अपनी नतिनी तन्वी को हर शाम सोसायटी के पार्क खेलने ले जाती हूँ। बहुत अच्छा और बड़ा पार्क है। छोटे बच्चों के साथ प्रायः माता पिता, दादा दादी, नाना नानी या आया आती हैं। अभी तक मेरे सामने कोई गम्भीर दुर्घटना तो नहीं घटी किन्तु कई बार बच्चों को झूले से चोट लगते देखती हूँ। प्रायः ये दुर्घटनाएँ रोकी जा सकती हैं। दो बातें अभिभावकों का ध्यान अपने बच्चे की सुरक्षा से भटका देती हैं, एक तो है मोबाइल दूसरा अन्य अभिभावकों से बातें करने में खो जाना।
कल ही एक छः सात साल की बच्ची झूले पर बैठकर लगातार अपनी माँ को पुकारे जा रही थी। प्रायः बच्चों को झूला तो मिल जाता है किन्तु झुलाने वाले गायब हो जाते हैं। बच्चे झूला छोड़ना भी नहीं चाहते सो जाकर बुला भी नहीं पाते। उन्हें भय रहता है कि एक बार अपनी बारी निकल जाने दी तो न जाने कब बारी मिलेगी। खैर, बच्ची लगातार बुलाती रही किन्तु माँ नहीं आई। अचानक बच्ची नीचे गिरी और उठने लगी। उठने पर लकड़ी के झूले की पट्टी निश्चित उसके सर पर लगती। मैं पास में ही तन्वी को झुला रही थी। स्टे डाउन, डोन्ट गेट अप चिल्लाती उसके झूले को पकड़ने दौड़ी। भाग्य से इसके पहले कि झूला उसके सर से टकराता मेरे हाथ में था।
इस बार माँ पल भर में ही पहुँच गई थी और मुझे आभार कह बच्ची को डाँटती हुई यह कहते हुए घसीटते हुए ले गई, हुण तेन्नू कदे एथ्थे नहीं लावाँगी। तेन्नू झूटे लेणा वी नहीं आन्दा।
उसका इतना जल्दी पहुँच जाना सिद्ध करता है कि वह आस पास ही थी किन्तु बच्ची की पुकार को जानबूझ कर अनसुना कर रही थी।
परसों एक और माँ बच्ची को पींग लेना सिखा रही थी और न सीख पाने पर फटकार रही थी कि मुझे विश्वास नहीं होता कि तुम मेरी बेटी हो। माँ में सिखाने धैर्य नहीं था और बच्ची को रुआँसा कर वह चलती बनी।
कुछ दिन पहले एक वृद्ध एक पाँच सात महीने के बच्चे को गोद में लकर आए। उन्होंने दस बारह साल की अपनी पोती के हाथ में बच्चा दे उसे झूले पर बैठा दिया। बच्ची झूले को पकड़े या बच्चे को? सो उसकी एक बाँह झूले की चेन के दूसरी तरफ से निकाल बच्चा गोद में बैठा दिया। फिर एक तरफ से चेन पकड़ उन्होंने जो झुलाना शुरु किया लगा कि वे भूल गए हैं कि नन्हा सा बच्चा एक ही हाथ के सहारे बच्ची ने पकड़ रखा है। और एक ही तरफ से चेन को लगातार हिलाते रहने से न केवल झूला तेज जा रहा था बल्कि बहुत टेढ़ा जा रहा था। मुझे लग रहा था कि बच्चा अब गोद से छिटकेगा ही। भाग्य से बच्चे का पिता डैडी, डैडी, रोको, रोको, इतना तेज मत झुलाओ कहता हुआ आया और बच्चे को अपने साथ ले गया।
एक दिन लगभग दो वर्ष की बच्ची अकेली घिसलपट्टी की सीढ़ियाँ चढ़ रही थी। उसका पिता मोबाइल पर व्यस्त था। लड़खड़ाती हुई बच्ची के पिता से जब मैंने पूछा क्या यह अकेली सीढ़ी चढ़ सकती है तो उसने कहा, हाँ थोड़ा चढ़ जाती है किन्तु गिर सकती है। फिर उसका ध्यान बच्ची पर गया जो काफी ऊपर चढ़ डगमग हो रही थी। लपक कर उसने बच्ची को सम्भाला, किन्तु उसे नीचे उतार वापिस मोबाइल पर व्यस्त हो गया।
ऐसा भी नहीं है कि अधिक ध्यान रखने से बच्चों को चोट नहीं लगेगी किन्तु इतनी लापरवाही आश्चर्यचकित अवश्य करती है। यह बात भी समझ नहीं आती कि क्या हम अपने बच्चों को कुछ मिनट का अबाधित, बिना किसी अन्य से मोबाइल पर बतिआए समय नहीं दे सकते। बच्चों के साथ ऐसे अनमने और जबरन बिताए समय का क्या लाभ? शायद इसीलिए क्वालिटी समय की इतनी बात होती है। आखिर हमारे बच्चे से अधिक महत्वपूर्ण और वह भी उसके साथ खेलने के समय में, संसार में क्या हो सकता है?
