Wednesday, June 06, 2007

हमारा कार पुराण

कार बेकार से सौ गुना, पैट्रोल खूब खाय,
जो चढ़ बैठे इस पर, मोटापा चढ़ जाए ।
आज तो लगता है, वह जो होता है ना अमेरिकी सकूलों में, क्या कहते हैं उसे अंग्रेजी में , हाँ शो एन्ड टेल, वह हमारे नारद जगत में चल रहा है । कोई कार ला रहा है कोई जूते तो कोई मेरे जैसा जिसे कार चलानी आती नहीं और जूते जिसके पाँव काट लेते हैं, अपनी गाथा ही लेकर आ जाता है ।
ऐसा है कि हमें बचपन से खुद को चलाने के सिवाय कुछ चलाना नहीं आता । बहुत छोटे थे तो तीन पहियों वाली , हाँ वही ट्राइसिकल चला लेते थे । उसके बाद हमने कुछ नहीं सीखा , न साइकल, ना स्कूटर, ना मोटर साइकल, ना कार, न बस । वैसे एक बार नैनीताल की झील में हमने चप्पू चलाकर नाव चलाई थी ।
वैसे मेरे पास भी बहुत कारें हैं, बहुत रंगों व साइज की, अलग अलग ब्राँड की और एक ठो कैमरा भी है । हम तो कैमरा ढूँढ ढाँढ कर, उसमें नए सैल भी डालकर फोटो लेने को तैयार थे पर सारी कारें नदारद । अब हम घँटो से ढूँढ रहे हैं पर कहीं नहीं मिल रहीं हैं । मन बड़ा उदास हो रहा है । इतनी सारी कारें जो खो गईं हैं । अब कोई रोज रोज तो कार नहीं खरीदता है । अरे पैसा कोई पेड़ पर तो लगता नहीं, ऊपर से हमने जीवन में एक धेला (यह क्या होता है किसी को पता है क्या ?) भी नहीं कभी कमाया है । अब पति से फिर से हमारे लिए कार खरीदने की माँग तो नहीं कर सकते । सो हम हैं कि ढूँढे जा रहे हैं ।
गैरेज में जाकर देख आए, एक भी नहीं है वहाँ । पुलिस में रिपोर्ट भी नहीं करा सकते क्योंकि एक तो हमें पुलिस से डर लगता है, दूसरे एक भी कार रजिस्टर नहीं करवाई थी, न ही कोई टैक्स वैक्स भरा था । तो अब लगता है यूँ ही कारों की चोरी को सहना पड़ेगा । सबसे बड़ी बात यह कि हमें केवल ये कारें ही चलाना आता था । सैकड़ों का नुकसान अलग । हाँ, भई सैकड़ों का ।
दरसल ये सब कारें हमारी बच्चियों की थीं । उनके बचपन में खरीदी थीं । उनके साथ खेलते समय हम भी खूब चलाते थे । अब मन बहुत उदास है । चलो यह पोस्ट खतम करके कुछ और बक्सों में ढूँढते हैं, शायद मिल जाएँ । मुझे याद है एक चॉकलेट के खाली डिब्बे में सब की सब रखी थीं ।
घुघूती बासूती

15 comments:

  1. इसमे तो कोई दो राय हो ही नही सकती है कि आप बहुत अच्छा लिखती है पर आजकल आप कुछ नाराज सी क्यों लग रही है।

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  2. बहुत सही लिखा है आपने..आजकल चिट्ठे में नई-नई कारें ही नजर आ रही है...

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  3. Anonymous4:42 pm

    हा हा, हमारे जुते पहन लिजिये, नहीं काटते :)

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  4. Anonymous4:54 pm

    zyada kar rakhna anyay hai. ek hamko bhee de deejiye. brahmanon ko dan karna chahiye. man khush rahega.

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  5. Anonymous5:25 pm

    आप नाव की छाप दो सब वही से लाते है जूते से कार तक

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  6. कभी कभी तो लगता है कार वालोँ से हम बे-कार भले.
    न पुरानी खोने का गम, न नई खरीदने की चिंता .

    कई प्र कार की बे- कारी का भी तो कार ण होना चाहिये.

    तो आइये खाली समय मेँ करेँ कार सेवा.

    अरविन्द चतुर्वेदी ,भारतीयम

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  7. प्रिय वस्तु का खोना बहुत अखरता है, और अगर वह कार हो तो....
    मैं संवेदना व्यक्त करता हूँ. :)
    आपकी कारें कहीं दुबकि पड़ी मिलेगी.

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  8. मैं ममता जी के बात से सहमत हू ।

    -राजेश रोशन

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  9. घुघूति जी, आपकी कारों के खो जाने की वेदना का शब्द चित्र देखकर आँखें नम हो आईं. ऐसे दुख की विकट घड़ी में हम संवेदना लिये आपके साथ हैं. ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वो सब टॉफी के डिब्बे में ही हों, और आपको मिल जायें. पास कहीं होते तो आपके सामने दो बूँद आँसू बहा कर मन हल्का कर लेते. :)

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  10. देखिये अन्दर के कमरे वाली अल्मारी के ऊपर वाले खाने में मिल जायेगी शायद..वहां एक हमारी बकरी भी होगी...वही चीड़ के पेड़ वाली बकरी ...साइकिल तो कभी चलायी ही नहीं और कार ..उतने तो अभी पैसे ही नहीं हुए... मिले तो बताना....

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  11. भगवान् करे आपकी कारें मिल् जायें।

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  12. गुम क्या हुआ कुछ कार
    हो गए सब बे-कार।
    चिंता चढ़ी, उदासी बढ़ी,
    बिटिया के बचपन को समेटे रखने की कोशिश!!

    बढ़िया लिखा है आपने।

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  13. आपकी उमर में यही सब करता है आदमी.. चॉक्‍लेट के डिब्‍ब्‍े में चॉकलेट की बजाय कबाड़ सजाना कोई बात हुई भला?.. कुछ का कुछ समझकर वह डिब्‍बा मैं लिए आया हूं और अब आपको मिलने से रही!.. अपनी तलाश बंद कीजिए और अब थोड़ा आराम करिये.. मगर चॉकलेट गए कहां?..

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  14. आपको मिलती कहा से हम जो उठा लाये थे उसी मे से एक की फ़ोटो छापी थी और अब हमारे सपूत को पसंद आ गई है तो लौटाने का सवाल नही है
    प्रमोद जी खाने का माल बाटने की सोचते तो मिलती ना...?

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  15. Anonymous11:33 am

    कविराज , आपके जूते आपको नहीँ काटते इसका मतलब यह नहीँ कि घुघूति जी को भी ना काटेँ |
    कारेँ तो गुम हुईँ ,'पता नाम लिख कर,कहीँ यूँ ही रख कर , भूले कोई जैसे' |

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