राजतन्त्र में राजकुमार ग्वालानी जी लिखते हैं 'कम होने लगे कपड़े बढ़ने लगे लफड़े !'
यदि कोई चोर चोरी करने का कारण अपनी चोरी की आदत, डाकू डाका डालने का कारण अपनी डाका डालने की आदत, अपहरणकर्ता अपहरण का कारण अपनी अपनी आपराधिक मानसिकता को न देकर लोगों की सुन्दर कारों, उनके अपार धन को दे तो आप दोष किसे देंगे? संसार की कौन सी अदालत उन्हें अपने अपराध से बरी कर देगी ? समाज किसे दोषी कहेगा? अपराधी को या अपराध का न्यौता देती कारों व धन को ? जब किसी की जेब कटी तो आपने कभी किसी को कहते सुना है कि भाई जेब क्यों लिए घूम रहा था ? या जेब में पैसे रखे ही क्यों थे ? फिर बलात्कार व स्त्री के यौन उत्पीड़न में उसे ही दोषी करार देने की यह प्रवृत्ति कब और कैसे विकसित हुई ?
यहाँ तो स्थिति यह है कि अपराधी तो बेचारा अपराध करने को बाध्य किया गया। स्त्री तो अपराध करवाने की ताक पर ही बैठी थी। कुछ ऐसे जैसे उसके प्रति अपराध करके अपराधी ने उसे व समाज को धन्य किया। समाज की अन्य स्त्रियों को सिखलाया कि स्त्री हो ढकी छिपी रहो अन्यथा.......!
आज वैसे ही टी वी के दो दृष्य मन को अस्थिर किए हुए थे। एक था स्वात घाटी पर कोड़ों से पिटती उस लड़की का और दूसरा था दहेज के लिए पीटी गई कानपुर की उस युवती का। 'इन दोनों मामलों में भी कसूर अवश्य इन स्त्रियों का रहा होगा।' कसूर सदा कमजोर का होता है। मुझे बचपन की पढ़ी वह मेमने व भेड़िए की कहानी याद आती है। भेड़िया कुछ भली किस्म का भेड़िया रहा होगा। उसे मेमने को खाने के लिए कोई कारण मेमने को देना पड़ा। कारण कुछ यूँ था कि तुमने नदी से पानी पिया सो नदी के पानी को जूठा कर दिया। मेमना कहता है कि नहीं, नदी का बहाव तो मेरी तरफ है सो आपका पानी जूठा कैसे हो सकता है। भेड़िया कहता है कि फिर तुम्हारे पिता ने मेरा पानी जूठा किया था उसलिए मैं तुम्हें खाऊँगा। अब भेड़िया शक्तिशाली था फिर भी मेमने को खाने का कोई कारण तो दे रहा था, हमें उसकी इस महानता पर उसपर मुग्ध हो जाना चाहिए। इसी तरह पुरुष शक्तिशाली है फिर भी स्त्री के बलात्कार के कारण तो देता है, हमें भी उसकी महानता पर मुग्ध होना चाहिए। रायपुर की लड़कियों के साथ कुछ घटा तो हम जानते हैं कि दोषी कौन होगा या यह कहिए कौन होगी। दोषी होगी वह बिना बाँह की टी शर्ट जैसा कि हमारे मित्र अपने ब्लॉग में कह रहे हैं.....
'उन सभी लड़कों की नजरें उस कन्या को ऐसे देख रही थी मानो उसको कच्चा ही चबा जाएंगे। उन लड़कों की यह हरकत थी तो गलत पर इसका क्या किया जाए कि उन लड़कों को ऐसी हरकत करने के लिए उस कन्या के कपड़े ही उकसा रहे थे। हमारे कहने का मतलब यह है कि उस कन्या ने जींस के ऊपर जो सफेद टी-शर्ट पहन रखी थी, वह टी-शर्ट एक तो बिना अस्तीन के थी ऊपर से तुरा यह कि वह इतनी ज्यादा झीनी थी कि कन्या ने टी-शर्ट ने अंदर क्या पहना है, वह सब साफ-साफ नजर आ रहा था। अब ऐसे में वो लड़के भी क्या करते।'
भाई, हमें तो आपके बनियान रोज ही दिखते हैं, कभी कभी तो केवल बनियान में घूमते पुरुष भी दिखते हैं, कई बार तो बिना बनियान के भी। जो हम करते हैं वही वे लड़के भी कर सकते थे। हम या तो अनदेखा कर देते हैं या नजरें दूसरी तरफ कर लेते हैं। अब इतनी भी मजबूरी क्या कि लड़की के अन्तः वस्त्र दिखे नहीं कि आप फिसले और लड़की का पीछा करना आपकी मजबूरी हो गई !
