[ उसके लिए जिसे स्थान, देश, महाद्वीप, धर्म, वर्ग का अन्तर भी मन से दूर न कर सका। कभी न देखने, न सुनने, न मिलने , न छूने के बावजूद बेटा माना है । यह उस का ही , मुझसे खोया बचपन है।]मैंने खोया है बचपन तेरा,
मीठी बातें, नटखट हरकत, भोला चेहरा ,
झील सी आँखें, आँसू तेरे, रूप सुनहरा,
मैंने खोया है प्यारा सा बचपन तेरा ।
खेल खिलौने, आँख मिचौनी,
गिर जाना, चोट लगाना, सूरत रोनी,
देर से सोना, देर से उठना, कॉपी खोनी,
पैर पटकना, हाथ झटकना, बातें अनहोनी ।
दूध न पीना, सूप न पीना,
खूब रूठना, खूब मनाना, न खाना खाना,
छत पर चढ़ना, पेड़ पर चढ़ना, सबसे लड़ना,
खूब भगाना, खूब सताना, हाथ न आना ।
घुघूती बासूती
मीठी बातें, नटखट हरकत, भोला चेहरा ,
झील सी आँखें, आँसू तेरे, रूप सुनहरा,
मैंने खोया है प्यारा सा बचपन तेरा ।
खेल खिलौने, आँख मिचौनी,
गिर जाना, चोट लगाना, सूरत रोनी,
देर से सोना, देर से उठना, कॉपी खोनी,
पैर पटकना, हाथ झटकना, बातें अनहोनी ।
दूध न पीना, सूप न पीना,
खूब रूठना, खूब मनाना, न खाना खाना,
छत पर चढ़ना, पेड़ पर चढ़ना, सबसे लड़ना,
खूब भगाना, खूब सताना, हाथ न आना ।
घुघूती बासूती
दूध न पीना, सूप न पीना,
ReplyDeleteखूब रूठना, खूब मनाना, न खाना खाना,
छत पर चढ़ना, पेड़ पर चढ़ना, सबसे लड़ना,
खूब भगाना, खूब सताना, हाथ न आना ।
बहुत सुंदर
कविता अच्छी है।
ReplyDeleteपर कोई अपराध बोध नहीं होना चाहिये। बचपन परिवर्तित होता है परिपक्वता में। माता-पिता उसे सही प्रकार से परिपक्व कराते हैं। यह तो पुनीत कर्म हुआ!
घुघूति जी आप मेरे चिट्ठे पर आई एक नेक सलाह के लिये धन्यवाद...आप परेशान न हो यह बस एक कविता है एसा कुछ नही जिन्दगी में जिसमें इतनी कड़वाहट पैदा हो जाये...
ReplyDeleteसुनीता(शानू)
बचपन की कविता बहुत अच्छी लगी एसा सभी के साथ होता है...हम भी अपना बचपन खो चुके है...और न जाने क्या-क्या खोना अभी बाकी है...
ReplyDeleteसुनीता(शानू)
अगर अपने ब्लोग पर " कापी राइट सुरक्षित " लिखेगे तो आप उन ब्लोग लिखने वालो को आगाह करेगे जो केवल शोकिया या अज्ञानता से कापी कर रहें हैं ।
ReplyDeleteसुंदर कविता, सुंदर भाव!!
ReplyDeleteह्म्म, आपने जो भूमिका लिखी है उससे जाहिर ही हो रहा है कि उसके बचपन को आप खो चुकी है अर्थात अब वह बड़ा हो चुका है।
लेकिन आप उसके बचपन को जीते रहना चाहती हैं।
बहुत सुंदर!!
मनोभाव का सुन्दर चित्रण-अच्छी अभिव्यक्ति. बधाई.
ReplyDelete"मीठी बातें, नटखट हरकत, भोला चेहरा ,
ReplyDeleteझील सी आँखें, आँसू तेरे, रूप सुनहरा,"
खोया नहीं पाया कहिए ... ऐसे सुन्दर बचपन को आप कैसे खो सकते हैं...यह पल यादों मे सूखे फूलों की तरह सहेज कर रखे होते हैं.
बहुत सुन्दर चित्रण ..
ह्रदय में उतर जाने वाली कविता ,बहुत सुन्दर चित्रण ..!
ReplyDeleteमानव के भीतर एक बहशी और एक बचपना भी होता है… बस होता है इंतजार मौके का…
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति…।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति पर लगता है थोड़ी पंक्तियाँ और जुड़ जाती तो कविता ज्यादा सुन्दर लगती।
ReplyDelete.. बचपन याद आ गया और बच्चों की शरारतें भी।
do u remember me anugill 2000
ReplyDeleteबचपन अगर रुका रह गया तो, इसकी मिठास खत्म हो जाएगी।
ReplyDeleteआप ने इस कविता में मेरे मन कि बात कही है, मुझसे भी मेरे बेटे का बचपन यूं ही छूट गया और अब चाह कर भी लौट नहीं पाएगा, शायद हर कार्यरत महिला की यही कहानी है
ReplyDeleteखोया बचपन कहीं नहीं खोया है। सभी स्मृतियों में सुरक्षित है और अब तो ब्लाग आ गया है। याद रखने और सबसे बांटने के लिए। आपने बांटा, मैंने भी बांटा। आपको पसंद आया मुझे भी पसंद आया। अच्छा कार्य कर रहे हैं। कभी वे भी पढ़ेंगे जिनके संबंध में हम लिख रहे हैं। पर हमें लिखते रहना है, इन अनमोल पलों को, पलरत्नों को।
ReplyDelete