Sunday, November 02, 2014

ट्रिक ओर ट्रीट

परसों शाम अचानक घंटी बजी। देखा तो बच्चों का झुँड चेहरे पर थोड़ी सी कलाकारी कर हैलोवीन मनाता आया था। कई तरह की टॉफियाँ न जाने क्यों मेरे घर एक अलमारी में शायद उनकी प्रतीक्षा में ही पड़ी थीं। सो उन्हें बाँट दी। कुछ देर बाद बच्चों का एक और झुंड आया। वे भी टॉफियाँ ले चले गए।
मैं बचपन की गलियों में पहुँच गई। कभी हम बच्चे लोहड़ी के दिन यूँ ही घर घर लोड़ी माँगने पहुँचते थे। कुछ देर लोहड़ी के गीत गाते जैसे....
दे माँ लोहड़ी, जिए तेरी जोड़ी।
दे माँ दाणे, जीवें तेरे न्याणे।
सुंदर मुंदरिए हो..,
तेरा कौण बिचारा हो..
दुल्ला भट्टी वाला हो,
दुल्ले दी धी ब्याही हो,
सेर शक्कर पाई हो ...
फिर मध्य प्रदेश के मुरैना जिले की याद आती है जहाँ लड़के टेसू और लड़कियाँ झाँझी (? ) लेकर गाने गाते हुए घर घर जाते थे।
लड़के गाते थे..
मेरा तेसू यहीं खड़ा
खाने को माँगे दही वड़ा
दही वड़े में पन्नी
रख दो चवन्नी।
उस जमाने में तो चवन्नी की माँग भी उद्दंडता लगती थी। झाँझी वाली लड़कियाँ क्या गाती थीं समझ नहीं आता था। सब पैसा पाँच पैसा लेकर चले जाते थे।
समय बदला और ५० साल बाद आज बच्चे हैलोवीन मना रहे हैं। बात लगभग वही है।
घुघूती बासूती

7 comments:

  1. वाह, यादें कैसे बीते समय में वापस ले जाती हैं। त्योहारों का असली मज़ा बच्चों के लिए ही है। दुनिया भर में कहीं भी हों, उनका उल्लास देखते ही बनाता है। परसों रात यहाँ हैलोवीन पर बच्चों को कैंडी बांटते गुज़री। बचपन का खोया हुआ टेसू का गीत कुछ वर्ष पहले "ब्लू अंबरेला" फिल्म मे सुनने को मिल गया था, बहुत अच्छा लगा। बचपन के जम्मू का लोहड़ी का गीत एक पिछली भारत यात्रा में माँ से पूछकर लिख लिया था, यादें ताज़ा हुईं।

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  2. मन वही रहता है लेकिन क्रिया बदल जाती है।

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  3. यहाँ गणगौर के समय छोटी लड़कियां सर पर "घरवा " (मिटटी का छोटा सा घड़ा जिसमे छेद होता है भीतर जलते दीपक की रौशनी के लिए ) घर घर घूमती थी , "घुड़लयों घूमे छे जी , घूमे छे " . लोग उसमे सिक्के डालते थे।
    सात समंदर पार तक बच्चों का उल्लास एक जैसा ही होता है विभिन्न परम्पराओं के माध्यम से !

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    1. बस झांझी भी ऐसी ही होती थी.

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  4. मानव मन हर जगह एक सा होता है -कहीं चले जायें त्यौहारों ,और रीति-रिवाज़ों में समानता झलकती है . पर अब अपने यहाँ का जीवन बदल रहा है ,नगरों का विशेष रूप से - नये आयातित के लिए जगह बनती जा रही है ,अपनों से दूरियाँ होने लगी हैं . बचपन की बातें फिर से याद करा दींं आपने !

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  5. पर्व - त्योहारों पर बच्चों की ख़ुशी हमें भी उल्लासित कर जाती हैं.इन त्योहारों के रंग भले ही अलग-अलग अंचलों में अलग-अलग हों,सबके पीछे मूल भावना एक ही होती है.

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  6. हर समाज और देश अपने तरीके से हेलोवीन मना ही रहा है.. हम होली, दिवाली मनाते हैं और वो हेलोवीन.. काम एक ही है सबका.. आनंद! :)

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