ड्राइवर
पिछली बार जब मुम्बई आई तो ड्राइवर बीमार था। उसके बदले एक अन्य बदली (टेम्परेरी) ड्राइवर था। मुझे पति के दफ्तर के पास ही डॉक्टर के पास जाना था। सो उनके साथ ही चली गई। काम होने पर लौटते समय ड्राइवर के साथ अकेली वापिस दफ्तर के सामने पति की प्रतीक्षा की।
इस समय में ड्राइवर के साथ काफी बातें हुईं। शुरू यूँ हुईं...
उसने पूछा, मैडम आप लिखती हैं क्या?
क्यों, ऐसा क्यों पूछ रहे हो?
मुझे लगता है आप लिखती हैं।
क्या आप लिखते हो?
हाँ, मैं एक पिक्चर की स्क्रिप्ट लिख रहा हूँ।
वाह, इसके पहले भी लिखते रहे हो?
हाँ, मराठी अखबार में मेरी कहानियाँ, लेख छपे हैं।
मैं गाड़ी के लिए एक नया पुर्जा भी बना रहा हूँ।
वाह!
मुझे बहुत सारे शौक हैं। पहले जब मन्दिर में रसोइया था (एक बड़े नामी मन्दिर का नाम बताया) तब समय कम मिलता था। जब से यह बदली का ड्राइवर बना हूँ, बहुत समय मिलता है, सोचने का, लिखने का, प्लान बनाने का।
गाँव में, रायगढ़ में मेरी काफी जमीन है। सोचता हूँ वहाँ और्गेनिक खेती शुरू करूँ। मुर्गी पालन का एक कोर्स भी किया है, सो मुर्गी पालना भी चाहता हूँ। और भी बिजनेस के बहुत सारे प्लैन हैं मेरे। आधी जमीन बेचकर दोस्तों के साथ बिजनेस शुरू करना चाहता हूँ। गाँव के लिए बहुत कुछ करना चाहता हूँ।
अच्छा है। पर नौकरी करते हुए लिखते भी रह सकते हो। नया काम जो भी शुरू करो, सोच समझकर पहले एक ही शुरू करोगे तो सफल हो सकते हो।
मैडम मेरी स्क्रिप्ट पर काम तो चालू है। उसे पूरा करके ही नया कुछ करूँगा।
यहाँ कम्पनी के अन्य ड्राइवर बहुत कॉपरेट करते हैं। मैं लिख सकूँ इसका पूरा ध्यान रखते हैं।
स्क्रिप्ट क्या साथ रखते हो?
हाँ, यहीं गाड़ी में रखता हूँ। आप देखेंगी?
हाँ, दिखाओ।
उसने एक रजिस्टर दिया और कहा कि वह स्क्रिप्ट राइटर एसोसिएशन या ऐसी ही किसी एसोसिएशन का सदस्य है।
रजिस्टर में बहुत सुन्दर अक्षरों में साफ साफ लेखन से काफी सारे पन्ने भरे हुए थे। एक और रजिस्टर में रोमन में वही कहानी लिखी हुई थी।
..... साहब देवनागरी में स्क्रिप्ट नहीं पढ़ते। उन्हें अंग्रेजी में चाहिए होती है। वे बहुत अच्छे इन्सान हैं। सबकी बहुत मदद करते हैं। कह रहे थे कि यदि स्क्रिप्ट अच्छी बनी तो वे पिक्चर भी बना सकते हैं।
आप दोनों को उस दिन प्ले देखने .... थिएटर ले गया था ना। वहाँ मेरी एक मैडम भी जाती रहती हैं। मैं उनकी गाड़ी भी चलाता हूँ। वे ..... साहब से एक्टिंग सीखती हैं। बहुत कड़क हैं ... साहब। एक मिनट की देरी भी बर्दाश्त नहीं करते। वो मैडम भी मुझे स्क्रिप्ट के लिए सुझाव देती हैं। आपको तो देखते से ही मुझे पता चल गया कि आप भी लिखती हैं। मैडम लिखती हैं ना?
