Tuesday, December 04, 2012

मैं काम नहीं करती


मैं काम नहीं करती

कॉलेज छोड़ने के बाद से
विवाह होने के बाद से
सुनती आई हूँ यह प्रश्न
काम करती हो? Do you work?

उत्तर देती आई हूँ, 'नहीं'।
हर बार उत्तर देने के बाद
सोचती रही हूँ
उस भूत के बारे में

जिसने घर को संवारा, बुहारा
बाईस बार सामान सजाया
उठाया, पैक किया और
खाली दीवारों बीच घर बसाया।

बच्चों को जन्मा,
खिलाया, पिलाया,
सुलाया, पढ़ाया
भला मानव बनाया।

कभी कुक, महरी, नर्स
न्यूट्रिशनिस्ट, वैद्य बन
माँगने से पहले हर प्राणी
की आवश्यकता पूरी की।

भूत का तो पता नहीं,

जहाँ तक मेरा प्रश्न है
मैं काम नहीं करती
न जी डी पी से कुछ लेना देना
मैं गृहणी, टैक्स नहीं भरती।

घुघूती बासूती

45 comments:

  1. वाकई काम वही करता है जो टैक्स भरता है.हम कहाँ काम करते हैं.ठीक कहा आपने कोई भूत ही होगा.
    कमाल की पंक्तियाँ हैं.

    ReplyDelete
  2. यदि आप हाँ में जवाब देतीं, तो ये पूछनेवाले आपस में खुसरफुसर करते - बच्चों की चिंता नहीं, कॅरियर की पड़ी है, स्वार्थी कहीं की...
    भूत ही है, लोगों के दिमाग पर सवार - न चिट हमारी, न पट :)
    बहुत अच्‍छी रचना है.

    ReplyDelete
  3. -किसी के कहने / न कहने / मानने / न मानने से क्या होता है ?

    -काम करना न करना - यह सिर्फ मनुष्य स्वयं ही जानता / जानती है कि वह कितना काम करता / करती है ।

    -जो जानते हैं कि काम कितना ज्यादा होता है घर में - उन्हें यह कविता पढ़े बिना भी मालूम ही है अपने काम का महत्त्व ।

    -और जो दुसरे के किये काम को डीवैल्युएट करते हैं, उन्हें इस पोस्ट को देख कर कोई असर होने से रहा । वे कहेंगे - देखो काम करती नहीं और दिखावा इतना । :( :(

    -मुझे लगता है कि जिनके मन में खुद ठीक तरीके से काम "न" करने का चोर होता है - वे ही ऐसा कह कर (कि तुम काम नहीं करती) दुसरे को नीचा दिखा कर खुद ऊपर उठना चाहते हैं ।

    ReplyDelete
  4. जहाँ तक मेरा प्रश्न है
    मैं काम नहीं करती
    न जी डी पी से कुछ लेना देना
    मैं गृहणी, टैक्स नहीं भरती।





    सदियों से
    अपना आकलन करवाती रही
    मगर कभी ना खुद
    अपना आकलन किया
    बस खुद को
    सिर्फ़ एक गृहिणी का ही दर्जा दिया
    जब किसी ने प्रश्न किया
    क्या करती हो तुम ?
    तब जाकर ये अहसास हुआ
    सिर्फ़ अर्थ ही कार्यक्षमता का मापदंड हुआ
    चाहे आर्थिक रूप से
    मैं सक्षम नहीं
    लेकिन घर का सबसे कमाऊ सदस्य मैं ही हूँ
    रिश्तों की दौलत से बढकर और कौन सी कमाई होती है
    मैं नहीं जानती
    और ना जानना चाहती हूँ
    देखो ………कितनी अमीर हूँ मैं
    क्या तुम हो ?

    ReplyDelete
    Replies
    1. वाह वंदना....बहुत बढ़िया..
      अनु

      Delete
  5. वाह...वाह....
    बहुत बढ़िया....

    इस पोस्ट का प्रिंट आउट अपने घर की दीवारों पर चिपकाने वाली हूँ मैं....
    शायद भूत का पता बता दें हमारे घर वाले :-)

    नमन आपकी लेखनी को..
    अनु

    ReplyDelete
    Replies
    1. This comment has been removed by the author.

      Delete
  6. Sach! Bada ajeeb-sa sawal hota hai ye....maine swayam kaheen naukaree to bahut kam kee...haan! Artharjan zaroor kiya....mai ab kah detee hun," I'm self employed"...jisko jo samajhna ho samajhe!

    ReplyDelete
  7. घर में जो काम होते हैं वे बाहर की दुनिया देख नहीं पाती ...
    बहुत बढ़िया ..

