आज ज्ञानसिंधु जी द्वारा लिखित 'छात्राओं के लिए प्रश्नपत्र' पढ़कर बहुत समय पहले लिखा अपना एक लेख याद आ गया । आज उसे यहाँ दे रही हूँ।
नामो, बधाई हो, सुना है, तुम्हारा विवाह हो रहा है ।
एक स्त्री होने के नाते मैं तुम्हें कुछ बातें बताना चाहती हूँ । पापा जो चुपके से तुम्हारे तकिये के नीचे चिट्ठी रख गए, वह मैंने भी पढ़ी । लगभग हर पिता मौखिक या लिखित में अपनी पुत्री को ये बातें बताता या बतवाता है । ठीक भी है़, नए घर जा रही बिटिया के लिए मन में डर तो रहता ही है । उस चिट्ठी को ध्यान से पढ़ना, बहुत सी काम की बातें उसमें हैं । परन्तु बहुत सी और भी काम की बातें छोड़ दी गईं हैं । तुम्हारे पापा अन्य पापाओं की तरह आशावादी हैं । सोचते हैं कि यदि तुम अच्छा व्यवहार करोगी तो सब अच्छा ही होगा । मैं भी यही चाहूँगी । परन्तु हर बार ऐसा होता नहीं। सो अच्छा व्यवहार तो करना ही ,परन्तु यदि तुम्हारे पापा किसी फैक्ट्री में या किसी महत्वपूर्ण पद पर काम करते हों तो उन्हें शायद यह भी पता हो कि कुछ भी काम करने से पहले जब योजना बनाई जाती है तो योजना १ के साथ योजना २ और यदि काम अधिक महत्वपूर्ण हो तो योजना ३ भी बनाई जातीं हैं। प्रचलित भाषा में उन्हें प्लैन बी और सी कहा जाता है ।
सो नामो, प्लैन ए तो वह है जो तुम्हारे पापा तुम्हें बता रहे हैं । अब यदि जैसा तुम, तुम्हारे पापा व हम सब चाह रहे हैं वैसा न हो पाए तो प्लैन बी भी तैयार रहना चाहिए । प्लैन ए के अन्तर्गत यह मानकर चला जा रहा है कि तुम हर काम करने से पहले आज्ञा माँगोगी । यदि नहीं मिली तो ? चलो घूमने जाने की आज्ञा माँगोगी और नहीं मिली तो चल जाएगा । यदि बुखार आया और डॉक्टर के पास जाने की आज्ञा नहीं मिली तो ? यदि अपने मित्र व सखी से मिलना हो और पति या सास ससुर ने आज्ञा नहीं दी तो ? एक बार, दो बार तो मिले बिन रह जाओगी, परन्तु अनन्त काल तक ? एक आध बुखार तो मायके से साथ लाई गोलियों के सहारे झेल जाओगी, परन्तु अनन्त काल तक ? तो नामो, ऐसे में ' मैं डॉक्टर के पास जा रही हूँ, या मित्रों को घर बुला रही हूँ या उनसे मिलने जा रही हूँ ' यह सूचना दे देना ।
आशा है, तुम्हें कोई कष्ट नहीं देगा़, पीड़ा नहीं देगा । परन्तु यदि दी तो ? ऐसे में नामो, पहले जानने का यत्न करना कि तुम्हारे साथ ऐसा क्यों हो रहा है । हो सके तो बातों से हल निकालना । यदि हल न निकले तो कोशिश करना कि तुममें इतना आत्मविश्वास हो कि वे तुम्हें सताने की हिम्मत न करें । परन्तु बहुत से लोग परपीड़ा में ही सुख पाते हैं, यदि वे ऐसे लोग हों तो वहाँ रहने में कोई तुक नहीं होगी । ऐसे में रोना, पिटना यानि स्वयं को शारीरिक या मानसिक रूप से प्रताड़ित मत होने देना । पहले से ही माता पिता से बात करके रखना कि तुम्हें दहेज नहीं चाहिए बल्कि अपने घर यानी जिसे लोग मायका कहते हैं, वहाँ तब तक रहने का अधिकार चाहिए होगा, जब तक तुम अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो जातीं । नामो, जिस शहर तुम ब्याहकर जा रही हो, उस शहर में किसी ऐसे व्यक्ति का पता अपने साथ जरूर रखना जिसे समय असमय सहायता के लिए बुला सको । चाहे कुछ भी हो जाए, न किसी को तुम्हें मानसिक या शारीरिक क्षति पहुँचाने देना न स्वयं अपने को क्षति पहुँचाना । विवाह जीवन का एक बहुत महत्वपूर्ण भाग है परन्तु केवल वह ही जीवन की परिभाषा नहीं है । विवाह असफल होने पर भी जिया जाता है और जीवन को प्यार करके आत्मसम्मान के साथ जिया जाता है ।
सबको प्यार देना, सबका सम्मान करना परन्तु उन सबसे पहले स्वयं को प्यार करना, स्वयं को सम्मान देना । आत्मसम्मान की कीमत पर पाया गया विवाहित जीवन कभी सुखी नहीं हो पाता । देर सबेर यह याद आ ही जाता है कि तुम भी मनुष्य हो और वह मनुष्य ही क्या जिसमें आत्मसम्मान न हो ?
