जब कुछ
पाने का
देना पड़ता है
बहुत अधिक मूल्य
जैसे पसीना,
ढेरों आँसू,
बहुतायत में आहें
या अपना स्वाभिमान।
तब वह वस्तु
या वह व्यक्ति
अमूल्य बन जाता है,
न भी हो
बहुत कुछ उसमें ऐसा
तो भी हम कुछ यत्न
कुछ कल्पना कर
बना देते हैं उसे अमूल्य ।
न बनाएँ तो
जीवन मिथ्या गंवाया
सा लगने लगेगा ना
अपना इतना सब
यूँ ही
खोने देने की
पीड़ा भी तो
कुछ अधिक होगी ।
सो मानने लगते हैं
कि अमुक वस्तु या व्यक्ति
था और है
और रहेगा अमूल्य
अन्यथा अपने आँसुओं,
पसीने, आहों और
टूटे स्वाभिमान का
हो जाएगा अवमूल्यन ।
घुघूती बासूती
Monday, December 22, 2008
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जीवन तो बड़ा ही अमूल्य है |
ReplyDeleteशायद इसी लिए कीमत सिर्फ़ भावनाओं की लगती है |
बहुत सुंदर |
आपकी कविता पर तो मैं यह भी नही कह सकता बहुत खूब क्योंकि मेरा स्तर इतना नही की मैं सूर्य को दिया दिखा पाऊं . हां आपके लेखो से प्रेरणा जरूर लेता हूँ
ReplyDeleteजी बिल्कुल !
ReplyDeleteबहुत ही बहुमूल्य विचार!
ReplyDeleteसुंदर्।
ReplyDeleteघुघूती जी, नमस्कार.
ReplyDeleteक्या बात है....
ReplyDeleteअन्यथा अपने आँसुओं,
पसीने, आहों और
टूटे स्वाभिमान का
हो जाएगा अवमूल्यन
वाह !
लाजवाब रचना !
ReplyDeleteरामराम !
न बनाएँ तो
ReplyDeleteजीवन मिथ्या गंवाया
सा लगने लगेगा ना
अपना इतना सब
यूँ ही
खोने देने की
पीड़ा भी तो
कुछ अधिक होगी ।
'लाजवाब"
Regards
अमूल्य विचार।
ReplyDeleteअवमूल्यन से मंहगाई ?
ReplyDeleteन बनाएँ तो
ReplyDeleteजीवन मिथ्या गंवाया
सा लगने लगेगा ना
अपना इतना सब
यूँ ही
खोने देने की
पीड़ा भी तो
कुछ अधिक होगी ।
बहुत सुंदर बात कही आपने इस रचना के माध्यम से .
ओ मां,
ReplyDeleteआपने तो ग़ज़ब ढादिया,
जो कुछ जीवन मे होता है
आपने अपने मीठे शब्दों मे बयान करदिया
सही है जी - हम भी बहुधा सोचते हैं ऐसा।
ReplyDeleteयह तो कॉण्ट्रेरीथिंकिंग की चाहत उल्टा सुचवाती है यदा कदा।
क्या बात है....! प्रशंसा को शब्द ढूँढ़ने पड़ रहे है....! बहुत खूब..! उत्तम...!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर कविता, सच
ReplyDelete-------------------------
http://prajapativinay.blogspot.com/
यह शब्द आपके अनुभव की कहानी कह रहीं हैं...बहुत खूब
ReplyDeletebahut khoob kha...sach hai jisse pyaar ho jata hai...use ham hi amoolya bana dete hai aur phir wo amoolya vyakti khud ko mahanga banaker Dil ko gareeb hone ka ehsaas karwa jata hai
ReplyDeletebahut hi bahumuly vichar!
ReplyDeleteअमूल्य बात कह दी आपने -
ReplyDeletebadi kamaal ki baat lagi hume to...itni aasani se kuchh sikhaa diya
ReplyDeletehasy-vyang mein ek koshish:
http://pyasasajal.blogspot.com/2008/12/blog-post_5104.html
prathmikta tay karne ki chhoot to shayad hai!
ReplyDeleteaise samvad kyon ubhar rahe hain, jahan samvad ki gunjaish n ho? punarvichar nivedniy.