    ReplyDelete
  8. 'भारत' में पत्नी अर्धांगिनी कहलाई गयी। पति को भवसागर पार करने में नाव समान सहायक, उसकी बामांगी!
    अर्थात, यदि वास्तव में पत्नी वृक्ष समान है, तो पति उस बेल समान जो उसके चारों और लिपट धीरे धीरे ऊपर उठ आकाश (स्वर्ग) पहुँच सकता है!
    किन्तु, माया के (भौतिक इन्द्रियों के प्राकृतिक दोषों के) कारण भौतिक संसार को ही देख पाने की क्षमता की वजह से आम अज्ञानी आदमी पति को वृक्ष समान देखता है और पत्नी को बेल! और भटक जाता है!
    जय विष्णु/ देवी माता की!

    ReplyDelete
  9. @ न जी डी पी से कुछ लेना देना
    मैं गृहणी, टैक्स नहीं भरती।
    - अच्छा, तो आप काम नहीं करतीं? टैक्स तो बड़े-बड़े नहीं भरते (या भरते समय डंडी मार लेते हैं)

    ReplyDelete
  10. जो आप करती हैं
    वो सब मै भी करती हूँ
    अपने घर मे
    उसके साथ साथ
    टैक्स भी भर्ती हूँ
    अगर आप से कोई प्रश्न करता हैं
    डू यु वर्क ??
    तो आप को लगता हैं ये प्रश्न
    बेमानी हैं
    और आत्म मंथन आप को करना पड़ता हैं

    काश आप भी काम करती
    और फिर समझती
    कितना सुख होता हैं
    अपनी आय अर्जित करने का
    और उसके साथ साथ
    सरकार को टैक्स देने का

    ताकि सरकारी योजनाये नयी बन सके
    उनके लिये जो काम नहीं करते

    ReplyDelete
    Replies
    1. टैक्स मैं भी भरती हूँ - और ऊपर जो वंदना जी ने लिखा "रिश्तों से बढ़ कर कोई कमाई नहीं" वह रिश्तों की कमाई भी, मैंने भी की है । अपने बच्चे को स्कूल मैंने भी भेजा है, और अपनी काबिलियत के अनुसार उसे मैंने भी ममता और संस्कार दिए हैं ।

      किसी भी एक रूप में न ब्रह्म को जा सकता है, न "स्त्री" के कर्म को । मुझे तो यह "स्त्री" कर्म शब्द ही अच्छा नहीं लगता - काम का वर्गीकरण होना ही क्यों चाहिए ? स्त्री माँ भी है, बेटी भी, वह रिश्तो की कमाई भी करती है, और दूसरों क रिश्तो और प्रेम की अनमोल भेंट भी देती है । वह जीती भी है - जीवन देती भी है । क्यों हम अपने आप को ऊपर की कुर्सी पर बिठाने के प्रयास में दुसरे के कर्म का मोल लगा कर उसे अपने कर्म से कमतर साबित करने का प्रयास करते हैं ?

      इन्जिनीरिंग में पि.एच.डी मैं भी कर रही हूँ । पर मुझे बिलकुल नहीं लगता की जो मेरी देवरानी "टैक्स नहीं भरती" उसके कर्म का "मोल" मेरे कर्म से कम / या अधिक है । हर एक के कर्म की इज्ज़त और पहचान होगी तब ही असल "मानव कर्म" की बात होगी "स्त्री कर्म" की नहीं ।

      शायद कभी हम सीखें कि काम करना और पैसा कमाना दो अलग अलग बातें हैं ।

      Delete
    2. Anonymous5:57 pm

      आप अपने आप में एक अद्भुत हैं सब जानते हैं , स्त्री धर्म से जुड़ी हैं ये कविता सो मेरे कमेन्ट के नीचे आप का जवाब समझ से परे हैं .

      Delete
    3. This comment has been removed by the author.

      Delete
    4. @ benami ji
      -@@ आप अपने आप में एक अद्भुत हैं सब जानते हैं , स्त्री धर्म से जुड़ी हैं ये कविता सो मेरे कमेन्ट के नीचे आप का जवाब समझ से परे हैं .- क्या यह मुझसे कहा गया था ?

      1. मैं अद्भुत नहीं हूँ, मैं जानती हूँ । यह आप मुझ पर व्यंग्य कर रही हैं- यह भी जानती हूँ । मैं सिर्फ किसी भी दूसरी महिला की तरह अपना बेस्ट करने का प्रयास कर रही हूँ । हाँ आपकी टारगेट क्यों हूँ और आप किस वजह से मुझे जगह जगह व्यंग्य करती हैं, यह सिर्फ आप ही जानती होंगी ।

      2. आपकी बात के नीचे मैंने जवाब इसलिए दिया की आपका यह कहना मुझे नागवार हुआ -
      "काश आप भी काम करती"
      और
      "ताकि सरकारी योजनाये नयी बन सके उनके लिये जो काम नहीं करते"
      घरेलू काम का इतना घोर अपमान मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ - इसलिए मैंने आपको उत्तर दिया ।

      Delete
    5. Ghughooti ji, i apologise for the unpleasantness created by my comments..

