Tuesday, August 07, 2007

दिल्ली मिलन के २५ दिन बाद

दिल्ली के चिट्ठाकार मिलन को लगभग २५ दिन हो गये हैं । शायद सब लोग इसे भूल भी चुके होंगे । पर मैंने वे पल सहेज कर रख लिये हैं । मुझे तो वह मिलन बहुत सफल व आनन्ददायक लगा । मुझे उसमें किसी प्रकार की कटुता या किसी का किसी को कुछ गलत या अनादर भाव से कहना नहीं दिखा या सुना। यह बात और है कि मेरे कान कुछ कमजोर हैं , किन्तु यदि ये दुखदायी बातों को छानकर ही मुझे सुनाते हैं तो मुझे इन कानों से कोई शिकायत नहीं, और न ही कमजोर आँखों से ।
मुझे सारा वातावरण सौहार्दपूर्ण लगा । यदि हम अपने आपको a bundle of nerves ( नाड़ीतंत्र को शरीर के बाहर ही रखने लगें ) ही बना लें तो हमें कहीं भी असुविधा ही होगी । कोई कितने ही प्रेम से बात करे हम गलत ही अर्थ लगाएँगे । मैं जितने भी लोगों से मिल पाई वे सब मुझे बहुत अच्छे लगे । जिनसे न मिल पाई उसका मलाल रह गया । यदि हम खाना खड़े होकर खाते तो और अधिक लोगों से मिलने व बोलने का अवसर मिलता । चाहे उस दिन मैं खड़े होने की स्थिति में न थी अतः मेरे लिये तो बैठना ही सुविधाजनक था । यदि तबीयत अधिक साथ देती तो मैं स्वयं ही उठ उठकर अपनी सीट बदलती । बहुत से लोगों से बात करने की इच्छा मन में ही रह गयी । पर जिनसे भी बात की , उनसे मिलना , बतियाना बहुत भला लगा । कुछ नवयुवक नवयुवतियों में मुझे अपने बच्चे दिखे । कुछ बुजुर्गों में ( चाहे वे उम्र में मुझसे छोटे रहे हों ) मुझे मित्र दिखे ।
जो सबसे अधिक अच्छा लगा वह इन सबका हिन्दी प्रेम , विशेषकर युवाओं का । मुझे विश्वास हो गया कि हिन्दी एक जीवित भाषा है और इन सबके होते हुए कभी भी लुप्त नहीं होगी । यहाँ पर मैं एक अनुरोध करना चाहती हूँ, जो उस दिन करना भूल गई । चाहे अंग्रेजी की पुस्तकें माँगकर या किसी पुस्तकालय से लो , किन्तु यथासंभव हिन्दी की पुस्तकें खरीद कर पढ़ो । यह बात उन लोगों पर विशेष रूप से लागू होनी चाहिये जो कमाते हैं व विद्यार्थी नहीं हैं । क्योंकि लेखक लेखन तभी करेगा जब उसकी पुस्तकें बिकेंगी । और जो भी पुस्तक विक्रेता हिन्दी पुस्तकें नहीं रखते उनसे भी पूछो कि हिन्दी की पुस्तकें हैं क्या । यह नुस्खा मैंने बहुत कारगार होते देखा है । अपने छोटे से कस्बे में जब हम बार बार एक ही चीज की माँग करते रहते हैं तो वह थक हारकर वह चीज रखने लगता है ।
वैसे एक मित्र ने अपने चिट्ठे में मेरा नाम न लेते हुए मेरी टाँग खिंचाई भी की है । किन्तु सोचने की बात है कि ३० लोगों में उन्होंने मुझे टाँग खिंचाई या ध्यान देने या मेरी दूसरों से होती बातें सुनने लायक तो समझा । यही गनीमत है और इस को ही प्रशंसा ( compliment )
मानकर खुश हो लेती हूँ । वही गिलास आधा खाली या आधा भरे की तर्ज में !
एक और बात है , मुझे नहीं पता था कि महानगरों में भी इतने बड़े दिलों के मालिक बैठे हैं । मैं यह भूल गयी थी कि महानगरों में रहने वालों की जड़ें भी आमतौर पर गाँवों व कस्बों में ही होती हैं । किसी का मुझे घर से कैफे तक ले जाना, चक्कर आने पर बैठाना , बेटे की तरह हाथ पकड़ कर ले जाना । अपने जाने पर मेरे पति को फोन कर यह बताना कि वे जा रहे हैं व मीटिंग का स्थान बदल गया है । किसी का यह कहना कि ..... जी न कहो, माफी न माँगो, किसी का मुझे प्रणाम करना ( जबकि मैं प्रणाम की परंपरा में ही विश्वास नहीं करती ) , मैथिली जी व उनके पुत्र की सादगी व अपनापन , रंजना जी व सुनीता से इतना प्यार मिलना , दिल्ली वासियों ने मेरा दिल जीत लिया । इससे अप्रत्यक्ष रूप से मेरे पति को भी लाभ हुआ है । उन्हें आप सबका आभारी होना चाहिये । मैं जो दिल्ली में रहने के नाम से ही घबरा जाती थी, अब पति की सेवानिवृत्ति के बाद दिल्ली में रहने को तैयार हो गयी हूँ ।
सो कुल मिला कर मेरे लिए वह दिन एक यादगार दिन बन गया ।
घुघूती बासूती

19 comments:

  1. Anonymous2:38 pm

    सद्भाव और सहज आत्मीयता से भरी-पूरी पोस्ट . दिल्ली न पहुंच पाने का मलाल रहेगा .

