हाँ भाई जब सब जगह आरक्षण हो रहा है तो ब्लॉगिंग में क्यों नहीं ? यह भी कोई बात हुई कि एक ही ब्लॉगर एक ही दिन में तीन चार पोस्ट लिख दे और कोई बेचारा तीन चार दिन बाद भी पोस्ट लिखे तो इन दनादन लिखने वालों के चलते आधे दिन में ही पन्ने से बाहर हो जाए । यह तो बहुत अन्याय है । सबको बराबर अधिकार मिलने चाहिये । कम लिखने वालों को तो विशेष अधिकार मिलने चाहिये । उसपर भी टिप्पणी लिखने वालों को,( समीर भाई की तो बाँछे खिल गईं ) तो दो तीन दिन तक अपनी पोस्ट यहीं मुख्यपृष्ठ पर अटकाए रखने की अनुमति मिलनी चाहिये ।
अब हम जैसे लोग तो मस्तिष्क को खपा पका कर एक कविता लिखते हैं और फिर जब तक अगली नहीं लिख लेते चुप बैठ जाते हैं और अच्छे बच्चों की तरह दूसरों की रचनाओं पर टिप्पणी करते रहते हैं । पर कुछ मित्र चार चार पोस्ट एक दिन में डाल देते हैं । भाई इतनी सामग्री लाते कहाँ से हैं । हमें भी यह राज बताया जाए । हम उनकी कोचिंग क्लासेज में आने के लिए तैयार हैं । कुछ मित्र तो बस चार पंक्तियाँ लिखकर एक नयी पोस्ट रच देते हैं । चार पोस्ट सब चार पंक्ति की ! अब ये सोलह पंक्तियाँ एक ही पोस्ट में भी डाली जा सकती हैं ।
यह सब देखकर हम तो आरक्षण की माँग कर रहे हैं । १५ प्रतिशत आरक्षण महिलाओं के लिए , १५ प्रतिशत ५० साल से ऊपर वालों के लिए, १५ प्रतिशत कविता लिखने वालों के लिए, १५ प्रतिशत पक्षियों के नाम वालों के लिए , १५ प्रतिशत विवाहितों के लिए , १५ प्रतिशत दो बच्चों वालों के लिए , अरे अभी तो और भी माँगे बाँकी थीं पर अब तो केवल १० प्रतिशत बचा है सो ये बाँकी लोगों के लिए ! वे भी क्या याद रखेंगे किस दरियादिल से पाला पड़ा था । तो भइया अपन तो छः श्रेणियों में आरक्षित हैं सो हम एक दिन में छः पोस्ट डाल सकते हैं । अब हम छः पोस्ट तो लिख नहीं पाएँगे तो छः टिप्पणियों के बदले किसी भी ब्लॉगर को अपनी बारी देने को तैयार हैं । आप भी जल्दी से कतार में खड़े हो जाइये । केवल पाँच पोस्ट का कोटा बचा है ।
मेरी वॉइस मेल तो बंद ही नहीं हो रही । तीन पोस्ट तो गईं । अब केवल आखिरी दो बची हैं, तो भाई लोगो , लगाओ बोली !
घुघूती बासूती
Wednesday, June 06, 2007
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
बाँछे खिली खिलाई ही लिये लाईन में लग गये. :)
ReplyDeleteहम भी कुछ श्रेणियों में अच्छी पात्रता रख रहे हैं. आभार आपका कि आपने हमें आरक्षित करवाने के लिये आवाज बुलंद की.
अच्छा किया आपने बता दिया और हमने पूरा हिसाब लगा लिया
ReplyDelete१. क्योंकि हम कवि हैं-१५ प्रतिशत
२. क्योंकि हम पचास से आगे बढ़ चुके हैं--१५ प्रतिशत
३. क्योंकि हम बच्चों वाले हैं--१५ प्रतिशत.
४. क्योंकि हम विवाहित हैं -१५ प्रतिशत.
