सुना है हरियाणा में लड़कियों को बलात्कार से बचाने का एक नुस्खा खाप व चौटाला जी के हाथ लग गया है। यदि लड़कियों की शादी जल्दी जैसे पन्द्रह वर्ष में कर दी जाए तो सम्भावित बलात्कारी को बलात्कार करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। (या कहिए घर से बाहर बलात्कार करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी, यह सुविधा घर पर ही उपलब्ध होगी।)
इस उपाय से कई तात्कालिक लाभ होंगे व कई सामाजिक समस्याएँ जैसे सम्भावित बलात्कारी को तृप्त रखने की, हर पुरुष को एक पत्नी या बलात्कार के लिए खिलौना उपलब्ध कराने की समस्या का समाधान हो जाएगा। २५, ३०, ४० या ५० किसी भी उम्र के अविवाहित पुरुष के लिए १५ से लेकर २५, ३० सभी उम्र की अविवाहित लड़कियाँ व स्त्रियाँ उपलब्ध हो जाने से शादी के लिए लड़की/ स्त्री की उपलब्धता बढ़ेगी और लिंग अनुपात जो ८७७ है और ० से ६ वर्ष की आयु में घटकर ८२६ है व जिसके कारण पुरुष अविवाहित रहने को अभिशप्त हैं, उसका भी कुछ समाधान हो जाएगा। कल जब और कम लड़कियाँ उपलब्ध होंगी तो विवाह की उम्र और घटाई जा सकती है फिर और, और, और अन्त में बहु पति प्रथा को अपनाया जा सकता है। हमारे बालकों, युवकों, किसी भी उम्र के पुरुषों को अतृप्त तो नहीं रखा जा सकता ना!
चौटाला जी, मुगल काल में बेटियों की इज्जत बचाने को उनका न केवल विवाह कर दिया जाता था अपितु बहुधा लड़कियों की जन्म के समय ही हत्या कर दी जाती थी।बेटी की हत्या करने वाले के लिए एक नाम भी था कुड़ीमार(कुड़ी = कन्या )! यह राह तो अब का समाज और भी बेहतर तरह से, जन्म से पहले ही हत्या करके, अपना रहा है। जिस देश के नागरिक अपने समाज की स्त्रियों, बालिकाओं की सुरक्षा के लिए अपने आप को उत्तरदायी न मानकर, बलात्कारियों को सजा देने व समाज में घृणा से देखने की बजाए स्त्रियों, बालिकाओं को ही बालिका विवाह की सजा देना चाहते हैं उस देश, प्रान्त, समाज को लज्जा से डूब मरना चाहिए।
किन्तु भाई बहन लोगो, पुरुषों, बालकों पर कोई नियन्त्रण रखने की आवश्यकता नहीं है। बॉयज़ विल बी बॉयज़! उन्हें तृप्त रखने के सब साधन उपलब्ध कराओ। वे साधन जीती जागती स्त्रियाँ, बालिकाएँ हो सकती हैं। लड़कियों को ढका जा सकता है, उन्हें घरों में बन्द किया जा सकता है, स्वात घाटी में जाकर कुछ पाठ पढ़े जा सकते हैं। अपराधियों को जल्दी सजा दिलाने की आवश्यकता नहीं है।
जिस लिंग अनुपात की बात की जा रही है वह सच में भयावह है और वह आधुनिक मानसिकता का नहीं, हमारी सदियों पुरानी मानसिकता को कन्या हत्या के सस्ते, सरल, सुरक्षित आधुनिक साधन मिल जाने की देन है। हरियाणा (और उसके आस पास के राज्यों का) का समाज नई व पुरानी संस्कृति का, स्त्रियों के लिए एक घातक मिश्रण है। इस लिंग अनुपात के गड़बड़ाने से पहले भी हरियाणा स्त्री के लिए सदा असुरक्षित क्षेत्र रहा है। होश सम्भालने के साथ ही मैंने यह जाना कि यहाँ अपने को बचाना एक प्रतिदिन का युद्ध है, जरा सी भी चूक हुई और आप शिकार बन जाएँगी, बलात्कार का नहीं तो नोंचने, छूने, धक्का ही मार देने का, भद्दी टिप्पणियों का। सड़क पर साठ व सत्तर के दशक में सूर्यास्त के बाद लड़कियों का घर से बाहर निकलना खतरनाक हुआ करता था, अपने माता पिता के साथ भी। भाई के साथ बाहर जाना भाई की शामत लाने के समान होता था।
न जाने क्यों हम, हम सबके सब, सच्चाई से इतना कतराते हैं? क्यों नहीं हम स्वीकारते कि समस्या है और समस्या होने पर पीड़िता को सत्रहवीं शताब्दी में धकेलने की बजाए अपराधी को पकड़ कर सजा देते, जल्दी से जल्दी सजा देते ताकि समाज में यह संदेश जाए कि अपराध करोगे तो फिर उस अपराध की सजा भी पाओगे।
वैसे इस देश में स्त्रियों के साथ कोई भी अत्याचार हो तो हम कह सकते हैं कि बच्चा लोग मेरे पीछे पीछे बोलो....
