छोटी जगह की और भी बहुत ही छोटी चिट्ठाकार !
काकेश जी का रविवार 8 जुलाई को अंग्रेजी के प्रमुख समाचार पत्र टाइम्स ऑफ इंडिया में छपे एक लेख पर लिखा चिट्ठा पढ़ा। लेख पढ़कर बहुत प्रसन्नता हुई। किन्तु मेरे हिसाब से तो ये सब चिट्ठाकार महानुभाव महानगरों में रहते हैं। यदि ये छोटी जगह के हैं तो मैं, जो 500 या शायद 600 की जनसंख्या व एक दुकान वाली जगह में रहती हूँ, जिसे मैं गाँव का दर्जा देने से भी हिचकिचाती हूँ, कहाँ की हूँ ? शायद बहुत ही छोटी जगह की और भी बहुत ही छोटी चिट्ठाकार !कद भी छोटा, बुद्धि भी छोटी, जगह भी छोटी । लगता है इस छोटेपन को पेटेंट करा लूँ ।
कल जब दिल्ली की सड़क पार करना असंभव लगा और फिर अपने घुटनों को कष्ट देकर सबवे (यह शब्द भी मुझ छोटी जगह की प्राणी को अपनी भतीजी से पूछना पड़ा ! हमारे जंगल में ऐसी वस्तुएँ नहीं पाई जाती।) का उपयोग करना पड़ा । जब मैं बेटियों से मिलने शहर आती हूँ तो वे उँगली पकड़ कर मुझे साथ ले जाती हैं व सड़क भी पार करवाती हैं। जैसे छोटे बच्चों को सड़क पर अन्दर की तरफ़ रखा जाता है वैसे ! सो मैं चिटठकाकारों की गिनती में आऊँ ना आऊँ छोटी जगह की तो हूँ ही । इस श्रेय को कोई मुझसे छीने मुझे कदापि सह्य नहीं है।
घुघूती बासूती
Thursday, July 12, 2007
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बड़ी जगह का बड़ा अखबार । दिल्ली का अखबार यानी राष्ट्रीय अखबार और दिल्ली का बुद्धिजीवी यानी राष्ट्रीय स्तर का बुद्धिजीवी। रविजी को पहचाना , यह खुशी की बात है । एक छोटे कस्बे के चिट्ठेकार के रूप में पहचाना तो छोटी जगह की चिट्ठेकारी की नुमाइन्दगी हो गयी।
ReplyDeleteआपका माध्यम(चिट्ठेकारी) किसी शहर विशेष का नहीं। आपका लेखन हमारे जैसे प्रशंसकों के लिए आपकी पहचान है - मुक्त , असीम।
आपकी 'छोटी जगह' में यह बढ़िया है कि कम-से-कम इंटरनेट तो चलता है। हमारे गाँव में तो बड़ी दिक़्क़त है।
ReplyDeleteहम आपके स्मर्र्थन मे है,लेकिन हम आपसे छोटी जगह मे रहते है.अब आप हमारा भी समर्थन करे..:)
ReplyDeleteउम्मीद है आपसे मुलाकात हो ,तोअ आपका छोटापन देख सकू :)
ReplyDeleteघुघूती बासूती> ...लगता है इस छोटेपन को पेटेंट करा लूँ ।
ReplyDeleteछोटेपन का एक अर्थ छुद्रता भी है. उसका पेटेण्ट तो महानगर वालों का है. आपको मिलने से रहा! :)
घुघूती बासूती जी,हम सब सिर्फ भारतीय हैं। छोटी जगह में रहने से कोई छोटा-बडा नही होता। सभी चिटठाकार अपनी-अपनी जगह श्रैष्ट हैं।
ReplyDeleteराजधानी में आप का हार्दिक स्वागत है!
ReplyDeleteअपने 'छोटेपन' को रेखांकित करने वाली आपकी इस पोस्ट के बावजूद हम सभी यह जानते हैं कि जब कभी हिन्दी चिट्ठाकारी पर कोई मुकम्मल चर्चा होगी, वह आपके जिक्र के बगैरपूरी नहीं होगी।
नेट कनेक्टिविटी का ज्यों-ज्यों विस्तार और सुधार होता जा रहा है, यह बात बेमानी होती जा रही है कि आप दुनिया के कौन-से छोर पर रह रहे/रही हैं।
आपसे मिलने का उत्सुकता से इंतजार है! कल तो चूक गए सी.पी. में !
आपने तो मिलने की इच्छा को और बढ़ा दिया।
ReplyDeleteमैं भी कनाडा के एक नन्हें से गाँव से आवाज लगा रहा हूँ. मेरे गाँव का नाम एजेक्स है. मेरे गाँव की जनसंख्या ८०,००० है, जिसमें तरह तरह के रंगो के नर, नारी और बच्चे बड़े प्यार से रहते हैं. गाँव टोरंटो नामक शहर से ५० किमी पूर्व में बसा है. मेरे गाँव में पक्की सड़कें, बिजली, पानी, टेलिफोन, स्वास्थ केन्द्र, इन्टरनेट आदि की समूचित व्यवस्था है. ग्राम प्रधान काम करते हैं. पैसा नहीं खाते. कृप्या मुझे भी सम्मान दिया जाये वरना मैं आदोलन की राह पर चलने के लिये मजबूर हो जाऊँगा और उसकी जिम्मेदारी किस पर जायेगी यह बताना अभी आवश्यक नहीं है. तभी जो पकड़ में आयेगा, उसे जिम्मेदार ठहरा देंगे.
ReplyDeleteछोटी सी टिप्पणी:
ReplyDeleteअजी, आज-कल और भविष्य में तो नैनो-तकनीक (अति सूक्ष्म का विज्ञान) का ज़माना है, तो छोटी-छोटी चीज़ों की महत्ता तो अब समझ में आयेगी वैज्ञानिकों और समाज को भी। फिर आप और अन्य छोटी चीज़ें ही यकायक बड़ी महत्वपूर्ण हो जायेंगी।
अब तो बड़ी बन जाइये। :)
ReplyDeleteअब तो बड़ी बन जाइये। :)
ReplyDeleteहम भी भारत के कोने से, एक छोटे से कस्बे से हैं। शुक्र है कि इंटरनेट है।
ReplyDeleteबहुत रोचकता आत्मचिंतन से भरी रचना ..
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