Thursday, February 10, 2011

लुढ़कते पत्थर

रोलिंग स्टोन, रमता जोगी, बिन पेंदी का लोटा या लुढ़कते पत्थर! पता नहीं शब्द कौन से सही हैं किन्तु भाव को बिल्कुल सही पहचानती हूँ। जब से इतनी समझ आई कि योजनाएँ बनाई जा सकती हैं, कल के लिए कुछ सोचा जा सकता है तब से यह भी पता है कि कुछ भी स्थाई नहीं होता, कल क्या होगा यह कहा नहीं जा सकता, सबसे बड़ी बात तो यह है कि यही एक बात निश्चित है कि जहाँ आज हैं वहाँ सदा नहीं रहेंगे कल या परसों यहाँ से सब सामान बाँध चल पड़ना है।

जहाँ इस अनिश्चितता से परेशानी होती है, यह समझ नहीं आता कि इतने परिश्रम व शौक से जो पसन्दीदा झूला बुना है उसे टाँगने को अगले घर में कोई छत का टुकड़ा मिलेगा या नहीं, बड़ी वाली पेन्टिंग टाँगने को कोई बड़ी दीवार मिलेगी या नहीं, किस किस पेन्टिंग या सजावटी सामान को बाहर की हवा लगेगी और कौन कौन सा अन्दर बन्द रहेगा। गर्म कपड़े फिर कभी बाहर निकलेंगे या सदा के लिए डामर की गोलियाँ ही सूँघते छोटे होते जाएँगे (सिकुड़कर नहीं किन्तु पहनने वालों के मोटे होते जाने के दुख में),कभी ये जानपहचान वाले फिर से मिलेंगे या नहीं,सहेलियों मित्रों के साथ फिर कभी ठहाके लगा पाएँगे या नहीं(मुम्बई में तो यह समस्या भी नहीं,मुझे तो केवल कौए व कबूतर ही याद करेंगे और मैं उन्हें याद करूँगी,कुछ दिन तो वे अन्डों की जर्दी व प्लेट में रखे रोटी के चूरे को याद करेंगे ही )फिर कभी ये पहाड़ देखने को मिलेंगे क्या या एक ही घर से पहाड़ पर से होता हुआ सूर्योदय व खाड़ी पर होता सूर्यास्त देखने को मिलेगा क्या,फिर कभी अपने पारिवारिक डॉक्टर सा भला डॉक्टर मिलेगा क्या,किसी सामने की छत पर कव्वे दिखेंगे क्या,बारहवीं मंजिल से पक्षियों की उड़ान को ध्यान से देखना,उनका उड़ते उड़ते अचानक दिशा बदलना, यहाँ आने तक तो सदा उन्हें नीचे से ही देखा था किन्तु यहाँ उनके पंखों को उड़ान के दौरान ऊपर से भी देखना आदि आदि, क्या यह सब फिर कभी होगा?

वहीं इस भटकन, यायावरी जीवन के बहुत से लाभ भी हैं। लाभ कुछ यूँ हैं कि जब भी हम कहीं गए हैं तो यह जानते हुए गए हैं कि हम यहाँ कुछ समय के लिए ही हैं जो भी समस्याएँ होंगी वे भी जीवन में अस्थाई ही होंगी,यहाँ से जाना तो होगा ही। जानते हैं कि फिर से यही छत तो नहीं टपकेगी,यही धूल तो नहीं होगी,यह गर्मी/ सर्दी शायद फिर न झेलनी पड़े, इस सब्जियों के अकाल को न झेलना पड़े, यह पानी की समस्या नहीं रहेगी, भाषा की समस्या भी न रहेगी, यह महीने में १० दिन छुट्टी करने वाली बाई से भी पाला कुछ समय का ही पड़ा है।

मुम्बई के मामले में... इस सड़क पर आते जाते ट्रैफिक का शोर नहीं सुनना पड़ेगा, साथ के प्लॉट पर जो भूमि पूजा हुई है, वहाँ बनते मकान के शोर, धूल नहीं झेलनी पड़ेगी,पड़ोसिन का साझे आँगन को हड़पने का महीने पन्द्रह दिन में जो बुरा लगता था वह भी सदा नहीं रहेगा।

