Thursday, December 11, 2008

आज शाम छत पर

आज शाम लेटकर छत पर
मैं तारों को देख रही थी और
आकाश में बहते हुए बादल को
हिलती हुई पेड़ों की फुनगियों को
कल से अधिक बढ़े हुए चाँद को
कल से घटी हुई कालिमा को
टिमटिमाते हुए तारे सी
हवाईजहाज की बत्ती को।


गहरे अंधियारे में चमकते हुए
अक्षत तारों की पंक्तियों के बीच
टूटते हुए तारे को देख
ठंडी बहती हवा के बीच
अपनी झुलसती देह को देख
मैं यादों की ऊबड़खाबड़ राहों में
इक सूखे पेड़ सी खड़ी तेरी
भूली हुई यादों को याद कर रही थी।


मैं हर चमकते तारे में
तुझे खोज रही थी
परन्तु तू मिला मुझे
उस टूटे तारे में
मैं पक्षियों के कलरव में
तुझे सुनना चाह रही थी
परन्तु तुझे सुना मैंने
चीखते सन्नाटे में।


मैं शाम के झुरमुटों में
पाना चाह रही थी तुझे
मैं बहती पवन में तेरा
स्पर्श पाना चाह रही थी
मैं मोंगरे की सुगन्ध में
तेरी गन्ध सूँघ रही थी
मैं लिपटते सायों में
तेरी अनुभूति ढूँढ रही थी ।


मैं जीवन के गुजरे पलों में
तेरे मेरे अर्थ खोज रही थी
मैं तुझमें अपना मैं और
मुझमें तू खोज रही थी
मैं सपनों में यथार्थ
और यथार्थ में स्वप्न
जुगुनू में राह दिखाता प्रकाश
चाँद में अंधकार खोज रही थी ।


आज शाम लेटकर छत पर
मैं एक युग जी रही थी
जड़ को चेतन और
चेतन को जड़ कर रही थी
आज शाम लेटकर छत पर
मैं मूँद आँखें तुझे देख रही थी
रोकें साँसें तेरी राह देख रही थी
खुली आँख स्वप्न देख रही थी ।


घुघूती बासूती

23 comments:

  1. बहुत सुंदर और भावपूर्ण। लेकिन कविता से अधिक गद्य काव्य लगा यह।

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  2. सुन्दर अभिव्यक्ति है घुघुति जी मन के भावों कों आपने नया रूप दे कर कागज़ पर उकेरा है...बहुत-बहुत बधाई इस रचना के लिये...

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  3. "मैं हर चमकते तारे में
    तुझे खोज रही थी
    परन्तु तू मिला मुझे
    उस टूटे तारे में
    मैं पक्षियों के कलरव में
    तुझे सुनना चाह रही थी
    परन्तु तुझे सुना मैंने
    चीखते सन्नाटे में।"

    सुन्दर का साक्षात्कार व्यक्त-अव्यक्त, अनुभूत-अनानुभूत,दृष्ट-अनादृष्ट सबमें समान रूप से हुआ करता है. आपकी खोज बहुत कुछ कह जाती है. आपके लेखन से बहुत कुछ पाया मैनें. धन्यवाद.

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  4. Anonymous8:31 am

    bahut khubsurat bhav badhai

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  5. सुँदरता से
    अजाने अनुभवोँ की बातेँ कीँ आपने
    स स्नेह,
    - लावण्या

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  6. मैं हर चमकते तारे में
    तुझे खोज रही थी
    परन्तु तू मिला मुझे
    उस टूटे तारे में
    मैं पक्षियों के कलरव में
    तुझे सुनना चाह रही थी
    परन्तु तुझे सुना मैंने
    चीखते सन्नाटे में।

    मन की लाजवाब अभिव्यक्ति ! बहुत सुंदर ली यह रचना !

    राम राम !

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  7. आज शाम लेटकर छत पर
    मैं एक युग जी रही थी

    --वाह!! संपूर्ण-भावपूर्ण....प्रवाहमय भावाव्यक्ति!!

    बहुत सुन्दर..नाजुक..कोमल भाव!!

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  8. आज शाम लेटकर छत पर
    मैं एक युग जी रही थी
    जड़ को चेतन और
    चेतन को जड़ कर रही थी
    आज शाम लेटकर छत पर
    मैं मूँद आँखें तुझे देख रही थी
    रोकें साँसें तेरी राह देख रही थी
    खुली आँख स्वप्न देख रही थी ।

    बहुत सुन्दर सहज भावपूर्ण। अभिव्यक्ति है यह ..

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  9. आज शाम लेटकर छत पर
    मैं एक युग जी रही थी

    सार यही लगा इस कविता का.....बेहद भावपूर्ण कविता !

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  10. बेमिसाल....हमेशा की तरह....आप की कविता में बसे भाव दिल को कहीं अन्दर तक छू जाते हैं...वाह...
    नीरज

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  11. अपने प्रवाह के साथ बहा ले जाने वाली बहुत अच्छी कविता। बार-बार पढ़ने की इच्छा हुई।

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  12. एक एक शब्द बोलता है..

    बहुत खूब ..

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  13. aadhunik kavita ka behatarin namuna,bhawo ki sundar abhivyakti.
    ALOK SINGH "SAHIL"

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  14. खूबसूरत ख्याल...

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  15. बहुत भावपूर्ण व बढ़िया रचना है।
    बहुत सुन्दर लिखा है-

    "मैं हर चमकते तारे में
    तुझे खोज रही थी
    परन्तु तू मिला मुझे
    उस टूटे तारे में
    मैं पक्षियों के कलरव में
    तुझे सुनना चाह रही थी
    परन्तु तुझे सुना मैंने
    चीखते सन्नाटे में।"

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  16. मैं शाम के झुरमुटों में
    पाना चाह रही थी तुझे
    मैं बहती पवन में तेरा
    स्पर्श पाना चाह रही थी
    मैं मोंगरे की सुगन्ध में
    तेरी गन्ध सूँघ रही थी
    मैं लिपटते सायों में
    तेरी अनुभूति ढूँढ रही थी ।


    ओए होए क्‍या बात है बहुत बहुत खूबसूरत और भावपूर्ण रचना के लिए बारम्‍बार बधाई और शुभकामनाएं

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  17. बेहद खूबसूरत शब्द और भावनाओं का संकलन...

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  18. कोई जब चाट पर सोया कुछ सोच-सा रहा होता है...तो चुपके से भी उसे देखा नहीं करते...मगर मैं आपको देख आया था....मैं क्या करूँ...मैं तो ऊपर ही उड़ता रहता हूँ...न...!!सॉरी....मगर एक बात बताऊँ...??आप बहुत अच्छे लग रहे थे...बिल्कुल इस कविता की तरह...सच...!!

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  19. कोई जब छत पर सोया कुछ सोच-सा रहा होता है...तो चुपके से भी उसे देखा नहीं करते...मगर मैं आपको देख आया था....मैं क्या करूँ...मैं तो ऊपर ही उड़ता रहता हूँ...न...!!सॉरी....मगर एक बात बताऊँ...??आप बहुत अच्छे लग रहे थे...बिल्कुल इस कविता की तरह...सच...!!

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  20. मन को छू लेने वाली रचना!

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