      Delete
    6. shilpa
      that benami kament was mine i am sorry i was not logged in then

      Delete
    7. "काश आप भी काम करती"
      और
      "ताकि सरकारी योजनाये नयी बन सके उनके लिये जो काम नहीं करते"
      घरेलू काम का इतना घोर अपमान मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ

      gharelu kaam kaa apmnaan uff , jab ki manaene kehaa haen जो आप करती हैं
      वो सब मै भी करती हूँ
      agar aap barabri ki baat karti haen to aap ko har jagah barabri ki hi baat karni hogi

      kyaa aap ki devraani kisi aapat sthiti me wo sab apnae { ishawar naa karey } aur apnae bachcho ko liyae wo kar payegi jo aap kar saktii haen
      just think
      and maene vyang nahin kiyaa kewal aap ke kament ko padh kar wahii likha jo man me aayaa jaese ghughuti ji ki kavita par mera jawaab

      Delete
    8. :)

      1. @ व्यंग्य नहीं था
      - मुझे ऐसा लगा कि ऐसा था - यदि आपका ऐसा उद्देश्य नहीं था - तो मैं आप पर विश्वास करती हूँ - एंड आपसे (आपको गलत समझने के लिए) क्षमा मांगती हूँ ।

      2. @kyaa aap ki devraani .......
      - हाँ । वह कर सकती हैं । शायद मुझसे बेहतर ही कर सकें - कौन जाने ? वह मुझसे बेहतर गृहणी हैं, मुझसे बेहतर पत्नी हैं, मुझसे बेहतर माँ हैं । ....... पढ़ी लिखी हैं , और काबिल हैं । लेकिन अपने बच्चे के बड़े होने का इंतजार कर रही थीं - और घर की ज़रूरतों के लिए अपने करियर को पोस्पोन किया हुआ था । अभी अभी (20-25 दिन पहले) जॉब ज्वाइन की है । लेकिन अब तक इसलिए नहीं करती थीं कि उनकी ज़रुरत घर में अधिक थी । उन्होंने जो किया (घर की खातिर जॉब को कुछ समयावधि के लिए त्याग रखना) वह मैं नहीं कर पायी - इस बात के लिए मैं उन्हें सल्युट करती हूँ । ........ लेकिन यहाँ यह बात सिर्फ उन एक गृहिणी की नहीं है - जो गृहिणियां बाहर काम नहीं करतीं - वे घर में यदि अपना बेस्ट दे रही हैं - तो वह काम उतना ही महत्वपूर्ण है ।

      3. @ बाहर काम करना / न करना (- मेरा निजी ओपिनियन )
      काम चाहे बाहर किया जाए (पारिश्रमिक सहित) या घर में किया जाए (पारिश्रमिक रहित) दोनों ही स्थितियों में हर व्यक्ति के के पास दिन के चौबीस ही घंटे हैं ।
      ...... काम का महत्त्व उससे मिले आउटपुट पर नहीं, बल्कि उस व्यक्ति के अपने काम के प्रति भावना, उस कार्य को दिए डेडिकेशन, और उस व्यक्ति के दिए इनपुट पर निर्भर होता है । वह अपना काम पूरे मन से कर रही / रहा है - तो फिर वह चाहे नोबल प्राइज विजेता रिसर्च हो या घर को बुहारना - दोनों ही काम अपने आप में पूर्ण हैं ।

      4. @ अभी दो पोस्ट पहले नारी ब्लॉग पर आपने एक बहुत अच्छी बात शेयर की थी - जो मैंने फसबुक पर भी शेयर की । कि एक गृहिणी का एक्सीडेंट हुआ और रिलायंस इन्शुरन्स ने क्लेम नहीं दिया यह कह कर कि वह पैसा नहीं "कमाती" थी । लेकिन कोर्ट ने इसे गलत कहते हुए उस स्त्री के घरेलु कार्य का मूल्यांकन किया और रिलायंस को आदेश दिया हर्जाना देने का ।

      5. @ मैं जानती हूँ और मानती हूँ कि आप जो कह / कर रही हैं वह अच्छे इन्टेंशंस से कर रही हैं - और यही मुझ पर भी लागू होता है । बस इम्प्लीमेंटेशन में आपकी और मेरी सोच नहीं मिलती ।