हर समय यह अहसास रहता है कि स्थान, मकान, पड़ोस से जुड़े सुख दुख अस्थाई हैं। यहाँ के दुख यहाँ से जाते ही समाप्त हो जाएँगे, देखते ही देखते जाने का समय आ जाएगा, सुखों को जी भर कर जियो क्योंकि वे भी अस्थाई हैं। तभी तो मैं पेड़ पौधों, कबूतर, कौवों, पक्षियों, खाड़ी, पहाड़ों को देखते नहीं थकती, उन्हें याद कर लेना चाहती हूँ, उन्हें देखते समय होती अनुभूति को याद कर लेना चाहती हूँ। किसी अच्छे स्नेहिल डॉक्टर, दुकानदार, सब्जीवाली को सदा के लिए याद रखने को अपने आप को कहती हूँ।

डॉक्टर से याद आया कि एक बार माँ काफी बीमार हो गई थीं और ८७ वर्षीया बीमार माँ को डॉक्टर के पास ले जाना कठिन था सो उनसे ही घर आने का अनुरोध किया। वे आए भी और कई बार आए, कुछ अलग फीस भी नहीं ली, पूछने पर भी एक भरपूर मुस्कान भर बिखेर दी। एक बार तो डॉक्टर जब जाने ही वाले थे तो दरवाजे की घंटी बजी, कामवाली आई और उसने बताया कि वह आधे घंटे से नीचे ही बैठी थी लिफ्ट के ठीक होने की प्रतीक्षा में और ठीक होने पर ही आई। दो लिफ्ट होने पर भी दोनो एक साथ खराब हो गईं थीं और उसने बताया कि डॉक्टर १२ मंजिल सीढ़ी चढ़कर आए थे। मैं तो आश्चर्यचकित रह गई। उन्होंने तो आने पर बताया भी नहीं था, शिकायत भी नहीं की थी, चेहरे पर कोई नाराजगी, परेशानी के भाव भी नहीं आए थे। मेरे उन्हें इतना कष्ट देने पर क्षमा माँगने पर वे केवल मुस्करा दिए थे। डॉक्टर का यह व्यवहार मैं जीवन भर नहीं भूलूँगी। क्या ऐसे एक भी मनुष्य से मिलना मानवता व भलाई पर विश्वास रखने को काफी नहीं है?

कौवो, तुम कुछ समय बाद अपना नाश्ता भूल जाओगे, हर खिड़की, बालकनी पर रहने वाले कबूतरों के जोड़ो, तुम भी रोटी का चूरा भूल जाओगे। किन्तु मैं तुम्हें याद रखूँगी, मैंने तुम्हें सदा प्रेमी प्रणयी युगल के रूप में एक दूजे को प्यार से गुटरगूँ कर दुलारते ही देखा है, कभी झगड़ते नहीं देखा। यदि हम मानव तुमसे यह एक दूजे से बात करने, साथ रहने का गुण सीख जाएँ तो...। पहले मैं तुम्हें तुम्हारी टिक्स/चिचड़ी याने पक्षियों व जानवरों पर रहने वाले परजीवियों के कारण भगाती रहती थी फिर घुघूत ने कहा कि अपने नाप के प्राणियों से ही पंगा लो इतने से कबूतरों से नहीं। मकान को बाँट लो, बाहर का हिस्सा जैसे बाल्कनी, खिड़की के छज्जे आदि उनके, अन्दर का हिस्सा हमारा। तब से शान्ति है। वे भी खुश और हम भी।

ऐसी ही यादें कुछ मधुर कुछ थोड़ी कटु या खट्टी, लेकर मैं नवीं मुम्बई को भी विदा कर दूँगी। मुम्बई, मैं आ रही हूँ।

घुघूती बासूती

36 comments:

  1. फिर घुघूत ने कहा कि अपने नाप के प्राणियों से ही पंगा लो इतने से कबूतरों से नहीं। मकान को बाँट लो, बाहर का हिस्सा जैसे बाल्कनी, खिड़की के छज्जे आदि उनके, अन्दर का हिस्सा हमारा। तब से शान्ति है। वे भी खुश और हम भी।
    ..ghughut se gaon kee yaad aa gayee.. kitne pyari aawaj mein ghututi-ghuti kahta hain n!
    ....ऐसी ही यादें कुछ मधुर कुछ थोड़ी कटु या खट्टी, लेकर मैं नवीं मुम्बई को भी विदा कर दूँगी। मुम्बई, मैं आ रही हूँ।
    ...khati-mitthi yaden hi to jehan mein rah jaati hain... naye sthan parivartan kee haardik shubhkamna

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  2. har jagah ka apna gam....apni khushi hoti hai... isiliye to kahaa gayaa naa kabhi khushi...kabhi gam.....isilye ham kuchh nahin bolenge....kyunki ham bolenge to bolrga ki boltaa hai....

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  3. वह डाक्टर तो मुझे भी याद रहेगा हमेशा।

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  4. यायावरी के लाभों पर कोई पुस्तक लिखें तो दो अध्याय मैं भी लिख दूँगा।

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  5. डॉक्टर साहब की तरह के लोग ही मानवता पर विश्वास जागृत रखवाये हैं...उम्दा लेखन.

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  7. सोचता हूं उस डाक्टर के बारे में जो निश्चय ही आपकी मीठी यादों का हिस्सा है और ...उनके बारे में भी जो कडुवाहट का अंश दे गये ! आप जहां भी रहे बस एक ही दुआ / एक ही प्रार्थना / एक ही शुभकामना / एक ही आशीष कि प्रकृति से घुघूती का सम्बन्ध बना रहे !
    समय आ ही गया कि घुघूती का अपना घोंसला वृक्षों की फुनगियों सी ऊंचाई और विराट जलराशि के निकट हो जहां वो दूसरे परिंदों के साथ चहचहा सके :)

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  8. अच्‍छी पोस्‍ट। यायावरी के लाभों पर महापण्डित राहुल सांक़ृत्‍यायन के ग्रन्‍थ 'घुमक्‍कड़शास्‍त्र' को पढ़ा जा सकता है। राहुल जी के कथनानुसार हमें इन शब्‍दों से प्रेरणा लेनी चाहिए-
    सैर कर दुनिया की गाफिल जिन्‍दगानी फिर कहॉं।
    जिन्‍दगी गर कुछ रही तो नौजवानी फिर कहॉ।

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  9. डाक्टर साहब जैसे नेक इंसानो पर ही संसार की नींव टिकी है|

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  10. तू नहीं और सही, और नहीं और सही की तर्ज पर नवी से ओरिजिनल मुम्बई की तरफ आप!

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  11. रोचक आलेख.अच्छा लगा पढ़ कर.

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  12. मुंबई में स्वागत है आप का | यहाँ की चीजे आप के लिए समस्या है या सहायक ये तो नहीं बता सकती क्योकि ये आप की जरूरतों पर निर्भर होगा | बस एक बात पूछनी थी आप वही घुघूती बासूत है या कोई नकली तो नहीं सुना की लोगों को सक है की आप के नाम से कोई और टिप्पणिया दे रहा है :))

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  13. रोचक आलेख। मानवता का परिचायक डॉक्टर साहब से मिलकर अच्छा लगा।

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  14. Banjaron kee-si zindagi maine bhi jee hai!Nagari,nagari,dware,dware...
    Aapko padhna hamesha achha lagta hai!
    Pune kab aa rahee hain?

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  15. रोचक ....वैसे यायावरी के भी अपने लाभ हैं.....

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  16. @घुघूत ने कहा कि अपने नाप के प्राणियों से ही पंगा लो इतने से कबूतरों से नहीं। मकान को बाँट लो, बाहर का हिस्सा जैसे बाल्कनी, खिड़की के छज्जे आदि उनके, अन्दर का हिस्सा हमारा।
    सही जोडी है आपकी। ईश्वर दोनों को सलामत रखे!

