न जाने कितने वर्षों के बाद अवचेतन में से यह बचपन का भूला बिसरा शब्द बाहर निकल कर आया। मैं तो इसके अस्तित्व को ही भुला बैठी थी। कुमाँउनी व शायद गढ़वाली मित्र भी इस शब्द को जानते होंगे व शायद मुझसे बेहतर जानते होंगे। मैं तो यह शब्द केवल माँ के मुँह से सुनती थी। भाषा के रंगीले, लचीले, सजीले, मसालेदार, जायकेदार, नाटकीय उपयोग के मामले में माँ अनूठी थीं। उपमा देने, मुहावरे उपयोग करने व शायद गढ़ने, अतिशयोक्ति की सीमा तक लगभग लगभग जाकर लौटने, में भी मैंने उनका सानी कोई नहीं देखा। शायद इसलिए भी कि मैंने कम ही लोगों को देखा सुना है, 'थीं' इसलिए कि शब्दों की यह जादूगरनी अब कुछ महीनों से शब्दों का बहुत कम उपयोग करती हैं व जो करतीं भी हैं वे समझना अब कठिन होता है।
आज शाम मैंने भाई को फोन किया उन्हें अपने मकान बदलने का कार्यक्रम सूचित किया। उन्होंने माँ से बात करवाई। भाई बीच में मध्यस्ध भी बने, मेरी बात माँ को समझाई, माँ की मुझे। मैं उनसे बात कर रही थी। उन्हें बता रही थी कि कैसे मेरा पुराना सहायक, कुक कुछ दिन के लिए मेरी सहायता करने गुजरात से आया है। अचानक माँ व भाई के हँसने पर मैंने पूछा कि क्या हुआ। भाई बोला कि बहुत दिन बाद उसने खड़पट्ट शब्द सुना और माँ भी यह शब्द सुन हँस रही हैं।
मैंने कहा था कि 'तीन तीन कामवाली रखी थीं और तीनों की खड़पट्ट हो गई। आखिर काम आया वही पुराना मेरा भीम।' मैंने भाई से कहा माँ से पूछकर मुझे खड़पट्ट का एकदम सही शाब्दिक अर्थ बताओ। भाई बोला सोचकर बता पाएँगे। किन्तु वे दोनो तब भी मेरी बात को मजेदार मान हँस रहे थे। और मैं चकित थी कि मस्तिष्क के किस छिपे पिटारे में से निकालकर यह शब्द मैं लाई थी। याद नहीं कि पिछली बार कब यह शब्द उपयोग किया था। शायद विवाह से पूर्व, शायद हॉस्टेल जाने से भी पूर्व! शायद शब्द कभी मरते नहीं, बस उपयुक्त अवसर पा कुकुरमुत्ते की तरह उग आते हैं।
मेरा स्वास्थ्य परेशान करता है, उसपर कभी फ्रैक्चर तो कभी कुछ और। हर बार बेटियाँ भागी आती हैं। जिससे उनकी छुट्टियाँ व पैसा दोनो व्यर्थ जाते हैं। मैं उनके आने का सदुपयोग करना चाहती हूँ, उनके साथ यादगार समय बिताना चाहती हूँ, न कि उनसे अपनी सेवा करवाकर वह बहुमूल्य समय गँवाना चाहती हूँ। सो मैंने तीन अलग कामवालियाँ लगा लीं यह सोच कि कोई न कोई तो आएगी ही और फिर बेटियाँ मेरे बीमार होने पर आने की बजाए मेरे ठीक रहने के दौरान हमारे साथ आनन्द मनाने आएँगी। एक को झाड़ू पोछे के लिए, एक को बर्तन के लिए तो एक को रोटी के लिए। यह बेटियों की दौड़ भाग से सस्ता उपाय है। जितना नागा मेरी नवीं मुम्बई वाली कामवालियाँ करती हैं वह देख यदि तीन में से दो कामवालियाँ भी आ जाएँ तो बड़ी बात होती है। एक भी आ जाए तो मैं स्वयं को भाग्यवान मानती हूँ। किन्तु तीनौं का न आना? यह तो खड़पट्ट होने का उत्कृष्ट उदाहरण है। यदि आपने आँगन में तीन बल्ब लगाए हों और अमावस की रात तीनों गुल हो जाएँ तो कहा जाएगा कि तीनों बल्ब खड़पट्ट हो गए। अब मकान बदलने के समय का काम और ऐसे में तीनों का गायब होना! ऐसे में ही आपको यह बोध होना कि जिसे आप आज तक मेरुदन्ड के नाम से जानते थे वह केवल और केवल दन्ड ही है, एक अलचीला दन्ड (डंडा)है, जिसे आप झुका नहीं सकते, घुमा नहीं सकते, मोड़ नहीं सकते बस सदा सावधान की स्थिति में रख जी सकते हैं। यह शायद बना ही आपको दंड देने को है। तब आप जान जाते हैं कि कामवालियों के साथ साथ आपकी पीठ की भी खड़पट्ट हो गई है। और यह जानना समझना सब अवचेतन में अनायास ही होता है। तब आप माँ को अनायास ही कह देती हैं कि 'मेरी तीनों कामवालियों की खड़पट्ट हो गई है।'
घुघूती बासूती
Saturday, March 05, 2011
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ha ha...