मेरी सीख अपने नाम की तरह तुम्हें उल्टी तो अवश्य लगेगी, परन्तु नामो, जीवन में बहुत कुछ उलट पुलट होता रहता है, सो प्लैन बी और सी को कभी मत भूलना।
यदि तुम्हारे मना कहने पर भी माता पिता विवाह पर खर्चा करें और जब तुम्हें उनकी आवश्यकता पड़े तो तुम्हारे विवाह को ही अपने कर्त्तव्य की इतिश्री मानें तो नामो, प्लैन सी की आवश्यकता होगी। इसके अन्तर्गत नामो, विवाह तब तक मत करना जब तक आत्मनिर्भर न हो जाओ। नौकरी चाहे दूसरे ही शहर की क्यों न हो तब तक मत छोड़ना जब तक तुम यह सुनिश्चित नहीं कर लेती कि उस घर में तुम्हारा स्वागत है, तुम वहाँ भली भांति जी सकोगी। तुम लम्बी अवधि का बिना वेतन के अवकाश ले सकती हो। नौकरी होने से मित्र भी होते हैं जो मुसीबत के समय में साथ दे सकते हैं।
वैसे तो आशा है तुम्हारे मंगेतर की माँ भी उसे ऐसा ही एक पत्र लिख चुकी होगी और वह भी अपने उत्तरदायित्व अच्छे से समझ गया होगा। ऐसा हुआ होगा तो नामो, सबकुछ बढ़िया ही रहेगा ऐसी आशा की जा सकती है।
तुम्हारी हितचिन्तक,
तीघूघु तीसूबा
पुनश्चः यह लेख लिखने की प्रेरणा मुझे 'मोना के नाम पापा की अनमोल चिट्ठी' पढ़कर मिली थी।
घुघूती बासूती
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बहुत शानदार चिट्ठी लिखी है आपने। आपके दोनों ब्लॉग बहुत शानदार हैं। मेरे ब्लॉग पर आने का बहुत-बहुत शुक्रिया।
ReplyDeleteआपने इतना अच्छा पत्र लिखा है कि क्या कहूँ। यही शिक्षा तो बेटी को देनी चाहिए। हम उसपर आदर्शों का बोझा लाद देते हैं जिसमें बेचारी कुम्हला जाती है। आपकी यह चिट्ठी मैं भी अपनी बेटी और बहू दोनो को लिखूँगी। आभार।
ReplyDeleteबहुत सुंदर,
ReplyDeleteविचार के साथ आचार भी,
आभार इतनी सुंदर लेखनी के लिए.
aapka lekh padkar , main to stabhad rah gaya .. aisi chitti , jo ki ek ladki ko jeene ka saara gyaan de aur sahi maatra mein de.. kaise sar utha kar jiya jaayen...
ReplyDeleteaapko bahut badhai .
vijay
poemsofvijay.blogspot.com
बहुत बढ़िया लिखा है आपने इसी प्रकार की शिक्षा की जरुरत है .
ReplyDeleteआपने बहुत सुन्दर लेख लिखा है ! मैं एक निजि मित्र की बे्टी की कहानी बिल्कुल वैसी ही पाता हूं जैसा आपने लिख दिया है ! उसमे plan सी का प्रयोग हुआ ! कुछ मित्र द्वारा कडाई दिखाने पर लडकी के ससुराल वाले डर कर वापस लेगये !
