शुरू करेगी तो फिर से पढ़ेंगे....

    ReplyDelete
  43. उन की इस पोस्ट का मतलब हिट क्लिक
    टिप मात्र है. आप नाहक वज़न न दें

    ReplyDelete
  44. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  45. जीबी ,
    यह टिप्पणी आपको संबोधित नहीं है अतः खेद सहित !......

    प्रिय वीरेंद्र जैन साहब -
    कितने ही महान साहित्यकार छद्म नाम से लिखते रहे हैं ?
    ....और कितने ख्यातनाम अभिनेता अपने मूलनाम को अपने से चिपका कर अभिनय कर रहे हैं ?
    ....यदि मुझसे अदना इंसान को एक नाम परिजनों नें दिया और एक मैंने स्वयं रख लिया तो इसमें दिक्कत क्या है ?
    और हाँ मुझे देहयष्टि ही दिखाना होती तो मैं माडलिंग करता , पहलवानी करता या ऐसा ही कुछ और ?
    वीरेंदर भाई साहब मैं खुद घनघोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र में रहता हूँ ! उनके विरुद्ध ब्लाग में लिखना चाहूं और अपनी फोटो भी लगा दूं ?
    क्या आपकी तसल्ली के लिए हाराकिरी कर लूं ?
    ये एक मिसाल है अन्य ब्लागर्स के लिए दूसरे तकनीकी कारण हो सकते हैं ?
    जहाँ तक हम समझते हैं की यहाँ सारे ब्लागर बंधु , यहाँ तक की आप स्वयं भी वैचारिक अभिव्यक्ति के लिए पधारे हैं !
    इसलिये प्रभु केवल 'विचारों' के नयननक्श देखिये !

    ReplyDelete
  46. एनोनिमिटी ब्‍लॉगिंग को उसका वह चरित्र देती है जिससे वह आज इतना प्रभावशाली माध्‍यम बन पाया है...
    ऊपर मास्‍साब प्रवीणजी ने गजब बात कही है...कहते हैं कि अगर ऊपरवाले ईपंडित वासतविक ईपंडित (यानि मास्‍साब श्रीश) हैं तो वे उनसे सहमत हैं... अजीब बात है। मान लो वो बात श्रीश ने नहीं जेएल सोनारे ने कही बंबई वाले ने कही है तो उससे प्रवीण (केवल उदाहरण के लिए कह रहा हूँ...मतलब कोई भी) उससे असहमत हो जाएंगे... भैया बात सुन रहे हैं कि वोट डाल रहे हैं जो नाम शक्‍ल (अभी नाम पते कि बात है अगर मान ली तो जाति, धर्म, लैंगिकता, क्षेत्र, राष्‍
    ट्रीयता, रंग, नस्‍ल से तय होने लगेगा)

    कुल मिलाकर अनुरोध बस इतना कि ब्‍लॉगिंग को ब्‍लॉगिंग ही रहने दो। अपनी कहें तो हमें जब घुघुती का रीयल लाइफ नाम पता चला तो सच कहें बेहद बेमजा सा लगा... घुघुतीजी भला घुघुती बासूती के अलावा कुछ और कैसेट हो सकती हैं ? अपने पति, बेटे-बेटी, पड़ोसी के लिए हों..हुआ करें। हम ब्‍लॉगरों के लिए तो बस घुघुतीजी हैं और यही ठीक हैं।
    शायद इस पोस्‍ट से बात और आगे जाए।

    ReplyDelete
  47. कृपया मेरे ब्लॉग पर घूँघट वाली महिला ब्लॉगर भाग-२ में मेरे निवेदन पर भी गौर करें

    ReplyDelete
  48. घुघूती बासूती जी आपने बिलकुल सही जवाब दिया है | पता नहीं कुछ लोगों को महिलाओं की फोटो और अन्य जानकारी मैं क्या रूचि हो रही है | गन्दी सोच के लोग ही इस बहस को जन्म दे रहे हैं ....

    आपकी सोच सकारात्मक है, अच्छा लिखती हैं ... उनको ignore ही कर के चलिए | वैसे आपका जवाब बहुत जरुरी था ..