ReplyDeleteमातृभाषा के कम होते जाते प्रयोग में कई शब्द अचानक से जुबान पर आते हैं तो आश्चर्य में घिर ही जाना होता है की क्या हम इन शब्दों को भी जानते रहे हैं ..
ReplyDeleteखड़पट्ट का अर्थ आपने बाखूबी समझाया है!
ReplyDeleteअपनी पाश्चात्य जीवन शैली विकसित करते हुए, हम कामवाली बाइयों पर निर्भरता से अब शायद उपर उठने का समय आ गया है.
ReplyDeleteखड़पट्ट (जगह खाली होना या मर जाना) पर आपने बहुत सुन्दर कहानी लिखी है| धन्यवाद|
ReplyDeleteखड़पट्ट को हमारे यहाँ खटर-पटर से अभिहित किया जाता है.
ReplyDeleteयह आंचलिक बोलियाँ अब अवसान पर हैं.
खड़पट्ट...हा हा! बहुत मस्त!!
ReplyDeleteभोजपुरी / अवधी में 'बिला जाना' शायद इसी खड़पट्ट को ही कहते हैं (कन्फर्म नहीं कह सकता :)
ReplyDelete"khadpatt " शब्द को तब प्रयोग में लाया जाता है जब कोई बात अचानक होती नजर आये जैसे आप कोई खास कम कर रहे है और अचानक कोई वहन पर आजाये जिसका सीधा सम्बन्ध उस काम या बात से हो तो प्रयोग करते है khadpatt फलां व्यक्ति आ गया . अच्छा सन्देश एवं प्रयोग अपने आंचलिक शब्द का
ReplyDeleteये शब्द पूरे के पूरे अर्थ लिये हैं, न जाने कितने उदाहरण इसमें जुड़े होंगे।
ReplyDeleteहमने खटपट तो सुना था जिसका मतलब होता है लड़ाई । शायद यह हरयाणवी में कहते हैं ।
ReplyDeleteपट्ट + खड़ा होने पर क्या वही स्थिति बनती है जो ’खटिया खड़ी ’ होने पर बनती है ? पूर्वांचल में ’खटिया खड़ी,बिस्तरा गोल ’- क्या खड़पट्ट की स्थिति इसके करीब है?
ReplyDeleteलपूझन्ना पाण्डे प्रकाश डालें !
"भाषा के रंगीले, लचीले, सजीले, मसालेदार, जायकेदार, नाटकीय उपयोग के मामले में माँ "- इस तथ्य से आनुवंशिकी समझी जा सकती है !
बहुत ही सुंदर शब्द मिला खडपट्ट...अब मैं भी सोच रहा हूं कि इसे कहां सुना था? क्योंकि दिमाग में यह छुपा बैठा है, कभी ना कभी इसको सुना जरूर है आज से पहले भी.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत ही सुंदर शब्द मिला खडपट्ट...अब मैं भी सोच रहा हूं कि इसे कहां सुना था? क्योंकि दिमाग में यह छुपा बैठा है, कभी ना कभी इसको सुना जरूर है आज से पहले भी.
ReplyDeleteरामराम.
ब्लागर बिरादरी में भी यह होता आया है..
ReplyDeleteखड़पट्ट...
इसका मतलब शायद 'ऐन वक़्त पर धोखा' होना चाहिए !
ReplyDeleteकाम वाली हों या कामवाला सब लोग आजकल सिर्फ़ नौकरी करना चाहते हैं, काम कोई नहीं..
