Saturday, January 26, 2008

कैक्टस के फूल

अबकी बार खूब फूल खिले हैं
काँटेदार कैक्टस के झाड़ों में,
हो सकता है ओ प्रियतम मेरे
फूल खिलें मन की बगिया में ।

काँटों में उलझी रही जीवन भर
अब शायद कलियों फूलों से खेलूँ ,
अबके सावन में ओ साजन मेरे
हो सकता है मैं भी झूले झूलूँ ।

मन्द पवन के झोंके आकर
मन को मेरे बहला ही जाएँ,
लौट लौट यादें तेरी आकर
मन में मेरे स्वप्न जगाएँ ।

बिजली चमके बादल कड़के
जीवंत हुई सारी आकांक्षाएँ,
धरती महके, अम्बर बरसे
प्रीत की ये है अगन लगाए ।

अबकी बार खूब फूल खिले हैं
काँटेदार कैक्टस के झाड़ों में,
हो सकता है ओ निर्मोही
आ जाए तू मेरी बाँहों में ।

घुघूती बासूती

6 comments:

  1. Anonymous3:22 pm

    bahut khub sari dharati ambar ko preet ki hi aas hoti hai.

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  2. मेरे घर में उदयपुर में बहुत से केक्टस थे और भिन्न-भिन्न प्रकार से खिलते थे। मोहक।
    बाकी, जिन्दगी में बहुत केक्टस हैं। उनके यदा कदा खिलने की ही प्रतीक्षा रहती है।

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  3. क्या बात है!!
    कैक्टस की बात से रवि रतलामी जी की एक पोस्ट याद आ गई, आप पढ़िए और देखिए जरा यह --


    कौन कहता है कि कैक्टस में सिर्फ कांटे ही कांटे होते हैं?

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  4. कैक्टस में ही फूल आ गए तो फिर प्रियतम के मन चुप रह सकता है?

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  5. घुघुती जी इस बार कैक्टस के फ़ूल जरुर खिलेगें

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  6. Anonymous5:31 pm

    Plentiful, thoughtful..Cactus' Spring!

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