पति को अकेले छोड़ बिटिया के पास जाना है
उससे पहले
कामवाली को उनके योग्य खाना बनाना सिखाना है
लो सोडिअम, लो फैट, लो ग्लाइसिमिक इन्डैक्स,
लो कार्बोहाइड्रेट क्या है यह बताना, समझाना है।
वह चश्मा पहनना पसन्द नहीं करती
और लाना भूल जाती है
सो उसे कहा
कि कुछ साबुत दालों में
कंकड़ बहुत होते हैं
चश्मा ना लाओ तो उन्हें न बनाना।
वह बोली,
आदमियों के लिए ये कंकड़
बहुत नुकसान दायक होते हैं।
'आदमियों के लिए ही क्यों?'
पथरी बन जाती है
'केवल आदमियों के?'
न, बनती तो दोनों में है किन्तु
औरतों को तकलीफ हो जाए तो
हम कहाँ परवाह करती हैं,
आदमियों को तो बचाकर, सम्भालकर
ही रखना होता है ना!
क्या बोलती ?
कि मुझे भी सम्भाल व सम्भल कर रहना है
पथरी बने ना बने
दाँत दोनों के टूट सकते हैं।
और हाँ, कहने वाली वह बाई है
जिसके पति ने
अपनी कमाई का एक पैसा भी
विवाह से अब नाना बनने तक
दारू के अतिरिक्त
किसी को अर्पित नहीं किया।
घुघूती बासूती
waah
ReplyDeleteआदमी कहीं कामधेनू गाय तो कहीं मरकहा बैल बन जाता है।
ReplyDeletewahhhh rachna pasand aai
ReplyDeleteबहुत बढ़िया घघूती जी...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया !!!
अनु
आपने पढ़ा तो होगा -
ReplyDelete'बृद्ध रोगबस जड़ धनहीना। अधं बधिर क्रोधी अति दीना।
ऐसेहु पति कर किएँ अपमाना। नारि पाव जमपुर दुख नाना।।'
- कामवाली बेचारी मरने के बाद मिलनेवाले दुखों से बचना चाहती है- आदमी तो और शेर हो जायेगा न !
बहुत बढ़िया .....
ReplyDelete:)
ReplyDeleteSundar !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (09-12-2012) के चर्चा मंच-१०८८ (आइए कुछ बातें करें!) पर भी होगी!
सूचनार्थ...!
पता नहीं क्यों पर प्यार कुछ नहीं देखता है।
ReplyDeleteछोटे से वाकये में समाज के खोखलेपन को उजागर कर दिया!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteकोमलस्त्री मन कहाँ सोचती है
की पति ने क्या दिया ,,बस उसकी फिक्र करती है...
कोमल अभिव्यक्ति..
औरतों को तकलीफ हो जाए तो
ReplyDeleteहम कहाँ परवाह करती हैं,
आदमियों को तो बचाकर, सम्भालकर
ही रखना होता है ना....समाज का यही है सच
समाज की यही विडम्बना है. सच बयानी के लिये भी साहस चाहिये.
ReplyDeletehaan...aisa hi kuch..jo kabhi jhakjhorta hai...
ReplyDeleteऔर हाँ, कहने वाली वह बाई है
ReplyDeleteजिसके पति ने
अपनी कमाई का एक पैसा भी
विवाह से अब नाना बनने तक
दारू के अतिरिक्त
किसी को अर्पित नहीं किया।....
सच लिखा आपने समाज की यही विडम्बना है