आज वैसे ही मन में समाचार देखकर इतना अवसाद भर गया था कि जो लिखा वह यह था.......
'स्त्रियों को तो स्त्री भ्रूण हत्या करने वालों को धन्यवाद कहना चाहिए।
जब आप स्वात घाटी पर पिटती किसी लड़की का विडीओ देखती हैं, उसका बुर्का उठाकर , कुर्ता उठाकर (ताकि कोड़ों की मार अधिक पड़े) उसे पीटते धार्मिक लोगों को देखती हैं, जब कानपुर की किसी बहू का ससुराल वालों द्वारा बिगाड़ा चेहरा देखती हैं, उसका सूजा नीला पड़ा चेहरा, न खुलती आँखें देखती हैं और ऐसे ही न जाने कितने हृदय विदारक समाचार देखती सुनती हैं तब क्या आपको नहीं लगता कि स्त्री भ्रूण हत्या करने वाले अधिक कोमल हृदय हैं ? मेरा सिर तो उनके सम्मान में झुक जाता है। मन से केवल यही शब्द निकलते हैं आभार, आभार, आभार ! न रहेगा बांस न बजेगा बाँसुरी की तर्ज पर जब स्त्रियाँ रहेंगी ही नहीं तो उनपर अत्याचार ही कैसे होगा ?
पुरुषों का क्या होगा यह सोचना पुरुषों को ही होगा। वैसे भी वे ही तो सदा से संसार के भाग्य नियंता, धर्म नियंता, वैज्ञानिक आदि आदि रहे हैं। शायद वे इसका भी इलाज ढूँढ ही लेंगे। जब वे धर्म बना सकते हैं, स्त्री का समाज में स्थान नियत कर सकते हैं, संसार को बनाने व मिटाने के साधन निर्माण कर सकते हैं तो वे स्त्रियों का विकल्प भी ढूँढ ही लेंगे। उन्हें विकल्प ढूँढने दीजिए। हमारी खैर तो इसी में है कि हम इस संसार से विदा ले लें।
युग बीत गए हैं कि हम उनकी व्यक्तिगत वैले(valet)सम्पत्ति,बनी रही हैं। उनकी, उनके धर्म,जाति,नस्ल का विस्तार करने का साधन बनी रही हैं। जिस व्यवस्था में हमारा कोई स्थान नहीं है, जिससे हमें कुछ लेना देना नहीं है, उस व्यवस्था में कभी कभार स्वामी की स्वामीभक्ति के रूप में मिले कुछ अधिकारों का अपनी ही स्त्री जाति पर दुरुपयोग करके हमें क्या मिलेगा?'
वैसे भी जब स्त्रियाँ नहीं रहेंगी तो किन्हीं लड़कों को किसी सफेद टी शर्ट के अन्दर से क्या दिख रहा है परेशान कर उन्हें उस लड़की का पीछा करने को मजबूर भी नहीं होना पड़ेगा।
अब जरा देखते हैं कि स्त्रियों के कपड़े बलात्कार के लिए कहाँ तक दोषी होते हैं।
मेरे सामने एक खबर है १२ फरवरी के टाइम्स औफ इन्डिया की। संगीता नामक एक लड़की का शव उसके बापूनगर, अहमदाबाद के स्कूल के बाथरूम से बरामद किया गया। इस लड़की का बलात्कार हुआ था। ‘कारण कपड़े ही रहे होंगे। ये सात साल की लड़कियाँ बेहद भड़काऊ कपड़े पहनकर स्कूल जाने लगी हैं। अब पुरुष क्या करे !’