नहीं, बस कभी कभार ब्लॉग लिख देती हूँ।
मुझे याद आया National Centre of the Performing Arts में वह चौकीदारों को जानता था।
मैडम, मैं आपका ब्लॉग पढ़ूँगा। कविता भी जरूर लिखती होंगी आप। आजकल कम्प्यूटर खराब है। आप अपने ब्लॉग का नाम बताइए। मैं पढ़ूँगा।
पति के संसार में कोई मुझे घुघूती बासूती नाम से नहीं जानता। उनके ही क्या, मेरी जान पहचान का भी नहीं जानता। बस मेरे परिवार वाले और एक सहेली ही जानती है। या फिर मेरे आभासी मित्र।
..... कहाँ तक पढ़े हो?
एस एस सी में फेल हो गया था। फिर पढ़ाई छोड़ दी।
मैडम, मैं अकेला हूँ ना, इसलिए बहुत काम कर सकता हूँ।
क्यों, शादी नहीं की?
की थी। तलाक हो गया है।
बच्चे?
बच्चा ही तो नहीं चाहती थी वह! उसने बच्चा गिराया था, मुझे बताए बिना! इसलिए ही तो हमारा तलाक हो गया। बस छः महीने ही साथ रहे। दस साल लग गए तलाक होने में। दो साल पहले मिला तलाक। अब मेरा शादी के ऊपर से भरोसा ही उठ गया है। अब तो मुझे समाज के लिए ही काम करना है।
इतने में पति आ गए। वह वापिस ड्राइवर के रोल में आ गया।
कुछ दूर जाने पर पति ने पूछा..
.....किसी दर्जी को जानते हो जो पैन्ट्स आल्टर करता हो?
मेरा एक दोस्त है। वह और उसकी बीबी अपने घर पर यही काम करते हैं। आप मुझे दे दीजिए। करवाकर ले आऊँगा।
मैं सोचती रह गई। मेरे आँखों के डॉक्टर के पास जाने पर वह अपने एक बूढ़े रिश्तेदार के आँखों के इलाज की बात कर रहा था। पूछ रहा था कि क्या मेरा डॉक्टर उसका इलाज करेगा? वैसे वह उन्हें चेन्नई के शंकर नेत्रालय ले जाने वाला है। उनकी बीमारी का नाम भी उसने बताया। वह किताबों की दुकानों के बारे में जानता है। जिस भी काम की बात करो उसका एक दोस्त वह काम करता होता है। वह उससे करवा देगा कहता है। वह फिल्म डायरेक्टर .... साहब की बात करता है। वह मुर्गी पालन की बात करता है, और्गेनिक फार्मिंग की बात करता है, ड्रामा निर्देशक की बात करता है, एक्टिंग सीखती अपनी मैडम की बात करता है। दर्जी भी उसका दोस्त है। उसके गाँव का मुखिया भी।
कैसा हरफनमौला है वह! मैं सदा सोचती थी कि ड्राइवर का काम एक ऐसा काम है कि व्यक्ति के पास आठ घंटे होते हैं काटने को। चाहे तो वह पढ़ाई कर सकता है। बुनाई कर सकता है, कढ़ाई कर सकता है या कोई भी काम जिसको वह बिना दूर जाए कर सके। बस कॉलेज के जमाने में अपनी एक सहेली का ड्राइवर ही देखा था जो लगातार उपन्यास पढ़ता था। और यह व्यक्ति तो उससे सौ कदम आगे निकला।
क्या सच में कभी उसकी स्क्रिप्ट पर फिल्म बनेगी? या उसका मुर्गी पालन केन्द्र, और्गेनिक फार्म या बिजनेस या फिर उसका अपना राजनैतिक दल बनेगा? हाँ, वह एक नया दल भी बनाना चाहता है।
पति को जब यह सब बताया तो वे दंग थे। अरे, इतने दिन में मुझसे तो कभी बात नहीं हुई और तुम्हें इतना कुछ अपना इतिहास और योजनाएँ भी बता दीं?
अगले दिन मैं हैदराबाद चली गई और अबकी बार जब लौट कर आई तो पति का पुराना ड्राइवर लौट आया था। ( हाँ उसने तो हमारी बिल्डिंग के ही ... माले पर रहने वाले एक राजनैतिक व्यक्ति का विजिटिंग कार्ड भी दिखाया था जिसने उस सुबह ही उससे पूछा था कि उसके लिए काम करेगा क्या वह?)
घुघूती बासूती
स्त्रियों की सहजता , व्यावहारिकता, आत्मीयता के आगे लोग दिल खोल देते हैं , यह पुरुषों के लिए मुश्किल है . कई बार हैरान करती हूँ पतिदेव को उनके कलिग के परिवार के बारे में बताकर !