ReplyDeleteअब वो उसको तो सीधे कुछ नही कहते पर मायके वालों को कुछ भी बोलते रहते हैं !
लडकी MBA है ! ससुराल वाले भी काफ़ी पढे लिखे हैं ! मुझे समझ मे नहि आता कि इस तथाकथित सफ़ेद सोसाईटी मे ये हो क्या रहा है ?
इतने पढे लिखे लोग ? और इतनी जंगली हरकत
! आपके हिसाब से क्या करना चाहिये ? लडके की मां बिल्कुल पडःई लिखी जंगली है और बाप शानदार पढा लिखा, ऊंचे ओहदे से रिटायर बीबी का पिल्लुरा है !
पहले तो मैने समझा था कि इनका केस एक्सेपशन है पर आपके लेख मे हुबहु वही पढ कर मुझे यह लिखने को बाध्य कर दिया !
रामराम !
बहुत से घरों की कहानी को वेपर्दा कर दिया आपने... सुन्दर लेख .. भावना प्रधान.
ReplyDeleteठीक है जीवन का एक मकसद और आत्मविश्वास से भरा जीवन होना ही चाहिए !
ReplyDeleteघुघूती जी शुक्रिया! आपके विचार पढ़कर बहुत अच्छा लगा।
ReplyDeleteआप को बहुत से ऐसे कमेन्ट इस पोस्ट पर मिलेगे जो कहेगे आपने बहुत सही शिक्षा दी . यही होना चाहिये . और में वो सब जो इस ब्लॉग पोस्ट पर इस शिक्षा को सही बताते हैं वही सब एक दूसरी पोस्ट पर जा कर इसकी उलटी शिक्षा को भी सही बताते नज़र आये गे .
ReplyDeleteजब तक ब्लोगिंग को केवल और केवल एक लेख की तरह पढ़ने वाले पाठक मिलेगे जागरूकता तो श्याद ही आए
आप बहुत समय से इस प्रक्कर आलेख देती रही हैं और दुसरे ब्लोग्स पर भी इसी बात की पैरवी करती रही हैं पर उन लोगो को क्या समझा जाए जो हर जगह यही कहते नज़र आते हैं
आप ने बिल्कुल सही कहा
आप ने बिल्कुल सही कहा 2
बहुत अच्छा लिखा है आपने.....गलत संस्कार पाने वाली बेटियां नहीं जलाई जाती हैं...वास्तव में बदमाश ससुरालवालों की वहीं पर चलती है, जहां संस्कार की ओट में बेटियां सहमी हुई रहती हैं....वैसी स्थिति में जरूरी है आपकी बातों को याद रखने की।
ReplyDeleteवक़्त बदल रहा है..बेटी को अगर शिक्षा ओर स्वालंबी बनायेगे तो ऐसी चिट्ठी लिखने की जरुरत नही पड़ेगी...क्यूंकि शिक्षा ओर आर्थिक स्वतंत्रता ही स्त्री को उसका अस्तित्व ओर दूसरे पर निर्भरता से आज़ादी दे सकती है.....यधपि आपकी पोस्ट लिखने का उद्देश्य सिर्फ़ आइना दिखाना है...पर एक शिक्षा ओर देनी होगी .की जब तुम सास बनो अपनी बहु के साथ भी वैसा व्यवहार करना जैसा तुम अपने लिए उम्मीद करती हो.....
ReplyDeleteजो कुछ कहना चाहताथा डा. अनुराग ने कह दिया. स्त्री का आत्मनिर्भर होना उसकी तमाम समस्याओं का समाधान है.
ReplyDeleteगँभीर विषय पर सुलझे हुए विचार लिये ये पोस्ट बहुत पसँद आई --
ReplyDeleteघुघूती जी ,
बेटीयाँ माता ,पिता के ह्र्दय का टुकडा होतीँ हैँ और बेटे भी !
इन्द्रा नूयी पेप्सीको की सीईओ बन गईँ तब भी अमरीकी मीडीया ने भी
प्रश्न किया कि
"आप घर परिवार और करीयर सब किस तरह सँभालतीँ हैँ ?"