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  2. बडे दिन बाद आपकी पोस्ट पढ़कर अच्छा लगा।अफ़सोस कि उस दिन हम आप सबसे मिलने से रह गए ।

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  3. चलो आप दिखीं तो फ़िर से लिखते हुए!!
    जाकि जैसी भावना, जो इंसान खुद ही अच्छा होता है उसे सब अच्छे ही नज़र आते हैं ना!

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  4. आपकी रिपोर्ट पढ़ कर अच्छा लगा। बाकी रिपोर्टों में तो कहीं कुछ ... ही पढ़ने को मिली।

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  5. बढ़िया संस्मरण. मगर दिल्ली मीट के बाद आपकी टिप्पणियां और लेखन काहे बंद है. अरे, चालू हो जायें फिर से, एक अकेला आदमी कितना संभाले. कुछ तो रहम करें. :)

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  6. Anonymous6:13 pm

    hello Mam
    aap ki shalini sunder chavi mere dimag mae aaj bhi hae vase aap toh mujeh bhul gayee

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  7. आप की दिल्ली मीट की रिपोर्ट सब से अलग और आत्मीयता से परिपूर्ण लगी ।रिपोर्ट पढ़ एक बात याद आ गई.....संतन के मन रहत है सब के हित की बात..

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  8. मुझे तो लगा था की चिट्ठाकार मिलन के बाद आपने संन्यास ले लिया है :)


    मामला आपका व आपको प्रणाम करने वाले के बीच का है, मगर सुपात्र को प्रणाम करना हमारी संस्कृति की सुन्दर देन है.

    मैं तो आज तक दिल्ली मीट को भूल नहीं पाया हूँ. कितने प्यार और सम्मान से सब मिले थे. कोई कड़वाहट नहीं थी.

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  9. आपने यह कैसे संदेह कर लिया कि लोग उस मिलन को भूल चुके हैं?

    हाँ, यह अच्छा किया कि २५ दिन बाद भी याद करने का नया चलन शुरू किया।

    पहली बार सुन रहा हूँ कि प्रणाम-संस्कृति में किसी को विश्वास नहीं है। इस लिहाज से भी आप विशेष हो गईं।
    वहीं बता देतीं।

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  10. अलग-अलग परिवेश के लोगों से मिल बैठकर बात करना प्रीतिकर ही होता है।

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  11. बहुत अच्छा लगा आपकी यह पोस्ट पढ़कर!

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  12. आपकी ही तरह प्यार से भरी यह पोस्ट दिल को छू गयी .. :)

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  13. आपकी रिपोर्ट हृदय स्पर्शी है

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  14. अजी भूले कैसे हैं ? बिलकुल नही भूले हैं ।खासतौर से इतने ब्लागर्स का जमावडा भूलने लायक कहां था ? फ़िर आप मुझे एक बहुत ही ज़िन्दादिल महिला लगीं ।सच कहूं तो "एक शरारती ग्रैनी " जैसी ।मेरा बेटा एक कार्टून देखता है ’बेबी लूनी ट्यून्स’ उसकी ग्रैनी जैसी हैं आप । पता नही ब्लागर कम्यूनिटी में ममत्व और स्नेह जैसेशब्दों का कहीं कोई स्थान बनाना कितना हितकारी है पर आप से मिलकर यह सुखद लगा कि आपकी पीढी के, आप से कुछ लोग युवाओं को नैराश्य भरी उंसासे लेकर नही देखते ।हमेशा शिकायतों का पुलिन्दा लेकर घूमने वाली पिछली पीढी का आप अपवाद हैं ।आपकी आशावादिता भली है ।

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  15. और हां आपका ई-मेल पता मुझे आपक ब्लाग पर नही दिखा ।

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  16. आपकी जो छवि मन में बनाई थी आप वैसी ही लगीं !बहुत दिल से लिखा है आपने यह वर्णन !

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  17. Anonymous10:44 am

    यदि हम अपने आपको a bundle of nerves ( नाड़ीतंत्र को शरीर के बाहर ही रखने लगें ) ही बना लें तो हमें कहीं भी असुविधा ही होगी । कोई कितने ही प्रेम से बात करे हम गलत ही अर्थ लगाएँगे


    इतना मीथा लेख उतने ही मीथए कमेन्त्स
    पर जिस प्र्कार से फोतो खिचाने कए लियए आप bundle of nerves थी और की भी कुच वजेह होगी .
    हम गलत ही अर्थ लगाएँगे
    ये स्वाभविक हे क्योकि हुम इन्सान हे आप ने भी तोह यए लिख कर जाहिर ही किय हए कि आप को यए बात पसेन्द नहिन आई
    श्मा करे बुरा लगा हो तो

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  18. जैसे ना तो आपसे और श्री जी से मिलना ब्लोगर्स मीट था ,ठीक वैसी ही आपकी पोस्ट है मीठी और दुलार भरी..इसको शब्दो मे नही बाधा जा सकता..बस महसूस किया जा सकता है..

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  19. Anonymous7:21 am

    न जाने पहले क्यों नहीं पढ़ी यह पोस्ट. आज पढ़ी तो पूरा का पूरा चित्र घूम गया आंखों के सामने. आपने बहुत अच्छा लिखा.

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