'बाबा'। कितना प्यारा शब्द है। कान में मिश्री घोलने वाला शब्द। एक ऐसे व्यक्ति के लिए उपयोग होने वाला शब्द जिसपर हम अति विश्वास करते हैं। जो सदा रक्षा कवच बना रहता है। बहुत से लोग जैसे मराठी, बंगाली पिता को बाबा कहते हैं। मेरी जान पहचान के कुछ उत्तराखंडी बच्चे पिता को बब्बा कहते हैं। हिन्दी में भी दादा को बाबा कहा जाता है।
मेरी बेटियाँ भी अपने पिता को बाबा कहती हैं। उनके पति भी उन्हें बाबा कहते हैं। तन्वी भी अपने नाना को बाबा ही कहती है। तन्वी की नानी भी इन सबके बाबा के बारे में जब बात करती है तो बाबा ही कहती है। बाबा तो अब घुघूत का नाम ही हो गया है।
सो जब बाबा शब्द इन जेल जाने वाले धर्म के श्रद्धा के दुकानदारों/ ठेकेदारों के लिए उपयोग होता है तो बहुत कष्ट होता है। इतने प्यारे सम्बोधन को इन लोगों ने गाली ही बना दिया है। इनके अपराधों में एक यह अपराध भी शामिल किया जाना चाहिए़।
इनके लिए कोई नया नाम गढ़ना चाहिए। धर्म के, श्रद्धा के दुकानदार हैं तो धर्मदार या श्रद्धादार या ऐसा ही कुछ। साधु, सन्त, बाबा इनके लिए उपयोग न किए जाएँ तो ही बेहतर है। जो भी हो, बाबा सम्बोधन इन पाखंडियों से वापिस ले लिया जाना चाहिए।
घुघूती बासूती
मेरी बेटियाँ भी अपने पिता को बाबा कहती हैं। उनके पति भी उन्हें बाबा कहते हैं। तन्वी भी अपने नाना को बाबा ही कहती है। तन्वी की नानी भी इन सबके बाबा के बारे में जब बात करती है तो बाबा ही कहती है। बाबा तो अब घुघूत का नाम ही हो गया है।
सो जब बाबा शब्द इन जेल जाने वाले धर्म के श्रद्धा के दुकानदारों/ ठेकेदारों के लिए उपयोग होता है तो बहुत कष्ट होता है। इतने प्यारे सम्बोधन को इन लोगों ने गाली ही बना दिया है। इनके अपराधों में एक यह अपराध भी शामिल किया जाना चाहिए़।
इनके लिए कोई नया नाम गढ़ना चाहिए। धर्म के, श्रद्धा के दुकानदार हैं तो धर्मदार या श्रद्धादार या ऐसा ही कुछ। साधु, सन्त, बाबा इनके लिए उपयोग न किए जाएँ तो ही बेहतर है। जो भी हो, बाबा सम्बोधन इन पाखंडियों से वापिस ले लिया जाना चाहिए।
घुघूती बासूती
भारतीय दंड संहिता में शामिल कर लेना चाहिए।
ReplyDeleteसही कहा आपने। अब तो किसी सज्जन व्यक्ति को सन्त व्यक्ति कहना भी उसका अपमान करने जैसा लगने लगा है।कारण ये ढोंगी ठग ।
ReplyDeleteये दो चरम रूप हैं 'बाबा' शब्द के -एक प़ज़िटिव ,दूसरा घोर निगेटिव .आप भी कहाँ तुलना करने लगीं .कहाँ ,घुघूत जी और कहाँ वो ढोंगी -ऊपरी मुलम्मा तो उतर ही गया अब कहाँ रहा बाबा !
ReplyDelete( असली बाबा के बाबापन पर कोई आँच नहीं. )
बाबा शब्द इन ढोंगियों ने बेशक बदनाम कर दिया हो , पर पारिवारिक रिश्तों में प्रयुक्त होने वाले इस शब्द को शंका की निगाह से नहीं देखा जा सकता उसमें एक अपनी गरिमा है ,निकटता है इन ढोंगी लोगों के फेर में विवेकशील लोग तो आते नहीं पर अन्य लोगों को जरूर ये अपने फरेब में फंसा लेते हैं , समय रहते इन पर निगरानी रख कर इनके खिलाफ कार्यवाही की जानी चाहिए
ReplyDeleteये संबोधन भी हम लोगों द्वारा ही दिया हुआ है ... जब तक लोग नहीं जागते कुछ नहीं होने वाला ... ताज़ा ताज़ा बाबा के भी लाखों समर्थक थे ... क्या कहें ऐसे में ...
ReplyDeleteअरे बाबा रे!
ReplyDeleteबाबा तो बाबा ही हैं चाहे घर में हों या समाज में।ये जेल जाने वाले बाबा नहीं ढोंगी बाबा हैं ।कई ढोंगी बाबा जेल के बाहर भी हैं।
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