बिटिया
जबसे दूर गई हो बिटिया
खाली खाली सी है दुनिया
ना हँसी कहकहे कहीं गूँजते
ना पहले से कोई झगड़े होते
ना बहस ना तकरार कहीं है
सारे खेल बंद पड़े बक्से में
सारी भावनाएँ भी बंद पड़ी हैं
किससे खेलूँ किसे गले लगाऊँ ।
घर आँगन सब वीरान पड़ा है
तुम्हारे कमरे में सामान पड़ा है
तुम्हारे जूते कपड़े सब बाँट चुकी हूँ
फिर भी यादों को पूरे घर में पाती हूँ
कभी किसी पुस्तक के अन्दर
कभी किसी अलमारी के अन्दर
कोई तुम्हारे हाथ का बना कार्ड मिला है
कभी रिबन तो कभी हेयर बैंड मिले हैं ।
कल मैंने तुम्हारे खिलौनों का बक्सा खोला
हर खिलौना बुला दो मेरी दीदी ये बोला
देख तुम्हारी ये गुड़ियाँ सयानी
भर आया मेरी आँखों में पानी
भींच कलेजे से उन्हें लगाया
तुम्हारी याद ने बहुत सताया
कितने सारे खेल पड़े हैं
लैगो व बोर्ड गेम पड़े हैं ।
इक इक खेल के साथ यादें जुड़ी हैं
तुम संग झगड़े व ढेरों वातें जुड़ी हैं
वह रूठना, रोना और मनाना
वह लाड़ से फिर गले लगाना
वह घंटों ढेरों बाते करना
सारी रात तुम संग जगना
वह हँसना और हँसाना
पल में रोना पल में गाना ।
कटहल, आम, का अचार बनाया
लेकिन कोई भी ना खाने आया
अब कोई आइसक्रीम न बनती
ना त्यौहारों में मिल एँपण बनती
ना घर में है अब ये चीनी ही खपती
ना तुम्हारे मित्रों की महफिल सजती
ना दीवाली ना होली ढंग से मनती
तुम बिन छुट्टी छुट्टी सी न लगती ।
हर उत्सव है फीका लगता
मन मेरा कहीं न लगता
गर्मी बीती, आमों का है मौसम बीता
तुम बिन न कोई मैंगो शेक है पीता
तुम बिन जीवन है नहीं सुहाता
स्कूल के किस्से न कोई सुनाता
अब घर आ जाओ बेटी प्यारी
तुमसे मिलने की हो तैयारी ।
अब तुम बिन बिटिया
खाली रहता है हर दिन मेरा
देखो तुम बिन कितना
सूना लगता है यह घर मेरा
तुम व्यस्त हो जाने ये है माँ तुम्हारी
बस तुम खुश रहो ये है इच्छा हमारी
इतनी खुशियाँ हों कि ना आए याद हमारी
जहाँ रहो पूरी हों जाएँ तुम्हारी इच्छाएँ सारी ।
घुघूती बासूती
Saturday, July 07, 2007
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बहुत प्यारी.. माँ की सरल प्रीति को देखा हमने अपने जटिल जीवन के बीच आप की कविता में..
ReplyDeleteso sweet of thy memories ! the strings attached to you,pulls me to make me feel ..your absence even so sweet and merry ; lost in your tiny dolls...what more than thy smile; O lovely daughter of mine..You happy and I again lost handling your tiny toys .
ReplyDeleteAbhi
आह्ह्ह!!! बस और कुछ न कहेंगे!! सुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteअच्छा, कटहल का अचार हम बहुत पसंद करते हैं मगर उस ममले में अब अनाथ हैं. सालों बीतें, माँ के जाने के बाद. कोई कनाडा आने वाला मिले तो एक बड़ी शीशी जरुर भेजियेगा, हमेशा आभारी रहूँगा. :)
ReplyDeleteधुघूति जी,बेटी के जाने का दुख और उसकी यादें सजों कर रखना ये सब एक माँ के साथ होता ही है...बहुत सुन्दर अच्छे भाव है...
ReplyDeleteहाँ हमे भी खिलाईये कटहल का अचार एक बार के लिये हमे ही बेटी मान लिजिये भई...:)
सुनीता(शानू)
आपकी कविता से मुझे तो मेरी माँ याद आ गई हैं वो भी मेरे सारे खिलौनो को वैसे ही सजा कर रखती है जैसा मै 15साल पहले छोड़ कर आई थी...
ReplyDeleteदिल भर आया।
ReplyDeleteबडी , आजाद लेकिन घर से दूर बिटिया की कल्पना भी सुकून देती है | जीवन्त वर्णन के लिये साधुवाद|
ReplyDeleteशानदार, "टची"!!
ReplyDeleteशुक्रिया!!
एक-एक शब्द माँ की सरल भावना का बोध करा रही है… बीतते समय के हर पल को बहुत ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है… इस स्नेह-वर्षा को मैं नमन करता हूँ।
ReplyDeletei have started fatherly feelings, though still i m single...ur writings are very live, i always feel ur every words. probably i will hv the same feeling when i grow old. cute poem.
ReplyDeleteoh.. aaj sanjeet key blog me aapki ye panktiyaan padhiin.....muun bhar aaya..saath hi apna maykaa..apni ma..apna..aangan..sab kuch aankhon key aagey tair gaya.....bahut pyyari abhivayaktii hai....shukriya
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