      Delete
    9. अगर आप की देवरानी अब जॉब करने लगी हैं तो स्वत ही ये बात सिद्ध होती हैं की वो जॉब करने की महत्व को बेहतर समझती हैं . जॉब करना यानी अपने समय में किये हुए काम का मूल्य प्राप्त करना . और अब कानून गृहणी के काम का मूल्य भी निर्धारित हो ही गया हैं { नारी ब्लॉग की पोस्ट } . संगीता जी का कमेन्ट देखे उसमे "बेगार " शब्द प्रयोग किया गया हैं . आप को उस कमेन्ट पर आपत्ति क्यूँ नहीं हुई सोचिये . और साथ में ये भी सोचिये की मै क्या कभी भी किसी भी ब्लॉग पर { जो आप का या मेरा निजी ब्लॉग नहीं हैं } आप के किसी भी कमेन्ट के ऊपर प्रति टीप देती हूँ ?? जिस प्रकार से आप मेरे कमेंट्स पर दुसरे ब्लॉग पर देती हैं जब आप खुद पहल करती हैं तो आप मेरी टीप में मेरा उत्तर सुनने की सामर्थ्य क्यूँ नहीं रख पाती हैं ??? आप मेरी पोस्ट पर कमेन्ट करती हैं फिर मेरे जवाब को आप " मड स्लिंगिंग " कह्देती हैं . मै आप की पोस्ट पर कमेन्टकरती हूँ , आप जवाब देती हैं , मै बहस करती हूँ पर क्या मैने कभी आप को कहा हैं की आप निरंतर मुझे टार्गेट करती हैं दुसरो के ब्लॉग पर . मै नारी पुरुष समानता की बात करना चाहती हूँ , आप को लगता हैं ये गलत हैं , आप निरंतर दुसरो के ब्लॉग पर मेरे कमेन्ट में मुझ से यही कहती हैं . आप जिन गृहणी की बात कर रही हैं , मै उनको हर रूप में सक्षम देखना चाहती हूँ ख़ास कर आर्थिक ताकि उनको अपनी जरूरतों के लिए किसी के आगे हाथ ना फेलाना पडे . कभी कभी तो ऐसे घर भी हैं जहां "गृह स्वामिनी " को 10 रूपए भी खुद खर्च करने का अधिकार नहीं हैं क्युकी वो पैसा उनका कमाया नहीं हैं .

      घुघूती बासूती की इस कविता के अंत में घुघूती बासूती का कमेन्ट की वो अगले जाम में गृहणी नहीं बनना चाहती हैं अपनी फ्री रहना चाहती हैं खुद बहुत कुछ कहता हैं .
      पहले स्त्री - पुरुष को हर रूप में "बराबर " दर्जा दिलवा दे और फिर मुझे कहे "मानव कर्म" की बात मे भी करुँगी .
      आप अपने नाम के आगे ईआर लगती हैं उस से ही पता चलता हैं आप ने बहुत मेहनत की हैं यहाँ तक पहुचने के लिये और अब आप आर्थिक रूप से सक्षम भी हैं सो यही प्रेरणा आप दूसरी छात्राओं को भी दे रही हैं , तो अगर मे ये कहती हूँ तो क्यूँ आप को ये लगता हैं की उसको हर ब्लॉग पर काटना जरुरी हैं और फिर ये भी कहना की ये "" मड स्लिंगिंग " हैं . अगर कहीं भी प्रति टीप दे किसी और के ब्लॉग पर चल रहे मेरे कमेन्ट को जो आप को कहा ही नहीं गया हैं तो मेरे जवाब को सुनने का मदद भी रखिये .
      what u are doing as a teacher i am also doing then why is there a need to keep telling me i am wrong always and that also on other people blog post
      सादर
      रचना

      Delete
    10. हाँ - यह बात भी आपकी ठीक है । आगे प्रयास रहेगा कि आपकी टीप पर प्रति उत्तर न दूं |
      आभार ।

      Delete
  11. जिनके लिए कमाना बहुत जरुरी है , जीवन मरण का प्रश्न है , उनके लिए स्पेस छोड़ना टैक्स भरने से कम कहाँ है !

    ReplyDelete
  12. sach hai dunia ke kam sucharu roop se chalane ke liye jo kam hote hai unhe kam gina hi kaha jata hai..
    ek kasak liye sundar abhivyakti.

    ReplyDelete
  13. काम है इतना, समय कहाँ है,
    वे समझे, आराम किया है।

    ReplyDelete
  14. अब तो काम भी करती हैं और बेगार भी .... बहुत अच्छी और सटीक रचना ।

    ReplyDelete
  15. बहुत सुन्दर.प्रवाह भी,शैली भी.

    ReplyDelete
  16. शिल्पा, मैं जरा सा भी परेशान नहीं हूँ, न ही कोई अप्रिय बात हुई है।
    मैं जानती हूँ कि
    १.मैं कितना काम कर या नहीं कर रही।
    २. मेरे काम का कितना मूल्य है।
    ३. मैं कहाँ हो सकती थी और कहाँ हूँ।
    ४. यह जीवन मुझ पर थोपा नहीं गया था, मेरा अपना चुनाव था। बाद में कुछ खेद भी हो तो वह किस जीवन से किसे नहीं होता?
    ५.मेरा अपने समाज को क्या योगदान रहा। कब कब अवसर मिलने पर मैंने प्रायःबिना वेतन के अपनी बस्तियों के स्कूलों में पढ़ाया।
    ६. यदि काम करने का पैमाना धन कमाना है तो मैंने शेयर बाजार में वह भी कमाया। परिवार में हर प्रकार का निवेश प्रायः मेरे जिम्मे ही है। मेरी उपलब्धियाँ नगण्य भी नहीं हैं।
    ७.पति पत्नी दोनों काम कर सकते हैं यदि दोनों ८, १० , १२ घंटे काम करें। मेरे पति १४ से १६ घंटे कारखाने दफ्तर में काम व घर आकर हर जागते समय व पाँच सात बार सोये से उठकर भी फोन पर काम करते थे। सही था या गलत यह अलग प्रश्न है। मैं काम केवल अलग रहकर, बच्चों को हॉस्टल में डालकर या बच्चों की घोर उपेक्षा करके ही कर सकती थी। ऐसा कोई निर्णय उनके जन्म से पहले ही लिया जा सकता था।
    ८.स्त्रियों को बाहर काम करना चाहिए किन्तु उसके साथ ही उनके पतियों को घर में भी उतना ही काम करना चाहिए जितना नौकरीपेशा पत्नी करती है। दोहरा काम करना अच्छा नहीं बुरा है। यह स्वतन्त्रता नहीं स्त्री की दासता है।
    ९. यदि फिर जन्मूँ तो गृहणी नहीं बनना चाहूँगी, मुक्त प्राणी के रूप में जन्मना व जीना चाहूँगी, शायद सही अर्थों में घुघूती बनना चाहूँ।
    घुघूती बासूती