    @वहीं इस भटकन, यायावरी जीवन के बहुत से लाभ भी हैं। जब भी हम कहीं गए हैं तो यह जानते हुए गए हैं कि हम यहाँ कुछ समय के लिए ही हैं जो भी समस्याएँ होंगी वे भी जीवन में अस्थाई ही होंगी,यहाँ से जाना तो होगा ही।
    45 वर्षों में 31 घर बदलने वाला मैं आपकी बात को समझ पा रहा हूँ। इसी बात पर मित्रों की सहायता से गढा एक (नहीं, दो) शेर मुलाहिज़ा फरमाइये:

    जल बहता है अनिकेत यायावर
    सब जग अपना कोई कोना क्या

    जग सत्य नहीं बस माया है
    इसे पाना क्‍या और खोना क्‍या


    इसमें बंजारेपन का छोटा विकल्प ढूंढ रहा था - आपकी यह पोस्ट पढने के बाद ही "यायावर" याद आया - बरसों हो गये यह शब्द सुने हुए।

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  17. रोचक और बढ़िया पोस्ट,आभार.
    रोचक और बढ़िया पोस्ट,आभार.

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  18. Welcome!! Welcome!! Welcome!!

    तो हमने बुला ही लिया आपको,अपनी तरफ:):)

    आप जहाँ भी रहेंगी, सकारात्मकता ढूंढ ही लेंगी....क्यूंकि वो तो आपके अंदर है
    चलिए...अब कुछ और नए नए विषय पर पोस्ट पढने को मिलेगी..फायदा हमारा ही है.:)

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  19. यायावरी के अपने फायदे और नुकसान ...
    रोचक ..!

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  20. बेहद रोचक पोस्ट …………डाक्टर साहब को नमन्……………शायद ऐसे लोगो के कारण ही मानवता ज़िन्दा है।

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  21. अंशुमाला, मुझे तो यह बात पता नहीं कि कोई और घुघूती बासूती के नाम से टिपिया रहा है। वैसे मेरा भी यह छद्म नाम ही है किन्तु अब यह मेरा पर्याय बन गया है। मैं तो बहुत समय से बहुत कम ही टिप्पणी कर रही हूँ। नेट पर लिखना पढ़ना कम हो गया है।
    यदि कहीं शक हो रहा है तो कृपया लिंक दीजिए। आभार।
    घुघूती बासूती

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  22. किसी ने अपने ब्लॉग पर आप की टिप्पणी पर सक जाहिर किया था आप ने उसका भी जवाब दे दिया है वही पर और नारी ब्लॉग पर भी |

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  23. १२ मंजिल चढ़कर आया डॉक्टर !
    यह तो अपने आप में ही एक प्रेरणात्मक उदाहरण है ।

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  24. शहरों का भी चरित्र होता है और वह चरित्र लोगों और आपके अनुभव से ही बनता है.

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  25. यायावर होन अच्छी बात है..................ज्ञान का विस्तार होता है।


    मैं वृक्ष हूँ। वही वृक्ष, जो मार्ग की शोभा बढ़ाता है, पथिकों को गर्मी से राहत देता है तथा सभी प्राणियों के लिये प्राणवायु का संचार करता है। वर्तमान में हमारे समक्ष अस्तित्व का संकट उपस्थित है। हमारी अनेक प्रजातियाँ लुप्त हो चुकी हैं तथा अनेक लुप्त होने के कगार पर हैं। दैनंदिन हमारी संख्या घटती जा रही है। हम मानवता के अभिन्न मित्र हैं। मात्र मानव ही नहीं अपितु समस्त पर्यावरण प्रत्यक्षतः अथवा परोक्षतः मुझसे सम्बद्ध है। चूंकि आप मानव हैं, इस धरा पर अवस्थित सबसे बुद्धिमान् प्राणी हैं, अतः आपसे विनम्र निवेदन है कि हमारी रक्षा के लिये, हमारी प्रजातियों के संवर्द्धन, पुष्पन, पल्लवन एवं संरक्षण के लिये एक कदम बढ़ायें। वृक्षारोपण करें। प्रत्येक मांगलिक अवसर यथा जन्मदिन, विवाह, सन्तानप्राप्ति आदि पर एक वृक्ष अवश्य रोपें तथा उसकी देखभाल करें। एक-एक पग से मार्ग बनता है, एक-एक वृक्ष से वन, एक-एक बिन्दु से सागर, अतः आपका एक कदम हमारे संरक्षण के लिये अति महत्त्वपूर्ण है।