घुघूती बासूती
कल ही एक छः सात साल की बच्ची झूले पर बैठकर लगातार अपनी माँ को पुकारे जा रही थी। प्रायः बच्चों को झूला तो मिल जाता है किन्तु झुलाने वाले गायब हो जाते हैं। बच्चे झूला छोड़ना भी नहीं चाहते सो जाकर बुला भी नहीं पाते। उन्हें भय रहता है कि एक बार अपनी बारी निकल जाने दी तो न जाने कब बारी मिलेगी। खैर, बच्ची लगातार बुलाती रही किन्तु माँ नहीं आई। अचानक बच्ची नीचे गिरी और उठने लगी। उठने पर लकड़ी के झूले की पट्टी निश्चित उसके सर पर लगती। मैं पास में ही तन्वी को झुला रही थी। स्टे डाउन, डोन्ट गेट अप चिल्लाती उसके झूले को पकड़ने दौड़ी। भाग्य से इसके पहले कि झूला उसके सर से टकराता मेरे हाथ में था।
इस बार माँ पल भर में ही पहुँच गई थी और मुझे आभार कह बच्ची को डाँटती हुई यह कहते हुए घसीटते हुए ले गई, हुण तेन्नू कदे एथ्थे नहीं लावाँगी। तेन्नू झूटे लेणा वी नहीं आन्दा।
उसका इतना जल्दी पहुँच जाना सिद्ध करता है कि वह आस पास ही थी किन्तु बच्ची की पुकार को जानबूझ कर अनसुना कर रही थी।
परसों एक और माँ बच्ची को पींग लेना सिखा रही थी और न सीख पाने पर फटकार रही थी कि मुझे विश्वास नहीं होता कि तुम मेरी बेटी हो। माँ में सिखाने धैर्य नहीं था और बच्ची को रुआँसा कर वह चलती बनी।
कुछ दिन पहले एक वृद्ध एक पाँच सात महीने के बच्चे को गोद में लकर आए। उन्होंने दस बारह साल की अपनी पोती के हाथ में बच्चा दे उसे झूले पर बैठा दिया। बच्ची झूले को पकड़े या बच्चे को? सो उसकी एक बाँह झूले की चेन के दूसरी तरफ से निकाल बच्चा गोद में बैठा दिया। फिर एक तरफ से चेन पकड़ उन्होंने जो झुलाना शुरु किया लगा कि वे भूल गए हैं कि नन्हा सा बच्चा एक ही हाथ के सहारे बच्ची ने पकड़ रखा है। और एक ही तरफ से चेन को लगातार हिलाते रहने से न केवल झूला तेज जा रहा था बल्कि बहुत टेढ़ा जा रहा था। मुझे लग रहा था कि बच्चा अब गोद से छिटकेगा ही। भाग्य से बच्चे का पिता डैडी, डैडी, रोको, रोको, इतना तेज मत झुलाओ कहता हुआ आया और बच्चे को अपने साथ ले गया।
एक दिन लगभग दो वर्ष की बच्ची अकेली घिसलपट्टी की सीढ़ियाँ चढ़ रही थी। उसका पिता मोबाइल पर व्यस्त था। लड़खड़ाती हुई बच्ची के पिता से जब मैंने पूछा क्या यह अकेली सीढ़ी चढ़ सकती है तो उसने कहा, हाँ थोड़ा चढ़ जाती है किन्तु गिर सकती है। फिर उसका ध्यान बच्ची पर गया जो काफी ऊपर चढ़ डगमग हो रही थी। लपक कर उसने बच्ची को सम्भाला, किन्तु उसे नीचे उतार वापिस मोबाइल पर व्यस्त हो गया।
ऐसा भी नहीं है कि अधिक ध्यान रखने से बच्चों को चोट नहीं लगेगी किन्तु इतनी लापरवाही आश्चर्यचकित अवश्य करती है। यह बात भी समझ नहीं आती कि क्या हम अपने बच्चों को कुछ मिनट का अबाधित, बिना किसी अन्य से मोबाइल पर बतिआए समय नहीं दे सकते। बच्चों के साथ ऐसे अनमने और जबरन बिताए समय का क्या लाभ? शायद इसीलिए क्वालिटी समय की इतनी बात होती है। आखिर हमारे बच्चे से अधिक महत्वपूर्ण और वह भी उसके साथ खेलने के समय में, संसार में क्या हो सकता है?
घुघूती बासूती
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ReplyDeleteबिलकुल सही कहा आपने क्वालिटी समय देने की आवश्कयता है। मोबाइल तो दुर्घटनाओ का साधन बनता जा रहा है।
ReplyDeleteआपने बेहद जरुरी बिंदु पर ध्यान खींचा है
ReplyDeleteबिलकुल सही बात कही आपने .
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा आपने
ReplyDeleteआज आप का यह लेख हिन्दुस्तान में देखा ..बहुत खुशी हुई..
ReplyDeleteओह! बताने के लिए आभार. समाचार पात्र वाले तो बताने का कष्ट भी नहीं करते. :)
Deleteघुघुती-बासुती ब्लॉग बहुत अच्छा है। इसमें पोस्ट करने वाले व्यक्ति का नाम नहीं दिखता। क्या यह दीपा पाठक हैं या कोई और। कृपया जानकारी दीजिये
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