दूसरी खबर १३ मार्च के टाइम्स औफ इन्डिया की है। इस खबर के अनुसार एक चचेरे चाचा ने अपनी भतीजी का बलात्कार कर उसका सिर पत्थरों से फोड़कर उसकी हत्या कर दी। हत्या से पहले व बलात्कार के बाद उसने उसके गुप्तांगों को चाकू से काट भी डाला। फिर उसने उसके शरीर को गाढ़ भी दिया। यहाँ हो सकता है कि घटनाएँ इसी क्रम में न हुई हों।
‘कारण ? कारण तो वही सर्वविदित कपड़े ही रहा होगा। बानास्खांता जिले की ये गाँव की सात साल की लड़कियाँ बहुत ही भड़काऊ वस्त्र पहनने लगी हैं। इतने भड़काऊ कि चाचा तक का निष्कलंक चरित्र तक डगमगा गया ! इतना डगमगाया कि उसे भतीजी को एकांत में ले जाना पड़ा और जब उसने विरोध किया तो उसे यह सब करना पड़ा।‘ हाँ उसके इस कृत्य में छह और पुरुषों ने उसका साथ दिया था। मुझे तो आश्चर्य है कि उसके गाँव के अन्य पुरुषों में कितना संयम रहा होगा जो उसके इन कपड़ों के बावजूद उन्होंने अब तक उसका कुछ नहीं बिगाड़ा था।
कपड़ों वाली थ्योरी को सिद्ध करती एक और खबर मैंने कुछ दिन पहले पढ़ी थी। मुम्बई में सड़क के किनारे रहने वाली एक लड़की अपनी माँ की बगल में सोई हुई थी। रात को जब माँ की नींद टूटी तो वह गायब थी। माँ ने उसे ढूँढना शुरू किया। रात में तो वह नहीं मिली किन्तु सुबह की रौशनी में लोगों को एक नाली में फेंकी गई वह मिली। उसका भी बलात्कार हुआ था। ‘कारण कपड़े ही रहे होंगे। दो साल की वह लड़की ठीक कपड़े नहीं पहने होगी।‘ सो उसका उपयोग कर उसे फेंक दिया गया। यूज एन्ड थ्रो का इससे बढ़िया उदाहरण कहीं देखने को नहीं मिलेगा।
वैसे स्त्रियों के मामले में यूज एन्ड थ्रो की मानसिकता नई नहीं है। तभी तो पत्नियों के हत्यारों की भी शादी हो जाती है। माता पिता तो अपनी दूसरी बेटी का विवाह तक उसी के साथ कर देते हैं।
घुघूती बासूती
पुनश्चः
कल रात लिखा यह लेख नेट की समस्या के कारण आज पोस्ट कर पा रही हूँ।
नोटः
कृपया इसी विषय पर महेन जी द्वारा लिखित फैशन बलात्कार और कुंठा १ और फैशन बलात्कार और कुंठा २ लेख भी पढ़िए।
घुघूती बासूती
घुघूती बासूती
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कारण जो भी रहा हो यह पुरुष समाज की एक विकृति ही है. यह देखना है कि इसे कैसे नियंत्रित किया जावे. जो भी आपने बताया है जघन्य अपराध है और पीडादायक है.
ReplyDeleteबेहतरीन तर्कों के साथ उम्दा जवाब…
ReplyDeleteबलात्कार और उत्पीडन जैसी घटनाओं के लिए स्त्रियों को दोषी ठहराना मुझे बिल्कुल ही बेवकूफों और अत्याचारी , नीची और अंधी मानसिकता वाली बातें लगती हैं ....खुद नंगे घूमों तो कुछ नहीं और अगर वो कम कपडे पहने तो चलो इनका रेप कर दो ....और इतने रेप होते हैं वो कौन सी कम कपडे पहनती हैं जो बच्चियां होती हैं
ReplyDeletebahut hi badhiyaa haen yae aalekh aalekh ki drishti sae sab kahaegae . par kyaa yae kwal aalekh haen ????
ReplyDeleteजो इंसान अपराधी किस्म का है, वह तो अपराध करेगा ही न, लेकिन किसी अपराधी को अपराध करने के लिए उकसाना क्या कम बड़ा अपराध है। अगर कोई इंसान अपने घर के दरवाजे खुले रखे और उम्मीद करे कि चोर चोरी नहीं करेगा और वह साधू की तरह उसके घर के दर्शन करके चला जाएगा तो यह तो उस सोचने वाले की सोच पर निर्भर करता है। हमारा देश एक सुसंस्कृत देश है इस देश की कुछ सभ्यताएं और मर्यादाएँ हैं। विदेश में लड़कियां टॉप लेस भी निकल जाएँ तो उनको कोई कुछ नहीं कहता है क्योंकि यह उन देशों की संस्कृति है, लेकिन क्या यह सब अपने देश में संभव है, कदापि नहीं। भारत में शालीन पहनावे पर ध्यान रखना हर महिला के साथ उस महिला के पालकों का भी फर्ज बनता है। अगर महिलाएं शरीर दिखाने वाले कपड़े पहनेंगी और यह सोचेंगी कि उनको कोई कुछ न बोले तो यह कैसे संभव है। हर इंसान को अपने घर और अपनी रखवाली करनी चाहिए, आप इसमें कोताही करते हैं तो इसके लिए पहले दोषी आप हैं, चोरी करने वाला तो अपराधी होता ही लेकिन आप अगर गलत करते हैं तो आपका नुकसान होता है तो फिर आप सही कैसे हो गए। जब हम अपराध करने वालों के लिए कड़ी सजा की बात करते हैं तो अपराध करने के लिए उकसाने वालों को कैसे छोड़ा जा सकता है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि अंग प्रदर्शन करने वाले पुरुषों को कोई कुछ नहीं कहता है। लेकिन पुरुष और महिलाओं में अंतर क्या है यह बताने वाली बात नहीं है। पुरुष का शरीर खुला रहे तो उसको कोई फर्क नहीं पड़ता है, लेकिन जहां तक महिलाओं का सवाल है तो उनके लिए शरीर को खुला रखना क्या भारतीय संस्कृति के दायरे में है, यह सोचने वाली बात है। अगर किसी महिला को मल्लिका शेरावत बनने का शौक है तो हम कौन होते हैं उनको रोकने वाले, शौक से वह मल्लिका क्या ब्रिटनी बन सकती हैं।
ReplyDeleteतालीबान विज्ञापन छपवाकर नहीं आता, इन्हीं रास्तों से आता है। क्या पहने नहीं तो कोड़े पडेंगे... कहॉं घूमें .. क्या पीएं नहीं तो पीटे जाऐंगे...
