घुघूती बासूती
माम काँ छू
मालकोट्टी
के ल्यालो
दूध भात्ती
को खालो
तन्नी खाली, तन्नी खाली, तन्नी खाली !
तन्नी गा रही है।
तन्नी, जानती हो कि घुघूती बासूती कौन है?
वह अपनी धुन में अपने को ही बिस्तर पर झूला सा झुलाती गाती जाती है।
तन्नी, नानू घुघूती बासूती है।
उसकी धुन भंग हो जाती है। वह सतर्क हो जाती है।
नहीं, तुम नानू हो।
हाँ, तुम्हारी नानू हूँ। किन्तु मैं घुघूती बासूती हूँ।
नहीं। तुम पूरी नानू हो।
घुघूती बासूती हूँ।
नानू हो।
नहीं तन्नी, नानू घुघूती बासूती है।
पूरी नानू है, तन्नी की नानू।
घुघूती बासूती कौन है?
तन्नी घुघूती बासूती है।
अब नाराज भी हो रही है। आवाज में हठ सा भी छा रहा है।
नहीं, मैं घुघूती बासूती और नानू दोनो हूँ।
तुम घुघूती बासूती नहीं हो। तन्नी घुघूती बासूती है। तुम नानू हो।
अच्छा तुम घुघूती बासूती जूनियर हो।
नहीं, जूनियर नहीं, तन्नी घुघूती बासूती है, पूरी घुघूती बासूती। तुम नानू हो पूरी नानू।
अब तो बस रो ही देगी।
ठीक है, तुम घुघूती बासूती हो। मैं नानू हूँ।
लगता है कि कुछ ऐसा ही हठ रहा होगा पति के (बाल?) मन का जिसने ऐसे ही मेरा नाम छीन मुझे मिसेज...... बना दिया। क्या सच में पुरुष का मन बच्ची सा ही असुरक्षा से भरा होता है जो वह अपनी प्रिय व्यक्ति को अपना नाम दिए बिना उसके अपने होने पर विश्वास नहीं कर सकता। बार बार उसे अपने नाम से ही जानना, देखना, पहचानना चाहता है, तब भी शायद विश्वास नहीं कर पाता कि प्रिय उसकी अपनी है। चहुँ ओर, नित प्रमाण खोजता है। खोजता है, खोजता ही जाता है। क्यों?
घुघूती बासूती
पुनश्चः
आज के अपवादों की चर्चा नहीं करना चाहती। सब जानते हैं कि अब बहुत सी स्त्रियाँ नाम नहीं बदलती या अपने पूरे नाम के आगे पति का सरनेम लगा नाम को अधिक पूरा कर देती हैं।
घुघूती बासूती
माम काँ छू
मालकोट्टी
के ल्यालो
दूध भात्ती
को खालो
तन्नी खाली, तन्नी खाली, तन्नी खाली !
तन्नी गा रही है।
तन्नी, जानती हो कि घुघूती बासूती कौन है?
वह अपनी धुन में अपने को ही बिस्तर पर झूला सा झुलाती गाती जाती है।
तन्नी, नानू घुघूती बासूती है।
उसकी धुन भंग हो जाती है। वह सतर्क हो जाती है।
नहीं, तुम नानू हो।
हाँ, तुम्हारी नानू हूँ। किन्तु मैं घुघूती बासूती हूँ।
नहीं। तुम पूरी नानू हो।
घुघूती बासूती हूँ।
नानू हो।
नहीं तन्नी, नानू घुघूती बासूती है।
पूरी नानू है, तन्नी की नानू।
घुघूती बासूती कौन है?
तन्नी घुघूती बासूती है।
अब नाराज भी हो रही है। आवाज में हठ सा भी छा रहा है।
नहीं, मैं घुघूती बासूती और नानू दोनो हूँ।
तुम घुघूती बासूती नहीं हो। तन्नी घुघूती बासूती है। तुम नानू हो।
अच्छा तुम घुघूती बासूती जूनियर हो।
नहीं, जूनियर नहीं, तन्नी घुघूती बासूती है, पूरी घुघूती बासूती। तुम नानू हो पूरी नानू।
अब तो बस रो ही देगी।
ठीक है, तुम घुघूती बासूती हो। मैं नानू हूँ।
लगता है कि कुछ ऐसा ही हठ रहा होगा पति के (बाल?) मन का जिसने ऐसे ही मेरा नाम छीन मुझे मिसेज...... बना दिया। क्या सच में पुरुष का मन बच्ची सा ही असुरक्षा से भरा होता है जो वह अपनी प्रिय व्यक्ति को अपना नाम दिए बिना उसके अपने होने पर विश्वास नहीं कर सकता। बार बार उसे अपने नाम से ही जानना, देखना, पहचानना चाहता है, तब भी शायद विश्वास नहीं कर पाता कि प्रिय उसकी अपनी है। चहुँ ओर, नित प्रमाण खोजता है। खोजता है, खोजता ही जाता है। क्यों?
घुघूती बासूती
पुनश्चः
आज के अपवादों की चर्चा नहीं करना चाहती। सब जानते हैं कि अब बहुत सी स्त्रियाँ नाम नहीं बदलती या अपने पूरे नाम के आगे पति का सरनेम लगा नाम को अधिक पूरा कर देती हैं।
घुघूती बासूती
एक शेर लिखा था कभी...
ReplyDeleteतेरे नाम के आगे अपना नाम जोड़ा है
मैने हर चुभन सह कर इक गुलाब तोड़ा है।
लगता तो ऐसा ही है - सदा सशंकित !
ReplyDelete@ तुम घुघूती बासूती नहीं हो। तन्नी घुघूती बासूती है। तुम नानू हो।
ReplyDelete- प्यारी बच्ची, एक नया नाम भी लेने को तैयार है अपनी नानू की खातिर - बच्चे मन के सच्चे
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (15-12-2014) को "कोहरे की खुशबू में उसकी भी खुशबू" (चर्चा-1828) पर भी होगी।
ReplyDelete--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
नाम में ही जीवन व्यतीत हो जाता है।
ReplyDeleteसुंदर ।
ReplyDeleteनानी और पोती की मस्ती!
ReplyDeleteये पुरुष की असुरक्षा नहीं है उसे पित्रसत्तात्मक व्यवस्थाओ का दिया वरदान है।वो औरतो का नाम बदल देता है क्योंकि उसे अपने नाम के लिए रक्त की शुद्धता बनाये रखनी होती है
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