खोखले से हम
नाते रिश्तों
मैत्री सम्बन्धों
पड़ोसी से बोलचाल
सोफे पर चिपके
टी वी पर आँख कान गड़ाए
अपनों को छोड़,
राह चलतों को राम राम
जय श्री कृष्ण
नमस्कार
दुआ सलाम
करना छोड़,
जी टॉल्क पर हाय
नेट पर या
फेसबुक पर
कुछ मन को
छू लेने वाला
खोजते, खीजते
खोखले से,
खाली मन
खाली हाथ,
लौट जाते हैं
कल फिर से
आने को।
घुघूती बासूती
कितना सच है यह :(
ReplyDeleteबहुत पहले एक पोस्ट लिखी थी इसी विषय पर (- अपनों से दूर , टीवी से पास ) - खूब पर्दा है नाम था उस पोस्ट का शायद । वह याद आ आगयी यह पोस्ट देख कर
:(
Man is increasingly getting impersonal,an apt reminder!
ReplyDeleteBahut hi badiya ..aadersh
ReplyDeleteसामाजिकता ख़त्म होती जा रही है, फिर भी मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है .........
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पी .एस .भाकुनी
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जंगली, आदि गुफा मानव, बाहरी संसार के बारे में बहुत कुछ जान काल-चक्र में बाहरी ब्रह्माण्ड से उकता, फिर से कंक्रीट के जंगल में अपनी अपनी गुफा में लौट, टीवी/ अंतर्जाल के माध्यम से ब्रह्माण्ड के केवल एक ही रचयिता परमात्मा, जिसका वो भी तथाकथित अंश आत्मा है, को खोजता ऐसे बैठा है जैसे शीशे में अपने ही प्रतिबिम्ब को देख रहा हो!
ReplyDeleteकिन्तु उसे विश्वास नहीं हो रहा हो कि वो परमात्मा का ही मायावी प्रतिबिम्ब है , और वो कस्तूरी मृग समान अनादिकाल से भटकता रहा है!!!
सुबह सैर करने ज़रूर जाना चाहिए. बहुतों से दुआ सलाम राम राम हो जाती है ...
ReplyDeleteएकाँतप्रियता और सामाजिकता के बीच मूढता से फुटबॉल बना रहता है मानव मन. मानव अनादिकाल से इस दुविधा से ग्रस्त है.
ReplyDeleteबिलकुल सच कहा है आपने ... लगभग हर कोई आजकल ऐसे ही संपर्क और संबंध बनाए हुये है !
ReplyDeleteनानक नाम चढ़दी कला, तेरे भाने सरबत दा भला - ब्लॉग बुलेटिन "आज गुरु नानक देव जी का प्रकाश पर्व और कार्तिक पूर्णिमा है , आप सब को मेरी और पूरी ब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से गुरुपर्व की और कार्तिक पूर्णिमा की बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और मंगलकामनाएँ !”आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
Ya hamare apne TV ke paas hote hain,ya mobile pe chipke!
ReplyDeletegreat poem after a long time
ReplyDeletesahi kaha hai . afsos aajkal aisa hi ho raha hai.
ReplyDeleteदुखद सत्य
ReplyDeleteसच बयाँ करती कविता
ReplyDeleteहाँ इसी खोखलेपन में अपना अस्तित्व खोजते हम..
ReplyDeleteअच्छी रचना..
सादर
अनु
sach hai rishton me doori kuchh in adhunik sadhano ki vajah se kuchh insan ke khud ki vajah se..
ReplyDeletekatu satya..
बहुतों को समेट लिया आपने अपनी कविता में।
ReplyDeleteवास्तव में यही जिन्दगी हो गयी है।
ReplyDeleteAhaa, its nice dialogue regarding this paragraph at this place at this blog, I have read all that, so at this time me also commenting here.
ReplyDelete.
ReplyDelete.
.
'खोखले से हम'... वाकई
पर यह दौर भी निकल जायेगा तमाम अच्छे-बुरे अन्य दौरों की तरह ही...
...
अंतर्जालीय सामाजिक व्यवस्था ने खोखला कर दिया है हमें..
ReplyDeleteबहुत ही सटीक बात लिखी है आपने..
सटीक रचना...
ReplyDeleteसामाजिकता नस्ट हो गयी..
फिर भी सामाजिक बने है अंतर्जाल पर...
यही है आज का सत्य...
:-)
चलिये नेट ही सही ....कहीं तो सामाजिकता बनी हुई है ... सत्य को कहती अच्छी रचना
ReplyDeleteप्रिय ब्लॉगर मित्र,
ReplyDeleteहमें आपको यह बताते हुए प्रसन्नता हो रही है साथ ही संकोच भी – विशेषकर उन ब्लॉगर्स को यह बताने में जिनके ब्लॉग इतने उच्च स्तर के हैं कि उन्हें किसी भी सूची में सम्मिलित करने से उस सूची का सम्मान बढ़ता है न कि उस ब्लॉग का – कि ITB की सर्वश्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉगों की डाइरैक्टरी अब प्रकाशित हो चुकी है और आपका ब्लॉग उसमें सम्मिलित है।
शुभकामनाओं सहित,
ITB टीम
पुनश्च:
1. हम कुछेक लोकप्रिय ब्लॉग्स को डाइरैक्टरी में शामिल नहीं कर पाए क्योंकि उनके कंटैंट तथा/या डिज़ाइन फूहड़ / निम्न-स्तरीय / खिजाने वाले हैं। दो-एक ब्लॉगर्स ने अपने एक ब्लॉग की सामग्री दूसरे ब्लॉग्स में डुप्लिकेट करने में डिज़ाइन की ऐसी तैसी कर रखी है। कुछ ब्लॉगर्स अपने मुँह मिया मिट्ठू बनते रहते हैं, लेकिन इस संकलन में हमने उनके ब्लॉग्स ले रखे हैं बशर्ते उनमें स्तरीय कंटैंट हो। डाइरैक्टरी में शामिल किए / नहीं किए गए ब्लॉग्स के बारे में आपके विचारों का इंतज़ार रहेगा।
2. ITB के लोग ब्लॉग्स पर बहुत कम कमेंट कर पाते हैं और कमेंट तभी करते हैं जब विषय-वस्तु के प्रसंग में कुछ कहना होता है। यह कमेंट हमने यहाँ इसलिए किया क्योंकि हमें आपका ईमेल ब्लॉग में नहीं मिला।
[यह भी हो सकता है कि हम ठीक से ईमेल ढूंढ नहीं पाए।] बिना प्रसंग के इस कमेंट के लिए क्षमा कीजिएगा।
अब क्या करें, इतने खराब मौसम में बाहर जाना भी ठीक नहीं है - सो इंटरनेट ज़िंदाबाद!
ReplyDeleteBahut hi achha sandesh hai
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