ReplyDeleteजब जक हम मर्द खुद को न बदलें हालात ये ही रहेंगे
रचना जी, आपने सही समझा। यह लेख नहीं क्रन्दन है। एक स्त्री के अन्तः का क्रन्दन। सुनने वाले सुनेंगे व न सुनने वाले यह बता जाएँगे कि पुरुष निर्वस्त्र भी घूम सकता है, उसके पुरुखों को मिली पृथ्वी जो है। शायद इसीलिए पृथ्वी व प्रकृति स्त्रीलिंग हैं, क्योंकि वे स्त्री की तरह उसकी जायदाद हैं। जायदाद क्या निर्णय करेगी कि किसकी हो, क्या पहने ,क्या करे। यह निर्णय तो उसका मालिक ही करेगा ना!
ReplyDeleteघुघूती बासूती
स्त्री का समाज में स्थान नियत कर सकते हैं, संसार को बनाने व मिटाने के साधन निर्माण कर सकते हैं तो वे स्त्रियों का विकल्प भी ढूँढ ही लेंगे। उन्हें विकल्प ढूँढने दीजिए। हमारी खैर तो इसी में है कि हम इस संसार से विदा ले लें।
ReplyDeleteसही है यह क्रन्दन के सिवाय कुछ नही है,सही मे यह समाज बहुत ही अजीब सा है............. आपने बहुत ही अच्छे तरीका से रखा है शायद कोई अक्छ्रर, शब्द,वाक्य इस बहरे और अन्धे समाज को दीख जाये..............
ऐसे तर्क आधारहीन हैं जो बलात्कारियों के पक्ष में दिए जातें हैं ..मैंने हमेसा ६ गज की साडी में लिपटी रहने वालियों के साथ भी यही सब होते देखा है. बात सीधी सी है अगर आप कमजोर हैं तो आप दोषी है
ReplyDeleteसच यह है कि इस तरह की मानसिकता वाले लोग अक्सर सोचने की ज़हमत नहीं उठाते. यह तो विरासत में मिले विचार या बेहतर शब्दों में कहूँ तो विरासत में मिला रवैया है.
ReplyDeleteइन्ही बातों से मैंने अपनी ब्लोगिंग का आगाज़ किया था. एक नज़र डालियेगा.
http://mahenmehta.blogspot.com/2008_06_01_archive.html
कुछ लोंगों की सोच को पूरे पुरुष समाज की सोच नहीं माननी चाहिए . नारी के बिना जीवन की कल्पना नहीं है .महिलाएं निश्चित रूप से आदरणीय हैं ,कोई क्या पहनता है क्या नहीं ,पता नही कुछ चंद लोग कैसे इसपर गौर करतें हैं .और जिस समाज में माँ-बहनों का सम्मान न हो वह समाज निश्चित रूप से आदिम युग में है . समाज में घट रहीं ऐसी घटनाओं से सर शर्म से झुक जाता है ,जो भी है आपकी पीडा जायज है .
ReplyDeleteआपने बहुत ही तर्कनिष्ठ लेख लिखा है. पुरुषों का ये उकसाने वाला सोच मूलत: गलत है और सिर्फ़ गलत को सही सिद्ध करने से ज्यादा कुछ नही है.
ReplyDeleteइस लेखन और सोच के लिये मेरी तरफ़ से आप प्रणाम स्वीकार करें. और जिस तर्कनिष्ठता के साथ आप लिखती हैं..कृपया लिखती रहें..एक रोज प्रयासों मे सफ़लता निश्चित है.
रामराम.
समाज की अन्य स्त्रियों को सिखलाया कि स्त्री हो ढकी छिपी रहो अन्यथा.......!