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  26. यायावर होन अच्छी बात है..................ज्ञान का विस्तार होता है।


    मैं वृक्ष हूँ। वही वृक्ष, जो मार्ग की शोभा बढ़ाता है, पथिकों को गर्मी से राहत देता है तथा सभी प्राणियों के लिये प्राणवायु का संचार करता है। वर्तमान में हमारे समक्ष अस्तित्व का संकट उपस्थित है। हमारी अनेक प्रजातियाँ लुप्त हो चुकी हैं तथा अनेक लुप्त होने के कगार पर हैं। दैनंदिन हमारी संख्या घटती जा रही है। हम मानवता के अभिन्न मित्र हैं। मात्र मानव ही नहीं अपितु समस्त पर्यावरण प्रत्यक्षतः अथवा परोक्षतः मुझसे सम्बद्ध है। चूंकि आप मानव हैं, इस धरा पर अवस्थित सबसे बुद्धिमान् प्राणी हैं, अतः आपसे विनम्र निवेदन है कि हमारी रक्षा के लिये, हमारी प्रजातियों के संवर्द्धन, पुष्पन, पल्लवन एवं संरक्षण के लिये एक कदम बढ़ायें। वृक्षारोपण करें। प्रत्येक मांगलिक अवसर यथा जन्मदिन, विवाह, सन्तानप्राप्ति आदि पर एक वृक्ष अवश्य रोपें तथा उसकी देखभाल करें। एक-एक पग से मार्ग बनता है, एक-एक वृक्ष से वन, एक-एक बिन्दु से सागर, अतः आपका एक कदम हमारे संरक्षण के लिये अति महत्त्वपूर्ण है।

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  27. डाक्टर साहब जैसी भद्र व्क्यक्तियों पर ही धरा का अस्तित्वा बना हुआ है

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  28. महादेवी वर्मा की याद आ गई....उनकी गिल्लू,गौरा, मोती और तमाम साथी...

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  29. यह सब पढ़कर लगा आपकी जि‍न्‍दगी में काफी वि‍स्‍तार है...लेकि‍न अतीत को कि‍तना ढोए आदमी, आज अभी से गले मि‍लने के लि‍ये जरूरी है कि‍ उससे सि‍र पर रखा बोझ कहीं फेंककर मि‍लें, नहीं ??

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  30. वर्तमान में रहि‍ये ना कबूतरों की तरह

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  31. नमस्कार, आज आप के ब्लाग के बारे में राजस्थान पत्रिका के रंगीन पेज पर बहुत अच्छा सा आार्टिकल छपा है ! आप पढ़ियेगा जरुर !

    अनजान

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  32. आस पड़ोस ही नहीं इस जीवन के ही सारे सुख दुःख अस्थाई हैं | सुख दुःख के बीच संतुलन बनाते हुए जीना ही जीवन्तता है | कविवर पन्त के शब्दों में -

    मैं नहीं चाहता चिर दुःख मैं नहीं चाहता चिर सुख
    मानव जीवन बाँट जाए
    सुख दुःख में औ दुःख सुख में |

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  33. ैआप सदा खुश रहें यही प्रार्थना है। दुख मे सुख तलाश लेना ही जीवन है। शुभकामनायें।

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  34. भाउकता में लिखी सच्ची-सच्ची बातें गहरा प्रभाव डालती हैं। डाक्टर साहब जैसे लोग धरती में कम हैं। यह सौभाग्य है कि हम उन्हें महसूस कर पाते हैं। ये पाये जाते रहें इसके लिए हमें उन्हें महसूस करने लायक अच्छा तो बनना ही पड़ेगा।
    आपकी पोस्ट पढ़कर याद आया कि आज ही सुबह, बहुत दिनो बाद गौरैया का जोड़ा दिखा था।

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