Thursday, May 05, 2016

'मजे में हूँ।'

उत्तर में कितना सच हो कितनी औपचारिकता?

कोई कहे, 'नमस्ते। कैसी हो?' तो क्या उत्तर दिया जाए?

मजे में /आनन्द है/ बढ़िया/ सब ठीक है/ आपकी कृपा है? क्या तब भी, जब सर फटा जा रहा हो, हाल की बीमारी से दिखना भी कम हो गया हो, कान तो लगभग बहरे हो गए हों, मस्तिष्क की सोचने, समझने की शक्ति खत्म हो गई हो, कुछ याद न रहता हो, भूरे सलवार कुरते के साथ जामुनी दुपट्टा लेकर बाहर चली जाती होऊँ, बच्चे बीमार चल रहे हों, पति का मधुमेह बढ़ गया हो, कामवाली छुट्टी पर चली गई हो, ढंग से सोए हुए जमाना बीत गया हो, घर के खर्चे में आधा खर्चा दवाई और डॉक्टर की फीस का हो, कमी थी तो घर पर मेहमान आने वाले हों?
या फिर सच बता दिया जाए? सुनने वाला अफ़सोस करेगा कि क्यों पूछा था।

मुझे याद है लगभग पच्चीस साल पहले एक तीन साल की बच्ची होती थी जिससे कैसी हो पूछने पर वह सच बता देती थी। कहती थी, 'मेले पैल में फोला हो गया है। मुझे खाँछी हो गई है। मेली नोज़ी लीक कल लही है। मुझे जोल का बुखाल आ गया है।'

उसने 'हैलो, हाओ आर यू?' के उत्तर में 'फ़ाइन, थैंक यू' कहने की परिपक्वता, समझ व सांसारिकता नहीं सीखी थी। वह तो 'बच्चे मन के सच्चे' का जीताजागता उदाहरण थी।

सो अब कई बार कोई पूछता है कि कैसी हो तो मेरा मन करता है उस तीन साल की बच्ची की तरह ही उत्तर दे दूँ, किन्तु सामने वाले का खयाल कर औपचारिकतावश प्रायः झूठ बोल देती हूँ, कहती हूँ, 'मजे में हूँ।'

घुघूती बासूती

13 comments:

  1. अंगरेज़ी में एक कहावत कहीं पढी थी कि Don't tell anyone about your constipation... How're you is a wish, not a question!
    इसलिये जो सवाल आपने उठाया है उसका जवाब तो इसी में छिपा है. जैसे किसी से मिलते ही हम मुस्कुराते हैं, तो अगला भी जवाब में मुस्कुरा देता है. अब वो ये कहने लगे कि मेरे पैर में फोड़ा है और ये मुस्कुरा रहे हैं! अभी बीमारी में छुट्टी लेकर घर पर था तो सुबह अपनी बालकनी से बाहर देख रहा था. एक आदमी सुबह की सैर को जा रहा था... उसने मुझे देखा और मुस्कुरा कर वेव किया, मैं भी जवाब में मुस्कुरा दिया.
    अलबत्ता मेरे चाहने वाले कोई भी मुझसे ये सवाल नहीं पूछते कि कैसे हो... क्योंकि मेरा जवाब होता है - ज़िन्दा हूँ! अब उन लोगों ने सवाल बदल लिया है. वे पूछते हैं - अच्छे हो न?
    और हमारे गुजरात में तो सवाल के साथ ही जवाब भी दे देते हैं - केम छो, मजा मां!!

    ReplyDelete
  2. अच्छी हूँ" के पीछे का सच बोलकर होगा भी क्या
    औपचारिक प्रश्न, औपचारिक जवाब

    ReplyDelete
  3. कहते हैं कि हंस कर जीओ, तो 'मजे में, फइन थैक्यू' आदि सब उसी का हिस्सा हैं। शायद व्यक्त करते दुख का अहसास भूल जाते हैं।

    ReplyDelete
  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (07-05-2016) को "शनिवार की चर्चा" (चर्चा अंक-2335) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  5. काश मन से सभी बच्चे रह जाते ... बड़े ही न होते ...

    ReplyDelete
  6. आज के हिन्दुस्तान अखबार में आप का यह लेख देख कर बहुत अच्छा लगा...बहुत अच्छे।

    ReplyDelete
    Replies
    1. लिखना तो लगभग बंद ही हो चुका है. अब पहले जैसा लिखा नहीं जाता.

      Delete
  7. http://drparveenchopra.blogspot.in/2016/05/blog-post_7.html

    ReplyDelete
  8. सवाल इक वही है, जवाब अपना अपना
    उत्तर में सच्चाई की मात्रा, सवाल में ईमानदारी की मिकदार के डाइरेक्टली प्रपोर्शनल होती है. अपना ध्यान रखिये.

    ReplyDelete
  9. अब तो बच्चे भी कहाँ सच बता पाते हैं, माता पिता के सिखाए हुए तोतों की तरह 'फाइन,थैंक्यू' ही बोलते हैं...ब्लॉग जगत में बस कदम ही रखा है और इस महासागर में गोते लगाते आप तक पहुँच गई हूँ... सस्नेह, सादर अभिवादन स्वीकारें ।

    ReplyDelete
  10. अब तो बच्चे भी कहाँ सच बता पाते हैं, माता पिता के सिखाए हुए तोतों की तरह 'फाइन,थैंक्यू' ही बोलते हैं...ब्लॉग जगत में बस कदम ही रखा है और इस महासागर में गोते लगाते आप तक पहुँच गई हूँ... सस्नेह, सादर अभिवादन स्वीकारें ।

    ReplyDelete
  11. मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आभार मीना शर्मा.@Meena Sharma
    आशा है आती रहेंगी.

    ReplyDelete