ReplyDelete'स्त्रियों को तो स्त्री भ्रूण हत्या करने वालों को धन्यवाद कहना चाहिए।
न रहेगा बांस न बजेगा बाँसुरी की तर्ज पर जब स्त्रियाँ रहेंगी ही नहीं तो उनपर अत्याचार ही कैसे होगा ?
ये सात साल की लड़कियाँ बेहद भड़काऊ कपड़े पहनकर स्कूल जाने लगी हैं। अब पुरुष क्या करे !’
दो साल की वह लड़की ठीक कपड़े नहीं पहने होगी।‘ सो उसका उपयोग कर उसे फेंक दिया गया। यूज एन्ड थ्रो का इससे बढ़िया उदाहरण कहीं देखने को नहीं मिलेगा।
पूरा पुरुष समाज विकृत नहीं है, लेकिन फिर भी समाज में बहुत सारी मानसिक विकलांगता है... अपराधों के लिए स्त्रियाँ को जिम्मेदार मानना बिलकुल जायज नहीं... आप द्वारा दिए गए उदहारण दिल दुखाने वाले हैं... आप यहाँ यह नहीं लिखती तो भी हमारे आस-पास ही ऐसे ढेरों वाकये होते हैं, जिससे मन पीड़ित हो उढ़ता है...
आज सवेरे से मन खराब हो रहा है - जब से वह फ्लॉगिंग का वीडियो बीबीसी की साइट पर देखा है।
ReplyDeleteएक लड़की को इतने नर पशु घेरे थे।
पांचाली के साथ बदतमीजी में कौरव गये। ये भी जायेंगे।
डा. मिश्रा जी, आदिम युग तो आज के समय की तुलना में रामराज्य था। आदिम युग में, जिसे जनजातीय युग या समाज कहा जाता है, स्त्री और पुरुष के अधिकार समान थे। आज भी संथाल, बैगा और केरल के कई जनजातियों में स्त्रीसत्तात्मक समाज व्यवस्था पाई जाती है। वहां स्त्रियां निस्संकोच नंगी भी घूमती हैं। इससे कोई उनका बलात्कार नहीं कर डालता। (हां बाहरी दुनिया से उनके समाज में घुसपैठ करनेवाले ठेकेदार, पुलिसकर्मी, आदि जरूर ऐसा करते हैं, पर ये इनसे अलग संस्कृति के लोग हैं)।
ReplyDeleteस्त्रियों को संपत्ति समझा जाता है सामंती युग में, जिसके अवशेष हमारे समजा में अभी भी मौजूद है।
सामंती व्यवस्था स्त्रियों को व्यक्ति के रूप में नहीं देखती, गाय-भैंस, मोटर-मकान के समान देखती है, जिसके लिए छीना झपटी सामंती सोच में एक वाजिब, मर्दाना और सराहनीय कृत्य है।
राजकुमार ग्वालनी ने सामंति सोच का बहुत ही अच्छा परिचय दिया है। यदि आप बिना ताला लगाए कार को सड़क पर छोड़ दें और यदि कोई उसे लेकर चलता बने तो आप किसे दोष देंगे? यही तर्क तो ग्वालनी जी ने स्त्रियों पर भी लागू किया है। हां उन्होंने यह अनकहा छोड़ दिया है कि स्त्री की हैसियत गाय-भैंस, कार आदि के समान संपत्ती के रूप में ही है। और सामंती सोच में पगे हुए लोगों के लिए यह स्पष्ट में कहने की आवश्यकता भी नहीं है। शायद इसीलिए ग्वालनी जी ने इसे नहीं कहा। सब जानते हैं आज के सामंती समाज मे स्त्री की क्या हैसियत है।
हमें ग्वालनी जी की ईमानदारी की तारीफ करनी चाहिए।
बहुत तार्किक आधार पर बातचीत की है.
ReplyDeleteaapka blog padhne fir aaugi filhal ye btane aayi hun link tasveer ke upar diya gya hai.
ReplyDeleteहम कुछ कहेंगे तो कहीं और कोट कर दिए जाएंगे:) तो फिर, हम चले...:):)
ReplyDeleteऐसा सिर्फ़ एक तरफ़ से होता है कहना उचित नहीं, आज की खुले दिमाग़ की लड़कियाँ तो ऐसा करने में ख़ूब माहिर हैं, मेरे पास ऐसे कई जीवंत उदाहरण हैं!
ReplyDeleteBoth parties are right ,but Gvalani is more right ! Decency & decorum should not be compromised.
