Thursday, May 16, 2013

रिश्तों के अवशेष


कभी कभी
या शायद बहुधा
रिश्ते जलाए प्रेम पत्रों के अवशेष से रह जाते हैं
काले सलेटी इन अवशेषों के शब्द
अब भी खुदे रह जाते हैं जस के तस
कुछ वैसे ही जैसे स्मृति में बसी रहती हैं
वे पुरानी बातें, मीठी, खारी, खट्टी, कड़वी बातें
और अवशेषों के इन शब्दों में से पढ़ पाते हैं
हम वे ही शब्द जो वे हमें पढ़वाना,
समझाना, याद करवाना चाहें
केवल वे अंश जो सतह पर हों,
हम उन्हें उलट पलट कर
आगे पीछे का नहीं पढ़ सकते
चाहकर भी उन्हें चूम,
दुलार, सहेज नहीं सकते
ऐसा प्रयास भर उन्हें भुरभुरा कर
कुछ चुटकी भर राख बना देगा।
जिसमें उतने सीमित शब्द,
रिश्तों के वे महकते क्षण
न पढ़, न जी सकेंगे हम
सो लालची से हम
इन जले अवशेषों को ही
हृदय के खाली खाली
आले पर सजा लेते हैं
साँस रोक सी लेते हैं
ताकि ये उड़ न जाएँ
और उनके साथ उड़ न जाए
मरे रिश्तों की अवधारणा।

घुघूती बासूती

19 comments:

  1. phantom limb relations i call them!

    ReplyDelete
  2. बहुत खूबसूरत.....
    ये अवशेष राख होने से ठीक पहले की स्थिति लगते हैं......

    सादर
    अनु

    ReplyDelete
  3. जले रिश्तों की राख आँखों में चुभती है..दुखती है।

    ReplyDelete
  4. रिश्तों का यह रूप, यह हाल बहुत पीड़ादायी होता है ...

    ReplyDelete
  5. रिश्तों के रिश्ते बदलने लगे है राख भी बहुत है अहसास के लिए |

    ReplyDelete
  6. ऐसे सभी रिश्ते चलते हैं उम्र भर साथ ... अवशेष कागज़ के जलाए जा सकते हैं ... मन से काट के नहीं फैंके जा सकते ...

    ReplyDelete
  7. गहरी बात है.. रिश्तों में बदलाव सहज ही महसूस किये जा सकते हैं.. पर अब सभी को आले में नहीं सजाया जा सकता है.. एक दो हों तो ठीक परंतु ज्यादा में तकलीफ़ है..

    ReplyDelete
  8. गहरी बात है.. रिश्तों में बदलाव सहज ही महसूस किये जा सकते हैं.. पर अब सभी को आले में नहीं सजाया जा सकता है.. एक दो हों तो ठीक परंतु ज्यादा में तकलीफ़ है..

    ReplyDelete
  9. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  10. जो बच जाए वही बहुत है.

    ReplyDelete
  11. बहुत ही उलझा दिया है आपने। पता नहीं क्या है रिश्ता।

    ReplyDelete
  12. सच में रिश्तों की अवधारणा बदलने की सोचकर भी एक डर सा लगता है.

    रामराम.

    ReplyDelete
  13. रिश्ते जलाए प्रेम पत्रों के अवशेष से रह जाते हैं

    राख के ढेर में शोला है, न चिंगारी है

    ReplyDelete
  14. इन जले अवशेषों को ही
    हृदय के खाली खाली
    आले पर सजा लेते हैं
    साँस रोक सी लेते हैं
    ताकि ये उड़ न जाएँ
    और उनके साथ उड़ न जाए
    मरे रिश्तों की अवधारणा।

    बहुत गहरी बात कह दी ..

    ReplyDelete
  15. Rishte ....kachche dhago ka bandhan..........tike to jeevan bhar tike .... n tike to pal bhr n tike.....

    ReplyDelete
  16. इन अवशेषो को तो गंगा जी में भी प्रवाहित नहीं कर सकते।

    ReplyDelete
    Replies
    1. कुछ दिन तो अश्रु गंगा भी बहती है किन्तु ये नहीं बहते.
      घुघूतीबासूती

      Delete
  17. जले रिश्‍ते ... खाक़ होकर भी खाक़ न‍हीं होते ये

    ReplyDelete