आज शाम लेटकर छत पर
मैं तारों को देख रही थी और
आकाश में बहते हुए बादल को
हिलती हुई पेड़ों की फुनगियों को
कल से अधिक बढ़े हुए चाँद को
कल से घटी हुई कालिमा को
टिमटिमाते हुए तारे सी
हवाईजहाज की बत्ती को।
गहरे अंधियारे में चमकते हुए
अक्षत तारों की पंक्तियों के बीच
टूटते हुए तारे को देख
ठंडी बहती हवा के बीच
अपनी झुलसती देह को देख
मैं यादों की ऊबड़खाबड़ राहों में
इक सूखे पेड़ सी खड़ी तेरी
भूली हुई यादों को याद कर रही थी।
मैं हर चमकते तारे में
तुझे खोज रही थी
परन्तु तू मिला मुझे
उस टूटे तारे में
मैं पक्षियों के कलरव में
तुझे सुनना चाह रही थी
परन्तु तुझे सुना मैंने
चीखते सन्नाटे में।
मैं शाम के झुरमुटों में
पाना चाह रही थी तुझे
मैं बहती पवन में तेरा
स्पर्श पाना चाह रही थी
मैं मोंगरे की सुगन्ध में
तेरी गन्ध सूँघ रही थी
मैं लिपटते सायों में
तेरी अनुभूति ढूँढ रही थी ।
मैं जीवन के गुजरे पलों में
तेरे मेरे अर्थ खोज रही थी
मैं तुझमें अपना मैं और
मुझमें तू खोज रही थी
मैं सपनों में यथार्थ
और यथार्थ में स्वप्न
जुगुनू में राह दिखाता प्रकाश
चाँद में अंधकार खोज रही थी ।
आज शाम लेटकर छत पर
मैं एक युग जी रही थी
जड़ को चेतन और
चेतन को जड़ कर रही थी
आज शाम लेटकर छत पर
मैं मूँद आँखें तुझे देख रही थी
रोकें साँसें तेरी राह देख रही थी
खुली आँख स्वप्न देख रही थी ।
घुघूती बासूती
Thursday, December 11, 2008
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बहुत सुंदर और भावपूर्ण। लेकिन कविता से अधिक गद्य काव्य लगा यह।
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति है घुघुति जी मन के भावों कों आपने नया रूप दे कर कागज़ पर उकेरा है...बहुत-बहुत बधाई इस रचना के लिये...
ReplyDelete"मैं हर चमकते तारे में
ReplyDeleteतुझे खोज रही थी
परन्तु तू मिला मुझे
उस टूटे तारे में
मैं पक्षियों के कलरव में
तुझे सुनना चाह रही थी
परन्तु तुझे सुना मैंने
चीखते सन्नाटे में।"
सुन्दर का साक्षात्कार व्यक्त-अव्यक्त, अनुभूत-अनानुभूत,दृष्ट-अनादृष्ट सबमें समान रूप से हुआ करता है. आपकी खोज बहुत कुछ कह जाती है. आपके लेखन से बहुत कुछ पाया मैनें. धन्यवाद.
bahut khubsurat bhav badhai
ReplyDeleteसुँदरता से
ReplyDeleteअजाने अनुभवोँ की बातेँ कीँ आपने
स स्नेह,
- लावण्या
मैं हर चमकते तारे में
ReplyDeleteतुझे खोज रही थी
परन्तु तू मिला मुझे
उस टूटे तारे में
मैं पक्षियों के कलरव में
तुझे सुनना चाह रही थी
परन्तु तुझे सुना मैंने
चीखते सन्नाटे में।
मन की लाजवाब अभिव्यक्ति ! बहुत सुंदर ली यह रचना !
राम राम !
आज शाम लेटकर छत पर
ReplyDeleteमैं एक युग जी रही थी
--वाह!! संपूर्ण-भावपूर्ण....प्रवाहमय भावाव्यक्ति!!
बहुत सुन्दर..नाजुक..कोमल भाव!!
आज शाम लेटकर छत पर
ReplyDeleteमैं एक युग जी रही थी
जड़ को चेतन और
चेतन को जड़ कर रही थी
आज शाम लेटकर छत पर
मैं मूँद आँखें तुझे देख रही थी
रोकें साँसें तेरी राह देख रही थी
खुली आँख स्वप्न देख रही थी ।
बहुत सुन्दर सहज भावपूर्ण। अभिव्यक्ति है यह ..
सुंदर्।
ReplyDeleteआज शाम लेटकर छत पर
ReplyDeleteमैं एक युग जी रही थी
सार यही लगा इस कविता का.....बेहद भावपूर्ण कविता !
बेमिसाल....हमेशा की तरह....आप की कविता में बसे भाव दिल को कहीं अन्दर तक छू जाते हैं...वाह...
ReplyDeleteनीरज
अपने प्रवाह के साथ बहा ले जाने वाली बहुत अच्छी कविता। बार-बार पढ़ने की इच्छा हुई।
ReplyDeleteएक एक शब्द बोलता है..
ReplyDeleteबहुत खूब ..
aadhunik kavita ka behatarin namuna,bhawo ki sundar abhivyakti.
ReplyDeleteALOK SINGH "SAHIL"
खुब सुरत
ReplyDeleteखूबसूरत ख्याल...
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण व बढ़िया रचना है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा है-
"मैं हर चमकते तारे में
तुझे खोज रही थी
परन्तु तू मिला मुझे
उस टूटे तारे में
मैं पक्षियों के कलरव में
तुझे सुनना चाह रही थी
परन्तु तुझे सुना मैंने
चीखते सन्नाटे में।"
मैं शाम के झुरमुटों में
ReplyDeleteपाना चाह रही थी तुझे
मैं बहती पवन में तेरा
स्पर्श पाना चाह रही थी
मैं मोंगरे की सुगन्ध में
तेरी गन्ध सूँघ रही थी
मैं लिपटते सायों में
तेरी अनुभूति ढूँढ रही थी ।
ओए होए क्या बात है बहुत बहुत खूबसूरत और भावपूर्ण रचना के लिए बारम्बार बधाई और शुभकामनाएं
बेहद खूबसूरत शब्द और भावनाओं का संकलन...
ReplyDeleteकोई जब चाट पर सोया कुछ सोच-सा रहा होता है...तो चुपके से भी उसे देखा नहीं करते...मगर मैं आपको देख आया था....मैं क्या करूँ...मैं तो ऊपर ही उड़ता रहता हूँ...न...!!सॉरी....मगर एक बात बताऊँ...??आप बहुत अच्छे लग रहे थे...बिल्कुल इस कविता की तरह...सच...!!
ReplyDeleteकोई जब छत पर सोया कुछ सोच-सा रहा होता है...तो चुपके से भी उसे देखा नहीं करते...मगर मैं आपको देख आया था....मैं क्या करूँ...मैं तो ऊपर ही उड़ता रहता हूँ...न...!!सॉरी....मगर एक बात बताऊँ...??आप बहुत अच्छे लग रहे थे...बिल्कुल इस कविता की तरह...सच...!!
ReplyDeleteमन को छू लेने वाली रचना!
ReplyDeleteBahut khub.Badhai.
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