तो स्त्री ही है जो माँ बनती है और बच्चोँ की परवरिश मेँ,
स्त्री की भूमिका हमेशा,
पुरुष से कुछ परसेन्ट
ज्यादा ही रहती है
ये भी एक नैसर्गिक सत्य है
आगे चलकर,
कन्या का विवाह तथा उसका परिवार कैसा होगा,
कन्या, खुद
एक नवविवाहीता तथा आगे चलकर माता के रोल को किस तरह निभायेगी, या,
अपनी करीयर तथा परिवार का सँतुलन किस तरह रखेगी,
इसकी शिक्षा भी तो
माता,पिता की
उसी कन्या को दी गई तालीम, प्रोत्साहन और फिर कन्या के नये परिवार के सभी के सपोर्ट पर भी निभता है -
( बेटोँ को भी अच्छे सँस्कार व तालीम देना ये भी पिता, माता का अहम्` कार्य है )
यहाँ
( अमरीकी, पास्चात्त्य देशोँ मेँ )
कई तरह की सुविधाएँ हैँ
फिर भी, हर कन्या/ स्त्री के लिये,
ये बहुत कठिन मार्ग
होता है --
बनिस्बत्` पुरुषोँ के
और हम यही शुभकामना करते
हैँ कि
२१ वीँ सदी की हर महिला,व पुरुष भी
अपने, चुने हुए जीवन पथ पर,
सफलता से,
सुखी पारिवारीक जीवन के अनुभव के साथ आगे बढे,
स्त्री के लिये सँघर्ष आज भी जारी है --
देश कोई भी हो,
उमर और अवस्था कोई भी हो,
समाज परिवार जैसा भी हो --
सँघर्ष आज भी जारी है
इसीलिये, मैँ,
हरेक स्त्री के सँघर्ष को
खुले ह्र्दय से सराहती हूँ -
और आशा भी करती हूँ कि,
मृदुता और कोमलता
जो स्त्री के नैसर्गिक गुण हैँ वे कदापि ना मिटेँ !
-- और
" स्त्री व पुरुष का साझा जीवन, सुखमय और सशक्त हो " --
ताकि भविष्य के नये
"परिवार और घर"
उसी नीँव पर खडे होँ पायेँ
- लावण्या
बहुत महत्वपूर्ण और जरूरी मार्गदर्शन दिया आपने। समाज और परिवार में गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए प्रत्येक नारी को आत्मसम्मान और आत्मगौरव को महत्व देना होगा।
ReplyDeleteइसमें स्थायित्व और मजबूती लाने के लिए आवश्यक है अच्छी शिक्षा और उचित संस्कार। इसी से व्यक्तिगत योग्यता में वृद्धि होती है और यही योग्यता हमें ठोस धरातल पर खड़ा रखती है।
बधाई! आप को इतनी शानदार चिट्ठी के लिए। बेटी पैरों पर खड़ी हो गई है। इंतजार है कि वह पुख्ता हो जाए। फिर ऐसा जीवन साथी मिले जो उसे और उस के काम को समझ सके।
ReplyDeleteपूरा आलेख पढ़ लिया और तमाम टिप्पणीयां भी....मन में ढ़ेरों बातें ...अभी चंद दिनों में एक साल हो जायेगा मुझे भी संसार की सबसे प्यारी पुत्री का पिता बने...यूं ही एक ख्याल सा उठा कि तब उस दूर भविष्य में क्या एक ऐसा ही खत मैं भी लिखूंगा?
ReplyDeleteगौतम जी, अपनी बेटी को ऐसे बड़ा करें कि ऐसा पत्र लिखने की आवश्यकता ही न हो। प्रतिदिन उसे यही एहसास हो कि वह व्यक्ति है़, एक पूर्ण व्यक्ति ! उसे वह सब दीजिए जो हमारी पीढ़ी को न मिल सका और जो हमारी पीढ़ी आपकी पीढ़ी को न दे सकी। उसके विकास में स्त्री होने से कोई बाधा न आए। स्त्री होना एक प्रसन्नता की बात हो न कि दुख की। मेरी शुभकामनाएँ आपके प्रयासों के साथ हैं ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
!@गौतम जी,
ReplyDeleteआप खत लिखने की सोचेंगे तो यह और भी खतरनाक होगा।इसे पढकर अभी सबक ले लीजिए और घुघुती जी की सलाहानुसार बिटिया को सहज होकर जीने व बढने का माहौल दीजिए। उसे उसकी जेंडर भूमिकाएँ समझाने की बजाए इंसानी फर्ज़ समझाइये तो बेहतर है।
"आत्मसम्मान की कीमत पर पाया गया विवाहित जीवन कभी सुखी नहीं हो पाता।"
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!!!