    ReplyDelete
  17. यदि फिर जन्मूँ तो गृहणी नहीं बनना चाहूँगी, मुक्त प्राणी के रूप में जन्मना व जीना चाहूँगी, शायद सही अर्थों में घुघूती बनना चाहूँ।
    well said GB

    ReplyDelete

  18. कल 15/12/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    ReplyDelete
  19. पिछली टिप्पणी में गलत सूचना के लिये खेद है ---

    दिनांक 16 /12/2012 (रविवार)को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    ReplyDelete
  20. आपने जी घर को घर बनाया ये क्या काम नहीं है ... आपकी लेखनी में सरलता के साथ एक तिक्षण धार भी हैं

    मेरी नई कविता आपके इंतज़ार में है नम मौसम, भीगी जमीं ..

    ReplyDelete
  21. सशक्त और प्रभावशाली प्रस्तुती....

    ReplyDelete
  22. मेरे विचार से घर और नौकरी की जिम्मेदारी निभाने वाली महिलाएं दोहरी जिम्मेदारी के तले पिसती ही हैं.... हाँ आर्थिक रूप से मजबूत होकर वे कुछ निर्णय स्वतन्त्र रूप से ले सकती हैं,लेकिन पीड़ा वहां होती है जहाँ कमाने के बावजूद महिलाओं को यह स्वतंत्रता नहीं मिलती क्यों ?यह अलग प्रश्न है
    आज बहुत सी महिलायें अपने बच्चों को सुरक्षा ममत्व समय संस्कार देने के लिए गृहणी बनना पसंद करती हैं ...टैक्स भरने पर रिटर्न क्या मिलता है यह तो व्यवस्था के खिलाफ लिखने वाले लिख ही रहे हैं पर ममता का रिटर्न बच्चों के दिल में जगह के रूप में जरूर मिलता है तो गृहणी को गर्व से कहना चाहिए मैं घर चलाती हूँ अपने आप को स्वयं सम्मान देना पड़ता है दूसरों से की गयी अपेक्षा पूरी हो यह जरूरी नहीं

    नौकरी करना घर और बच्चों को संभालना और लम्बी ब्लॉग बहसों में हिस्सा लेना अगर सब काम पूरी निष्ठा से किये जा रहे हैं तो .... समय कैसे मिलता है ...भई मेरी जिम्मेदारियां तो कुछ कम हैं तभी नौकरी और घर के साथ ब्लॉग निभा पाती हूँ वर्ना दिन के ये २४ घंटे मेरे लिए तो कम हैं