वैसे तो हमें क्रियेटिव एकाउंटिंग आती है ( ये समीरजी ने नहीं सिखाई हालांकि सीपीए हैं ) और हम आगे भी जा सकते हैं परन्तु अभी साठ प्रतिशत पर ही संतोष कर लेते हैं
और हां क्योंकि हमें लिखना आता है, इसलिये एक दिन में एक से ज्यादा नही< लिख पाते
बूहूहू………।
ReplyDeleteहमारे जैसे कुंवारे लोगो का क्या होगा फ़िर्। लाईन में जगह ही नहीं अपन जैसों के लिए।
मस्त रचना।
बिना दिमाग और दिल जलाये, मुफ़्तिया घर बैठे लड्डू खाने का सपना देखनेवाले मैं ऐसे किसी भी आरक्षण का विरोध करता हूं..
ReplyDeleteये अच्छा प्रस्ताव है.इस पर विचार होना चहिये..पर महिलाओं को आरक्षण देने के पक्ष में मैं नहीं .. और समीर भाई आप कैसे लाइन में लग गये..लाइन में लगने का कॉपीराइट तो हमारा है :-)
ReplyDeleteबासंतीजी पिछड़े वर्ग को भूल गयीं कैसे।
ReplyDeleteमैं ब्लागिंग का पिछड़ा जगत हूं।
सारे खलीफा ब्लागिंग में जम चुके थे, तब मैं बहूत बहूत बहूत बहूत बहूत पीछे आया। इस पिछड़े वर्ग को पचास प्रतिशत का हक तो बनता है जी।
आलोक पुराणिक
वाह जी वाह फिर तो समीरजी और राकेश जी मिलकर पुरे नारद बाबा को टेकऑवर कर लेंगे.. ऐसे मल्टी नेशनल कम्पनीयों से हम छुटको को कौन बचाएगा? :)
ReplyDeleteएक आध सीट लड़ने भीड़ने वालो के लिए भी आरक्षित होनी चाहिए.
ReplyDeleteसाथ ही आरक्षण का लाभ हमे न मिला तो हम आरक्षण का विरोध करेंगे. :)
काहे भाइ संजय जी १४ को जाम कराने के चक्कर मे हो अभी राजेस्थान का पंगा निपटा नही और आप हमे उकिसयाय रहे हो,हमे तो बस हफ़ते मे एक पूरा दिन चाहिये उसदिन किसी का कुछ नही छपेगा,देदो तो ठीक है नही तो हमारी अविनाश जी से बात हुय़ है हम दोनो ही मिलकर अपने आप सारे हिट आरक्षण के बिना आरक्षित करलेगे.
ReplyDelete(दोनो मिलकर एक दूसरे को गरियाने लगेगे तब आपको कौन पढेगा,सोचो...?)
यदि 50% के करीब सीट विभिन्न श्रेणी के उन सब लोगों के लिये हटा दिया जाय जो लिखते हैं तो 50% उन लोगों के लिये आरक्षित होना चाहिये जो लिखते नहीं हैं. उनको चिट्ठालोक कैसे नजरअन्दाज कर सकता हैं. यह तो सरासर अन्याय होगा.
ReplyDeleteबिना हिंसक आन्दोलन के सरकार नही सुनती। इसलिए कुछ ऐसा करिए कि सरकार नींद से जागे।
ReplyDeleteआप अच्छा लिखती हैं....मुख्य पृष्ट पर ना हो तो भी लोग आपको पढ़ते हैं....आपको कैसा आरक्षण??
ReplyDeleteआरक्षण उनके लिये जो नहीं लिखते....जिन्होने अभी अक्षरमाला सीखी है....उन्हे प्रोत्साहन देना हमारा कर्तव्य है....
आखिर आरक्षण से हमें यही तो हासिल करना है....हर जगह से उत्तम लोग हटा कर....बेकार के लोग बिठाने हैं....हमें गुणों पर नहीं सिर्फ पिछड़ेपन पर जाना है......आपका नम्बर तो दूर दूर तक नहीं है....।
आरक्षण तो हमे भी चाहिऐ नही तो सर्वर डाउन कर देंगे । उसके बाद चाहे ये इन्टरनेट के लिए शर्म कि बात हो या कुछ और ... i want reservation. :)
ReplyDeleteअच्छा लगा आपका ये अंदाज !:)
ReplyDeleteअगर कोई आरक्षण सूची बनाइयेगा, तो मुझे ना भूलिएगा.