ReplyDeleteइस तर्क और उसके पीछे की विचारधारा को यूं ही हिन्दू तालिबान नाम नहीं दिया जा रहा है। आपका जवाब एकदम सही है।
ReplyDeleteसभी मर्द एक जेसे नही, सभी नारिया एक जेसी नही, ओर समाज, यह दुनियां एक दुसरे के बिना कभी भी नही चल सकती, अब जिन्हो ने किया है, यह उन की अपनी सोच थी... सभी मर्दो ने तो नही किया, अग्र सभी मर्द उन के कारण बदनाम होते है तो मै दसॊ नारिया गिनवाता हुं, जो इन मर्दो से बेगारती मै मर्दो से भी दस कदम आगे है, इस लिये हमे सिर्फ़ उस गलत बात का ही बिरोध करना चहिये, ना कि मर्द ओर ओरत पर निशाना लगाना चाहिये, मै बस यही कहुंगा जो हुआ वो बहुत गलत हुआ, ओर यह पहली बार नही हुआ, यह सब अरब देशो मै सदियो से हो रहा है, ओर पुरी दुनिया को पता भी है, ओर हमारे चीखने चिल्लाने से कुछ नही होने वाला, यह उन का देश है, वो जाने, ओर अगर हमे कोई दिक्कत है तो हमारे देश मै भी काफ़ी मुस्लिम है इस सोच के पहले उन्हे सुधारा जाये, तो करे शुरु यही से, जिन्हे इन सब बातो से बहुत ज्यादा शिकायत है, देर किस बात की, यह तो भालाई का काम है, सिर्फ़ बातो से कुछ नही होने वाला, आपस मै लडने से भी बात नही बनाने वाली.... कुछ करे...
ReplyDeleteधन्यवाद
भाटिया जी, राम सेना में मुसलमान भी हैं, यह नई जानकारी आपने हमें दी।
ReplyDeleteअच्छा लेख लिखा है। लोगों के तर्क अजीब से हैं। क्या कहा जाये!
ReplyDelete१) संस्कृति
ReplyDeleteकई लोगों को कहते सुना है, भई संस्कृति तो भारत में है, इन विदेशियों की क्या संस्कृति है? लेकिन कुछ मामलों में देखता हूँ कि भारतीय "संस्कृति" में महिलाओं के लिये बहुत तंग जगह छोड़ी गयी है। विदेश में महिलाओं को हर तरह के कपड़े पहने (या न पहने) देख चुका हूँ। कुछ लोग घूरते भी हैं, लेकिन अमूमन वह भी चोरी-छिपे होता है, सरासर आंखों के सामने नहीं।
२) दोनों नंगे, लेकिन बलात्कार स्त्री का ही क्यों?
पुरुष अधनंगे घूम सकते हैं, कोई महिला उनको नहीं छेड़ सकती। लेकिन किसी महिला के छोटे कपड़ों को यदि कोई पुरुष देखे, तो बलात्कार हो जाता है। इसमें दोषी पुरुष ही है। क्योंकि बलात्कार उसी ने किया है। इस क्रिया का कर्ता वही है, दोष भी उसी के माथे होना चाहिये।
३) इस खोटी मानसिता से कैसे छुटकारा पाया जाये?
लोग कहते हैं कि "काम वासना" विकार हैं। लेकिन मेरा मानना है कि "काम" को "वासना" से अलग करना होगा। इसके लिये नैतिक शिक्षा बहुत जरूरी है, चाहे वह स्कूलों में दी जाये या परिवार में।
बहुत ही नाजुक विषय है, इसलिये सभी बातें एक बार में खुल कर होनी मुश्किल हैं। बहस जारी रहे!
नारी का कोई विकल्प नहीं.
ReplyDeleteशक्ति, शक्ति है...उसका विकल्प कैसा ?
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सधे विचारों वाली श्रेष्ठ प्रस्तुति का आभार.
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
विकृत मानसिकता हर कही है .