    ReplyDelete
  23. Prabhat Sinha from Noida8:15 pm

    Do you work ? ये सवाल पूछने वाले कौन हैं ? जरा गौर करे तो आप पाएंगे की ये सवाल कामकाजी महिलाये ही है जो किसी महिला से मिलते ही (पहली मुलाकात में ही ) पूछती है या जानने की कोशिश करती है I गृहणियों को कमतर समझना और उन्हें हेय दृष्टि से देखने की प्रवृति कामकाजी महिलाओं में आम है। आप दिन भर घर में क्या करती है? क्या आप बोर नहीं होती है दिन भर घर में रह कर ? कोई जॉब क्यों नहीं कर लेती है ? आये दिन मेरी पत्नी को ऐसे सवालो से दो- चार होना पड़ता है I पड़ोस की वो सासें और माएं भी इस तरह के सवाल पूछती है जिनकी बहु/ बेटी वर्किंग हैं। आखिर वो करती ही क्या हैं? what do "they" do all day..they do only un-intelligent job of
    managing home, kids..cooking foods and watching saas-bahu serials..". हाँ कुछ मर्द भी हैं जिनकी पत्नी वर्किंग है ( या वर्किंग पार्टनर की इच्छा है ) वो भी कुछ ऐसा ही सोचते हैं I मै पहले जॉब करती थी लेकिन family reason से , बच्चो की वजह से जॉब छोड़ दिया है -- ऐसा झूट कहते हुए (अपनी झेंप मिटाने के लिए ) भी मैंने कई बार गृहणियों को पाया है I ऐसी मानसिकता के पीछे (गृहणियों के काम को ही नहीं बल्कि गृहणियों को ही तुच्छ समझने की) पढोगे-लिखोगे बनोगे नवाब (बाकी सब ख़राब) की हमारी सोच काफी हद तक जिम्मेदार है। कुछ परीक्षा/ इंटरव्यू पास कर नौकरी कर कामकाजी महिला का दर्ज़ा पाने वाले समझते है की सुख सुविधा सिर्फ उनके ही जीवन में आ सकती है as they are the talented and meritorious to deserve it... और बाकी बेचारी गृहणियां तो (जो पढने में फिसड्डी होने की वजह से मजबूरी में गृहणी बनी है ) दूसरों पे आश्रित होकर अपना जीवन बमुश्किल घुटते हुए जी रही होंगी लेकिन जब व्यवहारिक जीवन में अपने गृहणी बहनों और सहेलियों को स्वस्थ और सुखी जीवन जीते पाती हैं तो वे इस बात को नहीं पचा पाती हैं और नतीजा होता है गृहणियों को हेय बताने की प्रवृति। आये दिन अखबारों में लिखकर, ब्लॉगों में लिखकर या फिर निजी बातचीत में - ये कोई कसर नहीं छोडती।
    रचना जी, जो काम नहीं करते है उनके लिए कौन सी योजना सरकार बना रही है या बनायीं है जरा हमें भी बताइयेगा। और टैक्स तो एक माचिस की डिबिया खरीदने पे भी चुकाना होता है। काश आप भी काम करती ....ऐसा कह कर आप स्वयं को बाकी अन्य गृहणी टाइप (जो काम तो बहुत करती है लेकिन पैसा नहीं कमाती) के महिलाओं से श्रेष्ठ बताने का अहं दर्शाया है जो कामकाजी महिलाओं में आम तौर पे पाया जाता है। प्रतिस्पर्धा के दौर में ये आम धारणा मध्यवर्गीय लोगों में है की नौकरी पाना ही हमारी काबिलियत की पहचान है और सिर्फ वही सुखी हो सकते हैं। जैसे ही हम किसी को बिना नौकरी किये (या जिसे हम अपने से कमतर समझते/ मानते हैं) फलते-फूलते देखते हैं वैसे ही अन्दर से कुढ़ / चिढ जाते हैं। उसकी साडी मेरी साड़ी से सफ़ेद कैसे? ये कोई आश्चर्य की बात नहीं है की कामकाजी स्त्रियाँ ही ज्यादा शोर मचा रही है कि गृहणियां बहुत ही घुटन और त्रासदी से भरी या फिर बिल्कुल बोझिल सा जिंदगी जीने को अभिशप्त है। उपरी तौर पे ये तो मध्यवर्गीय कामकाजी महिलाएं नारी और नारी स्वतंत्रता की पैरोकार लगती है लेकिन वास्तविकता कुछ और ही कहती है ...
    - Prabhat Sinha, Noida

    ReplyDelete
  24. Prabhat Sinha from Noida8:15 pm

    The housewives are looked upon down by working women..is a fact..while boasting about their career and professional "success" and all day long engagement they take every opportunity to demean the housewives..saying.." what do "they" do all day..they do only un-itelligent job of managing home, kids..cooking foods and watching saas-bahu serials.."..
    And see what these liberated/ independent/ empowered working women have been doing to the rest of the women of the nation.. they are employing 24X7 slaves (you call it by fancy names such as domestic help/ maids)..yeah they are converting large population of poor women/tribals of places like Jharkhand, Orissa..into slaves...imprisoned in the scores of home of working class of metros..and the fact is that these slaves are harassed and exploited more by the women of the employers' families..Who are the primary consumers of these slaves.?It is the working women. Men of families also join hands in exploiting and harassing them..but there has been no case where FIR has been lodged by the woman against her husband for sexully exploiting her maids ...errrr slaves but there has been many cases where a couple has been booked for exploiting and harassing their 24X7 maids. माँ-बाप के हाथों में smartphones और बच्चा किसी आदिवासी नौकरानी के गोद में - ये नज़ारा कितना आम है मेट्रो में ये बताने की जरूरत नहीं है। राजा-रानी की कहानी सुनकर बड़े हुए और पढ़-लिख कर नवाब बने लोग इस तरह के unintelligent घरेलु काम क्यों करें जब देश के गरीब इलाके की बेबस, लाचार, मजबूर और भोले भाले लोगों की लड़कियों को बहलाकर शहरी मध्यवर्गीय घरों के अन्दर गुलामी करने को लायी या झोंकी जा रही हों ?