ReplyDeleteहम भी हैं लाइन में...
चिट्ठे पढ़ने में भी आरक्षण होना चाहिए। इस आरक्षण सुविधा का जो लाभ न उठाए, आपका चिट्ठा न पढ़े, टिप्पणी न दे, उससे जुर्माना वसूला जाना चाहिए।
ReplyDeleteलीजिए हमने आपको अपने पंसदीदा लेखकों की सूची में आरक्षण दे दिया। हम तो आपके बराबर झंडा थामे खड़े है। महिला है साथ तो देना ही पड़ेगा।
ReplyDeleteमै आपके साथ हूँ इस आरक्षण आन्दोलन में...
ReplyDeleteसुनीता(शानू)
बात तो पते की है :) (हम भी हिसाब लगा ही लें कि ब्लॉगिंग के क्षेत्र में हमारी गुज़्ज़रों वाली हैसियत है या मीणाओं वाली :))
ReplyDelete*** राजीव रंजन प्रसाद
घुघुतिजी,
ReplyDeleteआप जितना भी लिखती हैं उसमे सार होता है. आरक्षण की जरूरत तो एक दिन में चार रचनायें डालने वालों को है... वैसे ब्लागिगं मे जितनी तेजी से लोग घुसते चले आते हैं उसी तेजी से चुपचाप भी बैठ जाते हैं ... हिट जो नही मिलते और अगर हिट मिलते है तो टिप्पणीयां नदारद रहती हैं
पढ़ कर ख़ुशी हुई और इस बात की भी ख़ुशी है कि आपने आरक्षण के लिए गाँधी जी का अहिंसा वादी रास्ता अपनाया है।
ReplyDelete:) मजेदार!
ReplyDeleteSorry, I do not have Hindi typing tool, but for the first time in blogging, I agree with Mr. Pramod Singh :
ReplyDeleteबिना दिमाग और दिल जलाये, मुफ़्तिया घर बैठे लड्डू खाने का सपना देखनेवाले मैं ऐसे किसी भी आरक्षण का विरोध करता हूं..
घुघूती जी,कविता के साथ-साथ,आप अच्छा व्यंग्य भी लिखती हॆ,य़ह तो मुझे अभी पता चला.साधुवाद.
ReplyDeleteमहत्व इस चीज का नहीं कि कॊन कितने दिन में कितनी पोस्ट लिखता हॆ ? महत्व इस चीज का हॆ कि वह अपनी पोस्ट में लिखता क्य़ा हॆ? मॆं समझता हूं,अच्छे लेखन के लिए किसी भी तरह के आरक्छःन की आवश्यकता ही नहीं हॆ.
बहुत खूब !
ReplyDeleteवाह! महिला आरक्षण मे मै भी आ ही जाती हूँ, पर मै तो महिला नही हूँ, छोटी सी प्यारी सी बच्ची हूँ, इसलिये जिन-जिनको आरक्षण मिल जाये वो एक एक सीट मुझे दे दे, क्यूँकि बच्चो का तो अधिकार होता :D
ReplyDeleteजिस तरह हमने धर्म के शंकराचार्य, पुरोहित, धर्मशास्त्री, धर्माधिकारी इनके लिये हजारो सालो से १००% आरक्षण रखा है वैसे हि हम ब्लॉगिंग मे भी रखेंगे.
ReplyDeleteजैसे देश के ५,७६,००० बडे मंदिरो मे जमा होनेवाला १२,८०० मेट्रिक टन सोना, हजारो एकङ जायदाद, चंदन, चांदी, जवाहारात, कपडे याने की अंदाजन ५० लाख हजार करोड ( पी. चिदंबरम २८ /०२/ २००५ Budget ) जीसमे १००% आरक्षण है उसी तरह का आरक्षण ब्लॉगिंग मे भी रखेंगे.
वाह घुघूती जी ये आर्क्षण वा्ली बात आपने खूब कही, आप के गणित के हिसाब से हमारा और आलोक जी के तर्क के हिसाब से हमारा भी नंबर लाइन में आगे होगा
ReplyDelete