Thursday, June 04, 2009

रंग हो जाने चाहिए बेरंग

यह लेख मुम्बई हमलों के दौरान लिखा था। कल अरुण जी का लेख ‘शीला जी आगे बढ़ो हम तुम्हारे साथ हैं’ पढ़कर याद आ गया सो पुराना होने पर भी पढ़ ही लीजिए। अरुण ने इसे प्रासंगिक बना दिया है।


जब मुम्बई का ताज जल रहा था तब मैं रंगों पर भी कान लगाए हुए थी । भय था कि अब कौन सा रंग बैन करना होगा । दुर्भाग्य से हम स्त्रियों के कपड़े रंग बिरंगे होते हें । जब किसी रंग पर बैन लगता है, प्रत्यक्ष नहीं तो परोक्ष में ही सही, कुछ साड़ियाँ पेटी में डालनी पड़ती हैं । कुछ दिनों से मेरे पास दो तीन साड़ियाँ जो गलत रंग की थीं (यहाँ यह साफ कर दूँ कि वे मैंने नहीं खरीदी थीं, मुझे परिवार वालों से उपहार में मिली थीं ) बहुत दुख के साथ मैंने छिपा दी थीं । जमाना खराब है, कोई कहने लगे कि चिड़ियाएँ भी गलत रंग पहन कर अपनी आतंकी मंशा दिखाने लगी हैं । फिर गलत राज्य में भी रहती हूँ। और तब तो मेरी जान ही निकल गई जब टी वी पर कई बार बताया गया कि आतंकवादी मेरे राज्य से आए थे । परन्तु कुछ घंटों के बाद कहा गया कि वे पड़ोसी देश से आए थे । मेरी जान में जान आई । वैसे भी यदि सरदार पटेल न होते तो शायद इस राज्य का यह हिस्सा पड़ोसी देश में ही होता । मैं प्रतीक्षा करती रही कि कोई कहेगा कि गुजरात का नाम बार बार लेने की आदत पड़ जाने के कारण गलती से मुँह से निकल गया । परन्तु ऐसा किसी ने नहीं कहा ।


मुझे भगवान पर कुछ विशेष विश्वास न होते हुए भी कभी कभार 'हे भगवान' कहने की आदत थी। आजकल कहते कहते रुक जाती हूँ क्योंकि कोई यह न कहे कि भगवा..न के बहाने गलत रंग को याद कर रही है । अब लगता है कि यह सब इसी तरह चलता रहा तो शायद खाकी रंग ही सुरक्षित रह जाएगा । जिस द्रुत गति से नए नए रंग के आतंक निकल रहे हैं आकाश से इन्द्र धनुष भी बैन करना होगा । परन्तु आज अभी तक आतंक का रंग नहीं बताया है । मैं प्रतीक्षा में हूँ जानने की । वैसे यदि सांकेतिक भाषा समझूँ तो आग का रंग भी तो हो सकता है और वह अग्नि भगवा..न का रंग याने वही पुरानी दो तीन साड़ियों का रंग ही है । चलो अच्छा ही हुआ । मेरा मन नई किसी भी रंग, खाकी भी नहीं, की साड़ियाँ खरीदने का नहीं है । जमाना वैसे भी मंदी का है ।


चलते चलतेः
गुजरात में एक दल की जीत का कारण शायद यहाँ का प्रसिद्ध आम 'केसर' भी है। इसका नाम बदल कर 'बेरंग' जैसा कुछ रख देना चाहिए। वैसे कुछ लोगों को जानकर संतोष होगा कि इस वर्ष ये आम भी चुनावों के परिणामों की तरह नाराज हैं। केसर आम इस वर्ष फला ही बहुत कम। मेरे बगीचे में इसके दो वृक्ष हैं और दोनों में केवल दो दो आम लटके हुए इस रंग की दुर्दशा की कहानी सुना रहे हैं।


घुघूती बासूती

18 comments:

  1. rang par bain nhi?rang bhi badrang nhi hai .hmara njriya kaisa hai?ye ahm hai .

    ReplyDelete
  2. पानी रे पानी, तेरा रंग कैसा? जिस में मिला दो लगे उस जैसा।

    ReplyDelete
  3. hmmm...rangon ke sath jab bias jud jaata hai to badi mushkil ho jaati hai, aapko to kuch sadiyan rakhni padi bas, jinka ye pasandida colour hoga unko kitni mushkil hogi.

    rangon se juda mudda bada acche se likha hai aapne.

    ReplyDelete
  4. आदरणीय घुघूती जी किसी घटना का कितना प्रभाव किस किस अलग अलग रूप में पद सकता है इसी का परिचायक है आपकी ये पोस्ट...बिलकुल जुदा नजरिया है....सार्थक लेख.....

    ReplyDelete
  5. Anonymous8:44 pm

    क्या इसी को कहते हैं रंग में भंग (या उन्माद)?

    ReplyDelete
  6. आपके बगीचे मे दो आम तो लगे, हमारे यहां तो इस साल अलबत्ता आम के झाडों मे बोर ( फ़ूळ ) ही नही आया.

    शायद अब केशर का नाम बदल दिया जाना चाहिये. अरुण भाई भी सहमत होंगे?:)

    रामराम.

    ReplyDelete
  7. क्या हमारे झंडे को भी अन्दर रखना होगा. उसमे भी एक पट्टी तो है. आपका आलेख आनंद दाई हुआ करती है. आभार.

    ReplyDelete
  8. बहुत ही सुंदर पोस्ट .

    ReplyDelete
  9. bahut achhi lagi post.

    ReplyDelete
  10. अरे बाबा रे ! क्या क्या बैन करना पड़ेगा ये सोच रहा हूँ :)

    ReplyDelete
  11. Anonymous3:14 am

    रंगों अथवा यूं कहें कि रंग विशेष को लेकर हो रहा यह बवाल सरासर पागलपन है....सभी रंग हमारे लिए समान रूप से महत्त्वपूर्ण हैं और ब्लोगिंग के लिए भी (अगर ये अलग-अलग रंग ना हों तो क्या हम ब्लॉग पे कुछ भी लिख सकते हैं).....और रही बात उस रंग विशेष पर प्रतिबन्ध की तो सबसे अच्छा उदाहरण सूर्य का ले सकते है....सूरज का रंग भी काफी-कुछ उसी रंग से मिलता है.....तो क्या ढक देंगे सूरज को ?? झोंक देंगे पृथ्वी का अस्तित्व संकट में ?? या फ़िर पृथ्वी के बाहर एक ऐसा आवरण चढा देंगे जिसमें से देखने पर सूरज उस रंग का ना दिखे.....

    साभार
    हमसफ़र यादों का.......

    ReplyDelete
  12. रंगो का वैसे भी आजकल कोई रंग ही नही है. जो कुछ बचा है उस पर बैन तो न लगाईए.
    अच्छी रचना

    ReplyDelete
  13. आपने बहुत सही बात कही ...पाता नहीं क्या क्या बैन करना होगा

    ReplyDelete
  14. वो तो सब ठीक है मगर आप अक्सर जिस बाग का ज़िक्र करती हैं न...! मुझे उधर का टिकट कटाना पड़ जायेगा कभी..! :)

    ReplyDelete
  15. न भगवा न सफ़ेद न हरा-....सब से अच्छा डंडा:-)

    ReplyDelete
  16. हे भगवा न...

    ReplyDelete
  17. ये बात अब आपमे सेकुलरता के रंग दिखने लगे है . :)

    ReplyDelete