यत्र नार्यस्तु पूज्यते, रमन्ते तत्र.... ब्लाह ब्लाह ब्लाह!
घुघूती बासूती
औरत के प्रति इस अन्याय और अत्याचार की दृष्टि का सम्बन्ध वोट से भी है। चौटालों को खापें वोट दिलाती हैं । चरण सिंह का नजरिया भी ऐसा था- 'औरतों को नौकरी करने की जरूरत नहीं।'
ReplyDeleteऔर वोट तो घर का 'गार्जियन' ही तय करता है- चाहे रोहतास हो या रोपड़ ।
21 वीं सदी में ऐसी घटनाएँ, ऐसे बेतुके बयान और कदाचित निम्नस्तरीय सोच....? कौन कहता है की मनुष्य चाँद से आगे निकल पड़ा है......?
ReplyDelete@ यत्र नार्यस्तु पूज्यते, रमन्ते तत्र.... वर्तमान हालातों को देखकर तो यही लगता है की ये सब कहने की बातें हैं,,,,
गहन चिंतन , विचारणीय पोस्ट......
यही त्रासदी है हमारे देश की , समाज की ……………पता नही कब समझेंगे स्त्री का महत्त्व ………शायद तब जब एक एक को अपना बेटा ब्याहने के लिये लडकी ही उपलब्ध नही होगी क्योंकि ना देश से ना समाज से ये उम्मीद कर सकते हैं कि इन मे कोई सुधार लायेगा या प्रयत्न भी करेगा क्योंकि कानून बनाना महज़ ढकोसला ही साबित होता है ।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteये यही पर ख़त्म नहीं हुआ है और सुनिए खाप की पंचयती एक विद्वान विज्ञानं बता रहे है
ReplyDelete"चुकी पहले लड़कियों की रजस्वला की आयु 15-16 होती थी इसलिए सरकार ने विवाह की आयु 18 रखी थी किन्तु अब रजस्वला की आयु घट कर 11-12 साल हो गई है तो उसी अनुपात में विवाह क आयु भी घटा देनी चाहिए ।" ये मुस्लिम खाप से है रजस्वला की आयु कल को और घटी तो ये विवाह की आयु और घटा देने की बात करेंगे ।
एक दुसरे हिन्दू खाप विद्वान् कहते है कि
"दो तरह की आयु होती है एक बायलोजिकल दूसरा मैरिजबल हम दूसरी नस्ल के है जहा हम शरीर से जल्दी बड़े हो जाते है " । मतलब वही कुल मिला कर स्त्री के पास जब इस लायक शरीर हो जाये की वो किसी पुरुष के बार बार शारीरिक संबंधो को बनाने को बर्दास्त कर ले दर्द से मर न जाये बीमार न पड जाये तो वो विवाह के लायक हो गई है क्योकि विवाह का अर्थ तो मात्र शरीरिक सम्बन्ध बनाना है और फिर उसके परिणाम की उपज बच्चे को जन्म देना ।
आज कांग्रेसी नेता जी तो और आगे बढ गए बोलते है की कोई बलात्कार हो ही नहीं रहा है सब आपसी सहमती से हो रहा है , असल में 90% मामला प्रेम में आपसी सहमती से बना शारीरिक सम्बन्ध है जिसे बलात्कार का नाम दिया जा रहा है । आज कल कांग्रेस में दस का दम खेला जा रहा है कितने प्रतिशत पंजाबी नशेडी है कितने % बलात्कार सही है ।
हर दूसरी तीसरी बात पर पुर परिवार का सामाजिक बहिष्कार करने वाली खाप कभी किसी बलात्कारी का सामाजिक बहिष्कार करने का फरमान क्यों नहीं देती है ।
चौटाला और खाप की टिप्पणियाँ उनकी गिरी हुई सोच को ही दर्शाती है..
