रुक जाओ
१२ जून को मैंने वर्षा तुम जल्दी आना कविता में उसे आने का न्यौता दिया था । शायद वह मेरा न्यौता मान भी गई और कुछ ऐसी धूम धाम से आई है कि यदि किसी को पता चल जाए कि इसे मैंने बुलाया था तो मेरी खैर नहीं है । वैसे यह बहुत मूडी हो गई है । मेरे २ सप्ताह के दिल्ली प्रवास में एक बूँद भी नहीं बरसी । मेरे वापिस आने का समाचार भी इसे एक सप्ताह बाद मिला । किन्तु जब से मिला है तो हाथ धोकर पीछे पड़ गई है।
अपनी बात की पुष्टि करने के लिए मैं आपको सारे आँकड़े व चित्र दिखाऊँगी । हमारी दशा बहुत खराब हो गई है। सड़कें टूट गई हैं पुल भी काफी टूट फूट गए हैं। महीने भर का राशन रखने वालों का काम तो चल रहा है किन्तु जो रोज खरीदते व खाते हैं उनकी स्थिति खराब है। ये बात और है कि यह गुजरात है व यहाँ ऐसे समय में सहायता करने की परम्परा रही है। सबसे बड़ी बात यह है कि सहायता चाहने वाले स्वयं ही बता देते हैं कि उन्हें क्या चाहिये। प्रशासन भी आमतौर पर उद्योग की सहायता से बहुत मुश्तेदी से काम करता है। दो दिन से अखबार नहीं आया है । स्कूल सोमवार से बंद हैं । सड़कों पर इतना पानी भरा है कि परसों एक बस में बैठे लोग डूबते डुबते बचे।
पास में एक हिरन नामक नदी है जिसमें बरसात से लेकर अधिक से अधिक दिसम्बर तक कुछ पानी रहता है। इस नदी पर एक बाँध भी है। जब उसमें से भी पानी छोड़ना पड़ जाए तब स्थिति और खराब हो जाती है। यह नदी वही पौराणिक नदी है जिसके तट पर श्रीकृष्ण को बाण लगा था । यह प्रभास क्षेत्र कहलाता है। यह इलाका सौराष्ट्र के जूनागढ़ जिले में आता है।
कुछ दिन पूर्व वावाजोड़ा याने समुद्री तूफान आने का भी भय था किन्तु वह टल गया है। खैर अब आप आँकड़े देखिये और साथ मे् कुछ चित्र भी । यहाँ मैं यह चेतावनी देना चाहूँगी कि मैंने ऐसा काम कभी भी नहीं किया है तो कुछ या बहुत कुछ गल्तियाँ होंगी , कुछ आगे पीछे होगा, किन्तु यदि आप कड़ी आलोचना नहीं करेंगे तो एक छोटी सी जगह की सड़कों व पुलों का हाल देख सकेंगे । वैसे मेरी गल्तियों पर की गई रचनात्मक टिप्पणियों से मुझे कोई परहेज नहीं।
पहले पढ़िये एक कविता जो वर्षा से अपनी पहले की पुकार वापिस लेने को की गई है ......................
वर्षाने तो की है तबाही
इसे जरा भी दया ना आई
आती है जब तो ऐसे आए
मुश्किल में सब पड़ जाए ।
रूकने का यह नाम न लेती
सबको यह है बड़ा भिगोती
स्कूलों में बच्चे ना जा पाएँ
घर में रहकर खूब सताएँ ।
घर में ना है सब्जी भाजी
कैसे खाएँ कुछ भी ताजी
मेंढकों ने है शोर मचाया
मच्छरों ने है हमे सताया ।
ऐसे में जब बिजली जाए
गर्मी में हम सो ना पाएँ
कोई तो है इसे समझाए
कहो इसे ये रुक के आए ।
घुघूती बासूती
जल्दी बाढ़ रुके!
ReplyDeleteप्रकृति अपने हिसाब से सामजस्य बैठाती रहती है, बस कब अपने उसकी चपेट में आ जायें तब लगता है कि जल्द ही यह आपदा गुजरे. यही कामना है कि जल्द यह आपदा गुजरे.
ReplyDeleteगुजरात भारी वर्षा की चपेट में है. हम शहर में रह रहे है इसलिए हालात उतने मुश्किल नहीं. आपके वहाँ भी बिजली व नेट बना हुआ है.
ReplyDeleteतस्वीरें व पोस्ट सही बन पड़े है. यही ब्लॉगिंग है.
सिटीजन जर्नलिस्ट बनने के पूरे गुण है आप में!!
ReplyDeleteपहली रिपोर्ट के हिसाब से तो बढ़िया है!!
हालात जल्द से जल्द सामान्य हो यही कामना है!!
बारिश का नज़ारा कुछ आपकी नज़र से
ReplyDeleteयही कामना है कि जल्दी बाढ़ रुक जाए