ReplyDeleteआप ने जो कहा हैं वो पहले भी बहुत लोगो ने कहा हैं और आगे भी कहते रहेगे । पुरूष को नंगा होने भी कभी उरेज नहीं हुआ और पुरूष को स्त्री को भी नंगा करने मे कभी उरेज नहीं हुआ सो इनको आप अपराधिक मान कर समाज से अलग मानते हैं और खुद ही आप कहते हैं ये लोग समाज का प्रतिनिधितव नहीं करते । आप के अंदर दोयम का भावः हैं स्त्री के लिये क्युकी आप के पूरी इस लेख मे या इस से पहले लेख मे या बासूती जी के यहाँ दिये गए आप के कमेन्ट मे आपने कही भी इस बात को नहीं माना हैं की स्त्री के पास एक दिमाग भी हैं और वो अपनी तरह जो अपने लिये सही हैं उसका फैसला कर सकती हैं ।
ReplyDeleteलेकिन आप जैसे लोगो के लिये बहुत खुशी की बात हैं की तालिबान हामी समयों तक पहुँच गया हैं और जल्दी ही आप की बहु बेटियों को सही करने के लिये आप के घरो तक भी आयेगा । उसदिन आप कितना लिख पायेगे इस विषय और क्या लिक पायेगे अभी से सोच कर रखे ।
i hv posted this comment on the new post on RAJTANTR
which is reply to your post mam
नियम कायदे सभ्यता संस्क्रति दरअसल स्त्रियों को एक ख़ास तरीके से शोषित करने का चतुर ओर चालाक तरीका है ...सभ्यता संस्क्रति ने पुरुष के लिए भी नियम बनाए है......आधुनिक विज्ञानं में हम चाँद पर भले ही पहुँच जाये पर समाज के एक बड़े तबके की सोच अभी वही खड़ी है....स्त्री के प्रति क्रोध पुरुष अपने बलवान होने का नाजायज फायदा उठाकर इसी तरीके से निकालता है ...सच तो ये है हर पुरुष एक चतुर स्त्री से घबराता है...नैतिकता का कोई तर्क नहीं होता......किसी धर्म या मजहब में उस वक़्त की भोगोलिक परिसिथितियो को देखकर जो नियम बनाये गए हम उनमे से अपने हिस्से का फायदा देख उन्हें अपनाते है....हंस में शीबा आलम का लेख आँख खोलने जैसा है......पर ये तय मानिए अपने हक की लडाई स्त्री को खुद लड़नी होगी.....पीड़ित को अपना युद्ध खुद लड़ना पड़ता है.....
ReplyDeleteआपने सब कह दिया, कुछ भी जोड़ने को नहीं है मेरे पास.
ReplyDeleteबालसुब्रमण्यम जी यह राम सेना कहां से आ गई बीच मै, मै किसी राम सेना, या सीता सेना का स्मर्थक नही,ओर ना ही किसी खास ध्र्म से तालुकात है, मै सब से पहले एक इंसान हुं, फ़िर भारतीय, ओर फ़िर हिन्दू, लेकिन हिन्दू होने के नाते मै किसी अन्य को दुख दुं यह मुझे नही सिखाया गया, कृप्या ध्यान से टिपण्णी पढे .. ओर फ़िर उस पर अपना जबाब दे.. बिन सोचे समझे किसी की टांग मत खींचे...धन्यवाद
ReplyDeleteभाई राजकुमार ग्वालानी मैं आप से पूछना चाहता हू कि कम कपडे पहने देख कर आपकी कितनी महिलायों से बलात्कार करने कि इच्छा जागृत हुई. मेरा मानना है कि आप ही नहीं बल्कि ९९ प्रतिशत पुरुषों कि ऐसी कोई इच्छा जागृत नहीं होती हैं. मात्र विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षण के कारण उत्तेजना का अनुभव भले ही हो. मेरे दोस्त रेप करने वाला अपराधी मानसिक रूप से कुंठित और बीमार होता है. ऐसे अपराधियों के पक्ष में इस तरह के बचाव को मात्र कुतर्क ही कहा जा सकता हैं. ऐसे अपराधी किसी भी प्रकार से और किसी भी आधार पर बचाव के योग्य नहीं हैं. ऐसे लोगो के बचाव में ऐसे मुहावरे गढ़ने वालो को अपनी सोच पर विचार करने कि आवयश्कता हैं.
ReplyDeleteभूमिजा हो गई थी
ReplyDeleteभूमि पुत्री थीँ सीता,
किँतु अभी उसका
परीक्षा काल नहीँ बीता
आपका आलेख तर्क सम्मत है -
स्त्री की सुरक्षा तथा सम्मान पूरे समाज को करना निताँत आवश्यक है
- लावण्या
बहुत ही दुख होता है यह देखकर की ग्वीलानी-मानसिकता वाले लोग ब्लॉगजगत में खुले आम बेखौफ़ आरम से घूम रहे हैं और आपनी गन्दी सोच भी डन्के की चोट पर कह रहे हैं।
ReplyDeleteघूघुती बसुती जी,
ReplyDeleteशायद आपने ही याद दिलाया था कि एक ? की जगह यह संबोधन लिखा जाया जा सकता है.
सबसे पहले तो इस तर्क भरे हुये लेख के लिये सादर अभिवादन / साधुवाद.
शायद यह पुरुष की लोलुप सोच ही सकती है कि वह किसी अपराध के दोष को स्वंय पीड़िता पर मढ कर बरी हो सकता है और समाज में स्वीकारा भी जाता है.