ReplyDeleteजीवन बहुत कुछ ले लेता है, थोड़ा अनुभव देने के लिए ... आपके नए फैन को शुभकामनायें। काश उसके अनुभव उसके काम आयें और आपके सभी पाठकों को उसकी फिल्म देखने को मिले।
ReplyDeleteसच में हरफ़नमौला है यह ड्राइवर तो। आजकल तो ये गुण अच्छे खासे पदों पर मौजूद लोगों में देखने को नहीं मिलते..
ReplyDeleteउसके लिए शुभकामनायें.
ReplyDeleteपरसों सुबह जेनेवा में सड़क धो रहे एक व्यक्ति से बात हुई, बोला कि लँडन से फिलोसफ़ी में मास्टर डिग्री थी, फ़िर बहुत साल तक मानसिक रोग से पीड़ित रहा, अब केवल वही काम करता है जिसमें कुछ सोचना नहीं पड़े. आप की पोस्ट पढ़ी तो उसका चेहरा सामने आ गया. :)
ReplyDeleteMultytalanted !!!
ReplyDeleteकुछ अजूबे होते हैं, जिनके पास सारे हुनर होने के बावजूद वो सफलता नहीं मिलती जिसके वो हकदार होते हैं .............
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (24-05-2014) को "सुरभित सुमन खिलाते हैं" (चर्चा मंच-1622) पर भी होगी!
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
आभार शास्त्री जी.
Deleteघुघूतीबासूती
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन डबल ट्रबल - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आभारी हूँ.
Deleteघुघूतीबासूती
आभार yashoda agrawal जी.
ReplyDeleteघुघूतीबासूती
तभी तो कहा है कि एक आदमी मे कई आदमी बसते हैं!
ReplyDeleteसमय का सदुपयोग करना हर किसी को नहीं आता .. कितने लोगों में कोई एक ही ऐसा निकल पाता है ... उसकी आशाएं पूरी हों ...
ReplyDeleteबहुप्रतिभावान का प्रायः उपयोग नही हो पाता है।
ReplyDeleteबहुत प्रेरक
ReplyDeleteहर आदमी में कोई न कोई प्रतिभा होती है उसे उचित मंच मिलने की जरुरत होती है गुदड़ी में भी लाल छिपे होतें है
ReplyDeleteआपने उसे सही सीख दी कि एक काम पूरा करे तब दूसरा शुरू करे। पर व्यक्ति प्रतिभावान है। उसकी प्रतिभाा बिखर रही है। रोचक और प्रेरक दोनो।
ReplyDeleteड्राइवर होना भले ही उसकी मजबूरी रही हो पर...ड्राइवर होने ने उसे पर्यवेक्षणीयता के अदभुत मौके दिए होंगे / उसे अनुभव समृद्ध किया होगा !
ReplyDeleteकितनी आकांक्षाएं, अभिलाषाएं होती हैं व्यक्ति की, एक ही जीवन में कितना कुछ पा लेना चाहता है। वैसे उस ड्राइवर को मेरी शुभकामनाएं, वह जो भी करना चाहता है उसमें सफल रहे।
ReplyDeleteकॉलेज के दिनों की एक फ़िल्म याद आ रही है (नाम याद नहीं) जिसमें एक लड़का अपने बिसरे प्रेम की तलाश में मुम्बई में टैक्सी चलाने लगता है यह सोचकर कि कभी तो वो उसकी टैक्सी में बैठेगी. आज इस एस.एस.सी. पास वाहन चालक ने अपना मुरीद बना लिया. फ़िल्म बावर्ची का बावर्ची रघु.
ReplyDeleteउसकी पैनी नज़र शायद इसीलिये थी कि वह वो कर रहा था, जो उसका दिल चाहता था. जलन हो रही है उसकी किस्मत से!! वैसे मुझे भी अपने ब्लॉग का नाम बताने में कई बार संकोच होता है!! :)
क्या व्यक्तित्व.. दुआ है की उसकी स्क्रिप्ट पर फिल्म बने. और उसको कुछ पैसे मिल सकें ताकि वह आर्गेनिक खेती शुरू कर सके. लेकिन फिर उसके सारे दोस्त मुंबई में ही छूट जायेंगे...या अपने गाँव में उसके कई सारे और दोस्त भी होंगे !
ReplyDeleteउस व्यक्ति की इच्छाओं की पूर्ति हो बस यहीं कामना है
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