    ReplyDelete
  49. साहित्य जगत मे भी पिछले दिनो स्नोवा बार्नो प्रकरण ने ऐसी ही उछाल दिखाई थी । बड़े बड़े दिग्गज इस बात के पीछे पड़ गये थे कि इस नाम की लेखिका है या नहीं । किसीने कहा कि कोई पुरस्कार घोषित कर दीजिये खुद ब खुद सामने आ जायेंगी । खैर इस बहस पर बहुत समय बरबाद हुआ । अब ब्लॉग जगत मे यही सब देखकर मन खिन्न हो रहा है । क्यों न हम लेखन पर बात करें । जब जिसके अवतरण का समय होगा हो जायेगा । इसलिये कि यह मनुष्य की व्यक्तिगत मनोवृति से सम्बन्धित प्रश्न है । कुछ लोग दिखावे में विश्वास रखते है कुछ लोग छिपाने में । यहाँ स्त्री-पुरुष जैसा भी कोई प्रश्न नही है । यह बात दोनो पर ही लागू होती है । समाज मे भी यही होता है ,कुछ लोग दान मे दिखावा करते है अपने नाम के पत्थर लगवाते हैं खुद का प्रचार-प्रसार करते है वहीं कुछ लोग गुप्त दान मे विश्वास करते हैं । लेकिन इनके बीच का भी एक वर्ग होता है जो वास्तव मे यथार्थवादी होता है , जो जैसा है वैसा ही दिखना चाहता है । किसी कवि ने कहा भी है ( शायद भवानी भाई ने ) " जैसा तू लिखता है वैसा तू दिख " यहाँ कवि का आशय तस्वीर से कदापि नही है ।इससे पहले भी क्रांतिकारी लेखन होता था लेकिन उसके लिये उन लेखको की तस्वीर देखना ज़रूरी नही होता था और लोक गीतो के तो सारे लेखक अनाम हैं , है किसी के पास आल्हा-ऊदल की सही तस्वीर , तुलसी कैसे दिखाई देते थे ? गौतम बुद्ध 6 माह की तपस्या के बाद क्या ऐसे ही दिखते थे ? सो यह तकनीक आ गई है तो क्या ज़रूरी है ,तस्वीर दी ही जाये ? कल को और एडवांस तकनीक मे क्या प्रोफाइल मे वीडियो फिल्म भी जोड़ी जायेगी ,कि आप दिखते कैसे है के अलावा आप बोलते कैसे है ,चलते कैसे है यह भी मालूम हो जाये । हो सकता है ओज के गीत लिखने वाले की पुरुष की आवाज़ स्त्रैण हो !या कोमल भावों की कविता लिखने वाली कवयित्री में पुरुषोचित गुण हों । हिन्दी का एक बेहद उर्जावान कवि रजत क्रष्ण जिसकी कविताये पढ़कर रक्त का संचार तेज़ हो जाता है ,बचपन से मस्कुलर डिस्ट्रोफी नामक बीमारी से जूझ रहा है अपने हाथ तक नही हिला पाता ,लेकिन अभी अभी उसने पी.एच.डी की है ,और ऐसे कई उदाहरण है । सो सूरत और सीरत के लिये किसी को कोंचने की क्या आवश्यकता । यह बेकार की बहस है ।

    ReplyDelete
  50. भाई मसिजीवी !!

    ज्यादा भूमिका न बांधते हुए सीधा सन्दर्भ कर रहा हूँ .... वैसे न समझना चाहें तो और बात है (जाहिर है तर्क और ..... के बीच एक पतली सी ही रेखा होती है )

    १- जब लक्ष्य है भय रहित दुनिया की , तो मुखौटों की इतनी तरफदारी क्यों?
    २- कई बार जब इरादे नेक हो तो , मुखौटे किसी को नहीं चुभते !
    ३- अभिव्यक्ति के मायने हर अभिव्यक्ति करने वाले के साथ बदलते जाते हैं; सो चेहरे पे चेहरे की इतनी अहमियत क्यों?
    ४- सबसे बड़ा और अहम् जवाब इस प्रकरण का यही है .....अरे यही नहीं है ..... जो असली?
    इ- पंडित ने दिया है "जब तक छद्म नाम से लिखने के पीछे कोई दुर्भावना न हो इसमें कोई बुराई नहीं. बुराई तब है जब कोई छद्म नाम का सहारा अनुचित बात कहने के लिए करे. छद्म नाम का भी एक व्यक्तित्व होता है, छद्म नामधारी भी जिम्मेदार होते हैं उदाहरण के लिए चिट्ठाजगत के सबसे पुराने छद्म नामधारी ईस्वामी"