    ReplyDelete
    Replies
    1. this is highly objectionable.... you are stereotyping all working women into slave makers and insulting us.

      we have all the right to say what we feel, but NO RIGHT to say that any category of people are generalized slave makers. this is the same thought process as mr abu azami or mr mukherji the presidents son, about women - that is - we women are made to serve men in the four walls and we need to keep in our limits or else ...,

      if possible the "man" will physically hurt her, if unable to, he will verbally abuse her with such insulting statements as you have just done ... i think you should apologize here for categorizing all working women into slave makers...

      Delete
  25. Prabhat Sinha from Noida10:32 am

    @Er. Shilpa Mehta - My sincere apologies – if any of my comment has hurt you.
    मैंने अपने comments में दो ही बातें मुख्यतौर पे लिखी है 1) मध्यवर्गीय कामकाजी महिलाओं का गृहणियों को कमतर समझना और इसके पीछे की मानसिकता 2) the slavery system that is being driven by eduacted and (working) urban middle class women of this country..the 24X7 maids..being employed..working and educated woment exploiting poor girls of “other” India..and enjoying their financial independence and advocating women’s freedom – how contradictory it is…
    Since we do not know each other – in this blog world – I am not representing myself or men – I am simply stating – what I have seen/ felt/ observed – and presenting a set of arguments on the topic related to middle class working woman & housewife/ homemaker.
    लेकिन मेरी बातों का तर्कपरक और तथ्यपरक जवाब देने के बजाय क्यों आप बीच में किसी अबू आज़मी और मुखर्जी की बात को उद्धृत कर रही है ये मेरे समझ के परे है। महिलाओं को क्या करना चाहिए ( और क्या नहीं) ऐसा मैंने कहाँ लिखा है या किस बात से इसका संकेत मिलता है क्या आप बतायेंगी?
    "And contrary to popular perception, our survey shows, the average homemaker does not really lead a life of drudgery. A vast majority said they are quite happy with the level of appreciation they receive for the work they do for their households" - a survey done on 5400 people by MaRS and published in The Hindustan Times, Delhi edition (15-Jan-2013).
    और जहाँ तक slavery की बात है मैं आपको नीचे कुछ links दे रहा हूँ जिसे आप पढ़े और फिर मुझे बताएं की आपका क्या कहना है
    http://blogs.reuters.com/the-human-impact/2012/12/04/dial-a-maid-get-a-slave-in-middle-class-india/
    http://www.outlookindia.com/article.aspx?280558
    http://timesofindia.indiatimes.com/india/Chhattisgarh-district-loses-6000-girls-a-year/articleshow/18039588.cms

    ReplyDelete
    Replies
    1. prabhat ji - very nice that you realized there was something wrong up there and wrote this comment - but you have asked me some questions in this reply and i am forced to reply to your questions.

      @लेकिन मेरी बातों का तर्कपरक और तथ्यपरक जवाब देने के बजाय क्यों आप बीच में किसी अबू आज़मी और मुखर्जी की बात को उद्धृत कर रही है ये मेरे समझ के परे है।
      --
      इसलिए कह रही हूँ कि वे भी अपनी बात को , अपने निजी विचारों को, अपनी निजी इच्छाओं को, अपनी निजी धारणाओं को "सत्य" और "सही" का जाम ओढा कर सभी "स्त्रियों" पर थोप रहे थे, और आप जो कह रहे हैं वह भी उसी तरह का एक प्रयास है ( नीचे एक एक पॉइंट से उद्धृत करती हूँ) , भले ही आपने "जानते बूझते" किया हो या उन्ही की तारह "अनजाने में" दूसरों की "भावनाओं" को ठेस पहुंचाई हो और बाद में विरोध होने पर उन ही की तरह "माफ़ी मांग ली" हो ।

      मैं हमेशा जन्रलिज़शन के विरुद्ध हूँ - जब दिल्ली रेप के बाद जेनरल तौर पर "पुरुष" विरोधी लहर थी - तब मैं उसके खिलाफ भी लगातार बोलती / लिखती रही ।

      आपने ऊपर कमेन्ट में ये बातें कहीं थीं - जिनका बिन्दुवार उत्तर मैं लिखना नहीं चाह रही थी, किन्तु आपने पूछा है तो मजबूरन लिख रही हूँ ।
      -------------------------
      1.
      @@The housewives are looked upon down by working women..is a fact..
      IS THAT TRUE FOR ALL WORKING LADIES ? ARE YOU NOT DISCRIMINATING AGAINST US in general as a "group" which YOU THINK does so - without knowing whether we individually do do it or not ?? do you personally know that it is so?
      -------------------------
      2.
      @@ while boasting about their career and professional "success" and all day long engagement they take every opportunity to demean the housewives..
      - DO WE ALL DO THAT ?? boast ? demean housewives ? all of us do so ??

      moreover - don't WE WORKING LADIES WANT TO watch the same serials ? are we not being denied that because we choose to earn for our family ? cant we even complain ????
      --------------------------------------------
      continued