मै विनय की बात को नकारूंगा नही. यह अपवाद हो सकता है पर बहस का मुद्दा नही.
मुकेश कुमार तिवारी
श्री राजकुमार ग्वालानी पेशेवर 'समाचार-लेखक' हैं और उन्हें भली भांति पता है कि 'सेक्स' के मुद्दे पर पाठकों की भीड़ जुटाना कितना सहज है ! अतः उन्होंने किसी घटना को देखा या देखने का बहाना करते हुए 'काम-अपराध' के लिये उत्तरदाई 'एकमात्र कारण' की घोषणा कर दी !
ReplyDeleteघुघूती जी आप भी समझती हैं कि श्री ग्वालानी की 'परिकल्पना' 'काम अपराधों' के लिए उत्तरदाई अनेकों स्थापित कारणों में से एक कारण हो सकती है ? चूंकि श्री ग्वालानी 'स्त्री पुरुष संबंधों' और 'विचलित व्यवहार' के अध्येता नहीं हैं इसलिए उनके सरलीकृत निष्कर्ष पर आश्चर्य कैसा ? उनके आलेख पर प्रतिक्रिया क्यों ?
घुघूती जी आप हमेशा की तरह इस बार भी तर्कसम्मत हैं किन्तु हमारे समाज के हालात इतने भी ख़राब नहीं
है कि स्त्रियों के वज़ूद पर ही प्रश्न चिन्ह लगाने का निराशावाद आप पर हावी हो रहा है ? क्या वाकई में काम अपराधों / उत्पीडन के आंकडे खतरे का निशान पार कर चुके हैं ? याकि समाज में सहज यौन व्यवहार और सकारात्मकता का प्रतिशत अभी भी संतोषप्रद है ?
मेरी व्यक्तिगत मान्यता है कि कुदरत नें स्त्री पुरुष की पारस्परिक निर्भरता का निज़ाम ( व्यवस्था ) बनाया है इसलिए पुरुष अधिनायकवाद अल्पकालिक तो हो सकता है पर स्थायी बिलकुल भी नहीं !
स्वात तो हर समाज में है...किस किस स्वात की बात करियेगा.
ReplyDeleteवैसे स्त्रियों के मामले में यूज एन्ड थ्रो की मानसिकता नई नहीं है। तभी तो पत्नियों के हत्यारों की भी शादी हो जाती है। माता पिता तो अपनी दूसरी बेटी का विवाह तक उसी के साथ कर देते हैं।
ReplyDeleteजब भी कहीं स्त्रियों के दर्द की बात आती है मन भीतर तक आहात हो जाता है ...क्या कहूँ...आपने बेलफ़्ज़ कर दिया है ....!!
आज की पोस्ट ने रुला दिया.....मुझे पता नहीं कि मुझे क्या कहना चाहिए..........कुछ कहना चाहिए भी कि या नहीं...आज चुप ही रहने को मन है....आज रोने को मन है.........मैं रो रहा हूँ.....मैं भी पुरुष हूँ.....मैं क्यूँ हूँ ??........मेरे होने का अर्थ क्या है....मैंने करना क्या है....मैं कुछ नहीं कर सकता तो मैंने होना ही क्यूँ है...........??घुघूती जी मैंने होना क्यूँ है.......!!.......सच आज रो लेने को मन है....मुझे रो लेने दो....थोडा सा दर्द पी लेने दो....खुद को दर्द से भर लेने दो.......सच तो यह है कि जीने से ज्यादा मरने को मन होता है........!!
ReplyDeleteआज की पोस्ट ने रुला दिया.....मुझे पता नहीं कि मुझे क्या कहना चाहिए..........कुछ कहना चाहिए भी कि या नहीं...आज चुप ही रहने को मन है....आज रोने को मन है.........मैं रो रहा हूँ.....मैं भी पुरुष हूँ.....मैं क्यूँ हूँ ??........मेरे होने का अर्थ क्या है....मैंने करना क्या है....मैं कुछ नहीं कर सकता तो मैंने होना ही क्यूँ है...........??घुघूती जी मैंने होना क्यूँ है.......!!.......सच आज रो लेने को मन है....मुझे रो लेने दो....थोडा सा दर्द पी लेने दो....खुद को दर्द से भर लेने दो.......सच तो यह है कि जीने से ज्यादा मरने को मन होता है........!!
ReplyDeleteBAHUT HEE TARKIKATA SE STHAPIT VICHAR .KOYEE SHANKA NAHEEN KI APRADHIK DIMAG HEE KARAN HAI ISKE PEECHE .
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