    जाहिर है इ-पंडित की बात से कौन असहमत हो सकता है ? शायद कोई नहीं ? क्योंकि इस विचार के पीछे कोई दुर्भावना नहीं है |
    वैसे मैं किसी रूप में भी नकली चेहरों का घोर विरोधी हूँ .......चाहे वह पुरुष हो या महिला!! वैसे सब जानकारियां सार्वजनिक करने के बाद भी वह वास्तविक हों इसकी कोई गारंटी है?
    बाकी अगर यह असली इ-पंडित
    हैं तो मुद्दे की बात पर हमारी राय भी उनके साथ !!..... मतलब उद्देश्य क्या है ?


    बाकी जो आप समझें?
    सादर!

    कुछ तो है उस दंडधारी शख्स में ....?

    ReplyDelete
  51. और हाँ !भाई मसिजीवी !!

    एनोनिमिटी ब्‍लॉगिंग ने गंदगी भी कम नहीं फैलाई है !

    ReplyDelete
  52. शरद कोकास जी द्वारा स्नोवा प्रकरण उठाना आपकी पोस्ट की सार्थकता साबित कर देता है। अब स्नोवा तो तस्वीर में सुंदर दिखाई देती हैं, लेकिन लेखन....बाप रे!...तो आप की बात से शत-प्रतिशत सहमति है मैम, एक अच्छे लेखन को किसी परिचय का मोहताज नहीं होना पड़ता...
    आपके इतने सारे पाठक हैं, ये क्या इसका सबूत नहीं?

    ...और आपके स्नेह और शुभकामनाओं से खूब अच्छा हूं अब मैं।

    ReplyDelete
  53. आपके विचार से सहमत हूँ । लेखन कर्म महत्वपूर्ण है, परिचय तो हो हीं जाता है ।

    ReplyDelete
  54. शब्दों का शहर है यह तो...शब्द ही परिचय शब्द ही चेहरा.....इससे अधिक कि कहाँ है कोई आवश्यकता....

    पूरी तरह सहमत हूँ आपसे...

    ReplyDelete
  55. ब्लौग लेखन व्यक्तिगत स्वतंत्रता का चरम है। यहाँ कोई बंधन नहीं है। यदि कोई बंधन है वही मूल्यों का कि आप किसी को व्यक्तिगत रूप से चोट न पहुँचाएँ, अपशब्दों का उपयोग न करें आदि।

    Agree with this --

    ReplyDelete
  56. bahut dhnywad jo apne is bat ko itne
    sabhy aur suljhe treeke se smjhya hai .ham yhan vichar sanjha krne aaye hai to unhe hi bante apni niji smsyaye nhi jiske liye hme apna prichy dena jaruri hai .
    abhar

    ReplyDelete
  57. हम तो पूर्णतः सहमत है जी.

    ReplyDelete
  58. स्त्री हो या पुरुष सभी की अपनी प्राइवेसी होती है। अगर मेरा लेख पड़्ने के लिये किसी को मेरा घर का पता, मेरा फ़ोटो, मेरी जन्म तिथि और मेर फ़ोन नं० जानना जरुरी है तो मुझे एसे पाट्कों से कोई सरोकार नही है। यह कोई रिश्ता थोडे़ ही ढुंढा जा रहा है। कि सारी जानकारी प्रोफ़ाईल में सार्व्जनिक रूप से दी जाये। यह तो व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह अपने बारे मे कितनी जानकारी देना चाह्ता है। विशेष रूप से महिलाओं के लिये ध्यान रख्न्ना जरूरी है नही तो उनके द्वारा दी गयी व्यक्तिगत जानकारी के दुर्पयोग की सम्भावना बनी रह्ती है। इसमें दोष महिलाओं का नही हमारी दोगली भारतीय मानसिकता का है जो अपने परिवार के अलावा किसी भी महिला को केवल एक वस्तु की तरह देखता है।

    ReplyDelete