Thursday, October 30, 2014

गुब्बारे

कल शाम जब तन्वी (मेरी पौने दो साल की नतिनी) को लेकर सोसायटी में घूमने निकली तो एक अन्य ब्लॉक में कोई ऊपर की दसवीं मंजिल या उससे भी ऊपर से गुब्बारे नीचे फेंक रहा था, तीन या अधिक गुब्बारों के गुच्छे। शायद ये किसी जन्मदिन पर सजे गुब्बारे थे। तन्वी बहुत आकर्षित हुई। उसका भी मन गुब्बारे लेने का हो रहा था। मैं उसे केवल देखने से ही खुश होने को कह रही थी। मैं उसे समझा पाई कि ये गुब्बारे उसके नहीं हैं अतः वे उन्हें ले नहीं सकती, उन्हें देख सकती है, उनका पीछा कर सकती है। जब उससे पूछा कि क्या ये गुब्बारे मम्मा/  पापा/ नानू/ बाबा ने खरीदे तो उसने कहा नहीं। और समझ गई कि वे उसके नहीं हैं। वहीं पर कुछ बच्चे और उनकी माताओं का समूह खड़ा था। बच्चे तो गुब्बारे लपक ही रहे थे।
एक स्त्री ने अपने बच्चे को बाँह भर गुब्बारे पकड़ाने के बाद उन पर पैर रख रखकर उन्हें फोड़ना शुरु किया। तन्वी उनको फूटता देख दुखी हो नहीं नहीं कहती रह गई। एक बार फिर तन्वी को समझाना पड़ा कि ये गुब्बारे तो उसके हैं ही नहीं तो उनके फूटने पर उसे दुखी नहीं होना चाहिए। वह कह रही थी कि नानू आँटी को रोको। फिर उसे बताया कि यदि ये गुब्बारे उसके होते तो नानू किसी भी आँटी को इन्हें फोड़ने नहीं देती।
फूटे गुब्बारों के अवशेषों ने सारी साफ़ सुथरी सड़क गंदी कर दी थी। तन्वी कचरे का एक तिनका भी देखती है तो उसे कूड़ेदान के हवाले करती है। इतना सारा कचरा देख भी वह परेशान हो गई। नानू, आँटी से कहो कि गुब्बारे डक में डालें। वहीं पास में डोनाल्ड डक वाला आकर्षक कूड़ेदान था।
एक बार फिर समझाना पड़ा कि मैंने तो उसके खाए केले का छिलका डक में डाल दिया है। एक दो फूटे गुब्बारे होते तो नानू उन्हें उठाकर डक में डाल देती ये तो बहुत सारे हैं और अब तो बहुत सारे बच्चे भी गुब्बारे फोड़ रहे हैं सो हम अभी उन्हें उठा नहीं सकते, बाद में उठाएँगे।
मैं उसकी ट्रायसायकल को पीछे से धक्का भी दे रही थी। शाम हो गई थी सो मच्छर समूह भी अपने काटने के कार्यक्रम में जोर शोर से लगे हुए थे। गति रोकने का अर्थ  उन्हें रक्तदान करना था। तन्वी तो अपने पूरे ढके शरीर व मच्छरों को भगाने वाले रिस्ट बैन्ड्स के कारण काफी सुरक्षित थी। सोच रही थी कि यदि मैं एक एक फूटा गुब्बारा उठाकर डक में डालना शुरू करूँ तो क्या इन लोगों को कुछ शर्म आएगी।
गुब्बारे फोड़े जाते रहे। और हम आगे निकल गए। दो तीन चक्कर लगाने तक तो यह कार्यक्रम जारी रहा। चौथे चक्कर तक गुब्बारे खत्म हो गए थे और सोसायटी का शाम को घूम घूम कर कचरा उठाने वाला सफाईकर्मी सारे फूटे गुब्बारे उठाकर सड़क साफ कर चुका था।
भारत में सफाई रखने का एक ही तरीका है कोई दिन रात हम कचरा फैलाने वालों के पीछे पीछे घूम घूमकर कचरा एकत्रित करता रहे। मोदी जी, सुन रहे हैं न आप! यहाँ आपके झाड़ू अभियान पर हँसने वाले अधिक हैं अपना फैलाया कचरा उठाने वाले बहुत कम और दूसरों का फैलाया कचरा उठाने वाले और भी कम।
वैसे हमारी सोसायटी में कुछ वृद्ध मोदी जी के सफाई अधियान से जुड़े हुए हैं और बेसमेन्ट तक की सफाई का ध्यान रखते हैं। किन्तु गन्दगी के पुजारियों के लिए वे कभी भी काफी नहीं हो सकते।
घुघूती बासूती

4 comments:

  1. सफाई बच्चों को घुट्टी में पिलाई जाती तो आज देश ऐसा नहीं होता … अच्छी शुरुआत की आपने !

    ReplyDelete
  2. बहुत ही प्रेरक। सफाई की बात हमें बच्‍चों के संस्‍कारों में डालनी होगी तभी हमारा देश कचरे से सुरक्षित रह सकेगा। आपकी पूरी सोसायटी को बधाई।

    ReplyDelete
  3. सटीक रचना

    ReplyDelete
  4. सफाई के जो संस्कार आपकी नातिन को मिले हैं,अनेक लोगों में ऐसे संस्कार हैं।लेकिन बहुतायत उन मोहतरमा जैसों की है जिन्होंने गुब्बारे फोड़ कर कचरा फैला दिया।ऐसे लोगों को समझाइश देने के साथ ही सख्ती करने की भी जरूरत है।

    ReplyDelete