एक उम्र गुजर जाती है
उम्र गुजरने का एहसास होने में,
सब कुछ बिखर जाता है
बिखराव का एहसास होने में ।
रेत सा फिसल जाता है जीवन
देर हो जाती है समझ आने में,
हाथ हो जाता है खाली बिल्कुल
निःसारता की समझ आने में ।
घुघूती बासूती
Thursday, December 18, 2008
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बहुत गहरी बात। ...क्या सचमुच ऐसा होता है?
ReplyDeleteएक उम्र गुजर जाती है
उम्र गुजरने का एहसास होने में।
बहुत गहरी बात कही है आपने
ReplyDeleteजिन्दगी का सार शायद यही है
इसीलिए खाते है की जिदगी सिखाती है कुछ
सच है, जब तक ज़िन्दगी की समझ आती है..
ReplyDeleteटाइम इज़ अप का घंटा बजने को होता है !
गिनने लगें उपलब्धियां तो यही होगा
ReplyDeleteहाथ आएगी रेत ही
हम देखें मुहँ बाएं खड़े हैं काम
तो नजर आने लगेगा जीवन आगे भी
और पीछे भी।
रेत सा फिसल जाता है जीवन
ReplyDeleteदेर हो जाती है समझ आने में,
हाथ हो जाता है खाली बिल्कुल
निःसारता की समझ आने में ।
बहुत गहरी बात!!!!!!!!1
रेत सा फिसल जाता है जीवन
ReplyDeleteदेर हो जाती है समझ आने में,
सही है अभी तक भी समझ नही आया है ! जिस पल लगता है कि अब समझ आगया , यही जीवन है उसी समय लगता है कि नही अब भी पहला ही दिन है ! शायद जितना समझने की कोशिश करो उतना ही रहस्य बढता जाता है !
राम राम !
बहुत ऊँची बात कह दी. याद आ रहे हैं इस गीत के बोल "सब कुछ लुटा के होश में आए तो क्या हुआ"
ReplyDeletevery nice poem mam and true to every word . life needs to be lived but we dont and then at the fag end of the life we realise the foly
ReplyDeleteसब कुछ बिखर जाता है
ReplyDeleteबिखराव का एहसास होने में ।
" " भावनात्मक अभिव्यक्ति शानदार"
Regards
रेत सा फिसल जाता है जीवन
ReplyDeleteदेर हो जाती है समझ आने में,
हाथ हो जाता है खाली बिल्कुल
निःसारता की समझ आने में ।
सच बात कह दी जी।
हाथ हो जाता है खाली………। बहुत सुंदर्।
ReplyDeleteभावपूर्ण गम्भीर चिन्तन..........
ReplyDeleteबहुत अच्छा भावपूर्ण लेखन.
ReplyDeleteनहीं लिख पा रहा हूं- निःसारता सामने खड़ी हो गयी है .
Bahut Khoob
ReplyDeleteयथार्थ यही है...सही कहा है आपने.....
ReplyDeleteसच्चाई तो यही है .बहुत सुंदर कविता
ReplyDeleteगहरे दर्शन से परिपूर्ण कविता
ReplyDeleteजीवन का सारांश !
ReplyDeleteबहुत ही गूढ़ बात
ReplyDeleteरेत सा फिसल जाता है जीवन
देर हो जाती है समझ आने में
बहुत खूब।
behad gahri baat, aur badi khoobsoorti se kaha hai.
ReplyDeleteयही सार है और
ReplyDeleteभाव बोध भी
सुँदर कविता !
इन दिनों कबीर को पढ रही हैं ? उलटबांसी और दर्शन का अद्भुत मिश्रण है ।
ReplyDeleteबेहतरीन भावाभिव्यक्ति के लिये बधाई
ReplyDeleteआप ही की कविता की पंक्तियों का कोलाज -
ReplyDeleteउम्र गुजरने का एहसास हो जाता है
निःसारता की समझ आने में
एक उम्र गुजर जाती है
ReplyDeleteउम्र गुजरने का एहसास होने में,
सब कुछ बिखर जाता है
बिखराव का एहसास होने में ।
वाह जी बहुत ही खुबसूरती से अपनी बात बोली है आपने थोडे शब्दों में बहुत कुछ बोल गए हो बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति के लिए बारम्बार बधाई एवं शुभकामनाएं
रेत सा फिसल जाता है जीवन
ReplyDeleteदेर हो जाती है समझ आने में,
हाथ हो जाता है खाली बिल्कुल
निःसारता की समझ आने में ।
क्या खूब लिखा है भाई या बहन ?? घूघूती बासूती वाह रेत सा फिसल जाता है जीवन वाह
रेत सा फिसल जाता है जीवन
ReplyDeleteदेर हो जाती है समझ आने में,
हाथ हो जाता है खाली बिल्कुल
निःसारता की समझ आने में
I wrote something similar a few years ago:
Time Runs out
Days turn into Years
Decades into Millenia
Eras have already gone
A new year's eve
or a birthday morning
Reminds me that
another year is gone forever
I do not grow in height any more
I grow wider though
Have been standing for long
Now, its time to go!
bahut sundar rachna . man ko chooti hui ..
ReplyDeletesach hi to hai , ek umr gujar jati hai , sab kuch aur bahut kuch samjhne mein ..
badhai..
pls visit my blog for some new poems.
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/