ReplyDeleteआपका खड़पट्ट ज़रूर याद रहेगा, कभी कभी हमारी बोली के शब्द कहीं दूर छूट जाते हैं...
खड़पट्ट मतलब निढाल होकर गिर जाना भी हुआ.
ReplyDeleteकल बरायनाम भी कुछ इसी तरह कहीं स्मृति से मेरे संज्ञान में गिरा. मेरी दादी इसका इस्तेमाल करती थी.
आपकी बाइयों की अनुपस्थिति के बहाने हमें एक नया शब्द जानने को मिल गया....:)
ReplyDeleteपर कामवाली बाइयों का ना आना...कितना तकलीफ है....समझ सकती हूँ.
मेरी तो प्रार्थना रहती है...भगवान मुझे बुखार दे दे ,पर उन्हें महफूज़ रखे हर बला से {इसी शीर्षक से उनपर एक पोस्ट भी लिख डाली थी :)}
takniki kaarno se vilamb se pahunch hun, koi khat-pat nahi hui hai ....
ReplyDelete.
ReplyDelete.
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आदरणीय घुघुती जी,
पुराना शब्द है, अब ज्यादा प्रयोग नहीं होता, दोनों आमा अक्सर प्रयोग करती थीं, आपका आलेख पढ़ा तो ईजा व ठुलईजा से पूछा...
प्रयोग इस प्रकार हैं...
१- 'इनर घर में तो अनाजक तलक खरपट्ट है रीं' = इनके घर में तो अनाज तक का अभाव रहता है।
२- 'के नी चलन उनर दुकान, खरपट्ट है गो सब'= उनकी दुकान कुछ नहीं चलती, ठप हो गया है सब ।
मतलब साफ है यह शब्द किसी पदार्थ या धन आदि के अभाव या खत्म हो जाने तथा किसी धंधे आदि के चौपट/ठप हो जाने के अर्थ में प्रयोग होता है।
कामवालियों के मामले में आपका किया गया प्रयोग शायद सही नहीं है इसीलिये शायद माँ हंस रहीं थी... :)
...
chaliye kisi bhi bahane ek naya shabd to seekhne ko mila........
ReplyDeleteखड़पट्ट का अर्थ तो समझ आ गया..
ReplyDeleteपर क्या यह शुद्ध हिन्दी शब्द है या फिर किसी एक जगह-राज्य में बोली जाने वाली भाषा का एक शब्द? बताइयेगा ज़रूर..
राहुल सिंह, आपकी बात बिल्कुल सही है, किन्तु पश्चिम में न तो भारत की धूल है (जिसके लिए नित झाड़ू पोछा, डस्टिंग करनी पड़ती है, हो सके तो दिन में दो बार! ), न भारतीय पद्धति का खाना जहाँ पकाने बवाली को नित खटना पड़े, न भारतीय पति व परिवार जिन्हें पानी का गिलास भी हाथ में चाहिए।
ReplyDeleteअफलातून, आपका खट को खटिया से जोड़ खड़पट्ट को खटिया खड़ी होने से जोड़ना काफी सही लग रहा है। शायद कुछ साम्य है।
अली, शायद आप सही हैं। काश माँ अधिक बात कर पातीं और मुझे अर्थ समझा पातीं।
रश्मि, बाइयों को अनुमान नहीं, उन्होंने मेरा कितना पैसा व सामान बचा दिया। मैं उन्हें कितना व क्या क्या देकर आऊँगी यह तय कर चुकी थी।
प्रवीण शाह, मैं अब भी अपनी वाली खड़पट्ट पर कायम हूँ। हो सकता है कि मैं गलत होऊँ किन्तु मुझे यह उपयोग जम रहा है।
प्रतीक माहेश्वरी, यह शब्द विशुद्ध आँचलिक है। यह उत्तराखंड का शब्द है। मेरी जानकारी में वहाँ बोली जाने वाली दो भाषाओं कुमाउँनी व गढ़वाली में से कुमाउँनी का तो शब्द है ही, शायद गढ़वाली का भी है।
घुघूती बासूती
हंसी आ गई।
ReplyDeleteवैसे हमारे यहाँ हैदराबाद में इस तरह काम पर न आने को डुम्मा मारना कहते हैं।
खड़पट्ट.
ReplyDeleteएक नए शब्द से पहचान करवा दी आपने.
सलाम.