ReplyDeleteआपकी पोस्ट में एक उबाल है जो कि हर एक के मन में उठ रहा है.. हरियाणा में हमेशा ही खतरा रहा है सत्य है.. पर ऐसे फ़ालतू टिप्पणियों से हालात और ख़राब होंगे.. ऐसी दकियानूसी सोच या सोचने वालों का ख़त्म होना ज़रूरी है नहीं तो पथ गंभीर है..
पता नहीं किस संस्कृति के उपासक हैं सब..
ReplyDeleteखाप के संस्कार तालिबानी हैं.
ReplyDeleteपुरुष प्रधान समाज में पुरुष ही तालिबानी हैं .
ReplyDeleteयहाँ विकास भी आंशिक ही है .
तालिबानी मानसिकता हमारे यहाँ भी!ये खेपवाले लडकों और आदमियों के लिये कोई आचार-संहिता,या नियमावली क्यों नहीं बनाते?
ReplyDeleteअब तो आये दिन ऐसे फरमान आते हैं ...... हम आगे बढ़ रहे हैं या पीछे लौट रहे हैं समझनाही मुश्किल है .....
ReplyDeleteचौटाला जी के फार्मूले पर चलें तो मर्दों को अपनी भूख मिटाने के लिए अब कम उम्र की लड़कियां मिल सकेंगी, यानी बाल वेश्यावृत्ति को विवाह का जामा पहना दिया जायेगा।
ReplyDeleteइस तरह की घटनाओं पर जब चर्चा होती है, तब समाज का असली रूप, लोगों की सोच खुलकर सामने आती है। और हमारी आँखें खुली रह जाती हैं। हम तो समझ रहे थे,हमारा देश बहुत विकास कर चुका है, प्रगति के पथ पर आगे बढ़ रहा है पर लोगों के ऐसे बयान बता देते हैं कि हम कहाँ हैं।
ReplyDeleteकितनी सदी और लगने वाली है स्त्री जाती को आत्मसम्मान सहित जीने में, उसे अपना अस्तित्व वापस मिलने में।
बहुत ही दुखद और शर्मनाक है, सारा वाकया
--- भारत को स्वतंत्र हुए ६० वर्ष होगये वलात्कार बढे हैं या घटे हैं ? अन्य दुनिया को विज्ञान, प्रगति, स्त्री-स्वतन्त्रता आदि चिल्लाते चिल्लाते सदियाँ होगईं क्या उनके यहाँ वलात्कार रुक गए हैं ?
ReplyDelete---क्या आप लोग नहीं मानते कि लडकियाँ जल्द ही वयस्क होने लगी हैं.... यह बाजार में ड्रेस आदि, कम उम्र में ही लड़कों से दोस्ती व प्रेम-विवाह आदि के रिकार्डों से देखा जा सकता है अतः निश्चय ही विवाह की उम्र कम कर देना कोई बुरा उपक्रम नहीं है ....
---वास्तव में जो भी आप लोग यहाँ कहानियाँ कह रहे हैं वे एक तरफा एवं गतानुगतिको लोक वाली सोच हैं....