सच मै क्या ऎसे लोग भी मिलते है ?? जो घर की बहु, अपने बेटे की जीवन संग्नि से ऎसा व्यवाहार करते हो, क्य वो नही चाहते कि उन का बेटा सुखी रहे, अपने जीवन साथी के साथ जिस के जरिये उस घर की अगली पीढी आनी है, वो खुश रहे... जो लोग अपनी बहुं को तंग करते हो... वो अपने बेटे का भला केसे कर सकते हो गे. क्यो यह शिक्षा आज देनी पढ रही है... क्य हमारा समाज इतना गिर गया है ??क्य हम सब इतने निर्यदी हो गये है??
ReplyDeleteबहुत ज़रूरी है यह चिट्ठी भी! काश हर मानो और मोना को जीवन के इस पक्ष की तयारी करने की प्रेरणा भी घर से ही मिलती. टिप्पणी में आपने सही कहा है - बच्चों को सक्षम और परिपूर्ण बनाने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी हम माता-पिता की ही है.
ReplyDeleteआपका यह आलेख हमेशा लड़कियों को नसीहत देने का काम करता रहेगा। बहुत सुंदर आलेख।
ReplyDeletedo-do betiyaan hain meri.... hamesha aurat ko samman hi diya.. jahan kahin iska ulta dekhta hun...tilmila jata hun...koshish hai...ki yah sab naa hone doon... dekhun ki mujhse kya ho pata hai.. aapne khoob likha hai....yahan prashansa karte hue log khoob milenge....magar follow karne wale......!!??
ReplyDeleteये चिट्ठी तो कमाल की लिखी है आपने. पर ऐसी बातें कितनी माएं बोलती हैं लड़कियों को? सोचती भले हैं, उनके भले की इच्छा भी करती हैं पर ऐसी सीख देने की हिम्मत शायद बहुत कम में है...काश ऐसा सच में होता.
ReplyDeleteजीवन को आत्मसम्मान के साथ जीने के लिए आपका पाठ समयोचित है
ReplyDeleteYe sahi hai.. aise koi bhi maa kisi bhi beti ko aisi pate ki baate bata de... uske man ki asmanjas mita de... apni ichhao, vicharo, nirnayo, ka bhi samman karna sikha de to sabka kaam ho jaye... kuch maayien chah kar bhi unse ye sab nahi kehti.. to kuch betiyaan apni maa ke liye ghutan bhi seh leti hain.. maa ka thoda sa support aur himmat hi chahiye hoti hai na.. Lekin aapki chitthi se motivation pake to betiyaan apni maa ko bhi support kar sakti hain.. :)
ReplyDelete. बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही है, आपने .
ReplyDeleteशायद हर लड़की एक खुशहाल शांतिपूर्ण जिंदगी चाहती है . उसके माता-पिता भी यही चाहते हैं पर क्या,हमेशा ये हो पाता है ?
और जब नहीं हो पाता ,तो उनके पास कोई प्लान 'बी' होता है ? बिलकुल नहीं ,क्यूंकि एक बार शादी कर दी, फिर उन्हें लड़की की खुशियों से कोई सरोकार नहीं होता .लड़की के दुःख सेदुखी जरूरहोते हैं पर फिर एक ठंढी सांस ले कहते हैं, 'अब जैसी उसकी किस्मत '
प्लान 'बी' की बहुत महत्वपूर्ण बात कही है, आपने . आजकल तो लडकियां ही अपने माता- पिता का ज्यादा ख्याल रखती हैं.. कम सेकम यही सोच माता-पिता उसके जीवन में शरीक रहें और संकट की घड़ी में उसके साथ खड़े हों .
बहुत ही उम्दा आलेख . प्रत्येक लडकी के माता-पिता कू जरूर पढ़ना चाहिए .और उस पर अमल करना चाहिए .
यह चिट्ठी बहुत महत्वपूर्ण है
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