Monday, May 07, 2018

एक सपने की हत्या

कुछ मैंने की, कुछ तूने की
कुछ मिलकर हम दोनों ने की
इक सपने की हमने हत्या की ।

समझौतों का ये जीवन जीया
मिलकर गरल कुछ हमने पीया
जो करना था वह हमने न किया ।

थोड़ी तूने, थोड़ी मैंने ये दूरी बनाई
मिलकर हमने थी जो सेज सजाई
उसके बीचों बीच ये दीवार बनाई ।

कुछ तू ना समझा कुछ मैं न समझी
बातों बातों में कब जिन्दगी ही उलझी
मिल हमें जो सुलझानी थी ना सुलझी ।

अपनी अलग अलग राहें चुन लीं
मन की हमने ना बातें सुन लीं
अंधेरी हमने अपनी राहें कर लीं ।

कुछ तू आता कुछ मैं आती पास तेरे
मन से जो सुनता मन के बोल मेरे
मैं जीती तेरे लिये तू जीता लिये मेरे ।

पर ऐसा कभी कुछ भी हो ना सका
थोड़ा मैं थी थकी थोड़ा तू था थका
जीवन हमें कितना कुछ दे न सका ।

ध्येय हमारा हरदम इक ही था
संग जीना और संग मरना था
फिर सपने को क्यों यूँ मरना था ।

अब आ मिल कुछ संताप करें
सपने के मरने का विलाप करें
हम दोनों मिल पश्चात्ताप करें ।

घुघूती बासूती

20 comments:

  1. बहुत खूब, घुघूती बासूती । एक तुक मिलाप का भी बैठता

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  2. बहुत अच्छी लगी।

    कुछ मरे सपनों से ही नये अंकुरित हो जाते हैं।

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  3. चलो इसको पढकर आपकी इतनी लंबी छुट्टी तो मान्य हो गई..पर अब जल्दी जल्दी लिखती रहियेगा...:)

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  4. बहुत खूब!!!

    अच्छा लगा इसे पढ़कर!!

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  5. अच्‍छी पंक्तियां हैं.

    आपकी कविता पढ़ने के बाद हमने भी आपका अवकाश स्‍वीकृत कर दिया.

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  6. Anonymous6:05 pm

    सुधार की मंज़िल बरास्ता संताप ही है . प्रेरक कविता .

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  7. बहुत बढ़िया. वापसी पर पुनः स्वागत.

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  8. अपनी अलग अलग राहें चुन लीं
    मन की हमने ना बातें सुन लीं
    अंधेरी हमने अपनी राहें कर लीं ।

    बहुत खूब....बहुत अच्छा लगा इसको पढ़ना ..

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  9. बहुत सुन्दर....
    ध्येय हमारा हरदम इक ही था
    संग जीना और संग मरना था
    फिर सपने को क्यों यूँ मरना था ।........शानदार

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  10. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (08-05-2017) को "घर दिलों में बनाओ" " (चर्चा अंक-2964) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी, बहुत धन्यवाद.

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  11. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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    1. धन्यवाद हर्षवर्धन.

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  12. हत्या भी ऐसी कि कोई एफ आई आर किसी थाने में ना हो पाये।।

    सुन्दर।

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  13. ये सपना मरेगा तो ही
    हकीकत की धरा पर कुछ उपजेगा...
    पश्चाताप व वीरानी के भाव से भरी
    सुंदर रचना

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  14. संगम के लिये मिलन आवश्यक है।

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  15. कितना खोया कितना पाया, उसका क्या हिसाब करें
    दर्पण पर जो धूल जमा है, उसको ही अब साफ करें

    भूल चूक और लेना देना, कर्ज उधारी माफ करें
    नश्वर सृष्टि नष्ट हुई तो, नूतन जग निर्माण करें

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  16. सपने मरते हैं पर रूप बदल कर दूसरे सपने में ढ़ल जाते हैं...

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    1. हाँ, संसार में बदलाव ही तो सबसे बड़ा सत्य है.

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