मैंने एक चिट्ठा पढ़ा .. सीता के साथ रावण ही नहीं, लक्षमण भी संबंध बनाता था ।
देखिये, ना तो सीता जी से प्रेम है, ना राम जी से और ना लक्ष्मण जी या रावण जी से कोई शत्रुता ! परन्तु सोचने की बात यह है कि यदि सीता जी को यह सब करना था तो उन्हें क्या इसके लिए वन ही उचित स्थान लगा ? ऐसी स्त्री के लिए, या फिर लक्ष्मण जी को भी ये सब काम करने के लिए क्या नगर बेहतर जगह ना लगती ? वह भी ऐसा नगर जहाँ से राम जी जा चुके होते । मैंने तो सुना था कि हम आधुनिक लोग राम व उनके साथियों के अस्तित्व पर विश्वास ही नहीं करते । यह नहीं पता था कि विश्वास नहीं करते और साथ में यह भी कहते हैं कि यदि विश्वास करना है तो उन्हें अपने धार्मिक आदर से वंचित करो ।
वैसे यह नाक से बच्ची जन्मने व फिर उसे उठाकर ले जाने का विचार आज की स्त्रियों की घटती दर के समय में बहुत उपयोगी रहेगा । वैसे ही बच्चा जन्मना बहुत कठिन, कष्टप्रद व महंगी व समय लगाने वाली प्रक्रिया है । यदि लेखक जीवित हैं तो पुरुषों को उनसे इस विधि को सीख लेना चाहिये । छींकों का क्या सर्दियों में आती ही रहती हैं । बस एक ही डर है कि अब छींक के बाद लोग रूमाल को देखा करेंगे कि कहीं कोई बच्ची तो नहीं आई साथ में । और वे लोग जो सीधे नाक से निकले तत्व को सड़क पर फेंक देते हैं वे अनजाने में नन्हीं बच्चियों को भी फेंक रहे हैं , शायद उन्हें उसका आभास भी नहीं होगा । लेखक जी से एक और बात साफ करवा लेनी चाहिये कि यह छींक वाला उपाय केवल पुरुषों में कारगार सिद्ध होता है या स्त्रियों में भी । और सबसे महत्वपूर्ण बात तो फल की है । यह कौन सा फल खाना या ना खाना होता है यह भी उन्हें बताना चाहिये ।
जहाँ तक हनुमान जी की बात है तो भाई उनमें तो पूरा विश्वास करना चाहिये आखिर वे स्मॉल या बिग मंकी हमारे पुरखे ही तो थे ।
अंत में बोलो ...
श्री रामानुजन जी की जय !
रावण जी की नाक की जय !
रावण की छींक की जय !
घुघूती बासूती
Friday, January 25, 2008
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अरे बाप रे, ऐसा हुआ तब तो छींकने से पहले दस बार सोचना पड़ेगा। आती छींक को रोकने के उपाय भी जमाने भर में बिकने बताए जाने लगेंगे और छींकरोधी उपकरण और दवाईयां आने लगेंगी!! :)
ReplyDeleteऐसे ज्ञानी ध्यानी = दया के पात्र
ReplyDeleteजय हो
ReplyDeleteबोलो, नाकरत्न की जय, नहीं? प्लीज़, ज्ञानदानियों की बयार बह रही है, उनके फ़ायदे के लिए ये वाला नारा भी लगवा दीजिए, न?
ReplyDeleteऐसा ज्ञानवर्धक चिठ्ठा हमारी नजर से कैसे बच गया,जरा चिठ्ठे की डिटेलस दें
ReplyDeleteआक्कछू.... उफ्फ रूकी ही नहीं और एक और बच्ची का जन्म हो गया.
ReplyDeleteलेखक पद्म सम्मान से सम्मानित है, अतः उनकी बात पर ऐसा व्यंग्य न लिखा जाय....
दो चार जूते लगाने हो तो छूट है. :)
अच्छा लिखा है. मस्त.
ghor kalyug hai! jay sri raam!
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