परसों ही मैंने कविता लिखी 'क्या बेहतर न होता'
यदि
मानव आदिमानव ही रहता
न फर गँवाता.......
और देखिए कल के समाचार पत्रों में ही मनुष्य के फर तजने/ खोने, कपड़े पहनना शुरू करने की पूरी कहानी बताई गई। मानव ने एक लाख सत्तर हजार साल पहले कपड़े पहनना शुरू किया। मानव तब अफ्रीका में ही था। उसने एक लाख साल पहले अफ्रीका से बाहर बसना शुरू किया। अर्थात कपड़े पहनना शुरू करने के सत्तर हजार साल बाद उसने अफ्रीका से बाहर जाना शुरू किया। शायद कुछ ढंग के कपड़ों का निर्माण करने के कारण ही वह ठंडी जगहों में भी रहने का साहस कर सका।
यह भी पता चला कि मानव ने फर या शारीरिक बाल कपड़े पहनना शुरू करने के बाद नहीं खोए। अपितु शारीरिक बाल खोने के बहुत बाद उसने कपड़े पहनने की सोची। मानव ने फर लगभग दस लाख साल पहले खोए। लगभग आठ लाख तीस हजार साल तक वह बेचारा बिना फर, बिना कपड़ों के रहा।
सोचिए कि हमें यह सब कैसे पता चला? एक छोटे से परजीवी के डी एन ए ने इस बात की चुगली वैज्ञानिकों से कर दी। यह परजीवी है कपड़ों की जूँ। वैज्ञानिकों ने जूँ के डी एन ए पर शोध कर पता लगाया कि सर की जूँ में से ही कुछ कपड़ों या शारीरिक जूँ में परिवर्तित हुईं। यह हुआ एक लाख सत्तर हजार साल पहले। क्योंकि यह जूँ सर में नहीं रहती केवल कपड़ों में रहती है सो कपड़ों के चलन से पहले यह भी न होगी। कपड़े चलन में आए तो यह भी उत्पन्न हो गई।
तब के लोगों ने भी कहा होगा कि देखो हर आधुनिक चीज़ अपने साथ एक श्राप लेकर आती है! और करो फैशन! जैसा भगवान ने बनाया था वैसे ही रहते तो दिन रात शरीर न खुजाना पड़ता केवल सर ही खुजाया करते जैसा कि शायद भगवान ने मानव के लिए निर्धारित किया था!
आज का मानव सोचता है कि भगवान चाहता है कि हम कपड़े पहनें और थोड़े नहीं ढेरों पहने। काश वैज्ञानिक यह भी पता लगा पाते कि भगवान क्या चाहता है। या यह सब चाहत केवल मौसम की है?
घुघूती बासूती
Sunday, January 09, 2011
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@आज का मानव सोचता है कि भगवान चाहता है कि हम कपड़े पहनें और थोड़े नहीं ढेरों पहने। काश वैज्ञानिक यह भी पता लगा पाते कि भगवान क्या चाहता है। या यह सब चाहत केवल मौसम की है?...
ReplyDeleteसही कह रही हैं.
फिर भी आदमी की नंगई नहीं गई.. ढेरों कपड़ों के बावजूद... माफी ऊपर के शब्द के लिये ..
ReplyDeleteबहुत मजेदार और जानकारी भरी पोस्ट.धन्यवाद और आभार.
ReplyDeleteरोचक जानकारी प्राप्त हुई।
ReplyDeleteएक जुयें में इतिहास छिपा था।
ReplyDeleteबहुत ही रोचक तरीके से दी ये जानकारी.
ReplyDeleteभगवान, वैज्ञानिक, सोच, आदि मानव, न जाने कितने बरसों का लेखा-जोखा... बस, बस अब एक कड़क चाय के बिना कुछ नहीं हो सकता.
ReplyDeleteबस एक चक्र है और क्या...
ReplyDeleteवाह कोई भी जानकारी यदि इस मजेदार तरीके से दी जाये तो वो और भी अच्छी लगती है |
ReplyDeleteबहुत मजेदार और बहुत ही रोचक तरीके से दी ये जानकारी\
ReplyDeleteha...ha...ha...ha...bhagvaan kyaa chaahataa hai....kyaa yah hamen nahin pataa....!!magar hamen kisi kee icchha se bhalaa kyaa matlab....ham to insaan hain naa.....shaayad bhagvaan se bhi bade....shaayad bhagvaan se bhi jyaadaa shaktishali...!!(bhagvaan hamaari rakshaa kare....!!!
ReplyDeleteआज तो कहर बरपा रहीं हैं.
ReplyDeleteअभी परसों ही उसने मुझसे कहा था कि मैं मौसम बदलना चाहता हूं तो फिर...बेहतर यही होगा कि तुम भी बदलते रहना :)
ReplyDeleteपिछले दो दिनों से उसने आपके फोन खराब कर रखे हैं वर्ना मैं ये बात पहले ही बता देता आपको :)
मकर संक्राति ,तिल संक्रांत ,ओणम,घुगुतिया , बिहू ,लोहड़ी ,पोंगल एवं पतंग पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteरोचक जानकारी ..... मौसम के अनुरूप
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