----अपराध के प्रति कठोर सज़ा आवश्यक परन्तु सिर्फ ....शोर्ट टर्म उपाय है...अपराध के कारणों को दूर करना ही स्थायी उपाय होते हैं अतः लडकियों/स्त्रियों पर रोक-थाम सही है ..."प्रीवेंशन इज बैटर देंन क्योर"
-----साथ ही साथ लड़कों/पुरुषों/ समस्त समाज में आचरण उत्थान के उपाय भी अत्यावश्यक हैं ....अप लोग उसके लिए झंडा क्यों नहीं उठाते ...किसी ने कुछ भी कहा विना सोचे-समझे नारीवादी डंडा लेकर पीछे पड जाते हैं ...पूरे समाज का हित सोचिये एकांगी नारीवादी-पुरुष विरोधी सोच अवैज्ञानिक सोच है ....
aur aapki soch vaigyaanik hai ?
Deletesankreen mansikta vale log aise hi sujhaav dete hai...mere anusaar to balatkariyon ko aisi saja deni chahiye jisse ve kabhi balatkaar karne layak hi na rahe...tabhi kuch sudhar ho sakta hai ...
ReplyDeleteWays to find Happiness in Life
कुतर्कों का कोई प्रत्युतर नहीं होता है।
ReplyDelete'भारत' में - संयोगवश अथवा प्रभु इच्छानुसार - आदिकाल से चली अ रही कथा-कहानियों आदि का यदि सार देखें तो आदिकाल से चली आ रही 'हिन्दू' मान्यतानुसार, ध्वनि ऊर्जा अर्थात ब्रह्मनाद ॐ के स्रोत परम ब्रह्मा द्वारा रचित सम्पूर्ण साकार ब्रह्माण्ड के तीन मुख्य प्रतिरूप, ब्रह्मा, विष्णु, एवं शिव, को 'भारत देश' और इसके निवासी प्रतिबिंबित करते है। पांच अनुभवी अर्थात ज्ञानी-सिद्धों द्वारा बनी पंचायत का मूल पञ्चतत्व अथवा पंचभूत - आकाश अर्थात अंतरिक्ष; पृथ्वी; अग्नि अर्थात ऊर्जा; वायु; और जल - हैं, जिनके बिना किसी भी साकार रूप का अस्तित्व संभव नहीं है। और यहीं पर काल का प्रभाव आ जाता है, क्यूंकि हिन्दू मान्यतानुसार परिवर्तनशील प्रकृति को प्रतिबिंबित करते काल-चक्र में युग विशेष की प्रकृति का रोल आ जाता है। और जैसे हर साकार वस्तु अथवा प्राणी काल के साथ अंततः अंत/ मृत्यु को प्राप्त होता है उसको काल चक्र को सतयुग से कलियुग को चलते माना जाता है - ब्रह्मा के लगभग साढ़े चार अरब वर्ष के एक दिन में सत युग-त्रेता युग -द्वापर युग- कलियुग के योग से बने एक महायुग के लगभग 1000 चक्र का इसी क्रम में निरंतर आना-जाना माना गया है।।। इस कारण कलियुग में मानव की क्षमता निम्नतम जानी गयी है। इस कारण यदि जो पंचायत सत युग में 100 से 75% सही थी वो कलि युग में केवल 25 से 9% के बीच प्रतीत होती है। और यही युगांत के निकट ही होने का संकेत भी जाना जा सकता है!!!
ReplyDeleteनारियों को आगे आकर अपनी बेटियों को सक्षम बनाना होगा शारिरिक रूप से भी और शैक्षणिक रूप से भी । लडकी या नारी केवल पुरुष के भोग की वस्तू या बच्चे पैदा करने की मशीन नही है । उसका अपना एक अलग अस्तित्व है । शिक्षा से सोच पर्िपक्व हो । लडकियों को जूडो कराटे का प्रशिक्षण देना होगा ताकि वे अपनी रक्षा स्वयं कर सकें । सोचें कि कल्पना चावला हरियाणे की ही बेटी थीं । क्या उनका आदर्श लडकियां सामने नही रख सकतीं ।
ReplyDelete