      Delete
    2. continued
      3.
      @@ And see what these liberated/ independent/ empowered working women have been doing to the rest of the women of the nation.. they are employing 24X7 slaves (you call it by fancy names such as domestic help/ maids)..
      -
      once again - are we all doing that?
      firstly - creating employment is not a bad thing.
      secondly, this is clearly a game of statistics
      you are saying that surveys show that poor women from poorer areas are employed as 24x7 housemaids . that is as may be - but DO SURVEYS show that housemaids are employed ONLY BY WOMEN WORKING OUTSIDE HOME ?????
      NO
      i have been living in the same society as you for the past many many years. i have seen that the employment of household help is the same in the same financial class REGARDLESS of whether the "wife" works outside the home or not, earns outside or not

      SECONDLY

      ""i am myself a working lady - and i know an equal number of ladies employed in the "housewife" job as well as "earning an income" job. i personally KNOW about FIFTEEN housewives with 24x7 servants from native villages WHILE NOT EVEN ONE earning woman with even one 24x7 servant.""

      don't talk about statistics and surveys - in our country, many many many (not all, but many) surveys are done for proving one's theory, not for creating a theory from facts. so only those facts which SUPPORT the theory of the surveyor / researcher are considered and those WHICH NEGATE the theory which is being proposed are conveniently discarded.

      it is a fact shown in government surveys (look at ncert website - 7th standard civics textbook - women and work chapter) that ladies working outside the home in india today are under DOUBLE burden - which gets QUADRUPLED when such comments like yours are made to RIDICULE them and their hard work and effort, and show them in poor and selfish highlights. if the family cooperates about the household chore sharing WHY would they need to spend hard earned money on outside help??

      why is it that if husband and wife work outside for the same number of hours, you blame the WIFE for employing a maid and NEVER blame the husband ? because you EXPECT and WANT the WIFE to come back and do the household chores and not the husband, even after working equal hours outside ?
      -----------------------
      4.
      @@yeah they are converting large population of poor women/tribals of places like Jharkhand, Orissa..into slaves...imprisoned in the scores of home of working class of metros..and the fact is that these slaves are harassed and exploited more by the women of the employers' families..Who are the primary consumers of these slaves.?It is the working women.

      FALSE FALSE FALSE - as i said above - 24x7 servants are employed - they are not ALWAYS slaves, moreover they are not always employed by homes with working women and thirdly - are you trying to say that IF THE WOMAN CHOOSES to work outside - then she MUST DO ALL THE HOUSEHOLD CHORES AND THEN GO TO DO HER HOBBY WORK OUTSIDE SO TO SAY??? -

      i know my colleague - who is M.TECH - head of computer science dept - who has 2 small kids - works 9 hours in college and is forced to do ALL THE household work (washing linen, utensils etc) ... while the husband - who earns LESS THAN HER - comes home and either sleeps or goes out with his friend. but you will not talk of those cases - will you? ..... and another woman who stays at home 24 hours a day and employs 3 servants 24 x 7

      i feel working ladies KNOW the pain of earning, and tend to NOT spend on servants, preferring to manage themselves.
      -----------------------

      Delete
    3. continued
      5.
      @@Men of families also join hands in exploiting and harassing them..but there has been no case where FIR has been lodged by the woman against her husband for sexully exploiting her maids ...@@ errrr slaves but there has been many cases where a couple has been booked for exploiting and harassing their 24X7 maids.

      DO YOU THINK THE WORKING WOMAN "WANTS" HER HUSBAND TO HAVE SEX WITH THE OTHER WOMAN WHOM YOU CHOOSE TO CALL A SLAVE?
      moreover
      WHY should the wife lodge the FIR - cant neighbors do so?????
      FOR YOUR INFORMATION _ UNDER THE LAW - a wife cannot testify against her husband or vice-versa in criminal proceedings.

      - is it not the job of the system, the police and the society to see to it that the perpetrators are brought to justice. you cannot just blame the wife for the exploitation by her husband -

      as you said - she is DEMEANING her neighbors (housewives) na ? then why don't THEY do this great job of humanity and take the trouble and time to launch FIR against such couples ???
      -------------------------
      6.
      @@ माँ-बाप के हाथों में smartphones और बच्चा किसी आदिवासी नौकरानी के गोद में - ये नज़ारा कितना आम है मेट्रो में ये बताने की जरूरत नहीं है। राजा-रानी की कहानी सुनकर बड़े हुए और पढ़-लिख कर नवाब बने लोग इस तरह के unintelligent घरेलु काम क्यों करें जब देश के गरीब इलाके की बेबस, लाचार, मजबूर और भोले भाले लोगों की लड़कियों को बहलाकर शहरी मध्यवर्गीय घरों के अन्दर गुलामी करने को लायी या झोंकी जा रही हों ?
      - do you know that ALL the couples like that which you see in metros are those in which the wife is working outside home ? do you KNOW personally that some or all of those "raajaa raani" were NOT housewives ?????
      -------------------------
      7.
      @@And contrary to popular perception, our survey shows, the average homemaker does not really lead a life of drudgery.

      no - they don't. so ? that means we should compel ALL our women to stay as housewives because MAJORITY lead a happy life ?

      Delete