निमन्त्रण
स्त्रियो, अपने भीतर व बाहर झाँककर देखो
देखो शायद तुम्हारा कोई अदृश्य हाथ भी हो
वह हाथ जो
तब ताली बजाता है
जब तुम्हारे दो हाथ
बलात्कारियों से
तुम्हारा बचाव
करने में अपने को
कम पाते हैं।
देखो,
उस हाथ को काटकर फेंक दो
अन्यथा फिर बलात्कार होगा
और वह फिर ताली बजाएगा।
ताली एक हाथ से नहीं बजती
बलात्कार का आरोपी केवल
बलात्कारी नहीं होता
बलत्कृता ही जड़ होती है
इस अपराध की।
कभी वह जीन्स पहन
कभी वह स्कर्ट पहन
कभी वह बॉय फ्रैन्ड रख
कभी देर रात बाहर निकल
कभी वह सर उठाकर
कभी वह बराबरी का नारा लगा
तो
कभी भाई, पिता, पति, ससुर,
देवर, पुत्र या प्रपोत्र द्वारा
खींची हुई लक्षमण रेखा
पार कर
दे आती है बलात्कारी को
निमन्त्रण।
अन्यथा
भारत में बलात्कार?
कैसे सम्भव था?
यहाँ स्त्री पूजक बसते हैं
बलात्कारी तो इन्डिया में रहते हैं।
घुघूती बासूती
सटीक.
ReplyDeleteकम तीखा है, कहीं कुछ कम लग रहा है।
ReplyDeleteबिटिया के घर के सामने एक फ्लैट ले टैम्परेरी तौर पर रह रही हूँ। रसोई में भी सामान सीमित है। मिर्च मसाले भी सारे नहीं हैं। उस पर माँ की भी देखभाल और बिटिया की भी। कमी थी तो जुकाम खाँसी भी हो गया है। अब ऐसे में अधिक तीखी कविता नहीं बन पाई। अभी इस ही से काम चलाइए। अधिक तीखा बाद में फिर कभी।
Deleteतीखा लीजिए
Deletehttp://www.ajeyklg.blogspot.in/2013/01/blog-post.html
अजेय जी,
Deleteसच में तीखा सच लिखा है आपने। क्या अपने फेसबुक स्टेटस में कुछ पंक्तियाँ व लिंक डाल सकती हूँ?
घुघूती बासूती
ghughutibasuti at gmail
बढ़िया कटाक्ष....
ReplyDeleteसादर
अनु
हम्म.. बाबाओं को पूजने वाले हाथ...यही परिभाषा दे सकते हैं. अच्छा कटाक्ष.
ReplyDeleteबलात्कार भारत में होता है। सर्च कीजिए गूगल में..औरत को नंगा करके घुमाया..कई समाचार मिल जायेंगे..इंडिया के नहीं भारत के..वह भारत जहाँ स्त्रियों को देवी मान कर पूजा जाता है।
ReplyDeleteहाँ, मैं जानता हूँ आपने व्यंग्य लिखा है लेकिन मैं सोच रहा हूँ व्यंग्य लिखने से क्या होगा? एक पर लिखो तब तक दूसरा फिर बोलेगा..हम सुनेंगे और कहेंगे.. हे राम! आज क्या बोल गये आशाराम!!
सन्नाट व्यंग...लक्ष्य पर..
ReplyDeleteसमाज में संवेदनहीनता घर करती जा रही है।
ReplyDeleteहाँ ,यहाँ नारी पूजक रहते हैं .
ReplyDeleteअब स्त्रियाँ ऐसे कपडे पहनती हैं,
अँधेरा घिर जाने के बाद घर लौटती हैं ,
उनकी खिंची लक्ष्मण रेखा कर आगे बढ़ जाती है तो फिर उन्हें सही राह दिखाने को सबक तो सिखाना ही पड़ेगा .
उसमे इनका क्या कसूर
इसका उपाय बेहतरीन दिया है, बस अमल की जरूरत है ।
ReplyDelete.
ReplyDelete.
.
बेहतरीन !
...
yaani ab aamane saamnae ki ladaaii kaa samay aa hi gyaa haen
ReplyDeletethe last leg of the war has began ,
its no more live and let other live
its who so ever can survive by killing the other will live
शुक्र है बाबा जी जैसे बयान बहादुर लोग कलयुग में जन्म लिए है द्वापर या त्रेता में नहीं नहीं तो राम और सीता को भी रावण के और द्रौपती सहित पांडवो को कौरवों के पैर में गिर उसे भाई बना रहम की भिख मांगने को कहते , जिस देश में संत कहलाने वालो की ये सोच है तो बाकि को क्या कहे ।
ReplyDeleteकटाक्ष!
ReplyDeleteandhe behre moorkhon ki mehfil
ReplyDeletemein kare kya Draupadi
sabhee vakeel Duhshasan ke mitr hain...!
ajay sinha.
गहरा आक्रोश ... छुब्ध होना स्वाभाविक है ... जब तक समाज में ऐसे लोग हैं जो अपने आपको दिशा देने वाला समझते हैं ... मानसिकता बदलने में कितना समय ओर चाहिए ... समझ नहीं आता ...
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ReplyDeleteसही कहा आपने, हम आखिर जा किधर रहे हैं?
ReplyDeleteरामराम.
सक्षिप्त किन्तु सम्पूर्ण बात।
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteसटीक कटाक्ष सीधे लक्ष्य को भेदता हुआ
ReplyDeleteसार्थक रचना ....कभी कभी स्त्रियों का व्यवहार बलात्कारियों को आमंत्रण देता है…किन्तु पांच साल की बच्ची में भी अपनी दूषित मानसिकता का पोषण करने वालों को आप क्या कहेंगी?
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